Monday, September 21, 2015

सरयू की नाराजगी...........

बेचारे सरयू नाराज है। रांची से प्रकाशित एक अखबार ने प्रथम पृष्ठ पर उनकी नाराजगी की खबर छापी है और साइड में नाराजगी का कारण भी बता दिया है। भाजपा नहीं मानती पर सरयू के चाहनेवाले ताल ठोंक कर, डंके की चोट पर ये कहते नहीं भूलते कि वे भाजपा के थिंक टैंक है। रांची से प्रकाशित कई अखबार उनके चरणोदक पीने को सदैव इच्छूक रहते है, जिस दिन उनकी चरणोदक मिल गई, उस दिन कई अखबार और उनके मालिक व पत्रकार स्वयं को धन्य-धन्य महसूस करते हुए, ये समझते हैं कि उनका जीवन कृतार्थ हो गया। वे दामोदर बचाओ अभियान से भी जूड़े है, पर वे कितना दामोदर को बचा पाएं है, वे खुद ही अच्छी तरह बता पाएंगे, पर जहां तक मेरा मानना है अखबारों और न्यूज चैनल में दामोदर को लेकर इनके द्वारा किये गये प्रयास का जितना ढोल पीटा जाता है, उसका एक दृष्टांत तक दामोदर को देखने से नहीं मिलता।
फिलहाल जनाब, रघुवर दास से नाराज है। नाराज होना भी चाहिए, क्योंकि मैं खुद भी सरकार के काम-काज से प्रसन्न नहीं हूं। गाहे-बगाहे कुछ अखबार जो नीतीश के प्रेमरस में डूबे रहते है, वे भी रघुवर के खिलाफ कभी एक-दो खबरें पेश कर देते हैं, ताकि उनकी खबरों की निरपेक्षता बराबर झलकती रहें, पर बिहार व बंगाल जाते ही उस अखबार की निरपेक्षता तेल लेने निकल पड़ती है।
कहने का तात्पर्य है कि खबरों में बने रहने के लिए इस प्रकार के बयान, या अपनी राजनीति चमकाने के लिए गर ये बयान है तो इसकी जमकर आलोचना होनी चाहिए। आप सरकार में हैं, सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री है तो खुल कर कहिये कि इस में हमारी भी भागीदारी है, हम भी गुनहगार है, पर खुद को शहनशाह बनाने की पेशकश करते हुए, अपने ही मुखिया की आलोचना करना, वह भी पद पर रहकर किसी भी प्रकार से ठीक नहीं। सरयू राय जिस मंत्रालय को संभाल रहे है, वह मंत्रालय किसी भी प्रकार से छोटा या बेकार मंत्रालय नहीं है, पर जो मंत्रालय उन्हें दिया गया है, उस मंत्रालय में उनके काम-काज कैसे रहे है?, पहले ये तो उन्हें बताना ही चाहिए, हालांकि चीनी के दामों को लेकर, राशन वितरण तक राशन दुकान में किस प्रकार धांधली चल रही है, उसके चर्चें अखबारों से लेकर, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र तक पहुंच चुके है। जिस प्रकार से राशन दुकानों में धांधलियां चल रही हैं, अब तक नये राशन कार्ड तक नहीं बांटे गये है, उससे साफ पता लगता है कि सरयू राय ने अपने मंत्रालय के साथ न्याय नहीं किया और न ही वे किसी काम के लायक है, संयोग से इन्हें अन्य विभाग की जिम्मेदारी दी गयी, तो वे वहीं करेंगे, जो हाल खाद्य आपूर्ति मंत्रालय का उन्होंने कर रखा है। मेरा मानना है कि आलोचना वहीं करें, जिसने कुछ काम करके दिखाया हो, वो नहीं कि खुद काम नहीं करें और दूसरों को प्रवचन देना शुरु कर दे।
रघुवर सरकार के एक साल होने को है पर इस राज्य में आज तक किसी भी मंत्री ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया, जिस पर वह गर्व कर सकें, हां बेवजह की बातें, अलोकतांत्रिक कार्य, जगहंसाई के काम इतने किये कि उस पर एक अच्छी पुस्तक बन जायेगी, शायद इसीलिए इस राज्य का नाम झारखंड है, फिलहाल सरयू राय ने डायलॉगबाजी कर दी है, देखिये अब इस डायलॉगबाजी का क्या असर होता है?

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