वे पत्रकार हैं...
पर बहुरुपिए हैं...
आवश्यकतानुसार रुप बदलते हैं...
कभी सांसद तो कभी नेता बन जाते हैं...
टीवी पर प्रवचन भी करते हैं...
वामपंथी बनकर खुब दहाड़ते हैं...
पर वामपंथ से कोसो दूर हो...
लाखों-करोड़ों में खेलते हैं...
वेतन तो दिखावा है...
असली माल तो घर पर इनके चाहनेवाले पहुंचा देते हैं...
जिंदगी में कभी इन बदमाशों ने किसी गरीब को एक पाव दूध भी नहीं पिलाया होगा...
पर गरीबी पर आलेख खूब लिखते हैं...
इन्कम टैक्स, प्रोफेशनल टैक्स चोरी करने में उस्ताद हैं...
पर नेताओं को गरियाने, अधिकारियों को फंसाने में सबके बाप हैं...
कहीं नौकरी नहीं मिली...
बन गये पत्रकार...
पर आज तक इंसान बनने की कोशिश नहीं कर पाये हैं...
दाढ़ी बढ़ाकर, वामपंथी बनने का किस्सा था पुराना...
अब सफाचट, मंहगे वस्त्र पहन, मेकअप खूब करवाते हैं...
अंदाजे बयां, ऐसा कि पंचतंत्र का लोमड़ी भी शरमा जाय...
पता नहीं कौन-कौन से टीवी में खुब धूम मचाते हैं...
इनके छुटभैये, अन्य हिस्सों में...
सबको पानी पिलवाते हैं...
कैमरा चमका और बूम दिखाकर...
लूट-लूट, डंस जाते हैं...
अरे टीवी, अखबारों के दल्ले...
तू क्या ज्ञान बघारेगा...
जिस दिन जनता जगेगी...
तेरा नामोनिशां न रह पायेगा...
ऐसे भी तू मरा हूआ हैं...
अब तू क्या कर सकता हैं...
कहीं मरा हुआ कोई जीव कभी...
किसी का भाग्य बदल वो सकता हैं...
पर बहुरुपिए हैं...
आवश्यकतानुसार रुप बदलते हैं...
कभी सांसद तो कभी नेता बन जाते हैं...
टीवी पर प्रवचन भी करते हैं...
वामपंथी बनकर खुब दहाड़ते हैं...
पर वामपंथ से कोसो दूर हो...
लाखों-करोड़ों में खेलते हैं...
वेतन तो दिखावा है...
असली माल तो घर पर इनके चाहनेवाले पहुंचा देते हैं...
जिंदगी में कभी इन बदमाशों ने किसी गरीब को एक पाव दूध भी नहीं पिलाया होगा...
पर गरीबी पर आलेख खूब लिखते हैं...
इन्कम टैक्स, प्रोफेशनल टैक्स चोरी करने में उस्ताद हैं...
पर नेताओं को गरियाने, अधिकारियों को फंसाने में सबके बाप हैं...
कहीं नौकरी नहीं मिली...
बन गये पत्रकार...
पर आज तक इंसान बनने की कोशिश नहीं कर पाये हैं...
दाढ़ी बढ़ाकर, वामपंथी बनने का किस्सा था पुराना...
अब सफाचट, मंहगे वस्त्र पहन, मेकअप खूब करवाते हैं...
अंदाजे बयां, ऐसा कि पंचतंत्र का लोमड़ी भी शरमा जाय...
पता नहीं कौन-कौन से टीवी में खुब धूम मचाते हैं...
इनके छुटभैये, अन्य हिस्सों में...
सबको पानी पिलवाते हैं...
कैमरा चमका और बूम दिखाकर...
लूट-लूट, डंस जाते हैं...
अरे टीवी, अखबारों के दल्ले...
तू क्या ज्ञान बघारेगा...
जिस दिन जनता जगेगी...
तेरा नामोनिशां न रह पायेगा...
ऐसे भी तू मरा हूआ हैं...
अब तू क्या कर सकता हैं...
कहीं मरा हुआ कोई जीव कभी...
किसी का भाग्य बदल वो सकता हैं...
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