सरकार कायर है, पर जनता नहीं.........
जनता ऐसे अखबारों/चैनलों का बहिष्कार करें, ऐसे पत्रकारों का बहिष्कार करें.............
• जिन्हें नेताओं में खुदा दीखता हो(आजकल रांची से प्रकाशित एक अखबार को नीतीश कुमार में खुदा दीख रहा है)........
• जो झूठी खबरें बार-बार प्रकाशित करता हो(एक अखबार ने छाप दिया कि राज्यपाल की गाड़ी बीस मिनट तक खड़ी रही, गाड़ी में पेट्रोल नहीं रहने के कारण)........
• जो विज्ञापन के लिए सामाजिक ताना-बाना को तोड़ता हो, और बिल्डरों-गुंडों को, अपने अखबारों में, देश के दिवंगत महान नेताओं की तरह पेश करता हो.......
• जो बिल्डरों से अपने कार्यक्रम को संपन्न कराने के लिए मुंहमांगी रकम वसूलता हो, और वह बिल्डर झारखंड की आम जनता के पैसे को चकमा देकर लूट लेता हो.........
• जो अपने मातहत कार्य करनेवाले, कर्मचारियों और पत्रकारों को सही समय पर तो दूर, उन्हें उचित पारिश्रमिक नहीं देते हो, जिस पारिश्रमिक के बारे में केन्द्र सरकार या राज्य सरकार ने एक मानदंड स्थापित किया हो..........
देश आपका, प्रदेश आपका। जिम्मेवारी आपकी भी बनती है। क्या प्रतिदिन, आप चार-पांच रुपये में अखबार, सिर्फ इसलिए खरीदते हैं कि वे जो मन करें, छाप दें और आप उसे पढ़ने के लिए मजबूर हो। आप चैनल वालों को हर महीने दो सौ से तीन सौ रुपये इसलिए देते हैं कि वे जो मन करें वो दिखाएँ और आपके परिवार, समाज और देश का माहौल खराब कर दें। नहीं न, तो फिर आज ही इनके खिलाफ कमर कसिए और हल्ला बोलिए, पर गांधीवादी तरीके से..........
जनता ऐसे अखबारों/चैनलों का बहिष्कार करें, ऐसे पत्रकारों का बहिष्कार करें.............
• जिन्हें नेताओं में खुदा दीखता हो(आजकल रांची से प्रकाशित एक अखबार को नीतीश कुमार में खुदा दीख रहा है)........
• जो झूठी खबरें बार-बार प्रकाशित करता हो(एक अखबार ने छाप दिया कि राज्यपाल की गाड़ी बीस मिनट तक खड़ी रही, गाड़ी में पेट्रोल नहीं रहने के कारण)........
• जो विज्ञापन के लिए सामाजिक ताना-बाना को तोड़ता हो, और बिल्डरों-गुंडों को, अपने अखबारों में, देश के दिवंगत महान नेताओं की तरह पेश करता हो.......
• जो बिल्डरों से अपने कार्यक्रम को संपन्न कराने के लिए मुंहमांगी रकम वसूलता हो, और वह बिल्डर झारखंड की आम जनता के पैसे को चकमा देकर लूट लेता हो.........
• जो अपने मातहत कार्य करनेवाले, कर्मचारियों और पत्रकारों को सही समय पर तो दूर, उन्हें उचित पारिश्रमिक नहीं देते हो, जिस पारिश्रमिक के बारे में केन्द्र सरकार या राज्य सरकार ने एक मानदंड स्थापित किया हो..........
देश आपका, प्रदेश आपका। जिम्मेवारी आपकी भी बनती है। क्या प्रतिदिन, आप चार-पांच रुपये में अखबार, सिर्फ इसलिए खरीदते हैं कि वे जो मन करें, छाप दें और आप उसे पढ़ने के लिए मजबूर हो। आप चैनल वालों को हर महीने दो सौ से तीन सौ रुपये इसलिए देते हैं कि वे जो मन करें वो दिखाएँ और आपके परिवार, समाज और देश का माहौल खराब कर दें। नहीं न, तो फिर आज ही इनके खिलाफ कमर कसिए और हल्ला बोलिए, पर गांधीवादी तरीके से..........
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