मैंने धनबाद को पत्रकारिता के दौरान दो-दो बार
सेवाएं दी। एक जब दैनिक जागरण का ब्यूरो प्रमुख बना तब और दूसरी बार जब ईटीवी ने
धनबाद की बागडोर सौंपी। नजदीक से देखा हूं, धनबाद को। यहां ए के राय जैसे महान
वामपंथी विचारक व विजय झा जैसे देशभक्त लोग है तो दूसरी ओर कई लंपटों का समूह भी हैं, जो
येन-केन-प्रकारेण धनबाद को अपनी स्वार्थ के लिए बर्बाद करता रहता हैं और इसी को वो
समाज सेवा के रुप में आमजन को प्रदर्शित भी करता हैं। आश्चर्य इसलिए भी कि जनता भी
कभी-कभी उसके इस झांसे में आकर स्वयं को गौरवान्वित भी महसूस करती है। चलिए
छोड़िये इन बातों को, अब हम बात करते हैं, इस बार हुए धनबाद के मेयर चुनाव की। इस
बार मेयर के चुनाव में चंद्रशेखर अग्रवाल भारी मतों से विजयी हुए हैं। चंद्रशेखर
अग्रवाल विशुद्ध रुप से भाजपाई हैं। मेयर चुनाव जीतने के बाद फिलहाल गणेश परिक्रमा
करने के लिए रांची आये हुए हैं। गणेश परिक्रमा में ये सर्वप्रथम भाजपा कार्यालय
जाकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और कार्यालय में वरिष्ठ
भाजपा नेताओं से मिल चुके हैं। तदुपरांत मुख्यमंत्री आवास जाकर मुख्यमंत्री रघुवर
दास की परिक्रमा भी कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो चंद्रशेखर अग्रवाल रघुवर गुट
से आते हैं, जबकि मेरा मानना हैं कि राजनीति में कोई गुट नहीं होता, जब आप
शक्तिशाली होते हैं तो सभी आपके गुट के होते हैं और जब दुर्बल होते है तो आपसे लोग
कन्नी कटाते है। स्थिति ऐसी होती हैं कि वे दुर्बल व्यक्ति अथवा नेता के साथ फोटो
खीचाना तो दूर, गर पुराना फोटो भी होता हैं तो उसे ऐसा दबा कर रख देते हैं कि कहीं
कोई उस फोटो को फेसबुक वाल पर डालकर उसकी राजनीति की नैया न डूबा दें।
फिलहाल चंद्रशेखर अग्रवाल ने मेयर का चुनाव जीतकर
धनबाद के सांसद पी एन सिंह और धनबाद के विधायक राज सिन्हा की औकात तो जरुर बता दी,
क्योंकि इन दोनों नेताओं ने चंद्रशेखर अग्रवाल को हराने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी
थी। यहीं नहीं जिस चंद्रशेखर अग्रवाल को खुद को भाजपा नेता-कार्यकर्ता कहने में
गर्व महसूस होता था। उस चंद्रशेखर अग्रवाल को दिन में तारे दिखाई पड़ने लगे थे, जब
भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनसे दूरियां बनाकर, पीएन सिंह और राज सिन्हा समर्थक
प्रत्याशी राज कुमार अग्रवाल को जीताने के लिए पील पड़े। बेचारे अब शेखर क्या
करें। वस्तुतः सांसद पी एन सिंह और विधायक राज सिन्हा को चंद्रशेखर अग्रवाल से
भविष्य में होनेवाले संकट को लेकर स्पष्ट खतरा महसूस हो रहा था। इन दोनों को लग
रहा था कि गर चंद्रशेखर अग्रवाल मेयर का चुनाव जीते तो कहीं ऐसा नहीं कि भाजपा
आनेवाले दिनों में सांसद का टिकट अथवा विधायकी का टिकट चंद्रशेखर अग्रवाल के लिए सुरक्षित
न कर दें, क्योंकि सांसद के रुप में पीएन सिंह का कार्य धनबाद की जनता के अनुरुप
नहीं रहा हैं, और न ही संसद में इन्होंने कोई ऐसा कमाल दिखाया हैं, जिस पर धनबाद
की जनता गर्व कर सकें। राज सिन्हा तो चूंकि पहली बार विधायक ही बने हैं, इसलिए अभी
इन पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी, पर इतना तो तय हैं कि चंद्रशेखर अग्रवाल की
जीत, पी एन सिंह और राज सिन्हा की नींद हराम कर दी हैं। आखिर चंद्रशेखर अग्रवाल को
जीत कैसे मिली। उसका मूल कारण – विजय झा का शेखर अग्रवाल के लिए चाणक्य की भूमिका
में प्रकट होना और पूरे चुनाव की जिम्मेदारी और उसका संचालन ही नहीं, बल्कि पूरी
ईमानदारी से इसकी मानिटरिंग करना। चूंकि विजय झा, एक समय भाजपा जिलाध्यक्ष भी रह
चुके हैं, साथ ही उनकी छवि निर्विवाद रही हैं, आज भी वे धनबाद में एक प्रतिष्ठित
समाजसेवक के रुप में याद किये जाते है। पूर्व में मेयर के चुनाव में उनकी पत्नी
शिवानी झा मुख्य प्रतिद्वंदी रही, इसलिए पूर्व का अनुभव भी विजय झा के साथ रहा।
जिसका इस्तेमाल, उन्होंने इस चुनाव में किया और नतीजा सामने है। चंद्रशेखर अग्रवाल
मेयर का चुनाव जीत गये। संभव हैं आनेवाले समय में वे सांसद और विधायकी पर भी दावा
ठोंके पर ये तो भविष्य की बात हैं। हमें लगता हैं कि भाजपा को भी अब विचार करना
होगा, क्या वो कांग्रेस की बी टीम होगी, या स्वयं को परिमार्जित करेगी, शुद्ध
करेगी। उसे आत्ममंथन करना होगा कि आखिर
चंद्रशेखर अग्रवाल की जगह राज कुमार अग्रवाल भाजपाईयों की पसंद क्यूं बन गये। आखिर
विजय झा जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति का भाजपा से मोहभंग क्यों हो गया। गर एक एक कर
इसी तरह से योग्य व सम्मानित व्यक्ति अपमानित होकर, भाजपा से निकलते गये तो इसमें
कोई दो मत नहीं कि आनेवाले समय में जो जितना बड़ा भ्रष्ट वो उतना बड़ा भाजपा का
कैंडिडेट होगा, फिर भाजपा का आम नागरिकों के हृदय में क्या स्थान होगा। भाजपा के
शीर्षस्थ नेताओं को अभी से ही आत्ममंथन करना शुरु कर देना चाहिए। साथ हीं, हमें
लगता हैं कि चंद्रशेखर अग्रवाल को भी समझ में आ गया होगा कि भाजपा क्या हैं,
क्योंकि ये जीत उन्हें भाजपाईयों ने नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति ने दिलायी, एक ऐसे
जनसमूह ने दिलायी, जिसका भाजपा से प्यार नहीं था, बल्कि प्यार था, सम्मान से,
प्यार था प्रतिष्ठा से, प्यार था धनबाद के स्वाभिमान और विकास से। ये बातें
चंद्रशेखर अग्रवाल को गांठ बांधकर रख लेना चाहिए, नहीं तो कालांतराल में क्या
स्थिति होगी, वो समझ सकते हैं, क्योंकि जनता किसी की भी जागीर नहीं होती..........
No comments:
Post a Comment