Tuesday, July 21, 2015

एक संपादक की रघुवरभक्ति..............

संयोग से आज 11 जुलाई के दो अखबार मेरे सामने है। एक प्रभात खबर और दूसरा दैनिक जागरण। आम तौर पर दैनिक जागरण, मैं नहीं पढ़ा करता, क्योंकि उसके बहुत सारे कारण है। उन कारणों को गर मैं गिनाना शुरु करूं तो रामायण और महाभारत से भी बड़ा महाकाव्य बन जायेगा और न तो मैं वेदव्यास और न ही वाल्मीकि बनने के लिए पैदा हुआ हूं, बस किसी तरह एक अच्छे इंसान के रुप में दुनिया से विदा हो जाऊं। इसी के लिए मैं फिलहाल प्रयासरत हूं।
अभी - अभी एक मेरे प्रिय मित्र दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ को लेकर मेरे सामने आये। जिसमें रांची के स्थानीय संपादक का एक आलेख है - झारखंड में भ्रष्टाचार। इस आलेख को पढ़कर मुझे महसूस हुआ कि उक्त संपादक के हृदय में भाजपा और रघुवर भक्ति की अविरल धारा बह रही है। आप उस धारा को राम-केवट की भक्ति से जोड़कर देख सकते है। ऐसे भी दैनिक जागरण और भाजपा का आपस में अन्योन्याश्रय संबंध है।
क्या गजब का आलेख है। संपादक ने मधु कोड़ा को याद रखा है, भ्रष्टाचार की सारी उपाधि उन्हीं की श्रेणी में डाल दी हैं, पर अर्जुन मुंडा को साफ बचा लिया, ये कहकर कि उन पर कोई भ्रष्टाचार के आरोप ही नहीं है, यानी वहीं पुरानी कहावत बच गये तो संत, पकड़े गये तो चोर.....वाली पद्धति पर अपने आलेख को समर्पित किया है। अरे संपादक जी, आप ही के यहां कई ऐसे रिपोर्टर जरुर होंगे, जो विधानसभा की रिपोर्टिंग करते होंगे, उनसे पूछो कि अर्जुन मुंडा के समय, खासकर विधानसभा में भाकपा माले विधायक दल के नेता महेन्द्र प्रसाद सिंह, अर्जुन मुंडा पर भ्रष्टाचार को लेकर कैसा दहाड़ा करते थे, कैसे उन्हें कटघरे में खड़ा करते थे। ये अलग बात हैं कि आज महेन्द्र प्रसाद सिंह दुनिया में नहीं है, पर आज भी ज्यादातर लोग यहीं जानते है कि भ्रष्टाचार की नींव, अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में ही पड़ी। ये अलग बात हैं कि उन भ्रष्टाचार के छींटों से वे बचकर निकल गये। जरा और देखिये, इस संपादक की बुद्धिमानी, संपादक ने रघुवर दास की भक्ति में यहां तक लिख दिया कि मुख्यमंत्री ने निगरानी ब्यूरो को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के रुप में विकसित कर यह संदेश दिया हैं कि गलत आचरण बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.........कमाल हैं अभी तक भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो बना ही नहीं और इस संपादक महोदय ने विकसित करार दे दिया। संयोग से संपादक के इस बुद्धिमता पर 11 जुलाई के प्रभात खबर ने प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
11 जुलाई को ही रांची से प्रकाशित, प्रभात खबर, पृष्ठ संख्या 10 के उपरि कोना का सातवां और आठवां कॉलम पढ़िये, जिसमें प्रभात खबर ने छापा है कि "चार माह बीत गये, नहीं बना करप्शन ब्यूरो"। इस शीर्षक से छपे समाचार में गृह सचिव एन एन पांडेय का बयान भी है। जिसमें गृह सचिव ने कहा है कि एसीबी गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है, सरकार की मंजूरी मिलते ही एसीबी का गठन हो जायेगा। इसका मतलब है कि अभी एसीबी यानी एंटी करप्शन ब्यूरो राज्य में अस्तित्व में नहीं है।
यानी शत् प्रतिशत झूठ के आधार पर किसी मुख्यमंत्री का यशोगान व स्तुति पढ़ना हो, तो 11 जुलाई का दैनिक जागरण उठाकर देख लीजिये। आखिर कोई संपादक ऐसा क्यों करता हैं....उसके भी बहुत सारे कारण है। कारणों को जानना भी जरुरी हैं। कई संपादक इस प्रकार का आलेख, मुख्यमंत्री से स्वयं के संबंध अच्छे हो, इसके लिए भी इस प्रकार का संपादकीय लिख डालते है। या कोई महत्वपूर्ण कार्य स्वयं को अनुप्राणित करने के लिए सीएम या सरकार से कराना हो तब लिखते है। या घाटे में चल रहे अखबार को सीएम से प्राणदान मिल जाये, विज्ञापन के रुप में, तब लिखा करते है........पर जनहित में इनसे पूछो कि वे क्या लिखते है तो पता चलेगा, जनहित जाये भाड़ में, सर्वप्रथम लक्ष्मी घर में आ जाये, कार की जगह हेलीकॉप्टर आ जाये, ये महत्वपूर्ण है........और आजकल ऐसे कार्य सभी कर रहे हैं, ये अलग बात हैं कि आज इस संपादक ने बाजी मार ली..........।
अब बात निगरानी ब्यूरो को एंटी करप्शन ब्यूरो बना दिया जाय या कुछ और इसे नाम दे दिया जाय। उससे क्या हो जायेगा। काम तो इसमें आदमी ही करेंगे गर वे आदमी भी भ्रष्ट होंगे तो क्या भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी पकड़ें जायेंगे। उत्तर होगा - नहीं। तो फिर इस प्रकार की चोंचलेबाजी क्यों। छह महीने बीत गये, अब तक इस विभाग ने कितने बड़े अधिकारियों को पकड़े हैं। गर मैं अपनी बात करुं तो मैं कहूंगा कि अब तक सरकार ने मच्छड़ ही पकड़े हैं, जबकि आज भी बड़े-बड़े भ्रष्ट अधिकारी जिन्हें आप कुछ भी पद या नाम दे दो, मस्ती में जी रहे हैं, उनका तो बाल बांका नहीं हो रहा, जबकि इसी रांची में सीबीआई ने, दूरदर्शन के एक बहुत बड़े अधिकारी को रंगेहाथों घूस लेते पकड़ा, जो एक सप्ताह बाद अवकाश पर जानेवाला था। क्या इस प्रकार की कार्य राज्य सरकार, या उसके मातहत अधिकारियों ने किया है, गर नहीं तो फिर इस प्रकार की रघुवरभक्ति से किसे फायदा मिल रहा हैं......अरे जो पत्रकारिता जनहित में न होकर, सरकारभक्ति में लीन हो जाये, उस पत्रकारिता को क्या कहेंगे, खुद वो संपादक ही समझ ले, तो बेहतर होगा...............

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