Tuesday, November 13, 2012

दीपावली के मर्म को समझिये, अपने देश से प्यार करना सीखिये..............................

आज दीपावली है। पूरे देश में दीपावली की धूम है। हर जगह जिनके पास पैसे हैं, उन्होंने अपने अट्टालिकाओं को खूब सजाया है, साथ ही उन अट्टालिकाओं के अंदर अपने जरुरत के सामानों की खूब खऱीदारी की हैं। दीवाली के दिन धमाका करने और जमकर मिठाई खाने का भी अच्छा प्रबंध किया हैं। प्रबंध करना भी चाहिए क्योंकि लक्ष्मी जी ने इन पर जब कृपा की हैं तो वो कृपा दृष्टिगोचर होना ही चाहिए पर सच्चाई ये भी हैं कि इन अट्टालिकाओं के आस - पास के कई घरों में आज भी चूल्हें नहीं जलेंगे, शायद लक्ष्मी जी इस बार भी उनके घरों से रुठी नजर आ रही है, पर खुशी इस बात की, इन गरीबों ने कम से कम देश का तो अहित नहीं ही किया। गर इनके पास भी पैसे होते तो शायद ये भी वहीं करते, जो हर दीपावली के दिन अट्टालिकाओं में रहनेवाले किया करते हैं, यानी विदेशी वस्तुओं की खरीदारी कर, दूसरे देशों के आर्थिक स्थिति को और मजबूत करते।
खैर छोडि़ये कौन क्या कर रहा हैं, ये तो उसके विवेक और देशभक्ति पर निर्भर करता हैं कि वे इन सारी चीजों को किस रुप में देखता हैं। एक व्यक्ति जन्म लेता हैं अपने देश को मजबूत बनाने के लिए और दूसरा व्यक्ति जन्म लेता हैं, ये करने के लिए कि देश से उसे क्या मतलब, पशुओं की तरह खाना - पीना, ऐश करना और दूनिया से चल देना हैं। ऐसे में ये जान लेना जरुरी हैं कि इस दीपावली में कौन से देश ने सर्वाधिक दीपावली का फायदा उठाया। आज क्या हो रहा हैं कि दीपावली का सर्वाधिक मुनाफा किसी ने उठाया तो वो हैं चीन, जापान और अमरीका जैसे देश। जरा देखिये चीन क्या कर रहा हैं। हमारे दीपावली पर्व पर अपने देश की बनी सारी सामग्रियों को भारत के बाजार में ठेल दिया। यहीं नहीं अब लक्ष्मी - गणेश की प्रतिमा भी भारत में नहीं बल्कि चीन से बन कर आ रही हैं और उनकी पूजा हो रही हैं। चीन की बनी लक्ष्मी - गणेश से सुख-समृद्धि की कामना हो रही हैं। है न आश्चर्य की बात.....................। क्या चीन में बने गणेश - लक्ष्मी से हमारे देश अथवा हमारे घर की अर्थव्यवस्था सचमुच सुदृढ़ होगी कि कुछ उलट हो रहा हैं। हम अपने पैसों से इन चीजों को खरीद कर किसे मजबूत कर रहे हैं और इससे वो मजबूत होकर हमारे प्रति वह क्या रवैया अपना रहा हैं, क्या ये किसी से छूपा हैं। क्या ये सच नहीं कि वो अभी भी अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम तथा कभी कभी जम्मू कश्मीर पर भारत के खिलाफ विषवमन करता हैं और गाहे बगाहे जब कभी मौका मिलता हैं, वो अपनी खीझ निकालता है, दूसरी ओर हम क्या कर रहे हैं। उनकी सामानों को खरीदकर उसे मजबूत बनाने और महाशक्ति बनाने में मदद कर रहे है और अपने देश भारत की खटिया खड़ा कर रहे हैं। आनेवाले समय में वो क्या करेगा किसी से छुपा हैं क्या................................
क्या ये सही नहीं है हमारे द्वारा ही मजबूत किये गये अपनी अर्थव्यवस्था से, ये अपने ही देश के हृदय में खंजर भोकते हैं। सीमा पर रहनेवाले हमारे जवानों के सीने में गोली उतारकर, हमारे जवानों के सीने को गोलियों से छलनी कर देते हैं। अपने देश के अंदर रहनेवाले नरपिशाचों पर वे पैसे खर्च करते हैं और ये नरपिशाच हमारे जवानों के खून से होली खेलते हैं। सच्चाई ये भी हैं कि इन घटनाओं को सभी जानते हैं, पर इन घटनाओं को नजरंदाज कर, हम एकमेव वहीं कार्य करते हैं, जिसमें उनकी घटियास्तर की निजी स्वार्थ छिपी रहती हैं। देशभक्ति तो दिखती ही नहीं। देशभक्ति तो सिर्फ अरबों - खरबों रुपये के बने क्रिकेट स्टेडियम में दिखाई पड़ती है। जब भारत किसी अन्य देश से क्रिकेट खेल रहा होता हैं और इक्के दूक्के राष्ट्रीय ध्वज किसी भारतीय के हाथों में दिखाई पड़ते हैं, पर ऐसी देशभक्ति से क्या मतलब.............। जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती, जिससे देश महाशक्ति नहीं बन सकता। जिसमें जीत होने के बावजूद, हमारे देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को वो सम्मान नहीं मिलता, जितना की सम्मान अमरीका, जापान या चीन के राष्ट्राध्यक्षों को होता हैं।
जरा देखिये, दो दिन पहले धनतेरस था। अकेले झारखंड में रांची से प्रकाशित प्रभात खबर ने लिखा हैं कि धनतेरस के दिन, बाजार में बरसे 1255 करोड़ रुपये। ये केवल झारखंड का हाल था। गर पूरे देश की बात करें तो खरबों रुपये का वारा न्यारा हुआ, कारोबार हुआ। पर बात यहां पर आती हैं कि इऩ कारोबारों से कौन सा देश मजबूत हुआ। भारत या फिर अन्य देश। गर भारत की अर्थव्यवस्था, इतने कारोबार के बावजूद भी मजबूत नहीं होती और इसका फायदा दूसरे देश उठा ले रहे हैं तो फिर ऐसे पर्व के आयोजन अथवा मनाने का क्या औचित्य।
मैने अपनी आंखों से देखा, कि जिस देश में अपने ही देश के कुम्हारों के हाथों से बनाये मिट्टी के दिये जला करते थे, अब वहां चीन से बनी दिये और इलेक्ट्रानिक बल्बों ने कब्जा कर लिया हैं। जिन भारतीय बच्चों के हाथों में भारतीय़ खिलौने हुआ करते थे, अब उन हाथों में चीनी खिलौने हैं। इसी तरह आरामदायक और सभी विलासिता संबंधी वस्तूओं पर अमरीकी, जापानी और चीनी वस्तूओं की पैठ हो गयी हैं, ऐसे में ये देश कैसे आत्मनिर्भर होगा। एक बात और, जब देश को बाजार ही बनाना था, विदेशी वस्तूओं से इस भारतीय बाजारों को पाट ही देना था तो फिर अंग्रेजों को निकाल बाहर क्यों किया गया, वे भी तो वहीं कर रहे थे, जो आज के नेता, निमंत्रण देकर, विदेशियों को बुलाकर कर रहे हैं। आश्चर्य इस बात की हैं कि हमारे देश के नेता गुलाम हो सकते हैं, वे विदेशी शासकों के आगे ताता-थैया कर रहे हैं, तो हम भारतीय भी उनके साथ मिलकर ताता-थैया क्यों कर रहे है। जिन्हें ताता - थैया करना हैं, करते रहे। हम मजबूती से वो काम करे, जिससे अपना देश मजबूत होता हो। 
जरुरत हैं, दीपावली के मर्म को समझने की। क्या कहता हैं - दीपावली। दीपावली स्वयं को प्रकाशित करने का पर्व हैं, पर हम अंधकार में कब तक बने रहेंगे। कब तक अपने ही पैसों से, अपने ही घर में आग लगाकर तमाशा देखते रहेंगे, हम क्यों नहीं समझते, गांधी की भाषा, स्वदेशी की भाषा। हम क्यों नहीं समझते कि अपने देश के एक कुम्हार के द्वारा बनायी गयी मिट्टी के दीये से उस कुम्हार की दशा-दिशा भी सुधरती हैं और भारत की अर्थव्यवस्था भी सुधरती हैं। इतनी छोटी सी बात लोगों को समझ में क्यूं नहीं आती। खुद महात्मा गांधी, आचार्य बिनोवा भावे, लाल बहादुर शास्त्री का झोला ढोनेवाले कांग्रेसियों को ये बात क्यों नहीं समझ आती। हमें लगता है कि हम भारतीयों को अच्छी बातें बहुत देर में समझ में आती हैं और जब समझ में आयेगी तब बहुत देर हो चुका होगा............और हम ये गाने गा रहे होंगे वो गाना होगा- सब कुछ लूटा कर होश में आये तो क्या किया..............................

2 comments:

  1. Sach kaha aapne Krishna bhai, Ham Bharatiyon mein Desh Bhakti ki bahut kami aa gayi hai.Aap jaise Rashtra premiyon ki bhaari kami hai. Lekin Chinta na karen, wah din door nahin jab aap aur aap ke beton jaise chand log bhi samaj ko nayi disha denge.. Murdon se samaj mein parivartan thode hota hai....Jinda kaumen his samaj ko disha deti hain. Ek akele Hitler ne duniya hila diya tha. Ham to phir bhi kuchcha log acche bache hain...

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