आजकल हमारे समाज में, ये फैशन और प्रचलन हो गया है कि...
अगर कोई पुलिस है, तो उसे गुंडा मान लिया जाता है...
ये मान लिया जाता है कि वो गलती करें या न करें पर उसकी गलती जरूर होगी...
अगर पत्रकारों को पुलिस से संबंधित एक मामूली सी भी गलती मिल गयी तो लीजिये, ये देखिये उस खबर को कैसे मसालेदार बनाकर अखबारों में स्थान देते है...
पर यह भी ध्यान रखे...
ये आइपीएस अथवा वरीय पुलिसकर्मियों जिनकी धाक कुछ ज्यादा ही चलती है, जो रोबीले है, उनके खिलाफ लिखने या छापने में सबकी नानी और दादी एक साथ याद आती है, पर एक सामान्य पुलिसकर्मी, जिसकी गलती नहीं भी हो तो उससे संबंधित खबर को उसके खिलाफ कैसे समाचार पत्रों में स्थान मिलती है? उसकी एक बानगी है कल रांची के डोरंडा के एजी मोड़ पर घटी घटना, जिसको रांची से प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों ने प्रथम पृष्ठ और अंदर की पृष्ठों में स्थान देकर राई का पहाड़ बना दिया और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत का कबाड़ा बना दिया।
घटना क्या है?
तो घटना भी जान लीजिये...
रांची के एजी मोड़ पर तैनात ट्रैफिक एएसआई दिनेश ठाकुर ने बिना हेलमेट पहने वासुदेव को पकड़ा और 100 रुपये का चालान काटा। फिर क्या था? वासुदेव घर गया, अपनी पत्नी पम्मी को इस बात की जानकारी दी, पम्मी अपने साथ 30-40 लोगों का हुजूम लेकर आयी और चप्पल से एएसआई दिनेश ठाकुर की पिटाई कर दी। आश्चर्य इस बात कि भी वहां एएसआई अनिल कुमार टोप्पो, हवलदार अशोक राणा और आरक्षी उमेश उरांव मौजूद है, किसी ने भी एएसआई दिनेश ठाकुर के सम्मान की रक्षा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि इस घटना को वहां खड़ा होकर देखते रहे...
यहीं घटना आज रांची के कई अखबारों की सुर्खियां बन गयी...खूब तेल-मसाला लगाकर सभी अखबारों ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा है और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी...
और अब इसी प्रकार का सवाल प्रभात खबर, हिन्दुस्तान और दैनिक भास्कर अखबारों से कल इसी प्रकार की घटना, उन्हीं के यहां काम करनेवाले पत्रकारों के साथ घट जाये तो क्या इसी प्रकार से वे समाचार छापेंगे...
दूसरी बात...
क्या ये सत्य नहीं कि आज भी इन अखबारों में काम करनेवाले ज्यादातर लोग कानून की धज्जियां उड़ाकर, वह भी दादागिरी के साथ बिना हेलमेट के दुपहिये वाहन चलाते है और पुलिस इनकी इस दादागिरी को नजरंदाज कर देती है, नहीं तो इनके ज्यादातर पत्रकारों के दुपहिये वाहन पुलिस थाना की शोभा बढ़ा रहे होते...
तीसरी बात...
एएसआई दिनेश ठाकुर कि सिर्फ यहीं गलती है न, कि उसने बिना हेलमेट के वाहन चला रहे वासुदेव की चालान काट दी, क्या चालान काटना अपराध है?
जब वह वासुदेव का चालान काटा था, तब उसकी पत्नी तो वहां नहीं थी, वासुदेव का घर जाकर पत्नी और अपने 30-40 लोगों को बुलाकर घटनास्थल पर लाना, ये क्या बताता है?
खुद को अखबार नहीं आंदोलन बतानेवाला अखबार प्रभात खबर तो एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत लूटने में सभी अखबारों से आगे निकल गया, उसने तो दिनेश ठाकुर पर छेड़खानी करने का आरोप लगा दिया, जबकि किसी अन्य अखबार ने ऐसी बातें नहीं लिखी है...सच्चाई क्या है? ये जांच का विषय है।
कल की घटना और आज अखबारों में छपी समाचार से तो यही पता चलता है कि अब शायद ही कोई पुलिसकर्मी, किसी बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाले का चालान काटेगा, क्योंकि फिर कोई बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाला, चालान कटने के बाद, अपनी पत्नी के साथ हुजूम लायेगा, और चालान काटनेवाले पुलिसकर्मी को अपनी पत्नी से पिटवायेगा और प्रभात खबर के रिपोर्टर को जो बोलेगा, वो रिपोर्टर छापेगा और लीजिये उक्त पुलिसकर्मी की इज्जत की दही हो गयी...
एक ओर मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य में बिना हेलमेट के दुपहियेवाहन चलाने पर प्रतिबंध लगाना चाह रहे है, वे विशेष अभियान चलाने की बात करते है, और लोगों की जान की हिफाजत करना चाह रहे है, पर यहां के लोग क्या कर रहे है? यहां की मीडिया क्या कर रही है? आपके सामने है...
क्या ऐसे में हेलमेट अभियान सफल हो पायेगा...
क्या मीडिया की जिम्मेवारी नहीं बनती...
क्या बात का बतंगड़ बनाना और किसी की इज्जत से खेलना ही पत्रकारिता है...
गर ऐसा है तो मीडिया स्वयं अपनी इज्जत का दही क्यों नहीं बनाती? क्योंकि सर्वाधिक ट्रेफिक कानून की धज्जियां तो ये मीडियावाले ही उड़ाते है...
पता नहीं, यहां के पुलिसकर्मियों को ये दिव्य ज्ञान कब आयेगा?
मैं तो कहता हूं कि जिस दिन राज्य के पुलिसकर्मी मीडियाकर्मियों की सुध लेना शुरु कर दें, उस दिन से किसी की हिम्मत नहीं कि कोई मीडिया हाउस ये कनीय पुलिसकर्मियों की इज्जत से खेल लें...
और एक बात...
ये पत्रकारिता नहीं...
ये सिर्फ और सिर्फ गुंडागर्दी है...
अगर कोई पुलिस है, तो उसे गुंडा मान लिया जाता है...
ये मान लिया जाता है कि वो गलती करें या न करें पर उसकी गलती जरूर होगी...
अगर पत्रकारों को पुलिस से संबंधित एक मामूली सी भी गलती मिल गयी तो लीजिये, ये देखिये उस खबर को कैसे मसालेदार बनाकर अखबारों में स्थान देते है...
पर यह भी ध्यान रखे...
ये आइपीएस अथवा वरीय पुलिसकर्मियों जिनकी धाक कुछ ज्यादा ही चलती है, जो रोबीले है, उनके खिलाफ लिखने या छापने में सबकी नानी और दादी एक साथ याद आती है, पर एक सामान्य पुलिसकर्मी, जिसकी गलती नहीं भी हो तो उससे संबंधित खबर को उसके खिलाफ कैसे समाचार पत्रों में स्थान मिलती है? उसकी एक बानगी है कल रांची के डोरंडा के एजी मोड़ पर घटी घटना, जिसको रांची से प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों ने प्रथम पृष्ठ और अंदर की पृष्ठों में स्थान देकर राई का पहाड़ बना दिया और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत का कबाड़ा बना दिया।
घटना क्या है?
तो घटना भी जान लीजिये...
रांची के एजी मोड़ पर तैनात ट्रैफिक एएसआई दिनेश ठाकुर ने बिना हेलमेट पहने वासुदेव को पकड़ा और 100 रुपये का चालान काटा। फिर क्या था? वासुदेव घर गया, अपनी पत्नी पम्मी को इस बात की जानकारी दी, पम्मी अपने साथ 30-40 लोगों का हुजूम लेकर आयी और चप्पल से एएसआई दिनेश ठाकुर की पिटाई कर दी। आश्चर्य इस बात कि भी वहां एएसआई अनिल कुमार टोप्पो, हवलदार अशोक राणा और आरक्षी उमेश उरांव मौजूद है, किसी ने भी एएसआई दिनेश ठाकुर के सम्मान की रक्षा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि इस घटना को वहां खड़ा होकर देखते रहे...
यहीं घटना आज रांची के कई अखबारों की सुर्खियां बन गयी...खूब तेल-मसाला लगाकर सभी अखबारों ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा है और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी...
और अब इसी प्रकार का सवाल प्रभात खबर, हिन्दुस्तान और दैनिक भास्कर अखबारों से कल इसी प्रकार की घटना, उन्हीं के यहां काम करनेवाले पत्रकारों के साथ घट जाये तो क्या इसी प्रकार से वे समाचार छापेंगे...
दूसरी बात...
क्या ये सत्य नहीं कि आज भी इन अखबारों में काम करनेवाले ज्यादातर लोग कानून की धज्जियां उड़ाकर, वह भी दादागिरी के साथ बिना हेलमेट के दुपहिये वाहन चलाते है और पुलिस इनकी इस दादागिरी को नजरंदाज कर देती है, नहीं तो इनके ज्यादातर पत्रकारों के दुपहिये वाहन पुलिस थाना की शोभा बढ़ा रहे होते...
तीसरी बात...
एएसआई दिनेश ठाकुर कि सिर्फ यहीं गलती है न, कि उसने बिना हेलमेट के वाहन चला रहे वासुदेव की चालान काट दी, क्या चालान काटना अपराध है?
जब वह वासुदेव का चालान काटा था, तब उसकी पत्नी तो वहां नहीं थी, वासुदेव का घर जाकर पत्नी और अपने 30-40 लोगों को बुलाकर घटनास्थल पर लाना, ये क्या बताता है?
खुद को अखबार नहीं आंदोलन बतानेवाला अखबार प्रभात खबर तो एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत लूटने में सभी अखबारों से आगे निकल गया, उसने तो दिनेश ठाकुर पर छेड़खानी करने का आरोप लगा दिया, जबकि किसी अन्य अखबार ने ऐसी बातें नहीं लिखी है...सच्चाई क्या है? ये जांच का विषय है।
कल की घटना और आज अखबारों में छपी समाचार से तो यही पता चलता है कि अब शायद ही कोई पुलिसकर्मी, किसी बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाले का चालान काटेगा, क्योंकि फिर कोई बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाला, चालान कटने के बाद, अपनी पत्नी के साथ हुजूम लायेगा, और चालान काटनेवाले पुलिसकर्मी को अपनी पत्नी से पिटवायेगा और प्रभात खबर के रिपोर्टर को जो बोलेगा, वो रिपोर्टर छापेगा और लीजिये उक्त पुलिसकर्मी की इज्जत की दही हो गयी...
एक ओर मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य में बिना हेलमेट के दुपहियेवाहन चलाने पर प्रतिबंध लगाना चाह रहे है, वे विशेष अभियान चलाने की बात करते है, और लोगों की जान की हिफाजत करना चाह रहे है, पर यहां के लोग क्या कर रहे है? यहां की मीडिया क्या कर रही है? आपके सामने है...
क्या ऐसे में हेलमेट अभियान सफल हो पायेगा...
क्या मीडिया की जिम्मेवारी नहीं बनती...
क्या बात का बतंगड़ बनाना और किसी की इज्जत से खेलना ही पत्रकारिता है...
गर ऐसा है तो मीडिया स्वयं अपनी इज्जत का दही क्यों नहीं बनाती? क्योंकि सर्वाधिक ट्रेफिक कानून की धज्जियां तो ये मीडियावाले ही उड़ाते है...
पता नहीं, यहां के पुलिसकर्मियों को ये दिव्य ज्ञान कब आयेगा?
मैं तो कहता हूं कि जिस दिन राज्य के पुलिसकर्मी मीडियाकर्मियों की सुध लेना शुरु कर दें, उस दिन से किसी की हिम्मत नहीं कि कोई मीडिया हाउस ये कनीय पुलिसकर्मियों की इज्जत से खेल लें...
और एक बात...
ये पत्रकारिता नहीं...
ये सिर्फ और सिर्फ गुंडागर्दी है...
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