रांची से प्रकाशित एक नीतीश भक्त अखबार के पिछले
पृष्ठ पर एक समाचार पढ़ा, पढ़कर मन अति प्रसन्न हुआ। समाचार लालू प्रसाद से
संबंधित था, जिसमें लालू का बयान “जयललिता की तरह मैं भी होउंगा आरोपमुक्त” छपा था। मेरा भी
दृढ़ विश्वास हैं कि लालू आरोपमुक्त होंगे, क्योंकि भारत देश में नेता या उसका
परिवार कभी अपराधी हो ही नहीं सकता।
उसका प्रमाण हैं कि जिस प्रकार आजादी के पूर्व
किसी अंग्रेजों को उसके किये की सजा नहीं मिली, ठीक उसी प्रकार आजादी के बाद देश
का कोई भी नेता आरोप सिद्ध होने पर जेल में अपने किये की सजा नहीं काटी। ऐसे भी
हमारे देश में एक संत हुए नाम था – गोस्वामी तुलसीदास, जिन्होंने अपने कालजयी
पुस्तक श्रीरामचरितमानस में लिखा है “समरथ के नहिं दोषु गोसाईं” अर्थात् सामर्थ्यवानों में दोष नहीं होते, इसलिए इन्हें सजा नहीं
मिलती, तो सजा मिलती किसे है। स्पष्ट हैं कि, जो सामर्थ्यवान नहीं है। हमारे देश
में आप गर नेता हैं तो आप कितना भी घोटाला या महाघोटाला कर लीजिये, कुछ दिन या
वर्षों तक हंगामा होगा, जिस नेता पर आरोप होगा कुछ वर्षों के लिए जेल हो आयेगा, पर
अंततः वह दोष मुक्त हो जायेगा, क्योंकि वह नेता है। उसे निचली अदालत गर सजा सुना
भी दें, तो उपरि अदालत में वह निश्चित छूट जायेगा, क्योंकि वह नेता है। उदाहरण अनेक है, पर एक उदाहरण ताजा – ताजा
सुनाता हूं, एक अपराध में राजद और लालू के चहेते नेता पप्पू यादव को एक निचली
अदालत ने दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी और फिर कुछ ही महीनें बाद एक उपरि अदालत ने
उन्हें दोष मुक्त कर दिया। इसी प्रकार सीबीआई की एक अदालत ने लालू यादव को दोषी ठहराते हुए सजा
सुना दी, पर जरा देखिये वे आराम से कैसे राजनीति कर रहे हैं और अपने शरणागत आये
जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के समस्त कष्टों को हरने के लिए
एड़ी-चोटी एक कर दिये हैं। जबकि ये वहीं नीतीश हैं जो लालू के खिलाफ खूब अनाप शनाप
बयान देते थे। ये वहीं नीतीश हैं जो लालू को गद्दी से हटाकर सत्तासीन हुए। ये वहीं
नीतीश हैं, जो लालू को चारा घोटाले में जेल में सड़ाने के लिए क्या नही किये। ये
वहीं नीतीश हैं जो बिहार को जंगल राज से मुक्त करने के लिए बिहार की जनता को
आह्वान किया और आज उसी नीतीश को लालू में खुदा का नूर नजर आ रहा हैं। मैं तो ये भी
देख रहा हूं कि जो अखबार कल तक लालू का घोर विरोधी था, वह भी नीतीश की भक्ति में
आसक्त होकर लालू की खूब वाहवाही कर रहा हैं, अर्थात् इसी को कहते हैं समय अथवा
काल। शायद रहिमन ने ऐसे ही लोगों के बारे में ये पंक्तियां लिख डाली हो –“रहिमन चुप हवे
बैठिये, देखि दिनन के फेर, जब अच्छे दिन आइहे, बनत न लगिहे देर”। क्या बात हैं लालू
जी, समय आपका आ गया हैं कल का नीतीश आपके चरणों को चूम रहा हैं। कल का आपका विरोधी अखबार और संपादक आपके यशोगान
गा रहे हैं। इसका मतलब क्या हैं, जल्द ही आप ने जो सपना देखा हैं –पीएम बनने का,
वो भी ख्वाब पूरे हो जायेंगे, क्योंकि आप असली यादव और उसमें भी विशुद्ध नेता है।
मुलायम-शरद-लालू की जोड़ी जरुर गुल खिलायेगी। बस बिहार में गजब ढाने की तैयारी को
चरम पर ले जाना है।
आपके इसी सोच पर लगता हैं कि भारत के कई आईएएस और
आईपीएस अधिकारियों ने अपनी नौकरियां छोड़कर नेता बनने में ज्यादा रुचि दिखाई,
क्योंकि उन्होंने अपने अनुभवों से पाया कि जो जितना बड़ा नेता, वो उतना बड़ा चोर
अथवा घोटालेबाज और उसकी चोरी अथवा घोटाले को सिद्ध कर पाने में ताउम्र अधिकारी लगा
दें, सिद्ध नहीं कर पायेंगे गर किसी ने सिद्ध कर भी दिया तो न्यायालय से वे बचकर
निकल जायेंगे। ऐसे में आईएएस व आईपीएस की नौकरी गयी तेल लेने। नेता बनो, माल कमाओ।
देश का विकास जाये भाड़ में, अपने खानदान के लिए आठ पुश्त तक ऐसा जुगाड़ कर लो कि
कोई बाल बांका न कर सकें और ऐसा करने में कुछ हो भी गया तो क्या फर्क पड़ता हैं।
थोड़े ही फांसी की सजा होगी या कुछ हो जायेगा, क्योंकि नेता तो नेता होता हैं, उसे
अधिकार हैं, सब कुछ करने का, और नेता कभी गलत नहीं होता, नेता कभी दोषी नहीं होता,
नेता तो प्रकृति का पैदा किया हुआ वो शूरमा हैं, जिसके बारे में स्वर्ग में बैठा
भगवान भी उसके खिलाफ फैसला नहीं ले सकता। तभी तो मैं देख रहा हूं कि झारखंड में भी
कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी नेता बन गये। अखबार वाले भी नेता बन गये। गुंडे और
अपराधी तो पहले से ही लाइन में हैं, क्योंकि वे नेता के असली आदर्शों को खूब समझते
हैं। हां एक चीज जरुर देखने को मिल रही हैं कि अब समाज के कई चालाक लोगों ने नेता
के इस अद्भुत गुणों को देख, अब खुद को भी नेतागिरी में फिट करने की जुगत लगा दी
हैं।
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