Friday, August 14, 2015

एकश्चन्द्र तमो हन्ति ना च तारा शतैरपि.......

आप 31 के हो जाएं,
या 62 के,
क्या फर्क पड़ता है राज्य अथवा देश को,
जब आपने औरों की तरह चरित्रहीनता का लबादा ओढ़ लिया,
ये सच हैं कि,
आप पहले एक स्थान से छपते थे,
पर आपका सम्मान था,
आज, अब कई जगहों से छप रहे हैं,
पर यकीन मानिये,
आपने वो मुकाम खो दिया,
जो आम जनता के दिल में,
आपके लिए विशेष तौर पर पनपा था,
हां, आपने वो मुकाम खुद बनाया था,
पर आपने उसे अपने ही हाथों से मिटाया,
आप तो ये भी कह सकते हैं
तो क्या हुआ,
हां, क्या हुआ,
पर सम्मान वाले को सम्मान की चिंता होती हैं न,
आप तो सम्मान को ही ऐसी जगह बैठा दिया,
कि बेचारी नीलाम हो गयी,
चले थे, मशाल लेकर,
अधेरे को चीरने,
पर अंधेरे ने ही आपको निगल लिया,
आपको क्या,
आप उस मां से पूछिए,
जिसने आपके लिए अपना बेटा खो दिया,
उस पत्नी से पूछिए,
जिसने आपके लिए अपना पति खो दिया,
आपके लिए तो सुभाषित की एक पंक्ति ही काफी हैं,
समझना हैं तो समझिए,
नहीं समझना हैं, तो मत समझिए,
आप तो ऐसे भी कई जगह से छपने शुरु कर दिए हैं,
वो कहते हैं न कि कनगोजर को एक पैर टूट गया,
तो क्या हुआ,
ठीक हैं भाई, ऐसा ही सोचिए,
पर जाते – जाते एक सुभाषित की पंक्ति आपके लिए,
एकश्चन्द्र तमो हन्ति ना च तारा शतैरपि.......

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