Sunday, December 21, 2014

घोर आश्चर्य ?


झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से लेकर मतदान संपन्न होने तक, मात्र चंद पैसों के लिए विज्ञापन के नाम पर --- हरे मोदी, हरे मोदी, मोदी- मोदी, हरे हरे, हरे अमित शाह, हरे अमित शाह, अमित शाह – अमित शाह, हरे हरे।। - का जाप करनेवाले, आज ताल ठोंक रहे हैं कि राज्य में उनके चलते मतदान की प्रतिशतता बढ़ी हैं, क्या ये शर्मनाक नहीं हैं, क्या ये खुद को ईश्वर बताने की, मानने की कुटिल चाल नहीं हैं, जनता ऐसे लोगों से, ऐसे अखबारों और चैनलों से सावधान रहें, क्योंकि कुछ ही दिनों में मतगणना होगी, और जिसकी सरकार बनेगी, ये मीडिया वाले, उनकी चरणवंदना करने में सबसे आगे रहेंगे, साथ ही अपने हक का झारखंड लूटने में प्रमुख भूमिका निभायेंगे, उसके बाद क्या होगा, होगा वहीं - जनता एक बार फिर अन्य दिनों की तरह मीडियावालों से छली जायेंगी। ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आज सुबह जैसे ही मेरी नींद खुली। एक अखबार ने राज्य में भारी मतदान पर संपादकीय लिख डाली और ये मान बैठा कि उसके कारण ऐसा संभव हुआ हैं। उसने एक अभियान चलाया और जनता उस अभियान से प्रभावित होकर 9 प्रतिशत ज्यादा मतदान कर बैठी, जबकि सच्चाई ये हैं कि राज्य में मतदान की प्रतिशतता बढ़ने के दूसरे बहुत सारे कारण है। जनता की वर्तमान सरकार से नाराजगी सबसे बड़ा कारण हैं, साथ ही बार-बार गठबंधन की सरकार के कारण विकास कार्य प्रभावित होना भी एक कारण हैं। तीसरा सबसे बड़ा कारण मोदी के बार – बार झारखंड आने और खुद को विकास के एजेंडें तक सीमित रखने और विश्वास बनाने, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का इस चुनाव के प्रति घोर निराशा का होना और मीडिया का मोदी के इर्द-गिर्द सिर्फ चंद पैसों के लिए जी – हुजूरी करना शामिल हैं। मीडिया ये नहीं भूले कि झारखंड को बर्बाद करने में गर नेताओं की अहम भूमिका हैं तो पत्रकारों की भी कम भूमिका नहीं हैं। झारखंड में पत्रकारों की एक बहुत बड़ी लंबी लिस्ट हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के रिकार्ड बनाये हैं गर इसकी सूची प्रकाशित हुई तो बहुत सारे लोग नंगे हो जायेंगे। कोई किसी आर्गेनाइजेशन का संयोजक बनने के लिए तो कोई सूचना आयुक्त बनने के लिए, कोई सरकारी संस्थानों में अपने भाई-भतीजों को नौकरी दिलवाने के लिए, कोई कोयला और सोने के खदानों को पाने के लिए, कोई निजी संस्थानों में खुद को प्रतिष्ठित करने के लिए कैसे झारखंड की भोली – भाली जनता को लूटा हैं। वो सभी जानते हैं, पर अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया को देखे तो पता चलेगा कि दूनिया की सारी सच्चाई और ईमानदारी का ठेका, इन्हीं मीडियाकर्मियों ने ले रखा हैं। जिस प्रकार राष्ट्रीय चैनलों के मालिक और कई संपादक अपनी जमीर नेताओं के आगे गिरवी रखा हैं, उसी प्रकार झारखंड में भी वो चीजें देखने को मिल रही हैं, ऐसे में झारखंड की प्रगति का रोना-रोना मीडियाकर्मियों या उनके बॉस या उनके मालिक को शोभा नहीं देता। उनके इस रोने को घड़ियाली आंसू कहना, घड़ियाल तक का अपमान हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें ईश्वर ने दंडित करने का विशेष अभियान चलाने का शायद फैसला कर लिया हैं, जल्द ही वे इन फैसलों के अमल में आने के बाद दंडित होंगे, क्योंकि दो प्रकार के संविधान हैं। एक जिसे ईश्वर ने बनाया और एक वो जिसे मनुष्य ने अपनी सफलता और असफलता को सिद्ध करने के लिए खुद से संविधान बना डाली। मनुष्य के बनाये संविधान से तो वो बच जायेगा, पर ईश्वर के बनाये संविधान से बच पायेगा, हमें नहीं लगता। इन सभी ने शर्म बेच खाया हैं, इन सभी ने ईमान बेच खाया हैं, निर्मल बाबा और हनुमान यंत्र में भी इन्हें भेद नजर आता हैं, चूंकि निर्मल बाबा ने विज्ञापन के नाम पर माल नहीं दिया, तो उसे बदनाम कर ड़ाला, और जिसने विज्ञापने के नाम पर माल दिया, उसे मालोमाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। जबकि ईश्वर की अदालत में दोनों समान रुप से अपराधी हैं। ये तो एक प्रकार का उदाहरण, मैंने सामान्य जनता के सामने रखा हे। मैं झारखंड की जनता से यहीं कहूंगा कि आप स्वयं को इन अखबारों और चैनलों से बचा कर रखिये, क्योंकि इन पर विश्वास करना, खुद को धोखे में रखना, मूर्ख बनना और राज्य को गर्त में डालने के सिवा दूसरा कुछ भी नहीं..............

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