Friday, November 9, 2012

मेरे राम को कुछ भी बोलो, मेरे राम को कोई फर्क नहीं पड़ता...........................

मेरे राम को कुछ भी बोलो, मेरे राम को कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही फर्क पड़ता हैं, राम पर विश्वास करनेवालों को, क्योंकि उनके लिए राम तो राम हैं, जिसके बिना उनका जीवन कभी सफल हो ही नहीं सकता और न ही ये दुनिया उनके बिना चल ही सकती हैं। जो राम पर विश्वास करते हैं, उनका विश्वास किसी जेठमलानी के बयान का मोहताज नहीं होता। दुनिया में राम जेठमलानी कोई पहले व्यक्ति नहीं, जिसने राम को बुरा कहा। ऐसे लोगों की संख्या तो बहुतायत में हैं, जिनकी दिन की शुरुआत ही राम की निंदा और रात का समापन राम की निंदा से ही होता हैं। ऐसे भी राम को समाप्त करने का बीड़ा कई बार अनेक राजनीतिक दलों और अन्यान्य धार्मिक व कई सामाजिक संगठनों ने किया हैं, पर राम को क्या फर्क पड़ा। वो तो आज भी वाल्मीकि के श्लोंकों में, मीरा और रविदास के भजन में, कबीर के दोहों में, तुलसी के चौपाईयों में और देश-विदेश के अनन्य कवियों के कंठाग्रों में शोभायमान हैं। राम तो ऐसे हैं कि वे अपने निंदकों और अपने चाहनेवालों पर भी समभाव रखते हैं, नहीं तो वनवास से लौटने के बाद वे कैकयी और मंथरा पर अपना असीम अनुराग नहीं लूटाते। ऐसे भी राम को जानने के लिए, आपको राम जेठमलानी जैसे नेताओं के पास जाना पड़े तो ये आपकी मूर्खता हैं, राम को जानने के लिए आपको वाल्मीकि, मीरा, रविदास, कबीर और तुलसी का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
जरा रविदास जी को देखिये, क्या कहते हैं...........................
जब रामनाम कहि गावैगा
तब भेद अभेद समावैगा
जो सुख हवैं या रस के परसे
सो सुखका कहि गावैगा
जरा रविदास जी की परम शिष्या श्रीकृष्ण की अनन्य भक्तवत्सला मीरा क्या कहती हैं.............
पायोजी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोल दियोजी मेरे सदगुरु, किरपा कर अपनायो, पायोजी मैंने.....
खरच न खूटै, चोर न लूटे, दिन - दिन बढ़त सवायो, पायो मैंने................
कबीर के राम को देखिये.......................
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूढें बन माहि
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया दिखैं नाहि
और तुलसी का तो जवाब नहीं, उन्होंने तो साफ कह दिया
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा।।
ये महान संतों के उद्गार बताते हैं कि राम क्या हैं। राम को व्यक्ति विशेष मानना, और उन्हें व्यक्ति विशेष मानकर, अपने ढंग से उन पर प्रतिक्रिया दे देना, आपकी मजबूरी हो सकती हैं पर इससे राम को क्या.........। पर जिन्होंने राम को जान लिया, वे अनन्त सुख को प्राप्त कर, अपना और इस राष्ट्र दोनों का भला किया। राम का जीवन ही जीने का आधार हैं, अनन्त व परमसुख प्राप्त करने के लिए, राम को तो जानना ही होगा, पर राम को आप जानेंगे कैसे।
वेद कहता हैं, जीवेद शरदः शतम्। सौ वर्ष तक जियो, पर सौ वर्षों तक कैसे जियोगे। धन कमाने की लालसा तो आपको धनपशु बना दी हैं, और इसी धन में आप सुख प्राप्त करने की जिजीविषा लेकर स्वयं को समाप्त कर लेते हो, और कहते हो कि राम को मैं नहीं मानता, ये तो वहीं बात हुई कि कोई मूर्ख कहें कि मैं सूरज के अस्तित्व को नहीं मानता, मैं दिन व रात के अस्तित्व को नहीं मानता, मैं हवा को भी नहीं मानता। तो इससे सूरज, दिन, रात व हवा को क्या फर्क पड़ता हैं, क्या वो अपना काम करना बंद कर देगी या उक्त व्यक्ति से क्रोधित होकर उसके साथ बुरा बर्ताव करेगी।
मैं तो पहले भी कहा था, आज भी कह रहा हूं कि कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या को होनेवाली दीपावली सिर्फ यहीं संदेश देती हैं कि हे प्रकाश की कामना करनेवाले मनुष्यों, तुम सत्य मार्ग पर चलों। जैसे ही तुम सत्यमार्ग पर चलोगे, राम तुम्हारे साथ होंगे। जब राम तुम्हारे साथ होंगे तो तुम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाओगे और एक मर्यादा पुरुषोत्तम व्यक्ति के लिए, संसार में कोई भी कार्य असंभव नहीं। ऐसे में एक भारतीय के लिए, जिसके लिए कोई कार्य असंभव नहीं हैं, उस भारतीय और भारत की ऐसी दशा क्यो। सभी भ्रष्टाचार - भ्रष्टाचार चिल्ला रहे हैं, एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं, पर सच यहीं हैं कि सभी किसी न किसी प्रकार से अपने आचरण को भ्रष्ट जरुर किये हुए हैं, ऐसे में सत्यमार्ग पर चलना और स्वयं राम बनना दोनों असंभव है। सच यहीं हैं कि अपने देश से राम बहुत दूर चले गये हैं। जरुरत हैं, उस राम को, चरित्र रुपी राम को अपने अंदर बैठाने की ताकि हम हर दिन दीपावली मना सकें ताकि हम हमेशा स्वयं को प्रकाशित कर सकें। उस वक्त हमें ये बोलने की आवश्यकता ही न पड़े कि हमें असत्य से सत्य की और अंधकार से प्रकाश की ओर या मृत्यु से अमरता की ओर चले, बल्कि हम इसे अपने कर्म द्वारा सत्यापित कर रहे होंगे।

1 comment:

  1. Ram is Ram and no one can be parallel to him. People come and go they speak their opinion but they are subjective and not objective!
    People like Ramjethmalani should have their name Ravan Jethmalani....
    They speak as they know and understand the entire Samskrit Vangmay... while they are genreally fools. It was late Chandrashekhar ji, who taught him the lesson of Ram in the nineties...do you remember...?

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