स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अधिकांश माता –पिता अनैतिक रूप से धन
कमाकर, अपने बच्चों का भरण-पोषण करते है, साथ ही ये आशा भी रखते है कि ये
बच्चे बड़े होकर, उनकी सेवा करें और देशभक्त हो। भला अनैतिक रूप से धन
कमाकर, उस धन से बच्चों का भरण-पोषण होने से बच्चे नैतिकरुप से कैसे मजबूत
होंगे, ये मुझे समझ में नहीं आता। ये तो वहीं बात हुई कि पेड़ बो रहे है
बबूल के और आशा रख रहे है कि इस बबूल से आम निकलेंगे।
ऐसे भी हमारा देश काफी प्रगति किया है...
जैसे जिन्हें चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना है, तो वे धन-पशु बनने में सर्वाधिक समय व्यतीत कर रहे हैं, धन-पशु बनने के लिए जितनी भी कलाएं होनी चाहिए, उन सारे कलाओं में पारंगत हो गये, नतीजा स्वयं देखिये कल तक योगगुरु थे, आज व्यवसायी गुरु हो गये। कल तक उनकी एक झलक पाने के लिए लोग लालायित रहते थे, आज वे स्वयं को मॉडल के रूप में स्थापित कर रहे है, फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा, जिनकी उन्होंने कभी लालसा रखी थी, वे तो इतने गिर गये है कि उन्हें अब राम और रावण में भी फर्क करना नहीं आ रहा...
इसी प्रकार, मैं देखता हूं कि कई ऐसे मंदिर देश में बने है, जो उद्योगपतियों के नाम पर है...कई ऐसे राजनीतिज्ञों को देखता हूं कि अनैतिक रूप से धन कमाकर, अपनी हैसियत दिन दुनी रात चौगुनी करते जा रहे है, और जब रमजान का महीना आयेगा तो ये अपने घरों में सफेद टोपी पहनकर इफ्तार का ऐसा आयोजन करते है, जैसे लगता है कि इन्होंने जिंदगी में कोई दंगा-फसाद या घृणित कार्य ही न किया हो और उससे भी बड़ा आश्चर्य कि ऐसे घटियास्तर के राजनीतिबाजों के इफ्तार में शामिल होने के लिए तथाकथित बड़े-बड़े मौलानाओं की झूंड भी आ खड़ी होती है।
रांची में एक सज्जन है, बहुत बड़े व्यापारी, मीडिया हाउस चलाते है, धन इतना कमाया है कि पूछिये मत, पर पर्यावरण की धज्जियां उड़ाने में, खनिज संपदा को लूटने में, अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों का शोषण करने में, सरकार की कर प्रणालियों को चूना लगाने में, सबसे आगे है।
रांची में एक और सज्जन को मैंने देखा है कि वे बराबर नैतिकता की दूहाई देते थे, कोई ऐसा महीना नहीं होगा, जिस महीने में वे छद्म नाम से नैतिकता संबंधी या स्वयं के नाम पर नैतिकता संबंधी आलेख न छापे हो, उनके इस आलेख से कई लोग भ्रमित होकर, उन्हें महान इंसान समझ रखे थे, पर जैसे ही बिहार के एक राजनीतिज्ञ ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने का ऐलान किया, उनकी सारी पत्रकारिता की नैतिकता की गंगोत्री उस बिहार के राजनीतिज्ञ के चरणों में जाकर लोटने लगी।
मैंने कई आइएएस और आइपीएस अधिकारियों को देखा है, जिन्हें देखकर या उनकी स्क्रिप्ट पढ़कर मैं हैरान हो जाता हूं कि ये आदमी आइएएस या आइपीएस कैसे बन गया, तभी मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आती है कि बेटे ये भारत देश है , यहां भाग्य का भी विधान है, ये भाग्य का बहुत ही मजबूत है, पूर्व जन्म में कुछ बेहतर किया है, इसलिए इस जन्म में आइएएस या आइपीएस बन गया है, इसका राजयोग है, जब तक जिंदा रहेगा, लूटेगा, खायेगा, मर जायेगा, इससे देश-सेवा या समाज-सेवा की परिकल्पना भी करना बेमानी है...
ये कुछ दृष्टांत है...
और अब सवाल कि आखिर ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों है...
मैंने इसमें राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, उद्योगपतियों, अधिकारियों और संतो के कुछ दृष्टांत दिये है, जो बताने के लिए काफी है कि हमारा समाज कितना गिर रहा है, यह भी बताने के लिए काफी है, कि जिनके उपर दारोमदार है, देश को आगे बढ़ाने का, वे कितने गिरे हुए है और जब जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है, देश को आगे बढ़ाने का और वे अपने बेटे-बेटियों और अपनी पत्नियों के आगे कुछ सोचे ही नहीं तो समझ लो, देश बदल रहा है, और ये आगे नहीं, पीछे जा रहा है। देश या समाज, वहां रह रहे व्यक्तियों के चरित्र व व्यक्तित्व से जाना जाता है, और ये चरित्र या व्यक्तित्व का झलक मिलता है, वहां कार्य कर रहे अधिकारियों, संतों, पत्रकारों, उदयोगपतियों, राजनीतिज्ञों और वहां रह रही आम जनता से, पर यहां सभी ने सारी मर्यादाएं तोड़कर धन-पशु बनने में ही समय ज्यादा लगा दिया है, ऐसे में इन धन-पशुओं से भारत के निर्माण की बात करना मूर्खता है...
एक बात और जान लीजिये...
भारत बहुमंजिलों इमारतवाली भवनों वाली स्थानों का नाम नहीं...
भारत कल-कारखानोंवाली औद्योगिक स्थलियों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में डांसबार या बीयरबार वाली सांस्कृतिक केन्द्रों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में अधकचरा ज्ञान बिखरनेवाले पत्रकारों की अशिष्ट मंडलियों का नाम नहीं...
भारत घटियास्तर के राजनीतिज्ञों जो अपनी पत्नी, बेटे और बेटियों में अपना सुख-चैन देखते हैं, उसका नाम नहीं...
भारत उन अधिकारियों वाले देश का नाम नहीं, जो जिंदगी भर जोंक की तरह भारत की जनता का खून चूसकर धन इकट्ठा करते हैं...
भारत उन उदयोगपतियों का नाम नहीं, जो अनैतिक रुप से धन कमाते हैं...
भारत तो त्याग का दूसरा नाम है...
भारत तो मर्यादा का दूसरा नाम है...
भारत तो गुणता का दूसरा नाम है...
भारत तो कर्मयोग को ग्रहण करने का दूसरा नाम है...
पर फिलहाल, भारत में अधिकांश लोग, धन-पशु बनने की कला में माहिर होकर, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ धन-पशु बनने के लिए एक – दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं...
जिसमें राजनीतिज्ञों-पत्रकारों-अधिकारियों और सामान्य जन के लोग भी दिल से लगे हुए हैं, यानी कल तक जो भारत जिस चीज के लिए जाना जाता था, आज वहीं चीज यहां ढूंढने को नहीं मिल रही, ये हैं 1947 के बाद हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि...
ऐसे भी हमारा देश काफी प्रगति किया है...
जैसे जिन्हें चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना है, तो वे धन-पशु बनने में सर्वाधिक समय व्यतीत कर रहे हैं, धन-पशु बनने के लिए जितनी भी कलाएं होनी चाहिए, उन सारे कलाओं में पारंगत हो गये, नतीजा स्वयं देखिये कल तक योगगुरु थे, आज व्यवसायी गुरु हो गये। कल तक उनकी एक झलक पाने के लिए लोग लालायित रहते थे, आज वे स्वयं को मॉडल के रूप में स्थापित कर रहे है, फिर भी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा, जिनकी उन्होंने कभी लालसा रखी थी, वे तो इतने गिर गये है कि उन्हें अब राम और रावण में भी फर्क करना नहीं आ रहा...
इसी प्रकार, मैं देखता हूं कि कई ऐसे मंदिर देश में बने है, जो उद्योगपतियों के नाम पर है...कई ऐसे राजनीतिज्ञों को देखता हूं कि अनैतिक रूप से धन कमाकर, अपनी हैसियत दिन दुनी रात चौगुनी करते जा रहे है, और जब रमजान का महीना आयेगा तो ये अपने घरों में सफेद टोपी पहनकर इफ्तार का ऐसा आयोजन करते है, जैसे लगता है कि इन्होंने जिंदगी में कोई दंगा-फसाद या घृणित कार्य ही न किया हो और उससे भी बड़ा आश्चर्य कि ऐसे घटियास्तर के राजनीतिबाजों के इफ्तार में शामिल होने के लिए तथाकथित बड़े-बड़े मौलानाओं की झूंड भी आ खड़ी होती है।
रांची में एक सज्जन है, बहुत बड़े व्यापारी, मीडिया हाउस चलाते है, धन इतना कमाया है कि पूछिये मत, पर पर्यावरण की धज्जियां उड़ाने में, खनिज संपदा को लूटने में, अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों का शोषण करने में, सरकार की कर प्रणालियों को चूना लगाने में, सबसे आगे है।
रांची में एक और सज्जन को मैंने देखा है कि वे बराबर नैतिकता की दूहाई देते थे, कोई ऐसा महीना नहीं होगा, जिस महीने में वे छद्म नाम से नैतिकता संबंधी या स्वयं के नाम पर नैतिकता संबंधी आलेख न छापे हो, उनके इस आलेख से कई लोग भ्रमित होकर, उन्हें महान इंसान समझ रखे थे, पर जैसे ही बिहार के एक राजनीतिज्ञ ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने का ऐलान किया, उनकी सारी पत्रकारिता की नैतिकता की गंगोत्री उस बिहार के राजनीतिज्ञ के चरणों में जाकर लोटने लगी।
मैंने कई आइएएस और आइपीएस अधिकारियों को देखा है, जिन्हें देखकर या उनकी स्क्रिप्ट पढ़कर मैं हैरान हो जाता हूं कि ये आदमी आइएएस या आइपीएस कैसे बन गया, तभी मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आती है कि बेटे ये भारत देश है , यहां भाग्य का भी विधान है, ये भाग्य का बहुत ही मजबूत है, पूर्व जन्म में कुछ बेहतर किया है, इसलिए इस जन्म में आइएएस या आइपीएस बन गया है, इसका राजयोग है, जब तक जिंदा रहेगा, लूटेगा, खायेगा, मर जायेगा, इससे देश-सेवा या समाज-सेवा की परिकल्पना भी करना बेमानी है...
ये कुछ दृष्टांत है...
और अब सवाल कि आखिर ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों है...
मैंने इसमें राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, उद्योगपतियों, अधिकारियों और संतो के कुछ दृष्टांत दिये है, जो बताने के लिए काफी है कि हमारा समाज कितना गिर रहा है, यह भी बताने के लिए काफी है, कि जिनके उपर दारोमदार है, देश को आगे बढ़ाने का, वे कितने गिरे हुए है और जब जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है, देश को आगे बढ़ाने का और वे अपने बेटे-बेटियों और अपनी पत्नियों के आगे कुछ सोचे ही नहीं तो समझ लो, देश बदल रहा है, और ये आगे नहीं, पीछे जा रहा है। देश या समाज, वहां रह रहे व्यक्तियों के चरित्र व व्यक्तित्व से जाना जाता है, और ये चरित्र या व्यक्तित्व का झलक मिलता है, वहां कार्य कर रहे अधिकारियों, संतों, पत्रकारों, उदयोगपतियों, राजनीतिज्ञों और वहां रह रही आम जनता से, पर यहां सभी ने सारी मर्यादाएं तोड़कर धन-पशु बनने में ही समय ज्यादा लगा दिया है, ऐसे में इन धन-पशुओं से भारत के निर्माण की बात करना मूर्खता है...
एक बात और जान लीजिये...
भारत बहुमंजिलों इमारतवाली भवनों वाली स्थानों का नाम नहीं...
भारत कल-कारखानोंवाली औद्योगिक स्थलियों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में डांसबार या बीयरबार वाली सांस्कृतिक केन्द्रों का नाम नहीं...
भारत महानगरों में अधकचरा ज्ञान बिखरनेवाले पत्रकारों की अशिष्ट मंडलियों का नाम नहीं...
भारत घटियास्तर के राजनीतिज्ञों जो अपनी पत्नी, बेटे और बेटियों में अपना सुख-चैन देखते हैं, उसका नाम नहीं...
भारत उन अधिकारियों वाले देश का नाम नहीं, जो जिंदगी भर जोंक की तरह भारत की जनता का खून चूसकर धन इकट्ठा करते हैं...
भारत उन उदयोगपतियों का नाम नहीं, जो अनैतिक रुप से धन कमाते हैं...
भारत तो त्याग का दूसरा नाम है...
भारत तो मर्यादा का दूसरा नाम है...
भारत तो गुणता का दूसरा नाम है...
भारत तो कर्मयोग को ग्रहण करने का दूसरा नाम है...
पर फिलहाल, भारत में अधिकांश लोग, धन-पशु बनने की कला में माहिर होकर, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ धन-पशु बनने के लिए एक – दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं...
जिसमें राजनीतिज्ञों-पत्रकारों-अधिकारियों और सामान्य जन के लोग भी दिल से लगे हुए हैं, यानी कल तक जो भारत जिस चीज के लिए जाना जाता था, आज वहीं चीज यहां ढूंढने को नहीं मिल रही, ये हैं 1947 के बाद हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि...
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