Sunday, September 13, 2015

लिपिक पर तोहमत लगाने के बजाय पर्यटन विभाग के सचिव को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए.....

लिपिक पर तोहमत लगाने के बजाय पर्यटन विभाग के सचिव को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए। 12 सितम्बर 2015 को रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या 08 में “राज्य में फिल्म शूटिंग पर शुल्क तय नहीं” शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित हुआ। पूरे समाचार को पढ़ने पर यहीं पता चला कि यहां सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं...। यहां लिपिक विशेष विभागों की नीति बनाता है और उस लिपिक द्वारा बनायी गयी नीति को आईएएस आफिसर अपनी नीति बताकर राज्य सरकार की कैबिनेट में भेज देता है। कैबिनेट बिना उस नीति को पढ़े, बिना उसे जाने, बिना उसे समझे। यह कहकर पास करता है कि आईएएस द्वारा बनाया गया नीति है, जरुर ही राज्य हित में होगा, समाज का भला होगा। यह मानकर उसे कैबिनेट से पास करा देता है और जब कैबिनेट द्वारा पास कराये गये उस नीति की राज्य या देश भर में थू – थू होती है, तो बड़े ही सहज भाव में वह आईएएस आफिसर अखबार के किसी पत्रकार को बुलाकर यह कहता हैं कि भाई, ये नीति उसने नहीं तैयार की थी, वह तो लिपिक ने तैयार किया था, उसी से भूल हो गयी। कमाल है, कड़वा-कड़वा थू-थू, मीठा-मीठा चप-चप। अच्छा हो, प्रशंसा मिले तो काम आईएएस आफिसर ने किया और जब शिकायत मिले, आलोचना होने लगे, तो किसी लिपिक का नाम लेकर पतली गली से निकल जाने का काम, गर देखना हो, तो झारखंड आ जाइये।
आप कहेंगे – कि ये मैं क्या लिख रहा हूं, जो आपको समझ में नहीं आ रहा। तो मैं बता देता हूं, ये सारा मामला, राज्य के पर्यटन विभाग से संबंधित है। हुआ यूं कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग में एक बहुत ही दिमाग वाले, आईएएस आफिसर है, उन्हें लगता हैं कि दुनिया की सारी बुद्धि उन्हीं के पास गिरवी रखी हैं, इसलिए वह तरह-तरह के तिकड़म करते हैं, और उसमें उनके विभाग की तो बदनामी होती ही हैं, राज्य सरकार का भी बाट लग जाता है।
हाल ही में इस पर्यटन विभाग के सचिव ने झारखंड फिल्म शूटिंग रेगुलेशन एक्ट 2015 को कैबिनेट से पास करवा लिया। जिसमें राज्य में एक सप्ताह के शूटिंग के लिए 50 लाख रुपये का दर इस विभाग ने निर्धारित कर दिया। एक सप्ताह के बाद की शूटिंग के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 10 लाख रुपये अलग से लेने की बात भी कहीं गयी थी। यहीं नहीं आवेदन देने के बाद, पंद्रह दिन तक विभाग की अनुमति मिली या नहीं उसका इंतजार करने आदि का ड्रामा भी उल्लिखित था, जिसका सबसे पहले मैंने विरोध किया था, जिसे आप मेरे फेसबुक व ब्लाग पर जरुर पढ़े होंगे। बाद में सभी ने इसका पुरजोर विरोध किया। इस विरोध में भाजपा के एक बड़े नेता अर्जुन मुंडा भी शामिल हो गये। जैसे ही अर्जुन मुंडा ने विरोध किया, उक्त आईएएस आफिसर ने पल्ला झाड़ने के लिए एक नये षड्यंत्र का सहारा लिया। जिसका जिक्र मैने उपर में किया है।
सवाल अब सरकार से.........
सरकार बताये कि क्या राज्य में फिल्म की शूटिंग का दर कितना हो या फिल्म नीति बनाने का अधिकार, पर्यटन विभाग को है?
क्योंकि राज्य सरकार का ही एक विभाग मंत्रिमंडल एवं समन्वय विभाग है, जो स्पष्ट रुप से विभिन्न विभागों के कार्यों को निरुपित करता है, उसने तो इसकी जिक्र ही नहीं की है, जब जिक्र नहीं है, तो पर्यटन विभाग ने फिल्म की शूटिंग और उसकी नीतियों पर एक्ट कैसे बना दी और उस एक्ट को सरकार ने मंजूरी कैसे दे दी? ये तो पूर्णतः गड़बड़झाला है, भाई। ऐसे में तो उक्त आईएएस अधिकारी पर कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि उसने तो सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया और सरकार की इजज्त ली, सो अलग......
आइये देखते है क्या कहता हैं, झारखंड सरकार का मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग?
झारखंड सरकार का मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग का अधिसूचना जो 13 जुलाई 2015 को जारी किया गया। जो राज्य के विभिन्न विभागों के कार्यों को प्रदर्शित करता है। जो सरकार के अपर सचिव जितबाहन उरांव के हस्ताक्षर से अधिसूचित है ---
सी.एस.-01/आर.-2/2015-1235/ भारत के संविधान के अनुच्छेद 166 के खंड(3) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए झारखंड के राज्यपाल, मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग की अधिसूचना संख्या -07, दिनांक 16.1.2000 द्वारा बनायी गयी “झारखंड कार्यपालिका नियमावली 2000” (समय-समय पर यथा संशोधित) की अनुसूची -1 में निम्नलिखित संशोधन करते है -----
25 क. पर्यटन विभाग......
• पर्यटन की दृष्टि से धार्मिक, ऐतिहासिक एव दर्शनीय स्थलों का विकास।
• झारखंड में होटल उद्योग का विकास।
• देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए आवास, परिवहन, मार्गदर्शन एवं उपहार की व्यवस्था।
• पर्यटन साहित्य प्रकाशन एवं विभिन्न साधनों द्वारा प्रचार।
• पर्यटन व्यवस्था के लिए स्थापित भिन्न –भिन्न साधनों द्वारा प्रचार।
• पर्यटन व्यवस्था के लिए स्थापित संस्थाओं जैसे – पर्यटन सूचना केन्द्र, युवा आवास, टुरिस्ट बंगला।
• पर्यटन में नियोजित सभी पदाधिकारियों का नियंत्रण।
• पर्यटन के दखल में सभी भवनों का प्रशासनिक प्रभार।
• सराय और सरायपाल।
• सभी सरकारी निरीक्षण भवन/गेस्ट हाउस का संचालन।
• पर्यटन सुरक्षा।
यानी कहीं भी फिल्म से संबंधित एक शब्द भी इसमें नहीं हैं, फिर भी पर्यटन विभाग के जनाब फिल्म शूटिंग की नीतियां व एक्ट बनाने में लग गये और लगे हाथों जो भी झारखंड में फिल्म बन रहे थे या बनाने की जो लोग सोच रहे थे, उनकी सोच का ही उक्त महाशय ने श्राद्ध कर डाला।
अब कुछ सवाल, सरकार से......
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो गड़बड़ियां निकलने पर स्वयं को दोषी न मानकर लिपिक के सर गलतियों को मढ़ देते है?
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो उनका काम नहीं हैं, फिर भी दूसरे के कामों में अड़ंगा लगाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते है?
• क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो राज्य में किसी भी अच्छे काम को होने नहीं देना चाहते?
• क्या ऐसे अधिकारियों की गलती पकड में आने के बाद भी जब राज्य सरकार उक्त अधिकारी पर कोई कारर्वाई नहीं करें तो क्या लगता हैं कि यहां सरकार नाम की कोई चीज है?

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