Monday, December 26, 2016

2016 याद आओगे नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार के रूप में..........

2016 भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शानदार कीर्तियों के लिये विशेष रूप से जाना जायेगा। एक ने नोटबंदी कर पूरे देश में कालाधन रखनेवालों की धज्जियां उड़ा दी, तो दूसरे ने अपने राज्य में शराबबंदी कर लाखों परिवारों के घर में खुशिंया बिखेर दी। दोनों एक दूसरे के घूर विरोधी पर दोनों में एक समानता, कि देश को कुछ देना है, राज्य को कुछ देना है। कहा जाता है कि ईश्वर ने सब को कुछ करने का जज्बा दिया है, पर लाखों-करोड़ों में कोई एक होता है, जो उन जज्बा को मूर्त्तरुप में देने में कामयाब होता है। मौका तो देश की जनता ने सोनिया-राहुल को भी दिया और बिहार में लालू यादव को दिया पर इन सब ने अपने परिवारों को ही देश मान लिया, पर इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार ने देश की जनता और राज्य की जनता को ही अपना परिवार मानकर, ऐसे कार्य किये, जिस कार्य को देख पूरी मानव जाति आश्चर्यचकित है।
जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी की घोषणा की थी, तब कई लोगों ने उनके इस निर्णय की यह कहकर आलोचना की थी कि ये संभव नहीं है, क्योंकि पूर्व में भी कई राज्यों ने शराबबंदी की, पर वहां ये सफल नहीं हो सका, इस बात में सच्चाई है, आज भी कई राज्यों में शराबबंदी है, पर वहां भी शराब धड़ल्ले से बिक रहे है, यहां तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के राज्य में भी। एक हमारे परम मित्र हाल ही में चकिया (मुजफ्फरपुर) गये, और वहां के दृश्य का जो उन्होंने आंखों देखा हाल सुनाया, वो सुनकर मैं हतप्रभ हो गया। मैं जहां रहता हूं यानी दानापुर, वहां भी देखा कि कई लोग शराब पीकर मस्त नजर आये, पर जो हाल शराबबंदी के पूर्व में देखा था, वैसा नहीं दीख रहा है। मेरा मानना है कि अगर आप किसी भी चीज में 100 में 70 या 80 प्रतिशत सफलता अर्जित कर लेते हो, तो ये मान लेना चाहिए कि सफलता मिली है, क्योंकि शत प्रतिशत तो कहीं भी कुछ नहीं होता।
वहीं हाल नोटबंदी में भी, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी अभियान चलाया, कई लोगों की दुकानें बंद हो गयी। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो इसके विरोध का राष्ट्रीय नेतृत्व कर डाला, पर जनता ने उनका कितना सहयोग किया, वो स्वयं जानती है, उनका गुस्सा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर क्यों है? वह भी हम जानते है कि क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने उनके क्षेत्र में उनकी नींद उड़ा दी है। ऐसे भी उनकी सत्ता को कहीं से खतरा है, तो वह भाजपा से ही है, इसलिए वे अपने घुर-विरोधी वामपंथियों से भी नोटबंदी के खिलाफ हाथ मिलाया, पर स्थिति क्या है? वह अच्छी तरह जानती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नोटबंदी का समर्थन पूरे देश की जनता ने किया है, जनता को लगता है कि इस नोटबंदी से देश का भला होगा। इस नोटबंदी का समर्थन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया है, यानी जो भी लोग है, जो जानते है कि काला धन से देश के विकास और सुरक्षा को खतरा है, वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस मुद्दे पर समर्थन कर रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो साफ कर दिया है कि वे काला धन चाहे नोट के रूप में हो, या सोने के रूप में या किसी भी बेनामी संपत्ति के रूप में, वे किसी को भी बख्शने नहीं जा रहे है। वे तो यह भी कहते है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने सत्ता पायी और भ्रष्टाचार को वे जड़ से उखाड़ फेंकेंगे, हांलांकि सोनिया-राहुल-लालू-ममता एंड कंपनी के लोग, जिन्होंने भ्रष्टाचार का रिकार्ड तक बना डाला है, वे इस अभियान की हवा निकालने में लगे है, पर हमें नहीं लगता कि वे इस अभियान की हवा निकाल पायेंगे, क्योंकि जब जनता साथ है, तो किसी की हिम्मत नहीं कि सत्य की हवा निकाल दें।
ये सही है, कि इस नोटबंदी अभियान से गरीबों को दिक्कतें हुई है, मैं तो कहता हूं कि गरीब दिक्कत के लिए ही तो पैदा हुआ है, उसी की दिक्कत तथा उसी की सहनशीलता से ही तो देश आगे बढ़ा है। भला कोई अमीर बताये कि सीमा पर किस अमीर या नेता का बच्चा अपना छाती खोलकर दुश्मन की गोलियों का सामना कर रहा है, अरे कोई अमीर या कोई नेता ही बता दें कि किसका बच्चा एनसीसी की परेड में भाग लेता है, ज्यादातर एनसीसी में तो गरीब का ही बच्चा भाग लेता है। गरीबों की दुहाई देनेवाले, गरीबों का ही पैसा और उसके हक को अपने तिजोरी में भर लिये, वह भी कभी उन्हें दलित बताकर, तो कभी पिछड़ा बताकर, कभी अल्पसंख्यक बताकर, और आज रोना- रो रहे है कि नोटबंदी से गरीबों को दिक्कते हो रही है, अरे जब गरीबों को कोई दिक्कत नहीं तो ये अमीर या नेता क्यों रोना रो रहे है?, हम नहीं जानते क्या? या जनता नहीं जानती, जनता सब जानती है।
2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं द्वारा ऐसी लकीर खींच दी है कि इस लकीर को छोटा करना किसी भी भारतीय नेता के वश की बात नहीं, क्योंकि ऐसी लकीर वहीं खींच पाते है, जिनके पास चरित्र होता है और ये चरित्र किसी दुकान पर नहीं बिकती, ये तो जन्मजात होता है, जो माता-पिता के द्वारा पुष्पित-विकसित होता है। सचमुच 2016 तुम जा रहे हो, पर तुम याद आओगे, नरेन्द्र मोदी और नीतीश के कीर्तियों के रूप में...

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