30 दिसम्बर 2015
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
एक शिकायत है - लातेहार के बालूमाथ में उत्क्रमित मध्य विद्यालय बरहनियां खांड़ में कार्यरत पारा शिक्षक रमेश पांडेय हमेशा अनुपस्थित रहते है। ये प्रखण्ड स्तर पर दैनिक जागरण के पत्रकार भी है। पत्रकार होने के कारण दबंगई भी दिखाते है, जिनके डर से कोई बोलता नहीं। इनके घर में दो पहिया वाहन है, आर्थिक रुप से संपन्न है। इसके बावजूद बीपीएल की सूची में भी दर्ज है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिला के उपायुक्त को जांच का आदेश दिया। जांच में आरोप सही पाया गया और रमेश पांडेय को पारा शिक्षक के पद से निलंबित कर दिया गया।
1 फरवरी 2016
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
आनन्द कुमार की शिकायत थी कि चतरा का उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय टिलरा हेट-आहर पिछले एक साल से बंद है, जिसमें लगभग 50 विद्यार्थी अध्ययनरत थे, विद्यालय के बंद रहने से सारे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो गयी। विद्यालय के प्रधानाध्यापक मालिक बाबू ग्राम टिलरा के जन-वितरण प्रणाली के डीलर और प्रखण्ड स्तर पर एक प्रेस समूह में बतौर संवाददाता कार्य करते है, यहीं नहीं जनाब ठेकेदारी भी करते है। इन्होंने एक और कमाल किया है विद्यालय के भवन निर्माण के लिए वर्ष 2008 में 8 लाख रुपये आये थे, उसे बिना कार्य संपन्न कराये ही निकाल लिया।
जैसे ही मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’ में यह मामला आया, मुख्यमंत्री ने संबंधित जिला शिक्षा अधीक्षक को मामले की जांच करने और इस पर त्वरित कार्रवाई करने का आदेश दिया। पूरे मामले की जांच हुई। आरोप सही पाया गया। मालिक बाबू की सेवा समाप्त कर दी गयी और इनके खिलाफ मयूरहंद थाने में प्राथमिकी भी दर्ज करा दी।
18 मई 2016
रांची से प्रकाशित सारे अखबारों ने मुख्य पृष्ठ पर खबर छापी है कि ताजा टीवी के पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह उर्फ इंद्रदेव यादव की हत्या उग्रवादी संगठन टीपीसी ने करायी है, मामला लेवी से जुड़ा है। चतरा एसपी के बयान से बताया गया है कि पत्रकार इंद्रदेव यादव राजपुर थाना क्षेत्र में डीवीसी के तहत 33 हजार पोल लगाने का ठेका लिया था। वह तीन साल से काम कर रहा था। उग्रवादी संगठन टीपीसी ने सात लाख रुपये लेवी की मांग की। लेवी नहीं देने पर पत्रकार की हत्या 12 मई को 9.30 बजे रात्रि में कर दी गयी।
कुछ अन्य घटनाएं...
जब मैं ईटीवी धनबाद में कार्यरत था, तब उस समय भी दो हृदय विदारक घटनाएं घटी थी, जब एक पत्रकार से ठेकेदार बने व्यक्ति की हत्या कर दी गयी थी और दूसरा मैथन के हिन्दुस्तान संवाददाता पर जानलेवा हमला हुआ था। जिसने जानलेवा हमला किया था, वह हमला का जो कारण बताया था, वह बड़ा ही शर्मनाक था। यहीं नहीं 31 दिसम्बर 2006 को तो धनबाद के ही गांधी सेवा सदन में धनबाद के तथाकथित पत्रकारों का समूह मुर्गा तक कटवा दिया था, शराब की बोतले तक खोल दी थी, सिगरेट तक फूंक डाले गये थे जबकि सबको पता है कि गांधी से संबंधित किसी भी सदन में इस प्रकार की हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, फिर भी पत्रकारों ने ऐसी हरकत की। मैंने पत्रकारों के इस हरकतों को अपने ईटीवी पर दिखाया, नतीजा यह हुआ कि धनबाद के सारे मीडिया हाउस में बैठे शीर्षस्थ महानुभावों ने संयुक्त रुप से मेरे खिलाफ मोर्चा खोला और मेरे खिलाफ अनाप – शनाप एक अखबार में छपवाने लगे, उन्हें लगा कि मैं इससे डर जाउंगा, मैंने उनका मुकाबला किया और अपनी उपस्थिति शानदार ढंग से दर्ज करायी।
ये दृष्टांत है – आज के पत्रकारों के। मैं यह नहीं कहता कि झारखण्ड या अन्य जगहों के सारे पत्रकार ऐसे ही है, पर हां, इतना जरूर कहूंगा कि इनकी संख्या बहुतायत है और इनकी हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों को तो मैं देख रहा हूं, जिनसे ये आशा की जा सकती है कि वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आदर्श स्थापित करेंगे, जिसे देखकर आनेवाली पीढ़ी सीख लेंगी, वे मर्यादा को तोड़ने में ज्यादा रूचि दिखा रहे है। कोई राजनीतिज्ञों की भक्ति में ऐसे लग गया कि उसे राज्यसभा पहुंचने में परम आनन्द की प्राप्ति हो रही है, कोई सूचना आयुक्त बनकर स्वयं को धन्य कर चुका है, कोई बाडीगार्ड लेकर घूम रहा है और शान बघार रहा है, कोई कुकृत्यों से धन इकट्ठा कर रहा है, कोई अपनी पत्नी के नाम पर पोर्टल चला रहा है और नाना प्रकार से धन जुटाने के लिए वह सारी हरकतें कर रहा है, जिसे पत्रकारिता इजाजत नहीं देती। आश्चर्य इस बात की भी है कि ऐसे लोग ही उन लोगों को प्रवचन दे रहे है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कमाल है, जो पग-पग पर पत्रकारिता को अपनी जागीर बनाकर, स्वयं के जमीर को बेच डाला, वे पुरस्कृत हो रहे है, और जो किसी के आगे सर नहीं झुकाया, वे उसे कोस रहे है, यह कहकर कि अरे वो गधा है, वो क्या जाने की पत्रकारिता क्या है?
कुछ लोग तो यह भी कहेंगे कि पत्रकार क्या करे बेचारा। उसे तो अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले कुछ भी नहीं देते। मैं कहता हूं कि अगर कुछ नहीं देते तो इसका मतलब कि तुम जहां रहते हो, उसका हक छीन लोगे, उस पर दबंगई दिखाओगे। अगर अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले तुम्हें कुछ नहीं देते, तो तुम उनके यहां काम क्यों कर रहे हो, आखिर क्या वजह है कि तुम बिना पैसे के काम करने को तैयार हो, और उनकी सेवा को भी तैयार हो। मैं बताता हूं कि आखिर ऐसा तुम क्यों करते हो। वह हैं – झूठी इज्जत और पत्रकारिता की झूठी धौंस का तिलिस्म, जो तुम्हें इनके प्रति खींचता है और तुम जब तक जिंदा रहते हो, इस झूठी शान में अपनी जिंदगी गंवा देते हो, साथ ही अपने परिवार को और आनेवाले पीढ़ी को बर्बाद कर देते हो।
कमाल है, आजकल झारखण्ड में कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारों के हित के लिए लड़नेवाले संगठन भी खड़े हो गये है, जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था, आज लाखों-करोड़ों में खेलने लगे है। रांची, धनबाद, जमशेदपुर, गिरिडीह ही नहीं बल्कि दिल्ली में भी भाषण दे रहे है, किताबे छपवा रहे हैं, मंत्रियों और नेताओं को बुलाकर स्वयं महिमामंडित हो रहे हैं और चिरकूट टाइप के लोग उन्हें वाह-वाह करके आनन्दित हो रहे है। मैं कहता हूं कि अगर यहीं हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं कि जनता इन्हें पटक-पटक कर मारेगी...
कमाल है, आजकल मैं यह भी देख रहा हूं कि ये संगठन सरकार से पत्रकारों के लिए सुविधा मांग रहे हैं, पर जहां ये काम कर रहे होते है, वहां पर उन्हें इज्जत बचाने के लिए कुछ रोटी का प्रबंध हो जाये, कुछ पैसे मिल जाये, वहां आंदोलन करने और कराने में इनकी नानी मर जाती है, क्योंकि वे जानते है कि जैसे ही उन संस्थानों में ये आंदोलन करने जायेंगे, वहां पहले से ही रखे बाउंसर इनका ऐसा इलाज करेंगे कि इनकी सारी नेतागिरी ही तेल लेने चली जायेगी...
अंत में – जो चरित्रवान पत्रकार है, उन्हें कहीं कोई दिक्कत नहीं। दिक्कत तो उन्हें है, जो नेताओं की चरणवंदना या अधिकारियों की चाटुकारिता करते है, तभी तो इसी रांची के एटीआई में एक कार्यक्रम में एक अधिकारी ने कह डाला था कि आप पत्रकारों और माननीय मुख्यमंत्री के बीच में तो पति-पत्नी का संबंध होता है, पर किसी पत्रकार ने इसकी आलोचना तक नहीं की थी, सभी मन ही मन आनन्दित हो रहे थे, अंत में किसने इस पर प्रतिकार किया, किसने इसकी आलोचना की, वहां जो पत्रकार होंगे, उन्हें जरुर पता होगा। हमें लगता है कि इस पर अब ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं।
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
एक शिकायत है - लातेहार के बालूमाथ में उत्क्रमित मध्य विद्यालय बरहनियां खांड़ में कार्यरत पारा शिक्षक रमेश पांडेय हमेशा अनुपस्थित रहते है। ये प्रखण्ड स्तर पर दैनिक जागरण के पत्रकार भी है। पत्रकार होने के कारण दबंगई भी दिखाते है, जिनके डर से कोई बोलता नहीं। इनके घर में दो पहिया वाहन है, आर्थिक रुप से संपन्न है। इसके बावजूद बीपीएल की सूची में भी दर्ज है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जिला के उपायुक्त को जांच का आदेश दिया। जांच में आरोप सही पाया गया और रमेश पांडेय को पारा शिक्षक के पद से निलंबित कर दिया गया।
1 फरवरी 2016
स्थान – सूचना भवन, रांची।
कार्यक्रम – मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’।
आनन्द कुमार की शिकायत थी कि चतरा का उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय टिलरा हेट-आहर पिछले एक साल से बंद है, जिसमें लगभग 50 विद्यार्थी अध्ययनरत थे, विद्यालय के बंद रहने से सारे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो गयी। विद्यालय के प्रधानाध्यापक मालिक बाबू ग्राम टिलरा के जन-वितरण प्रणाली के डीलर और प्रखण्ड स्तर पर एक प्रेस समूह में बतौर संवाददाता कार्य करते है, यहीं नहीं जनाब ठेकेदारी भी करते है। इन्होंने एक और कमाल किया है विद्यालय के भवन निर्माण के लिए वर्ष 2008 में 8 लाख रुपये आये थे, उसे बिना कार्य संपन्न कराये ही निकाल लिया।
जैसे ही मुख्यमंत्री रघुवर दास की ‘सीधी बात’ में यह मामला आया, मुख्यमंत्री ने संबंधित जिला शिक्षा अधीक्षक को मामले की जांच करने और इस पर त्वरित कार्रवाई करने का आदेश दिया। पूरे मामले की जांच हुई। आरोप सही पाया गया। मालिक बाबू की सेवा समाप्त कर दी गयी और इनके खिलाफ मयूरहंद थाने में प्राथमिकी भी दर्ज करा दी।
18 मई 2016
रांची से प्रकाशित सारे अखबारों ने मुख्य पृष्ठ पर खबर छापी है कि ताजा टीवी के पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह उर्फ इंद्रदेव यादव की हत्या उग्रवादी संगठन टीपीसी ने करायी है, मामला लेवी से जुड़ा है। चतरा एसपी के बयान से बताया गया है कि पत्रकार इंद्रदेव यादव राजपुर थाना क्षेत्र में डीवीसी के तहत 33 हजार पोल लगाने का ठेका लिया था। वह तीन साल से काम कर रहा था। उग्रवादी संगठन टीपीसी ने सात लाख रुपये लेवी की मांग की। लेवी नहीं देने पर पत्रकार की हत्या 12 मई को 9.30 बजे रात्रि में कर दी गयी।
कुछ अन्य घटनाएं...
जब मैं ईटीवी धनबाद में कार्यरत था, तब उस समय भी दो हृदय विदारक घटनाएं घटी थी, जब एक पत्रकार से ठेकेदार बने व्यक्ति की हत्या कर दी गयी थी और दूसरा मैथन के हिन्दुस्तान संवाददाता पर जानलेवा हमला हुआ था। जिसने जानलेवा हमला किया था, वह हमला का जो कारण बताया था, वह बड़ा ही शर्मनाक था। यहीं नहीं 31 दिसम्बर 2006 को तो धनबाद के ही गांधी सेवा सदन में धनबाद के तथाकथित पत्रकारों का समूह मुर्गा तक कटवा दिया था, शराब की बोतले तक खोल दी थी, सिगरेट तक फूंक डाले गये थे जबकि सबको पता है कि गांधी से संबंधित किसी भी सदन में इस प्रकार की हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, फिर भी पत्रकारों ने ऐसी हरकत की। मैंने पत्रकारों के इस हरकतों को अपने ईटीवी पर दिखाया, नतीजा यह हुआ कि धनबाद के सारे मीडिया हाउस में बैठे शीर्षस्थ महानुभावों ने संयुक्त रुप से मेरे खिलाफ मोर्चा खोला और मेरे खिलाफ अनाप – शनाप एक अखबार में छपवाने लगे, उन्हें लगा कि मैं इससे डर जाउंगा, मैंने उनका मुकाबला किया और अपनी उपस्थिति शानदार ढंग से दर्ज करायी।
ये दृष्टांत है – आज के पत्रकारों के। मैं यह नहीं कहता कि झारखण्ड या अन्य जगहों के सारे पत्रकार ऐसे ही है, पर हां, इतना जरूर कहूंगा कि इनकी संख्या बहुतायत है और इनकी हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कुछ लोगों को तो मैं देख रहा हूं, जिनसे ये आशा की जा सकती है कि वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आदर्श स्थापित करेंगे, जिसे देखकर आनेवाली पीढ़ी सीख लेंगी, वे मर्यादा को तोड़ने में ज्यादा रूचि दिखा रहे है। कोई राजनीतिज्ञों की भक्ति में ऐसे लग गया कि उसे राज्यसभा पहुंचने में परम आनन्द की प्राप्ति हो रही है, कोई सूचना आयुक्त बनकर स्वयं को धन्य कर चुका है, कोई बाडीगार्ड लेकर घूम रहा है और शान बघार रहा है, कोई कुकृत्यों से धन इकट्ठा कर रहा है, कोई अपनी पत्नी के नाम पर पोर्टल चला रहा है और नाना प्रकार से धन जुटाने के लिए वह सारी हरकतें कर रहा है, जिसे पत्रकारिता इजाजत नहीं देती। आश्चर्य इस बात की भी है कि ऐसे लोग ही उन लोगों को प्रवचन दे रहे है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में खासकर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कमाल है, जो पग-पग पर पत्रकारिता को अपनी जागीर बनाकर, स्वयं के जमीर को बेच डाला, वे पुरस्कृत हो रहे है, और जो किसी के आगे सर नहीं झुकाया, वे उसे कोस रहे है, यह कहकर कि अरे वो गधा है, वो क्या जाने की पत्रकारिता क्या है?
कुछ लोग तो यह भी कहेंगे कि पत्रकार क्या करे बेचारा। उसे तो अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले कुछ भी नहीं देते। मैं कहता हूं कि अगर कुछ नहीं देते तो इसका मतलब कि तुम जहां रहते हो, उसका हक छीन लोगे, उस पर दबंगई दिखाओगे। अगर अखबार वाले और इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले तुम्हें कुछ नहीं देते, तो तुम उनके यहां काम क्यों कर रहे हो, आखिर क्या वजह है कि तुम बिना पैसे के काम करने को तैयार हो, और उनकी सेवा को भी तैयार हो। मैं बताता हूं कि आखिर ऐसा तुम क्यों करते हो। वह हैं – झूठी इज्जत और पत्रकारिता की झूठी धौंस का तिलिस्म, जो तुम्हें इनके प्रति खींचता है और तुम जब तक जिंदा रहते हो, इस झूठी शान में अपनी जिंदगी गंवा देते हो, साथ ही अपने परिवार को और आनेवाले पीढ़ी को बर्बाद कर देते हो।
कमाल है, आजकल झारखण्ड में कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारों के हित के लिए लड़नेवाले संगठन भी खड़े हो गये है, जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था, आज लाखों-करोड़ों में खेलने लगे है। रांची, धनबाद, जमशेदपुर, गिरिडीह ही नहीं बल्कि दिल्ली में भी भाषण दे रहे है, किताबे छपवा रहे हैं, मंत्रियों और नेताओं को बुलाकर स्वयं महिमामंडित हो रहे हैं और चिरकूट टाइप के लोग उन्हें वाह-वाह करके आनन्दित हो रहे है। मैं कहता हूं कि अगर यहीं हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं कि जनता इन्हें पटक-पटक कर मारेगी...
कमाल है, आजकल मैं यह भी देख रहा हूं कि ये संगठन सरकार से पत्रकारों के लिए सुविधा मांग रहे हैं, पर जहां ये काम कर रहे होते है, वहां पर उन्हें इज्जत बचाने के लिए कुछ रोटी का प्रबंध हो जाये, कुछ पैसे मिल जाये, वहां आंदोलन करने और कराने में इनकी नानी मर जाती है, क्योंकि वे जानते है कि जैसे ही उन संस्थानों में ये आंदोलन करने जायेंगे, वहां पहले से ही रखे बाउंसर इनका ऐसा इलाज करेंगे कि इनकी सारी नेतागिरी ही तेल लेने चली जायेगी...
अंत में – जो चरित्रवान पत्रकार है, उन्हें कहीं कोई दिक्कत नहीं। दिक्कत तो उन्हें है, जो नेताओं की चरणवंदना या अधिकारियों की चाटुकारिता करते है, तभी तो इसी रांची के एटीआई में एक कार्यक्रम में एक अधिकारी ने कह डाला था कि आप पत्रकारों और माननीय मुख्यमंत्री के बीच में तो पति-पत्नी का संबंध होता है, पर किसी पत्रकार ने इसकी आलोचना तक नहीं की थी, सभी मन ही मन आनन्दित हो रहे थे, अंत में किसने इस पर प्रतिकार किया, किसने इसकी आलोचना की, वहां जो पत्रकार होंगे, उन्हें जरुर पता होगा। हमें लगता है कि इस पर अब ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं।
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