परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना ने प्रभात खबर को धूल चटाया...
इसे कहते है, नहले पे दहला...
प्रभात खबर अखबार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी इतनी भद्द पीटेगी, पर ये तो सत्य है, उसकी भद्द पिटी है, और वह भी अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का के द्वारा, जब बलमदीना एक्का ने प्रभात खबर के इस नौटंकी पर ही यह कहकर विराम लगा दिया कि ये मिट्टी मेरे शहीद पति की ही है यह मैं कैसे मान लूं। मैं इसे छुऊंगी भी नहीं...
अलबर्ट एक्का के बेटे विनसेंट एक्का का कहना था कि बाबा की मिट्टी आ रही है हमन के जानकारी नखे...
क्या बात है?
हर जगह राजनीतिबाजी...
और इस बार राजनीतिबाजी कर दी, रांची से प्रकाशित प्रभात खबर ने, वह भी परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के नाम पर...
फिलहाल हम आपको बता दें कि सच्चाई यहीं हैं कि बलमदीना एक्का ने प्रभात खबर द्वारा आयोजित और राज्य सरकार द्वारा प्रभात खबर को अप्रत्यक्ष रुप से समर्थित इस कार्यक्रम में लाए गये माटी को अस्वीकार कर दिया और फिलहाल ये माटी गुमला के उपायुक्त के पास रख दी गयी है...
इतना होने के बावजूद भी प्रभात खबर का घमंड टूटा नहीं है...उसने आज भी अपने किये पर पर्दा डालने की झूठी कोशिश की है, जबकि सभी अखबारों ने उसके झूठ की पोल खोलकर रख दी है...
जरा गौर करिये...
रांची से प्रकाशित हिन्दुस्तान ने हेडिंग दी – “कलश लेने से किया इनकार”
दैनिक जागरण ने हेडिंग दी – “समाधि की मिट्टी लेने से परिजनों का इनकार”
दैनिक भास्कर ने लिखा – “ये मिट्टी मेरे शहीद पति की ही है यह मैं कैसे मान लूं। मैं इसे छुऊंगी भी नहीं”
और प्रभात खबर ने लिखा – मुख्यमंत्री ने शहीद अलबर्ट एक्का की पवित्र मिट्टी सौंपी – अरे यार किसको सौपी ये तो बताओ, यानी झूठ पर झूठ...
एक बार फिर प्रभात खबर ने दूसरा झूठ छापा, आज का प्रथम पृष्ठ देखिये –जिसमें लिखा है – अलबर्ट एक्का चौक से सुबह सात बजे उपायुक्त और एसएसपी ने किया सजे रथ को रवाना और इसी का संवाददाता पृष्ठ 11 पर लिखा है कि डीसी और एसएसपी ने सुबह 8 बजे रथ को रवाना किया, वह भी उस हालात में, जबकि प्रभात खबर निवेदक बना हुआ था...ये सारा कार्य उसी के द्वारा चलाया जा रहा था...तब ये हालात है इस अखबार के, खुद को लिखता है, अखबार नहीं आंदोलन...ये कैसा आंदोलन चला रहा है भाई...भगवान ही मालिक है इस अखबार का...खुद निवेदक होता है और जहां से रथ रवाना होता है, जहां रथ की सबसे पहले स्वागत होनी चाहिए, पुष्पवृष्टि करनी चाहिए, वहां से इसकी पूरी टीम ही गायब रहती है...
हे ईश्वर, इस अखबार के प्रधान संपादक, कारपोरेट एडीटर, कार्यकारी संपादक और संपादक को सद्बुद्धि दें, पर उसे सद्बुद्धि मिलेगी कैसे? उसका तो प्रधान संपादक महागठबंधन के नेताओं का पूजा-अर्चना करने में लगा है...
इसे कहते है, नहले पे दहला...
प्रभात खबर अखबार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी इतनी भद्द पीटेगी, पर ये तो सत्य है, उसकी भद्द पिटी है, और वह भी अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का के द्वारा, जब बलमदीना एक्का ने प्रभात खबर के इस नौटंकी पर ही यह कहकर विराम लगा दिया कि ये मिट्टी मेरे शहीद पति की ही है यह मैं कैसे मान लूं। मैं इसे छुऊंगी भी नहीं...
अलबर्ट एक्का के बेटे विनसेंट एक्का का कहना था कि बाबा की मिट्टी आ रही है हमन के जानकारी नखे...
क्या बात है?
हर जगह राजनीतिबाजी...
और इस बार राजनीतिबाजी कर दी, रांची से प्रकाशित प्रभात खबर ने, वह भी परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के नाम पर...
फिलहाल हम आपको बता दें कि सच्चाई यहीं हैं कि बलमदीना एक्का ने प्रभात खबर द्वारा आयोजित और राज्य सरकार द्वारा प्रभात खबर को अप्रत्यक्ष रुप से समर्थित इस कार्यक्रम में लाए गये माटी को अस्वीकार कर दिया और फिलहाल ये माटी गुमला के उपायुक्त के पास रख दी गयी है...
इतना होने के बावजूद भी प्रभात खबर का घमंड टूटा नहीं है...उसने आज भी अपने किये पर पर्दा डालने की झूठी कोशिश की है, जबकि सभी अखबारों ने उसके झूठ की पोल खोलकर रख दी है...
जरा गौर करिये...
रांची से प्रकाशित हिन्दुस्तान ने हेडिंग दी – “कलश लेने से किया इनकार”
दैनिक जागरण ने हेडिंग दी – “समाधि की मिट्टी लेने से परिजनों का इनकार”
दैनिक भास्कर ने लिखा – “ये मिट्टी मेरे शहीद पति की ही है यह मैं कैसे मान लूं। मैं इसे छुऊंगी भी नहीं”
और प्रभात खबर ने लिखा – मुख्यमंत्री ने शहीद अलबर्ट एक्का की पवित्र मिट्टी सौंपी – अरे यार किसको सौपी ये तो बताओ, यानी झूठ पर झूठ...
एक बार फिर प्रभात खबर ने दूसरा झूठ छापा, आज का प्रथम पृष्ठ देखिये –जिसमें लिखा है – अलबर्ट एक्का चौक से सुबह सात बजे उपायुक्त और एसएसपी ने किया सजे रथ को रवाना और इसी का संवाददाता पृष्ठ 11 पर लिखा है कि डीसी और एसएसपी ने सुबह 8 बजे रथ को रवाना किया, वह भी उस हालात में, जबकि प्रभात खबर निवेदक बना हुआ था...ये सारा कार्य उसी के द्वारा चलाया जा रहा था...तब ये हालात है इस अखबार के, खुद को लिखता है, अखबार नहीं आंदोलन...ये कैसा आंदोलन चला रहा है भाई...भगवान ही मालिक है इस अखबार का...खुद निवेदक होता है और जहां से रथ रवाना होता है, जहां रथ की सबसे पहले स्वागत होनी चाहिए, पुष्पवृष्टि करनी चाहिए, वहां से इसकी पूरी टीम ही गायब रहती है...
हे ईश्वर, इस अखबार के प्रधान संपादक, कारपोरेट एडीटर, कार्यकारी संपादक और संपादक को सद्बुद्धि दें, पर उसे सद्बुद्धि मिलेगी कैसे? उसका तो प्रधान संपादक महागठबंधन के नेताओं का पूजा-अर्चना करने में लगा है...
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