जी हां, नोटबंदी से
पत्रकारिता जगत में हाहाकार है। संपादक से लेकर पत्रकारिता जगत में चपरासी
तक कार्य करनेवालों का जीना मुहाल हो गया है। अपने आकाओं, राजनीतिज्ञों,
आइएएस, आइपीएस, थानेदारों, सरकारी जन वितरण प्रणाली दुकानों से कमीशन
लेनेवालों के घर में कमीशन के पैसे नहीं पहुंच रहे है। जिसके कारण इनके
चेहरों से लाली समाप्त हो गयी, चूंकि डायरेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
को अपने अखबारों के माध्यम से ये गाली नहीं दे सकते, इसलिए इन्होंने इनडायरेक्ट
माध्यम को चूना है। वे अपने विशेष पृष्ठों पर ऐसे-ऐसे लोगों को दिखा रहे
है, जिनका इस नोटबंदी से कोई लेना – देना नहीं और न ही उनके कारोबार पर कोई
असर ही पड़ रहा है, क्योंकि मैं भी भारत के रांची में ही रहता हूं और कोई
टाटा-बिड़ला या अडानी-अंबानी के परिवार का सदस्य नहीं हूं, जैसे सामान्य
लोग जीते है, उसी तरह मैं भी जीता हूं। मेन रोड स्थित फुटपाथ की दुकान हो
या अपर बाजार की कपड़े की दुकान या पंडितजी से पतरा दिखाना हो, या नाई से
बाल ही क्यूं न कटवाना हो, या जूता-पालिस ही क्यूं न कराना हो। एक वाक्य
में कहें तो जूता सिलाई से लेकर चंडी पाठ तक इसी मेन रोड में होता है, कहीं
हाहाकार नहीं हैं, लेकिन कुछ लोगों यानी पत्रकारों को पेट में भयंकर दर्द
हो रहा है कि भाई नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके उनके पेट पर लात मारा है,
क्योंकि कमीशन बंद हो चुकी है, जो इन्हें कमीशन देते थे, रुपयों में, जब
उनकी सिट्ठी-पिट्ठी गुम हो गयी है, तो बेचारे को प्रतिदिन का पांच सौ और एक
हजरियां कौन देगा...
जब इनके विशेष पृष्ठों से नरेन्द्र मोदी को गरियाने का काम समाप्त हो जाता है, तो वे फेसबुक का सहारा लेते हैं, और जी-भरकर नरेन्द्र मोदी को गरियाते है, तरह-तरह के नरेन्द्र पाठ करते है। एक सज्जन जो एनजीओ भी चलाते है, कभी संपादक भी रहा करते थे, वे नरेन्द्र मोदी को गरियाते – गरियाते अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी सुनाने लगते है। एक तो अखबार नहीं आंदोलन – पंचायती वाले बाबा दांत निपोरते हुए फोटो प्रोफाइल रखे हुए है, वे तो सुबह उठते और रात में सोने के पहले जब तक फेसबुक पर नरेन्द्र मोदी को गरिया नहीं ले, उनका खाना ही नहीं पचता। इसी अखबार में युवा पत्रकारों की भी टोली है, जो नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी अभियान को समर्थन करनेवालों को भक्त कहकर गरियाते है, जबकि वे स्वयं चिरकुटानंद के सहोदर भाई है।
हम भी अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध करेंगे कि इन कमीशन खानेवाले पत्रकारों और उन्हें गरियानेवाले इन पत्रकाररूपी बहुरूपियों पर वे थोड़ी कृपा करें, ताकि उनका कमीशन का धंधा बेरोकटोक चलता रहे, लेकिन फिर बात यहीं आती है कि नरेन्द्र मोदी रहे धाकड़ बैट्समैन हमें नहीं लगता कि उन्होंने जो नोटबंदी का शतक बनाने का जो बीड़ा उठाया है, उससे वे पीछे हटेंगे।
इसलिए कमीशन खानेवाले पत्रकारों और एनजीओ चलानेवाले महानुभावों से सादर अनुरोध है कि वे फिलहाल बाजार और आम जनता की ऐसी छवि प्रस्तुत न करें, बल्कि अपना चेहरा जो कमीशन के नहीं मिलने कारण बर्बाद होता दीख रहा है, उसे दिखाने की कोशिश करें, ताकि लोगों को पता चलें कि इस कमीशन के धंधे में कितने संपादक और कितने पत्रकार अब तक मालामाल हो गये...
जब इनके विशेष पृष्ठों से नरेन्द्र मोदी को गरियाने का काम समाप्त हो जाता है, तो वे फेसबुक का सहारा लेते हैं, और जी-भरकर नरेन्द्र मोदी को गरियाते है, तरह-तरह के नरेन्द्र पाठ करते है। एक सज्जन जो एनजीओ भी चलाते है, कभी संपादक भी रहा करते थे, वे नरेन्द्र मोदी को गरियाते – गरियाते अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी सुनाने लगते है। एक तो अखबार नहीं आंदोलन – पंचायती वाले बाबा दांत निपोरते हुए फोटो प्रोफाइल रखे हुए है, वे तो सुबह उठते और रात में सोने के पहले जब तक फेसबुक पर नरेन्द्र मोदी को गरिया नहीं ले, उनका खाना ही नहीं पचता। इसी अखबार में युवा पत्रकारों की भी टोली है, जो नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी अभियान को समर्थन करनेवालों को भक्त कहकर गरियाते है, जबकि वे स्वयं चिरकुटानंद के सहोदर भाई है।
हम भी अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध करेंगे कि इन कमीशन खानेवाले पत्रकारों और उन्हें गरियानेवाले इन पत्रकाररूपी बहुरूपियों पर वे थोड़ी कृपा करें, ताकि उनका कमीशन का धंधा बेरोकटोक चलता रहे, लेकिन फिर बात यहीं आती है कि नरेन्द्र मोदी रहे धाकड़ बैट्समैन हमें नहीं लगता कि उन्होंने जो नोटबंदी का शतक बनाने का जो बीड़ा उठाया है, उससे वे पीछे हटेंगे।
इसलिए कमीशन खानेवाले पत्रकारों और एनजीओ चलानेवाले महानुभावों से सादर अनुरोध है कि वे फिलहाल बाजार और आम जनता की ऐसी छवि प्रस्तुत न करें, बल्कि अपना चेहरा जो कमीशन के नहीं मिलने कारण बर्बाद होता दीख रहा है, उसे दिखाने की कोशिश करें, ताकि लोगों को पता चलें कि इस कमीशन के धंधे में कितने संपादक और कितने पत्रकार अब तक मालामाल हो गये...
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