Saturday, December 31, 2016

नेकी कर दुनिया को दिखा............

पहले हमने पढ़ा था, सुना था, मेरे घर के बुढ़े-बुजूर्ग बताया करते थे...
नेकी कर दरिया में डाल...
इस लोकोक्ति के आधार पर वे कई कहानियां सुनाया करते थे, कहानियां सुनाने के क्रम में यह भी कहा करते थे, कि ईश्वर को आत्मप्रशंसा पसंद नहीं है, पर दुनिया इतनी तेजी से बदली कि अगर स्वयं की आत्मप्रशंसा न करें तो दुनिया जानेगी भी नहीं और न रोजी-रोटी ही मिलेगी...न धंधा चलेगा।
इसलिए अब नई लोकोक्ति पेश है...
नेकी कर दुनिया को दिखा...
जब से निजीकरण और प्राइवेटाइजेशन का जमाना आया, मनुष्य संसाधन के रूप में नजर आया, बायोडाटा की मांग होने लगी, इस बायोडाटा में कैंडिडेट जमकर अपनी प्रशंसा करने लगा, ऐसी प्रशंसा जिसका सत्य से कोई नाता ही न हो, चूंकि दुनिया को दिखाना है, अपनी काबिलियत और शोहरत दिखाना है, तो ऐसा करना ही पड़ेगा...
यहीं नहीं फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप ने तो नेकी कर दुनिया को दिखा कि प्रवृत्ति को ऐसा आगे बढ़ाया, जैसे लगा कि किसी ने आग में भर चम्मच घी दे दिया हो...आग और तेज होने लगी...
हमारे कई मित्र ऐसे है कि इसका खूब जमकर सहारा लेने लगे है...
पहले तो चिरकूट नेताओं, फिल्मी नायक-नायिकाओं, बकरों-खरहों-चूहों-कुत्तों, चिलगोजों-चिरकूटों के साथ अपना फोटो खिंचवाकर, सेल्फी लेकर फोटो डाला करते थे, अब तो ये और भी इससे आगे निकल चूके है, अब वे पोस्टर बनवाते है, बैनर बनवाते है और ऐसी-ऐसी हरकते करते है कि हरकते शब्द ही शरमां जाये।
उदाहरण अनेक है...
पहला उदाहरण देखिये, एक सज्जन है, नाम लिखूंगा तो भड़क जायेंगे, उन्हें भड़काना भी नहीं है, सत्ता के करीब है, सत्ता में शामिल बड़े-बड़े लोग उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण कर रहे है। उन्होंने एक बैनर बनवाया और लगे कंबल बांटने। जब ये कंबल बांट रहे थे, तो कुछ लोगों ने उन्हें धर्मपरायण और धार्मिक व उदार व्यक्ति का खिताब दे डाला, ये खिताब दे भी क्यूं नहीं भाई, जिसका जो चेहरा दिखेगा, वहीं तो कहेगा। झट से उनके मातहत काम कर रहे एक कर्मचारी ने तीन-चार सेल्फी ली और झट से फेसबुक पर दे मारा, लगे हाथों लाइक और कमेंट्स और शेयरों की होड़ लग गयी, चूंकि बॉस नाराज न हो, इसका ख्याल रखना था, कुछ लोगों ने वाह-वाह तक कर डाला।
ऐसे मैं बता दूं कि हमने 9 साल पहले कंबल लिया था, एक कंबल तो 16 साल पुराना है, पर अंतिम बार जो 9 साल पहले कंबल खरीदा था, उसके बाद से कंबल खरीदा नहीं हूं। ऐसे भी कंबल चार –पांच महीने ही ओढ़े जाते है, वह भी जाड़े में, पर इधर देख रहा हूं कि कंबल लेनेवाले और देनेवाले दोनों की संख्या बढ़ी है, पता नहीं ये कंबल लेनेवाले कैसे कंबल ओढ़ते है, कि इनकी कंबल एक साल भी नहीं टिक पाती और दूसरे कंबल देनेवाले पता नहीं, इसमें कौन सा धर्म देखते है कि कंबल बांट चलते है, शायद शनि ग्रह शांत करने और स्वयं को उदार-दयालु दिखाने का दूसरा आसान रास्ता इसके सिवा कोई दूसरा नहीं।
नेकी कर दुनिया को दिखा का दूसरा उदाहरण देखिये...
छः-सात महीने पहले की बात है, एक बार एक कार्यक्रम में मुझे शरीक होने का मौका मिला। जनाब जो बहुत ही दयालु किस्म के आदमी स्वयं को घोषित करा चुके थे, उन्होंने उक्त कार्यक्रम में अपने एक ड्राइवर को गाड़ी की चाबी देते हुए ये ऐलान किया कि वे अपने ड्राइवर को आज गाड़ी सौप रहे हैं। मैं बहुत प्रसन्न हुआ, खड़ा होकर ताली बजाने लगा, बहुत अभिभूत हुआ कि जनाब लाखों की गाड़ी अपने ड्राइवर को दे दी, पर पता चला कि वो नई गाड़ी नहीं दे रहे, बल्कि वर्तमान में जो ड्राइवर, उनकी पुरानी गाड़ी चला रहा है, वह भी सड़ी हुई पुरानी गाड़ी, उसी को देने का ऐलान किया है। मैं आश्चर्य में पड़ गया, दुनिया में कैसे-कैसे लोग है?, पर सच्चाई यह है कि वह सड़ी हुई पुरानी गाड़ी भी उस ड्राइवर को अब तक नहीं मिली है, यानी हद हो गयी, नेकी के रास्ते में स्वयं को दिखाने का ये धोखे का प्रचलन हमें अंदर से हिलाकर रख दिया...
और अब आगे देखिये, आजकल देश में बहुत सारी सरकारें है, पंचायत से लेकर राज्य और फिर केन्द्र में, सरकार ही सरकार है, जो कहती है कि वे नेकी का काम करती है, इनलोंगों ने अपनी नेकी का काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए अनेक चिलगोजों-चिरकूट टाइप कंपनियों को करोड़ों में हायर किया है, पहले इनका काम राज्य में कार्यरत मशीनरियां किया करती थी, पर इन सरकारों का इन मशीनरियों पर विश्वास ही नहीं रहा, शायद सरकारों को लगता है कि उनके पास जो लोग है, वे सारे निकम्मे है, इसलिए वे अब अपनी नेकी के काम का प्रचार-प्रसार, दिखावा आदि के लिए चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को ये काम दे रखा है, जो इनका बेवजह प्रचार-प्रसार, अपने चिलगोजों-चिरकूटों टाइप के दिमागों से किया करती है, आश्चर्य इस बात की है, इन चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को कुछ नहीं आता, केवल ये गलथेथरी और तूकबंदी किया करती है, पर स्वयं को शूट-बूट-टाई से अंलकृत रखती है, जिससे सरकार में कार्यरत बहुत सारे तथाकथित अक्लमंदों को लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी ऐसे ही लोगों में भरी-पड़ी है...
यानी नेकी कर दुनिया को दिखा की प्रवृत्ति ने घर,परिवार,समाज, देश और विश्व तक को नहीं छोड़ा है। सभी इस प्रवृत्ति में सराबोर है, इससे मुक्ति का रास्ता फिलहाल नहीं दिखता, क्योंकि इसका प्रभाव भी गजब है। हाल देखिये, जो कल तक बाबा थे, अब वणिक हो चुके है। जो संत थे आज जेल की शोभा बढ़ा रहे है। जो नेता थे वे कोर्ट से चुनाव लड़ने के लिए वंचित करार दिये जा चुके है। यानी खोल कर लिख दिया भाई, समझते रहिये...

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