हजारीबाग की खबर, आज चर्चा
में है, सूर्खियों में हैं, जितने लोग, उतनी ही चर्चाएं, इस चर्चा से लोगों
की बुद्धिमता, और यहां के संपादकों/पत्रकारों/छायाकारों के विशाल ज्ञान
भंडार का भी पता चल गया है। रांची से प्रकाशित सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने
एक खबर फोटो के साथ लगायी है। जिसमें राज्य की मानव संसाधन मंत्री नीरा
यादव हजारीबाग के एक स्कूल में पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के
चित्र पर जीते जी माला पहना दी, श्रद्धांजलि दे दी। अखबारों ने ये भी लिख
दिया कि ऐसा कार्य संवैधानिक पद पर बैठे हुए, व्यक्ति ने की हैं। उनका
इशारा इस ओर है कि माननीय मानव संसाधन मंत्री नीरा यादव को ऐसा नहीं करना
चाहिए था। कुछ अखबारों ने नीरा यादव के बयान भी छापे है, बयान इस प्रकार है
कि जैसे लगता हो कि नीरा यादव को भी लगता हैं कि उन्होंने ऐसा कर कुछ गलत
कर दिया। जब मन में पछतावा का बोध हो, तो इसे प्रायश्चित के रुप में देखा
जाना चाहिए, यानी संबंधित व्यक्ति को लगता हैं कि उसने ऐसा कर गलत किया
है.....
पर माननीय मानव संसाधन मंत्री नीरा यादव जी, और यहां के महान अखबारों के महान संपादकों आज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं, शायद वो कहानी आप सुने भीं होंगे, पर आज आर्थिक उदारीकरण की बहाव में आप इतना बह गये कि आपको पता ही नहीं चल रहा हैं कि आप कहां हैं, भारत या विदेश में। इसमें आपकी भी गलती नहीं, ये सब समय का कुचक्र हैं, ये अभी चलेगा........
वो कहानी इस प्रकार है.......
एकलव्य नामक एक भील बालक था। उसे पता लगा कि द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को धनुर्विद्या की शिक्षा दे रहे हैं। वह भील बालक द्रोणाचार्य के पास गया और उसे भी धनुर्विद्या की शिक्षा मिले, इसकी प्रार्थना की, पर द्रोणाचार्य ने उसे धनुर्विद्या की शिक्षा देने से मना कर दिया। उस भील बालक एकलव्य ने संकल्प किया, कि वह जैसे भी हो, धनुर्विद्या सीखेगा। उसने वन में जाकर द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनायी और उसे गुरु मान लिया। प्रतिदिन उस प्रतिमा पर जाकर माल्यार्पण करना, उसका पूजन करना, उसका दिनचर्या बन गया, और इस प्रकार स्वयं धनुर्भ्यास करने लगा। एक दिन द्रोणाचार्य को उसके दिव्य धनुर्ज्ञान का पता चला। वे अपने शिष्यों के साथ उस भील बालक एकलब्य को ढूंढने निकले। वह रास्ते में ही मिला। द्रोणाचार्य को देख, एकलव्य ने प्रणाम किया। द्रोणाचार्य को समझते देर नहीं लगी, कि ये वहीं बालक एकलव्य हैं, जिसके धनुर्ज्ञान ने उन्हें यहां तक ले आया है। द्रोणाचार्य ने पूछा-बालक एकलव्य तुम्हारे गुरु कौन है, जिन्होंने ऐसी दिव्य शिक्षा दी। एकलव्य ने बड़ी ही विनम्रता से कहा - वो गुरु आप ही हैं महाशय। द्रोणाचार्य आश्चर्य में पड़ गये। द्रोणाचार्य ने कहा - कैसे। एकलव्य ने कहा कि मैं प्रतिदिन आपकी प्रतिमा के समक्ष, आपको प्रणाम कर, आदर देकर, मैं धनुर्भ्यास करता हूं, जिसके बल पर आज मैं धनुर्धर बन सका। द्रोणाचार्य आश्चर्य में पड़ गये और जब उन्होंने फूल-मालाओं से लदी अपनी प्रतिमा देखी, तो वे और आश्चर्य में पड़ गये। अंत में द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा के रुप में एकलव्य का अगूंठा ले लिया, पर गुरुभक्ति और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धऱ के रुप में एकलव्य आज भी जिंदा हैं।
ये जीवंत कथा, बहुत कुछ बता देती है कि जीवित व्यक्ति को पूजा जाना चाहिए या नहीं.......गर नहीं समझ में आ रहा तो और मैं इसे विस्तार से बता देता हूं। एकलव्य जब गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा का प्रतिदिन पूजा करता था, उस वक्त द्रोणाचार्य मरे नहीं थे, वे शारीरिक वेश में सभी के सामने मौजूद थे। ये आज के संपादकों/पत्रकारों/छायाकारों को जान लेना चाहिए। साथ ही अपराधबोध से ग्रसित मानव संसाधन मंत्री को भी जान लेना चाहिए। अपने यहां गुरु को देव से भी बड़ा माना गया हैं, उच्च स्थान दिया गया है। जरा इस पँक्ति को देखिये...
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जो गोविंद दियो बताय।।
तैतरियोपनिषद् कहता है.....
मातृदेवो भव
पितृदेवो भव
गुरु देवो भव
अतिथिदेवो भव
यानी तीसरा स्थान गुरु का है, इस कारण भी हृदय में देव भाव रखकर, जिन गुरु के प्रति आप सम्मान प्रकट कर रहे है और वे गुरु जब आपके समक्ष किसी कारण से जीवित रहने के बावजूद मौजूद नहीं हो, तब भी उनके चित्र पर माल्यार्पण करना, उनकी आरती तक उतारने में कोई बुराई नहीं। हां बुराई तब है, जब वो गुरु जीवित हो या मृत, पर आपके मन में उनके प्रति श्रद्धा नहीं, ऐसे हालात में आप क्या है - मनुष्य या पशु, स्वयं समझ लीजिये। हमें लगता हैं कि सभी लोगों के मन में ये बात स्पष्ट हो गयी होगी, कि मंत्री नीरा यादव ने एपीजे अब्दुल कलाम के चित्र पर माल्यार्पण कर, या उन्हें तिलक लगाकर कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ें। हां शर्मिंदगी उन्हें उठानी चाहिए, जो स्वयं को बहुत बड़े शंकराचार्य मानकर, अखबारों में बेवजह इस प्रकार की फोटो डालकर, बेवजह का समाचार बनाकर, पूरे प्रदेश के नागरिकों में भ्रांति फैला दी.............
पर माननीय मानव संसाधन मंत्री नीरा यादव जी, और यहां के महान अखबारों के महान संपादकों आज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं, शायद वो कहानी आप सुने भीं होंगे, पर आज आर्थिक उदारीकरण की बहाव में आप इतना बह गये कि आपको पता ही नहीं चल रहा हैं कि आप कहां हैं, भारत या विदेश में। इसमें आपकी भी गलती नहीं, ये सब समय का कुचक्र हैं, ये अभी चलेगा........
वो कहानी इस प्रकार है.......
एकलव्य नामक एक भील बालक था। उसे पता लगा कि द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को धनुर्विद्या की शिक्षा दे रहे हैं। वह भील बालक द्रोणाचार्य के पास गया और उसे भी धनुर्विद्या की शिक्षा मिले, इसकी प्रार्थना की, पर द्रोणाचार्य ने उसे धनुर्विद्या की शिक्षा देने से मना कर दिया। उस भील बालक एकलव्य ने संकल्प किया, कि वह जैसे भी हो, धनुर्विद्या सीखेगा। उसने वन में जाकर द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनायी और उसे गुरु मान लिया। प्रतिदिन उस प्रतिमा पर जाकर माल्यार्पण करना, उसका पूजन करना, उसका दिनचर्या बन गया, और इस प्रकार स्वयं धनुर्भ्यास करने लगा। एक दिन द्रोणाचार्य को उसके दिव्य धनुर्ज्ञान का पता चला। वे अपने शिष्यों के साथ उस भील बालक एकलब्य को ढूंढने निकले। वह रास्ते में ही मिला। द्रोणाचार्य को देख, एकलव्य ने प्रणाम किया। द्रोणाचार्य को समझते देर नहीं लगी, कि ये वहीं बालक एकलव्य हैं, जिसके धनुर्ज्ञान ने उन्हें यहां तक ले आया है। द्रोणाचार्य ने पूछा-बालक एकलव्य तुम्हारे गुरु कौन है, जिन्होंने ऐसी दिव्य शिक्षा दी। एकलव्य ने बड़ी ही विनम्रता से कहा - वो गुरु आप ही हैं महाशय। द्रोणाचार्य आश्चर्य में पड़ गये। द्रोणाचार्य ने कहा - कैसे। एकलव्य ने कहा कि मैं प्रतिदिन आपकी प्रतिमा के समक्ष, आपको प्रणाम कर, आदर देकर, मैं धनुर्भ्यास करता हूं, जिसके बल पर आज मैं धनुर्धर बन सका। द्रोणाचार्य आश्चर्य में पड़ गये और जब उन्होंने फूल-मालाओं से लदी अपनी प्रतिमा देखी, तो वे और आश्चर्य में पड़ गये। अंत में द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा के रुप में एकलव्य का अगूंठा ले लिया, पर गुरुभक्ति और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धऱ के रुप में एकलव्य आज भी जिंदा हैं।
ये जीवंत कथा, बहुत कुछ बता देती है कि जीवित व्यक्ति को पूजा जाना चाहिए या नहीं.......गर नहीं समझ में आ रहा तो और मैं इसे विस्तार से बता देता हूं। एकलव्य जब गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा का प्रतिदिन पूजा करता था, उस वक्त द्रोणाचार्य मरे नहीं थे, वे शारीरिक वेश में सभी के सामने मौजूद थे। ये आज के संपादकों/पत्रकारों/छायाकारों को जान लेना चाहिए। साथ ही अपराधबोध से ग्रसित मानव संसाधन मंत्री को भी जान लेना चाहिए। अपने यहां गुरु को देव से भी बड़ा माना गया हैं, उच्च स्थान दिया गया है। जरा इस पँक्ति को देखिये...
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जो गोविंद दियो बताय।।
तैतरियोपनिषद् कहता है.....
मातृदेवो भव
पितृदेवो भव
गुरु देवो भव
अतिथिदेवो भव
यानी तीसरा स्थान गुरु का है, इस कारण भी हृदय में देव भाव रखकर, जिन गुरु के प्रति आप सम्मान प्रकट कर रहे है और वे गुरु जब आपके समक्ष किसी कारण से जीवित रहने के बावजूद मौजूद नहीं हो, तब भी उनके चित्र पर माल्यार्पण करना, उनकी आरती तक उतारने में कोई बुराई नहीं। हां बुराई तब है, जब वो गुरु जीवित हो या मृत, पर आपके मन में उनके प्रति श्रद्धा नहीं, ऐसे हालात में आप क्या है - मनुष्य या पशु, स्वयं समझ लीजिये। हमें लगता हैं कि सभी लोगों के मन में ये बात स्पष्ट हो गयी होगी, कि मंत्री नीरा यादव ने एपीजे अब्दुल कलाम के चित्र पर माल्यार्पण कर, या उन्हें तिलक लगाकर कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ें। हां शर्मिंदगी उन्हें उठानी चाहिए, जो स्वयं को बहुत बड़े शंकराचार्य मानकर, अखबारों में बेवजह इस प्रकार की फोटो डालकर, बेवजह का समाचार बनाकर, पूरे प्रदेश के नागरिकों में भ्रांति फैला दी.............
No comments:
Post a Comment