बहुत दिनों की बात है...
जंगलों से आच्छादित एक भूखण्ड प्रदेश था...
जहां चपलकांत नामक एक सियार पत्रकार था...
उसकी धूर्त बातों से अनभिज्ञ जंगलों के अन्य जीव-जंतु उसे महान बुद्धिजीवी समझते और चपलकांत उस भूखण्ड प्रदेश में सारे जीव-जंतुओं को बेवकूफ बनाकर राज किया करता था। उसकी धूर्तता से अनभिज्ञ उसके ज्ञान के कायल सत्तापक्ष और विपक्ष के लोग भी थे। उसकी पत्रकारिता से भय खा कर कई प्रशासनिक अधिकारी उसकी सेवा में लगे रहते, और उसे अपने – अपने विभागों की सुंदर-सुंदर कॉटेजों और अतिथिगृहों में आनन्द की सारी सामग्रियां उपलब्ध किया करते। चपलकांत अपनी प्रिय पत्नी और बच्चों के साथ परम आनन्द की प्राप्ति करता, साथ ही अगर सेवा के दौरान कुछ गड़बड़ियां दीख जाती तो वह पत्रकारिता का धौंस दिखाकर जंगल के छोटे-छोटे कर्मचारियों को अपना भय दिखाना नहीं भूलता...
उसकी इस धौंस और धूर्तता से धीरे-धीरे भूखण्ड प्रदेश के सभी वन्य प्राणी परेशान होने लगे...
पर सत्ता के सर्वोच्च सिंहासनों तक उसकी धौंस और उसकी पत्नी के भी एक न्यूज पोर्टल के संपादक बन जाने से सभी की नींद उड़ गयी थी, कि अब क्या होगा...क्योंकि वह नाना प्रकार के कुटिल हरकतें करता और पुरस्कार के लालचियों और घटियास्तर के भ्रष्ट लोगों को श्रेष्ठनायक का पुरस्कार देकर अपने आपको और मजबूत करता चला जाता...
यहीं नहीं भूखण्ड प्रदेश में कार्यरत सत्तावचन प्रसारित भवन में भी उसकी धमक रहती और वह इसका फायदा उठाने में कोई कोताही नहीं बरतता...
उसकी इस हरकत से धीरे-धीरे उस भूखण्ड प्रदेश की पत्रकारिता की छवि धूमिल होने लगी। भूखण्ड प्रदेश के कई बुद्धिजीवियों ने भूखण्ड प्रदेश में रहनेवाले सभी जीव-जंतुओं को उससे सावधान करने का मन बनाया...
तभी भूखण्ड प्रदेश में चल रहे एक महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान में एक भयंकर ज्ञान-विस्फोट हुआ, जिसमें उसकी हवा निकल गयी, यहीं उसे पहला झटका मिला...फिर भी उसे लगा कि जब वह चपलकांत ही है, तो इस प्रकार की झटकों से उसके सम्मान को कुछ नहीं होता, क्योंकि सारे संसार में उसके जैसे लोग भरे पड़े हैं, ऐसे भी उसका जन्म ही इसी प्रकार की हरकतों को करने के लिए हुआ है...
इसलिए वह हर प्रकार के हथकंडों में निपुण होता जाता...कभी वो गायक बन जाता, तो कभी साहित्यकार, तो कभी प्रोफेसर तो कभी विद्यार्थी, यानी जब जैसा तब तैसा...पत्रकार तो था ही...
इसी चक्कर में उसने सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने का लालसा पा लिया...
इस लालसा को पा लेने के बाद उसे परमज्ञान हुआ कि ये तो भूखण्ड प्रदेश है...
यहां तो सारे के सारे नेता और अधिकारी गधे और मूर्ख है...एक सबसे ज्यादा तेज तो वहीं हैं, जिसकी ज्ञान से भूखण्ड प्रदेश के सारे जीव-जंतु हैरान है...
इसलिए, उसने एक स्वज्ञान आधारित एक स्मारिका निकालने की सोची, जिससे उसे अपार धन हासिल हो...उसने भूखण्ड प्रदेश के सारे नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के आगे नाचना शुरू किया...जिससे उसकी रही-सही इज्जत भी धूल में मिल गयी, साथ ही उसके परम मित्रों में भी जो सम्मान बचा था, वह भी धुल गया...
पर उसकी धन कमाने की लालसा नहीं गयी...
वह धन कमाने के चक्कर में अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी तथाकथित धूर्तनिष्ठ पत्रकारिता का चरणामृत चखा दिया...
जिससे बच्चे बड़ी तेजी से उसके कुकृत्यों के शिकार होने लगे...
वो कहावत है न
बाढ़हु पुत पिता के धर्में, खेती उपजे अपना कर्मे
जब पिता के धर्म पर पुत्र आगे बढ़ सकता है, तो पिता के कुकर्म पर बच्चे नीचे जायेंगे ही।
उस चपलकांत सियार के बच्चे सत्यनिष्ठ बनना तो दूर, धूर्तनिष्ठ होने लगे...
पर सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने के चक्कर में चपलकांत सियार नामक पत्रकार इतना खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि उसका सारा तेज धीरे – धीरे कुकर्मों से युक्त होकर धूमिल होता जा रहा है...
एक दिन वह भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत अधिकारियों को अपने ज्ञान का स्वाद चखाने के लिए ताना-बाना बुना, पर उसकी चालाकी को जान लेने के बाद भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत काम करनेवाले अधिकारियों ने उसकी एक न सुनी और उस धनपशु चपलकांत को औकात बता दी और कहा कि वह ज्यादा काबिल न बने, नहीं तो उसे लेने के देने पड़ जायेंगे...
बेचारा चपलकांत, उसकी रही-सही बुद्धि भी खत्म हो गयी...
और शीर्ष पर रहनेवाला चपलकांत धड़ाम से जमीन पर आकर गिर पड़ा...
जंगलों से आच्छादित एक भूखण्ड प्रदेश था...
जहां चपलकांत नामक एक सियार पत्रकार था...
उसकी धूर्त बातों से अनभिज्ञ जंगलों के अन्य जीव-जंतु उसे महान बुद्धिजीवी समझते और चपलकांत उस भूखण्ड प्रदेश में सारे जीव-जंतुओं को बेवकूफ बनाकर राज किया करता था। उसकी धूर्तता से अनभिज्ञ उसके ज्ञान के कायल सत्तापक्ष और विपक्ष के लोग भी थे। उसकी पत्रकारिता से भय खा कर कई प्रशासनिक अधिकारी उसकी सेवा में लगे रहते, और उसे अपने – अपने विभागों की सुंदर-सुंदर कॉटेजों और अतिथिगृहों में आनन्द की सारी सामग्रियां उपलब्ध किया करते। चपलकांत अपनी प्रिय पत्नी और बच्चों के साथ परम आनन्द की प्राप्ति करता, साथ ही अगर सेवा के दौरान कुछ गड़बड़ियां दीख जाती तो वह पत्रकारिता का धौंस दिखाकर जंगल के छोटे-छोटे कर्मचारियों को अपना भय दिखाना नहीं भूलता...
उसकी इस धौंस और धूर्तता से धीरे-धीरे भूखण्ड प्रदेश के सभी वन्य प्राणी परेशान होने लगे...
पर सत्ता के सर्वोच्च सिंहासनों तक उसकी धौंस और उसकी पत्नी के भी एक न्यूज पोर्टल के संपादक बन जाने से सभी की नींद उड़ गयी थी, कि अब क्या होगा...क्योंकि वह नाना प्रकार के कुटिल हरकतें करता और पुरस्कार के लालचियों और घटियास्तर के भ्रष्ट लोगों को श्रेष्ठनायक का पुरस्कार देकर अपने आपको और मजबूत करता चला जाता...
यहीं नहीं भूखण्ड प्रदेश में कार्यरत सत्तावचन प्रसारित भवन में भी उसकी धमक रहती और वह इसका फायदा उठाने में कोई कोताही नहीं बरतता...
उसकी इस हरकत से धीरे-धीरे उस भूखण्ड प्रदेश की पत्रकारिता की छवि धूमिल होने लगी। भूखण्ड प्रदेश के कई बुद्धिजीवियों ने भूखण्ड प्रदेश में रहनेवाले सभी जीव-जंतुओं को उससे सावधान करने का मन बनाया...
तभी भूखण्ड प्रदेश में चल रहे एक महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान में एक भयंकर ज्ञान-विस्फोट हुआ, जिसमें उसकी हवा निकल गयी, यहीं उसे पहला झटका मिला...फिर भी उसे लगा कि जब वह चपलकांत ही है, तो इस प्रकार की झटकों से उसके सम्मान को कुछ नहीं होता, क्योंकि सारे संसार में उसके जैसे लोग भरे पड़े हैं, ऐसे भी उसका जन्म ही इसी प्रकार की हरकतों को करने के लिए हुआ है...
इसलिए वह हर प्रकार के हथकंडों में निपुण होता जाता...कभी वो गायक बन जाता, तो कभी साहित्यकार, तो कभी प्रोफेसर तो कभी विद्यार्थी, यानी जब जैसा तब तैसा...पत्रकार तो था ही...
इसी चक्कर में उसने सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने का लालसा पा लिया...
इस लालसा को पा लेने के बाद उसे परमज्ञान हुआ कि ये तो भूखण्ड प्रदेश है...
यहां तो सारे के सारे नेता और अधिकारी गधे और मूर्ख है...एक सबसे ज्यादा तेज तो वहीं हैं, जिसकी ज्ञान से भूखण्ड प्रदेश के सारे जीव-जंतु हैरान है...
इसलिए, उसने एक स्वज्ञान आधारित एक स्मारिका निकालने की सोची, जिससे उसे अपार धन हासिल हो...उसने भूखण्ड प्रदेश के सारे नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के आगे नाचना शुरू किया...जिससे उसकी रही-सही इज्जत भी धूल में मिल गयी, साथ ही उसके परम मित्रों में भी जो सम्मान बचा था, वह भी धुल गया...
पर उसकी धन कमाने की लालसा नहीं गयी...
वह धन कमाने के चक्कर में अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी तथाकथित धूर्तनिष्ठ पत्रकारिता का चरणामृत चखा दिया...
जिससे बच्चे बड़ी तेजी से उसके कुकृत्यों के शिकार होने लगे...
वो कहावत है न
बाढ़हु पुत पिता के धर्में, खेती उपजे अपना कर्मे
जब पिता के धर्म पर पुत्र आगे बढ़ सकता है, तो पिता के कुकर्म पर बच्चे नीचे जायेंगे ही।
उस चपलकांत सियार के बच्चे सत्यनिष्ठ बनना तो दूर, धूर्तनिष्ठ होने लगे...
पर सर्वश्रेष्ठ धनपशु बनने के चक्कर में चपलकांत सियार नामक पत्रकार इतना खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि उसका सारा तेज धीरे – धीरे कुकर्मों से युक्त होकर धूमिल होता जा रहा है...
एक दिन वह भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत अधिकारियों को अपने ज्ञान का स्वाद चखाने के लिए ताना-बाना बुना, पर उसकी चालाकी को जान लेने के बाद भूखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके मातहत काम करनेवाले अधिकारियों ने उसकी एक न सुनी और उस धनपशु चपलकांत को औकात बता दी और कहा कि वह ज्यादा काबिल न बने, नहीं तो उसे लेने के देने पड़ जायेंगे...
बेचारा चपलकांत, उसकी रही-सही बुद्धि भी खत्म हो गयी...
और शीर्ष पर रहनेवाला चपलकांत धड़ाम से जमीन पर आकर गिर पड़ा...
शिक्षा – क. पत्रकारिता में ईमानदारी अवश्य बरतनी चाहिये...
ख. आपके किये कुकर्म आपको उपर नहीं, बल्कि नीचे ले जाते हैं...
ग. चरित्रवान होना, सारी सफलता की कुंजी है, इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं...
ख. आपके किये कुकर्म आपको उपर नहीं, बल्कि नीचे ले जाते हैं...
ग. चरित्रवान होना, सारी सफलता की कुंजी है, इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं...
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