Wednesday, January 13, 2016

ऐसे ही युवा मंत्री की झारखण्ड को जरुरत है......

ऐसे ही युवा मंत्री की झारखण्ड को जरुरत है...
जो इसकी परवाह नहीं करें कि उसका भाषण सुननेवालों की संख्या कितनी है...
या हैं भी या नहीं...
वो डंके की चोट पर अपने इरादे को स्पष्ट रुप से रखे...
और वहीं करें, जिसका संकल्प लेकर वो घर से निकला है...
आज सुबह – सुबह एक अखबार पर नजर पड़ी है, प्रथम पृष्ठ पर राज्य के पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी का भाषण देते हुए तस्वीर है, जिसमें दिखाया गया है कि अमर कुमार बाउरी भाषण दे रहे हैं, पर उन्हें सुननेवाला कोई नहीं...
मेरा मानना है,
कि हम भारत में रहते हैं...
भारत के शब्द है ये, जो कहते है कि आप को जो करना है, करो...
क्योंकि सुक्ष्मावस्था में बहुत सारे ऐसे जीव है, जो आपको देख व सुन रहे है...
बधाई अमर कुमार बाउरी जी, आपने वो कर दिखाया, जो बहुत कम ही लोग करते है...
दूसरा नेता रहता या उस अखबार का ही कोई प्रतिनिधि होता तो भाग खड़ा होता...यह कहकर कि यहां तो कोई हैं ही नहीं, तो भाषण किसको सुनाऊँ...
खैर,
इसी घटना को देख व सुनकर मुझे ईटीवी धनबाद याद आ गया...। जब मैं ईटीवी धनबाद कार्यालय में कार्यरत था, तब उसी दौरान ईटीवी हैदराबाद मुख्यालय से एंटी टूबैको कंपेन चलाने को कहा गया। संभवतः जून का महीना था, जिस दिन से एंटी टूबैको कंपेन चलना था, संयोग से ठीक उसके एक दिन पहले विश्व हिन्दू परिषद ने भारत बंद का ऐलान कर दिया। हैदराबाद से फोन आया कि चूंकि विश्व हिन्दू परिषद ने भारत बंद का ऐलान कर दिया है, इसलिए एंटी टूबैको कंपेन दूसरे दिन से चलाया जायेगा। मैंने तुरंत सवाल खड़ा किया कि घर में शादी- विवाह होता, और उसी दिन कोई संगठन बंद का कॉल कर देता तो क्या आनन-फानन में शादी – विवाह का दिन भी बदल जाता क्या? हैदराबाद वालों ने कहा कि आप पूर्व निर्धारित तिथि अनुसार कार्य करें, बाकी जगहों पर एक दिन बाद शुरु होगा और मैंने पूर्व निर्धारित तिथि और समयानुसार कार्यक्रम को संपन्न कराया। कहीं कोई दिक्कत नहीं। जिनको भारत बंद करना था, वे भारत बंद किये और हमें एंटी टूबैको कंपेन चलाना था, मैंने एंटी टूबैको कंपेन चलाया। इसी बीच इस कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए, हमें एक आदमी की तलाश थी, जिसने कभी टूबैको को यूज नहीं किया हो। संयोग से पता चला कि धनबाद रेल मंडल के तत्कालीन मंडल रेल प्रबंधक अम्बरीश कुमार गुप्ता इन सबसे वंचित है। मैने उनसे उद्घाटन के लिए आग्रह किया, मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए, वे ठीक समय पर पहुंचे। उस वक्त भी मेरे उद्घाटन कार्यक्रम के समय एक भी व्यक्ति मौजूद नहीं था, फिर भी चूंकि समय निर्धारित था, मैंने बिना किसी के परवाह किये, कार्यक्रम का उद्घाटन करवाया, क्योंकि मैं जानता था कि समय का क्या महत्व है?
और ऐसे भी, कोई रहे या न रहे...आप जो करने जा रहे है, उसकी धमक जहां तक पहुंचनी है, पहुंचेगी ही, गर आपका चरित्र और लक्ष्य सही है, लीजिये और हम इसमें कामयाब भी हुए।
इस कार्यक्रम को संपन्न कराने में जिन्होंने हमारी दिल से मदद की, उन्हें मैं भूल नहीं सकता। वे थे जगदीश राव, जो आजकल वाराणसी में हैं और दूसरे रहमान भाई जो धनबाद क्रिकेट से जूड़े है...सचमुच आप दोनों एक बार फिर याद आ गये...मैं आप दोनों को भूल नहीं सकता, भाई।

No comments:

Post a Comment