7 मई 2016
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश के प्यारे, अनुज का डॉ. के. के. सिन्हा पर केन्द्रित दो पृष्ठों का आलेख छपा है। इन दो पृष्ठों में डॉ. के के सिन्हा की जमकर आरती उतारी गयी है। उन्हें इस प्रकार से पेश किया गया है, जैसे वे साक्षात् मुक्तिदाता – मोक्षदाता हो। जिनके दर्शन मात्र से सारे रोग भाग खड़े होते है। आलेख की शुरूआत होती है – जब नहीं दिखती कहीं कोई उम्मीद, तब याद आते है डॉ. के के सिन्हा। इस आलेख में क्या खास है, सर्वप्रथम उसे जानिये –
1. डॉ. के के सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को ठीकठाक बताया है, पर झारखण्ड के अन्य 90 प्रतिशत राजनीतिज्ञों को बेवकूफ बताया है।
2. जो लोग डाक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते है, उन्हें डॉ. के के सिन्हा अनपढ़ और बेवकूफ बताता है। वह उन हिन्दुस्तानियों को भी बेवकूफ मानता है, जो पूजा करते है। उसके अनुसार इन हिन्दुस्तानियों के पास दूसरा कोई चारा नहीं है, साधन भी नहीं है, इसलिए वे भगवान के आगे हाथ जोड़ते है, लेकिन वह भगवान को नहीं मानता, इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
3. डॉ. के के सिन्हा अपने बयान में भारतीयों को यह भी कहा है कि भारतीय भिखारियों की तरह खाना खाते हैं।
4. वह यह भी कहता है कि जवाहर लाल नेहरू में कुछ कमियां थी, हिन्दुस्तान का बंटवारा नहीं होता, अगर नेहरू प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं रखते। वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे और जगन्नाथ मिश्र के खिलाफ भी अनाप-शनाप बयान दिया है।
और अब अपनी बात...
आम तौर पर इस प्रकार के आलेख तभी छपते है, जब कोई विशेष दिन हो या कोई विशेष क्षण...
आखिर इस प्रकार के किसी व्यक्ति विशेष को महिमामंडित करने के आलेख छापने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? कुछ न कुछ तो बात जरुर होगी, क्योंकि बिना आवश्यकता के तो प्रभात खबर कुछ छापता ही नहीं और ऐसे भी 7 मई को कोई डाक्टर दिवस या मरीज दिवस तो था ही नहीं, फिर इसकी जरुरत क्यों पड़ गयी? हो सकता है कि प्रभात खबर के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को के के सिन्हा से दिखाने की जरूरत पड़ गयी हो या हो सकता है कि प्रभात खबर ये देख रहा हो कि के के सिन्हा नामी गिरामी डाक्टर हैं, उनसे ऐसा संबंध बनाया जाय कि आराम से एक फोन घुमाने पर ही उनका नंबर मिल जाये, जैसा कि अनुज ने महिमामंडित करने में लिखा है कि इनका नंबर मिलने में 6-6 महीने लग जाते है।
हो सकता है कि के के सिन्हा के मन में ये बात उठी हो कि भाई अशोक भगत और सिमोन उरांव जैसे लोग पद्मश्री ले रहे है तो भाई हमारे में क्या कमी है?, हमे भी मिल जाये। इसलिए उसने सोची समझी रणनीति के तहत राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री की झूठी तारीफ और बाकी को बेवकूफ बता दिया हो या और कुछ न कुछ अंदर खिचड़ी जरूर पक रहा हो, जहां तक मेरा ध्यान नहीं गया हो...
अब कुछ सवाल प्रभात खबर से...
आप इस प्रकार के आलेख लिखकर क्या साबित करना चाहते हो?
क्या आप बता सकते हो...
कि जनाब के फीस कितने है?
और जितने का वो इलाज करते है, कभी ईमानदारी से उसका आयकर भी चुकाया हैं, हमारे पास तो इतने लोग आये है, इनके पास से इलाज कराकर, कि उनके पैड पर केवल उनके दवा के नाम होते है, पर निबंधन संख्या होता ही नहीं, आखिर बिना निबंधन वाले पैसे कहा जाते है।
इसी रांची में डॉ. एस पी मुखर्जी है, जिनकी फीस मात्र 5 रुपये है, और वहां डॉ. के के सिन्हा से ज्यादा मरीज दर्द लेकर आते है और मुस्कुराते हुए जाते है...
इसी रांची में डॉ. पी आर प्रसाद हुए, जो आज दुनिया में नहीं है, उनकी फीस मात्र 100 रुपये थी और उनके यहां इलाज कराकर बहुत सारे लोग खुश थे। उनके निधन पर बहुत लोगों को दर्द हुआ था, शायद आपको नहीं मालूम...आप जिस प्रकार से इस व्यक्ति को पेश किया उसे हम पत्रकारिता नहीं कहते, क्या कहते है, वो आप खुद ही जान लो...
और ये भी जान लो कि हमारे देश में तो जिसका चल जाता है, तो चल जाता है...
जैसे एक लोकोक्ति है, जो बिहार में खूब चलता है,
वो क्या कहते है...
नामी ..... का, ....बिकाता है
अंततः
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत देना, जिसकी फीस दो हजार हो...
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत बनाना, जो स्वयं को महान और दूसरे को, खासकर सामान्य जन को जाहिल समझता हो...
क्योंकि जो दूसरे को जाहिल समझेगा, वह उसके साथ क्या सलूक करेगा...
आपसे बेहतर कौन जान सकता है...
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश के प्यारे, अनुज का डॉ. के. के. सिन्हा पर केन्द्रित दो पृष्ठों का आलेख छपा है। इन दो पृष्ठों में डॉ. के के सिन्हा की जमकर आरती उतारी गयी है। उन्हें इस प्रकार से पेश किया गया है, जैसे वे साक्षात् मुक्तिदाता – मोक्षदाता हो। जिनके दर्शन मात्र से सारे रोग भाग खड़े होते है। आलेख की शुरूआत होती है – जब नहीं दिखती कहीं कोई उम्मीद, तब याद आते है डॉ. के के सिन्हा। इस आलेख में क्या खास है, सर्वप्रथम उसे जानिये –
1. डॉ. के के सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को ठीकठाक बताया है, पर झारखण्ड के अन्य 90 प्रतिशत राजनीतिज्ञों को बेवकूफ बताया है।
2. जो लोग डाक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते है, उन्हें डॉ. के के सिन्हा अनपढ़ और बेवकूफ बताता है। वह उन हिन्दुस्तानियों को भी बेवकूफ मानता है, जो पूजा करते है। उसके अनुसार इन हिन्दुस्तानियों के पास दूसरा कोई चारा नहीं है, साधन भी नहीं है, इसलिए वे भगवान के आगे हाथ जोड़ते है, लेकिन वह भगवान को नहीं मानता, इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
3. डॉ. के के सिन्हा अपने बयान में भारतीयों को यह भी कहा है कि भारतीय भिखारियों की तरह खाना खाते हैं।
4. वह यह भी कहता है कि जवाहर लाल नेहरू में कुछ कमियां थी, हिन्दुस्तान का बंटवारा नहीं होता, अगर नेहरू प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं रखते। वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे और जगन्नाथ मिश्र के खिलाफ भी अनाप-शनाप बयान दिया है।
और अब अपनी बात...
आम तौर पर इस प्रकार के आलेख तभी छपते है, जब कोई विशेष दिन हो या कोई विशेष क्षण...
आखिर इस प्रकार के किसी व्यक्ति विशेष को महिमामंडित करने के आलेख छापने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? कुछ न कुछ तो बात जरुर होगी, क्योंकि बिना आवश्यकता के तो प्रभात खबर कुछ छापता ही नहीं और ऐसे भी 7 मई को कोई डाक्टर दिवस या मरीज दिवस तो था ही नहीं, फिर इसकी जरुरत क्यों पड़ गयी? हो सकता है कि प्रभात खबर के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को के के सिन्हा से दिखाने की जरूरत पड़ गयी हो या हो सकता है कि प्रभात खबर ये देख रहा हो कि के के सिन्हा नामी गिरामी डाक्टर हैं, उनसे ऐसा संबंध बनाया जाय कि आराम से एक फोन घुमाने पर ही उनका नंबर मिल जाये, जैसा कि अनुज ने महिमामंडित करने में लिखा है कि इनका नंबर मिलने में 6-6 महीने लग जाते है।
हो सकता है कि के के सिन्हा के मन में ये बात उठी हो कि भाई अशोक भगत और सिमोन उरांव जैसे लोग पद्मश्री ले रहे है तो भाई हमारे में क्या कमी है?, हमे भी मिल जाये। इसलिए उसने सोची समझी रणनीति के तहत राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री की झूठी तारीफ और बाकी को बेवकूफ बता दिया हो या और कुछ न कुछ अंदर खिचड़ी जरूर पक रहा हो, जहां तक मेरा ध्यान नहीं गया हो...
अब कुछ सवाल प्रभात खबर से...
आप इस प्रकार के आलेख लिखकर क्या साबित करना चाहते हो?
क्या आप बता सकते हो...
कि जनाब के फीस कितने है?
और जितने का वो इलाज करते है, कभी ईमानदारी से उसका आयकर भी चुकाया हैं, हमारे पास तो इतने लोग आये है, इनके पास से इलाज कराकर, कि उनके पैड पर केवल उनके दवा के नाम होते है, पर निबंधन संख्या होता ही नहीं, आखिर बिना निबंधन वाले पैसे कहा जाते है।
इसी रांची में डॉ. एस पी मुखर्जी है, जिनकी फीस मात्र 5 रुपये है, और वहां डॉ. के के सिन्हा से ज्यादा मरीज दर्द लेकर आते है और मुस्कुराते हुए जाते है...
इसी रांची में डॉ. पी आर प्रसाद हुए, जो आज दुनिया में नहीं है, उनकी फीस मात्र 100 रुपये थी और उनके यहां इलाज कराकर बहुत सारे लोग खुश थे। उनके निधन पर बहुत लोगों को दर्द हुआ था, शायद आपको नहीं मालूम...आप जिस प्रकार से इस व्यक्ति को पेश किया उसे हम पत्रकारिता नहीं कहते, क्या कहते है, वो आप खुद ही जान लो...
और ये भी जान लो कि हमारे देश में तो जिसका चल जाता है, तो चल जाता है...
जैसे एक लोकोक्ति है, जो बिहार में खूब चलता है,
वो क्या कहते है...
नामी ..... का, ....बिकाता है
अंततः
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत देना, जिसकी फीस दो हजार हो...
हे भगवान, ऐसे कभी डाक्टर मत बनाना, जो स्वयं को महान और दूसरे को, खासकर सामान्य जन को जाहिल समझता हो...
क्योंकि जो दूसरे को जाहिल समझेगा, वह उसके साथ क्या सलूक करेगा...
आपसे बेहतर कौन जान सकता है...
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