“मांझी – द माउंटेन मैन”
ये बाते कुछ हजम नहीं हुई...........
आजकल “मांझी – द माउंटेन मैन” फिल्म की चर्चा जोरों पर है। जिसे देखो – दिये जा रहा हैं। टीवी पर मांझी, अखबारों में मांझी, पत्रों में मांझी और पत्रिकाओं में मांझी। कोई मांझी से खुद को जबर्दस्ती जोड़े जा रहा हैं, पुरानी अखबारों के कतरन के साथ कि सबसे पहले हमनें इस खबर को स्थान दिया था, तो कोई अखबार दिये जा रहा हैं, कि गर वो नहीं होता तो मांझी को इतना स्थान नहीं मिलता, लोग जानते ही नहीं, जबकि सच्चाई ये हैं कि आपका हर अच्छा काम, आपको वो स्थान दिलाकर रहता हैं, जिसके आप हकदार हैं, चाहे इसके लिए आपके जीवन में कितनी भी रुकावटें क्यों नहीं आये। दशरथ मांझी – उसके जीते जागते उदाहरण है। एक ऐसा व्यक्ति जो दलित समुदाय से आता है। जिसका जीवन ही गाली से शुरु होता हैं और गाली पर ही खत्म हो जाता है, पर ये व्यक्ति किसी का प्रतिकार नहीं करता, वह तो कठोर पठार को काटकर, सड़क बना देता हैं, जिस रास्ते पर आज लोग चल रहे हैं, उसके लिए उसने कितनी गालियां सुनी, कितने ताने सहे, कितने थपेड़ें सहे, पर लक्ष्य को पाकर रहा। इस लक्ष्य को पाने के लिए, उसे क्या-क्या नहीं करना पड़ा। पर वो स्थितियां व परिस्थितियां आज भी मौजूद है।
जरा देखिये........
उसके नाम पर फिल्म बन गयी, पर उसके लोगों व समुदाय का क्या हाल हैं....जिन लोगों ने उसके नाम पर करोड़ों कमाए या कमा रहे हैं, उन्होंने क्या किया?
एक चैनल हैं, मैं उसे अराष्ट्रीय चैनल मानता हूं, नाम हैं – एनडीटीवी। देख रहा था, जिसमें दशरथ मांझी के परिवार के लोग बोल रहे थे कि सुप्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान आये। बोले कि दशरथ का घर बनवा देंगे, पर घर आज तक नहीं बना। क्या आमिर खान के पास इतने पैसे भी नहीं कि वो दशरथ मांझी के परिवार को दो कोठरी का घर बनवाकर दे दें। और जब उसे बनवाना नहीं था तो फिर वायदा क्यों किया।
दूसरी बात, दशरथ मांझी के ही परिवार से जूड़े एक महिला का कहना था कि वो पानी के लिए काफी दिक्कत उठा रही हैं, एक चापाकल हो जाता तो मजा आ जाता। क्या वहां एक चापाकल लगवाने की भी ताकत किसी में नहीं हैं। जबकि अखबारवाले या पत्रकार जो चिल्ला – चिल्लाकर भोंपू बजाकर ये कह रहे है कि मैंने पहले छापी तो क्या वे भी इस हालात में नहीं कि वहां एक चापाकल लगवा दें। हद हो गयी भाई। हमें पानी की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं अखबार पढ़ों, हमें भोजन की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं सिनेमा देखो। कमाल है........
और फिल्म भी मैंने देखी, देखकर निहाल हो गया.......
फिल्म में श्रीमती इंदिरा गांधी भी हैं, जो बोल रही हैं कि उनके हाथों को मजबूत करिये, कमाल है गरीबी हटाओ की बात हो रही हैं, इमरजेंसी के पहले का चित्रण हैं और हाथ को मजबूत की बात। कोई बता सकता हैं कि इंदिरा जी का चुनाव चिह्न हाथ कब हुआ।
यहीं नहीं, मांझी दिल्ली जा रहा हैं और जनक्रांति की बात हो रही हैं, ये जनक्रांति क्या हैं भाई, कब हुआ था......हमें तो मालूम नहीं। हां संपूर्ण क्रांति सुना था, जयप्रकाश नारायण ने आह्वान किया था। बात 1974-75 की हैं। यानी जो मन करें दिखा दो, जो मन करें तकिया- तकिया खेला दों, और माल बटोर लो। दशरथ के नाम पर पैसा और ख्याति मिले और क्या चाहिए......
देश जाये तेल लेने और मांझी का परिवार जाये तेल लेने। हम तो बम बम हो गये न.......
ये बाते कुछ हजम नहीं हुई...........
आजकल “मांझी – द माउंटेन मैन” फिल्म की चर्चा जोरों पर है। जिसे देखो – दिये जा रहा हैं। टीवी पर मांझी, अखबारों में मांझी, पत्रों में मांझी और पत्रिकाओं में मांझी। कोई मांझी से खुद को जबर्दस्ती जोड़े जा रहा हैं, पुरानी अखबारों के कतरन के साथ कि सबसे पहले हमनें इस खबर को स्थान दिया था, तो कोई अखबार दिये जा रहा हैं, कि गर वो नहीं होता तो मांझी को इतना स्थान नहीं मिलता, लोग जानते ही नहीं, जबकि सच्चाई ये हैं कि आपका हर अच्छा काम, आपको वो स्थान दिलाकर रहता हैं, जिसके आप हकदार हैं, चाहे इसके लिए आपके जीवन में कितनी भी रुकावटें क्यों नहीं आये। दशरथ मांझी – उसके जीते जागते उदाहरण है। एक ऐसा व्यक्ति जो दलित समुदाय से आता है। जिसका जीवन ही गाली से शुरु होता हैं और गाली पर ही खत्म हो जाता है, पर ये व्यक्ति किसी का प्रतिकार नहीं करता, वह तो कठोर पठार को काटकर, सड़क बना देता हैं, जिस रास्ते पर आज लोग चल रहे हैं, उसके लिए उसने कितनी गालियां सुनी, कितने ताने सहे, कितने थपेड़ें सहे, पर लक्ष्य को पाकर रहा। इस लक्ष्य को पाने के लिए, उसे क्या-क्या नहीं करना पड़ा। पर वो स्थितियां व परिस्थितियां आज भी मौजूद है।
जरा देखिये........
उसके नाम पर फिल्म बन गयी, पर उसके लोगों व समुदाय का क्या हाल हैं....जिन लोगों ने उसके नाम पर करोड़ों कमाए या कमा रहे हैं, उन्होंने क्या किया?
एक चैनल हैं, मैं उसे अराष्ट्रीय चैनल मानता हूं, नाम हैं – एनडीटीवी। देख रहा था, जिसमें दशरथ मांझी के परिवार के लोग बोल रहे थे कि सुप्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान आये। बोले कि दशरथ का घर बनवा देंगे, पर घर आज तक नहीं बना। क्या आमिर खान के पास इतने पैसे भी नहीं कि वो दशरथ मांझी के परिवार को दो कोठरी का घर बनवाकर दे दें। और जब उसे बनवाना नहीं था तो फिर वायदा क्यों किया।
दूसरी बात, दशरथ मांझी के ही परिवार से जूड़े एक महिला का कहना था कि वो पानी के लिए काफी दिक्कत उठा रही हैं, एक चापाकल हो जाता तो मजा आ जाता। क्या वहां एक चापाकल लगवाने की भी ताकत किसी में नहीं हैं। जबकि अखबारवाले या पत्रकार जो चिल्ला – चिल्लाकर भोंपू बजाकर ये कह रहे है कि मैंने पहले छापी तो क्या वे भी इस हालात में नहीं कि वहां एक चापाकल लगवा दें। हद हो गयी भाई। हमें पानी की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं अखबार पढ़ों, हमें भोजन की जरुरत हैं और लोग कह रहे हैं सिनेमा देखो। कमाल है........
और फिल्म भी मैंने देखी, देखकर निहाल हो गया.......
फिल्म में श्रीमती इंदिरा गांधी भी हैं, जो बोल रही हैं कि उनके हाथों को मजबूत करिये, कमाल है गरीबी हटाओ की बात हो रही हैं, इमरजेंसी के पहले का चित्रण हैं और हाथ को मजबूत की बात। कोई बता सकता हैं कि इंदिरा जी का चुनाव चिह्न हाथ कब हुआ।
यहीं नहीं, मांझी दिल्ली जा रहा हैं और जनक्रांति की बात हो रही हैं, ये जनक्रांति क्या हैं भाई, कब हुआ था......हमें तो मालूम नहीं। हां संपूर्ण क्रांति सुना था, जयप्रकाश नारायण ने आह्वान किया था। बात 1974-75 की हैं। यानी जो मन करें दिखा दो, जो मन करें तकिया- तकिया खेला दों, और माल बटोर लो। दशरथ के नाम पर पैसा और ख्याति मिले और क्या चाहिए......
देश जाये तेल लेने और मांझी का परिवार जाये तेल लेने। हम तो बम बम हो गये न.......
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