Saturday, November 3, 2012

आज लिखने व बोलने की नहीं, कर के दिखाने की जरुरत हैं..............................

सचमुच आज लिखने व बोलने की नहीं, कर के दिखाने की जरुरत हैं। रांची से एक प्रकाशित अखबार जिसकी, मैं तहेदिल से इज्जत करता हूं, गर उसे एक दिन भी नहीं पढ़ूं तो मैं बेचैन हो जाता हूं। पर मैं इन दिनों देख रहा हूं कि इस अखबार को भी, अन्य अखबारों की तरह हवा लगी हैं। वो ऐसी चीजे लिख दे रहा हैं कि जिसे पढ़कर, मन व्यथित हो उठा हैं। इस अखबार में चरित्र, धन, भ्रष्टाचार और अन्य विषयों पर हमेशा सारगर्भित आलेख पढ़ने को मिलते हैं, पर मेरा मानना हैं कि केवल लिख देने से, उन विषयों का समाज व राष्ट्र में पदार्पण हो जायेगा, ऐसा संभव नहीं हैं। कल यानी 2 नवम्बर को इस अखबार ने आदर्श डाक्टरों की सूची से संबंधित प्रथम पृष्ठ पर समाचार प्रकाशित किया। जिसमें रांची के डा. के के सिन्हा को आदर्श डाक्टर के रुप में स्थापित किया। मै रांची की ही जनता से पूछता हूं कि क्या डा. के के सिन्हा, जिनकी चिकित्सीय फीस 1000 रुपये हैं। जिनसे इलाज कराने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता हैं। साथ ही जिनसे इलाज कराने के लिए नेताओं व मंत्रियों से पैरवी करानी पड़ती हैं। जो मुख्यमंत्री, कारपोरेट जगत के मठाधीशों, विभिन्न अखबारों के मालिकों व संपादकों को मुफ्त इलाज मुहैया कराते हो और गरीबों से एक हजार रुपये, फीस वसूलते हो। जो अपने यहां इलाज कराने आये, मरीजों का निबंधन भी नहीं कराते हो, जिससे ये पता लगे कि उन्होंने एक दिन में कितने मरीजों की जांच की। ताकि पता चल सकें कि वे एक दिन में कितने रोगियों को देखकर, कितने रुपये उनसे वसूले। जिनका समाचार बाप - बेटे से संबंधित मारपीट का कई समाचारों में सुर्खियां बन चुका हो। क्या उक्त अखबार बता सकता हैं कि इन्होंने कब और किस समय, गरीबों के लिए अपने दरवाजे खोले। ठीक वैसे ही जैसे लालपुर के डा. एस पी मुखर्जी के दरवाजे, गरीबों के लिए सदा खुले रहते हैं। आदर्श का मतलब क्या हैं.............। अपने लिए अच्छा होना, सिर्फ अपने लिेए कमाई करना, और आदर्श होना ये दोनों अलग अलग बाते हैं। ये सभी को समझना चाहिए। आदर्श वहीं हैं, जिनका जीवन अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिेए हो।
एक बात और। किसी व्यक्ति की आमदनी दस लाख रुपये प्रति माह हैं  और वो ईमानदारी की बात करें तो शोभा नहीं देता। शोभा उसे देता हैं, जिसकी आमदनी न के बराबर हो, और उसने पूरा जीवन ईमानदारी से, वह भी विपरीत परिस्थितियों में गुजार दें, तब वो प्रेरणास्रोत व आदर्श बन जाता हैं। इस रांची में एक से एक डाक्टर हैं, जो बेईमान भी हैं, चरित्रहीन भी हैं पर आदर्श भी हैं, लेकिन आदर्श का पैमाना जब डा. के के सिन्हा जैसे लोगों के पास आकर शरण लेता हैं,तो हम जैसे लोगों को असहनीय पीड़ा होती हैं।
आजकल आदर्शवादिता के नाम पर पुरस्कार देने की भी योजना चल पड़ी हैं। ऐसे ऐसे लोगों को पुरस्कार दे दिया जाता हैं कि हमें समझ में नहीं आता कि उन्हें ये पुरस्कार देने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। हाल ही में रेडिशन ब्लू जैसे महंगे होटल में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी को, जो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बहुत ही निकट हैं। सुनने में आया हैं कि जो वह बोलता हैं, मुख्यमंत्री उसकी बातों को अच्छे बच्चों की तरह मान लेते हैं। उसे पुरस्कृत किया गया। उसे ये पुरस्कार लक्ष्मी लाडली योजना के लिए दिया गया। यानी सारा श्रेय उसे दे दिया गया, जिसने लक्ष्मी लाडली योजना के लिए क्या किया। उसे खुद ही पता नही। घोर आश्चर्य हैं। इसी तरह एक बार, रेलवे के एक महिला कर्मचारी को भी पुरस्कृत कर दिया गया, ये कहकर कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ पत्र लेखन के लिए, पुरस्कृत किया जा रहा हैं। सच्चाई ये हैं कि कितने पत्र उक्त महिला ने, उक्त अखबार को भेजे, उसे खुद ही पता नहीं होगा, पर पुरस्कार दिया गया और लेनेवाले ने ले भी लिया। 
ऐसे में, एक सवाल उठता हैं कि क्या इस प्रकार की कारगुजारियों से समाज बदलेगा, आंदोलन सफल होगा। उत्तर होगा - नहीं, तो क्या किया जाना चाहिए। हमारा नम्र निवेदन हैं कि स्वयं पर ध्यान दीजिये। वहीं लिखिये जो सार्थक हो। वो मत लिखिये, जिससे लोग दिग्भ्रमित हो जाये, क्योंकि जो आप लिखते हैं या छापते हैं, वो आप नहीं जानते कि यहां की जनता, उसको किस रुप में लेती हैं। गर लोगों का विश्वास डोला तो फिर झारखंड को एक बड़ी क्षति होगी, क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रांची से जितने भी अखबार छपते हैं, उनमें से आप एकदम अलग हैं, पर आप भी जब अन्य अखबारों जैसे होंगे तो फिर झारखंड की जनता किस पर विश्वास करेगी। बड़ी विनम्रता से, करवद्ध प्रार्थना करता हूं कि झारखंड से निकलनेवाली और पूरे राष्ट्र में एक अलग छवि रखनेवाली इस अखबार को गिरने से बचाये। ये झारखंड हित में हैं...................................

2 comments:

  1. आजकल जो दिखता है वो बिकता है .. जो बिकता है वो छपता है .. जो छपता है वह कमाता है .. जो कमाता है वो खिलाता है .. आदर्शवादिता गई भाड में ....

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  2. Krishna Bhai, Aap ne sahi likha hai. Samaj Bhari patan ki or hai aur use media aur Akhbar wale adhiktar log sambhalne ki bajay aur patit karne mein jute hue hain.
    This is really very bad... Aur aap ko yaad hoga ki haal mein maine isi Akhbar ke Editor ke baare mein maine kuchcha kaha tha..... yaad hain na....

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