अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट
एक्का की पवित्र मिट्टी झारखण्ड पहुंच चुकी है। 44 साल बाद अपने वीर सैनिक
की मिट्टी को देख सभी अभिभूत है, सभी ने मिलकर स्वागत किया है। राज्य के
सारे अखबार (प्रभात खबर को छोड़कर) प्रसन्न है, इस अवसर पर विशेष पृष्ठ
दिये है। राज्य सरकार के अधिकारी व राज्य सरकार संतुष्ट है, जिसने अपना पति
गवांया, वो बलमदीना खुशी से फूली नहीं समा रही, अलबर्ट एक्का का सारा
परिवार आनन्दित है, जो लोग मिट्टी लाने के लिए त्रिपुरा गये थे, उस टीम में
शामिल सभी लोगों की आंखे, इस खुशी के पल को देखकर छलक रही हैं पर प्रभात
खबर को प्रमाणिक दस्तावेज चाहिए कि ये जो मिट्टी आयी है, उसका क्या सबूत है
कि ये मिट्टी अलबर्ट एक्का की ही है...
प्रभात खबर ने टीम में शामिल एक सदस्य से ऐसे – ऐसे सवाल पूछे है, जिसे पढ़कर आपको उस अखबार की घटिया मानसिकता का पता चल जायेगा...
अखबार ने बलमदीना के आंचल में पड़े शहीद की मिट्टी के प्रमाणिक दस्तावेज के बारे में पूछा है...
जबकि सारे लोग जानते है, वो अखबार खुद जानता है कि जहां युद्ध होते है, वहां वीरों के शव को किस प्रकार सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है, पर प्रभात खबर को दस्तावेज चाहिए...
जबकि वो अखबार अच्छी तरह जानता है कि ढुलकी गांव के सारे लोग, वो व्यक्ति भुवन दास जिसने वीरों के शव को दफनाया था, कहा है कि यहीं वह जगह हैं, जहां उसने दफनाया था, जहां आज एक मकान बन गया है, जो मकान गोपाल चंद्र दास का है, गोपाल चंद्र दास अपने मकान के आंगन को खुद ही अपने हाथों से खोद डालते है और विन्सेंट एक्का अपनी मां के आंचल में वो पवित्र मिट्टी डाल देता है...इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है...
और जो प्रभात खबर मिट्टी मंगवाया था, वहां से 100 मीटर की दूरी से लाई गयी मिट्टी थी...यानी गलत पर गलत प्रभात खबर किये जा रहा है और ढिठई से खुद को औरो से बेहतर बताने की असफल कोशिश किये जा रहा है। जिसके कारण उसकी लगातार जगहंसाई होती जा रही है...
पर बेशर्म को शर्म कहां...वाली कहावत बार बार उसके साथ चरितार्थ हो रही है...
आज एक बार फिर दैनिक भास्कर ने प्रभात खबर की पत्रकारिता पर ही सवाल उठा दिया है, जो सही भी है...
प्रभात खबर बताये कि क्या एक शहीद की मिट्टी इसी तरह लायी जाती है, जैसा कि उसने लाकर किया...अरे एक सामान्य व्यक्ति की मौत हो जाने पर भी उसके परिवार वाले भी उसके मिट्टी को इस प्रकार नहीं लाते और न ले जाते है, जैसा कि प्रभात खबर ने किया...प्रभात खबर को इस कुकर्म के लिए अविलम्ब सारे झारखण्डवासियों से माफी मांगनी चाहिए...पर वो माफी क्यूं मांगेगा, उसे तो लगता है कि दुनिया की सारी अच्छाइयां उसी में समायी हुई है...
जरा प्रभात खबर से पूछिये कि 3 दिसम्बर को उसी के द्वारा आयोजित रथ को रांची के अलबर्ट एक्का चौक से प्रस्थान करने वक्त उसके कितने लोग मौजूद थे...वो तो पुष्प वृष्टि कराने का निवेदन भी किया था...पर निवेदक की पूरी टीम पुष्पवृष्टि के समय ही गायब थी, जिसका वर्णन में पूर्व के एपिसोड में कर चुका हूं...
चलिए...अब तो जगजाहिर हो चुका है...कि प्रभात खबर क्या है? उसे गलथेथरई करने दीजिये...क्योंकि गलथेथरई में उसे महारत हासिल है...
प्रभात खबर ने ओछेपन में सवाल भी दागे है, वो क्या है, जरा देखिये...
प्रभात खबर के अनुसार...
अनुत्तरित सवाल
रतन तिर्की ने 30 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर मिट्टी पर सवाल उठाते हुए मिट्टी की जांच की मांग की थी, तो क्या इस बार मिट्टी की जांच कर उसे लाया गया है. क्या यह संभव है कि जमीन से छह-आठ फीट खुदाई कर मिट्टी ली जाये.
अंतत:
प्रभात खबर का मानना है कि ऐसे सवालों का कोई अंत नहीं है. यह पवित्र मिट्टी है. जिसमें अलबर्ट एक्का के परिवार की आस्था हो, जो वे चाहते हैं, वही होना चाहिए, राजनीति नहीं. बेहतर है सब मिट्टी मिला कर उनके गांव में समाधि बने, ताकि परमवीर अलबर्ट एक्का के प्रति श्रद्धा और बढ़े.
प्रभात खबर को हमारा जवाब...
रतन तिर्की ने 30 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर, प्रभात खबर द्वारा लायी गयी मिट्टी पर सवाल उठाकर, जांच की मांग कर यह पूछने की कोशिश की थी कि आखिर कैसे ये मान लिया जाय कि ये जो मिट्टी लाई गयी है, वो अलबर्ट एक्का की कब्र की है, इसका उत्तर उस वक्त न तो प्रभात खबर के पास था और न ही अन्य के पास...
लेकिन आज जो मिट्टी आयी उसका जवाब सभी के पास है...
वो व्यक्ति जिसने दफनाया यानी भुवन दास साफ बताया कि गोपाल चंद्र दास का जहां मकान बना है, वहीं दफनाया गया और डेढ़ महीने जो पहले मिट्टी लाई गयी थी, वो उस जगह की है ही नहीं...तो फिर ये अनुत्तरित सवाल कैसे रहा...ये तो वहीं बात हुई कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया...
अंततः अरे जब बलमदीना संतुष्ट है, पूरा झारखण्ड संतुष्ट है तो प्रभात खबर के चीखने – चिल्लाने से क्या होगा? उसके चीखने – चिल्लाने से झूठ सच थोड़े ही हो जायेगा...चीखते रहो भाई प्रभात खबर...
इतिहास लिखा गया...
कि 44 साल बाद परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की मिट्टी 16 जनवरी 2016 को रांची लाई गयी थी, जिसका सभी ने शानदार स्वागत किया और प्रभात खबर ने परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के मिट्टी लाने के नाम पर डेढ़ माह पहले झारखण्ड की जनता की आंखों में धूल झोकने की कोशिश की थी, जिस पर परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना ने सदा के लिए विराम लगा दिया।
ये घटना उन पत्रकारों और अखबारों के लिए सबक भी है, जो खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाने के चक्कर में गलत पर गलत करते चले जाते है...प्रभात खबर को मानना होगा कि उसने अलबर्ट एक्का की मिट्टी लाने के प्रकरण पर अपनी सारी प्रतिष्ठा पूरी तरह से गंवा चुकी है...
प्रभात खबर ने टीम में शामिल एक सदस्य से ऐसे – ऐसे सवाल पूछे है, जिसे पढ़कर आपको उस अखबार की घटिया मानसिकता का पता चल जायेगा...
अखबार ने बलमदीना के आंचल में पड़े शहीद की मिट्टी के प्रमाणिक दस्तावेज के बारे में पूछा है...
जबकि सारे लोग जानते है, वो अखबार खुद जानता है कि जहां युद्ध होते है, वहां वीरों के शव को किस प्रकार सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है, पर प्रभात खबर को दस्तावेज चाहिए...
जबकि वो अखबार अच्छी तरह जानता है कि ढुलकी गांव के सारे लोग, वो व्यक्ति भुवन दास जिसने वीरों के शव को दफनाया था, कहा है कि यहीं वह जगह हैं, जहां उसने दफनाया था, जहां आज एक मकान बन गया है, जो मकान गोपाल चंद्र दास का है, गोपाल चंद्र दास अपने मकान के आंगन को खुद ही अपने हाथों से खोद डालते है और विन्सेंट एक्का अपनी मां के आंचल में वो पवित्र मिट्टी डाल देता है...इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है...
और जो प्रभात खबर मिट्टी मंगवाया था, वहां से 100 मीटर की दूरी से लाई गयी मिट्टी थी...यानी गलत पर गलत प्रभात खबर किये जा रहा है और ढिठई से खुद को औरो से बेहतर बताने की असफल कोशिश किये जा रहा है। जिसके कारण उसकी लगातार जगहंसाई होती जा रही है...
पर बेशर्म को शर्म कहां...वाली कहावत बार बार उसके साथ चरितार्थ हो रही है...
आज एक बार फिर दैनिक भास्कर ने प्रभात खबर की पत्रकारिता पर ही सवाल उठा दिया है, जो सही भी है...
प्रभात खबर बताये कि क्या एक शहीद की मिट्टी इसी तरह लायी जाती है, जैसा कि उसने लाकर किया...अरे एक सामान्य व्यक्ति की मौत हो जाने पर भी उसके परिवार वाले भी उसके मिट्टी को इस प्रकार नहीं लाते और न ले जाते है, जैसा कि प्रभात खबर ने किया...प्रभात खबर को इस कुकर्म के लिए अविलम्ब सारे झारखण्डवासियों से माफी मांगनी चाहिए...पर वो माफी क्यूं मांगेगा, उसे तो लगता है कि दुनिया की सारी अच्छाइयां उसी में समायी हुई है...
जरा प्रभात खबर से पूछिये कि 3 दिसम्बर को उसी के द्वारा आयोजित रथ को रांची के अलबर्ट एक्का चौक से प्रस्थान करने वक्त उसके कितने लोग मौजूद थे...वो तो पुष्प वृष्टि कराने का निवेदन भी किया था...पर निवेदक की पूरी टीम पुष्पवृष्टि के समय ही गायब थी, जिसका वर्णन में पूर्व के एपिसोड में कर चुका हूं...
चलिए...अब तो जगजाहिर हो चुका है...कि प्रभात खबर क्या है? उसे गलथेथरई करने दीजिये...क्योंकि गलथेथरई में उसे महारत हासिल है...
प्रभात खबर ने ओछेपन में सवाल भी दागे है, वो क्या है, जरा देखिये...
प्रभात खबर के अनुसार...
अनुत्तरित सवाल
रतन तिर्की ने 30 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर मिट्टी पर सवाल उठाते हुए मिट्टी की जांच की मांग की थी, तो क्या इस बार मिट्टी की जांच कर उसे लाया गया है. क्या यह संभव है कि जमीन से छह-आठ फीट खुदाई कर मिट्टी ली जाये.
अंतत:
प्रभात खबर का मानना है कि ऐसे सवालों का कोई अंत नहीं है. यह पवित्र मिट्टी है. जिसमें अलबर्ट एक्का के परिवार की आस्था हो, जो वे चाहते हैं, वही होना चाहिए, राजनीति नहीं. बेहतर है सब मिट्टी मिला कर उनके गांव में समाधि बने, ताकि परमवीर अलबर्ट एक्का के प्रति श्रद्धा और बढ़े.
प्रभात खबर को हमारा जवाब...
रतन तिर्की ने 30 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर, प्रभात खबर द्वारा लायी गयी मिट्टी पर सवाल उठाकर, जांच की मांग कर यह पूछने की कोशिश की थी कि आखिर कैसे ये मान लिया जाय कि ये जो मिट्टी लाई गयी है, वो अलबर्ट एक्का की कब्र की है, इसका उत्तर उस वक्त न तो प्रभात खबर के पास था और न ही अन्य के पास...
लेकिन आज जो मिट्टी आयी उसका जवाब सभी के पास है...
वो व्यक्ति जिसने दफनाया यानी भुवन दास साफ बताया कि गोपाल चंद्र दास का जहां मकान बना है, वहीं दफनाया गया और डेढ़ महीने जो पहले मिट्टी लाई गयी थी, वो उस जगह की है ही नहीं...तो फिर ये अनुत्तरित सवाल कैसे रहा...ये तो वहीं बात हुई कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया...
अंततः अरे जब बलमदीना संतुष्ट है, पूरा झारखण्ड संतुष्ट है तो प्रभात खबर के चीखने – चिल्लाने से क्या होगा? उसके चीखने – चिल्लाने से झूठ सच थोड़े ही हो जायेगा...चीखते रहो भाई प्रभात खबर...
इतिहास लिखा गया...
कि 44 साल बाद परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की मिट्टी 16 जनवरी 2016 को रांची लाई गयी थी, जिसका सभी ने शानदार स्वागत किया और प्रभात खबर ने परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के मिट्टी लाने के नाम पर डेढ़ माह पहले झारखण्ड की जनता की आंखों में धूल झोकने की कोशिश की थी, जिस पर परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना ने सदा के लिए विराम लगा दिया।
ये घटना उन पत्रकारों और अखबारों के लिए सबक भी है, जो खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाने के चक्कर में गलत पर गलत करते चले जाते है...प्रभात खबर को मानना होगा कि उसने अलबर्ट एक्का की मिट्टी लाने के प्रकरण पर अपनी सारी प्रतिष्ठा पूरी तरह से गंवा चुकी है...