4 जनवरी 2017 को मैंने फेसबुक पर अपना स्टेटस डाला -
“आज मेरा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में अंतिम दिन है...सभी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो...”
जिसे हमारे फेसबुक के मित्रों ने जिनकी संख्या 251 है, अब तक लाइक किया है, इनमें आठ दुखी है, जबकि दो परमानन्दित है, कई लोगों ने अपने कमेंट्स में हमसे इस संबंध में सवाल पूछे है, कई ने अपनी भावनाओं को नाना प्रकार से हमारे समक्ष रखा है। कुछ लोगों ने हमारे मोबाइल पर हमसे पूछ डाला कि आखिर ऐसा क्यूं?, आज भी कुछ लोग हमसे मिलने आये, कि आखिर क्यूं?, हमें लगता कि हमें सभी के प्रश्नों का जवाब दे देना चाहिए, इसलिए सर्वप्रथम हम उन सभी महानुभावों का हृदय से आभार प्रकट करते है, जिन्होंने हमसे सवाल किये...
और अब सवाल का जवाब...
उत्तर दीर्घउत्तरीय है, इसलिए ध्यान से पढ़े...
ऐसे तो हमें कोई बांध कर नहीं रख सकता, सिवाय ईश्वर के...
मैं ईश्वर का गुलाम हूं, वो मुझे जहां चाहे, वहां रखे...
ऐसे भी मैं इस दुनिया में उसी के द्वारा भेजा गया हूं, इसलिए हमारा ख्याल उसे ही रखना होगा...
मैं उससे झगड़ भी नहीं सकता कि वो हमें ऐसा क्यों बनाया कि मैं ज्यादा दिनों तक कहीं टिकता ही नहीं...
अगर मैं कहीं ज्यादा टिका हूं, तो वह है ईटीवी जहां करीब पौने नौ साल कार्य किये, वह भी गुंजन सिन्हा जैसे लोगों के कारण, हालांकि उनसे भी हमारी जबर्दस्त मुठभेड़ उस दौरान हुई, और मुठभेड़ कराने में वे लोग उस दिन ज्यादा सक्रिय थे, जिन्हें हमें रांची में दीखने में बहुत ज्यादा कष्ट होता था, हालांकि इसका लाभ उन्होंने उठाया...
इसके पूर्व दैनिक जागरण में धनबाद व मोतिहारी में भी योगदान दिया था, दैनिक जागरण में मात्र डेढ़ साल रहा, वहां हमें पत्रकारिता का गूढ़ रहस्य देखने को मिला, सारी पत्रकारिता संबंधी भ्रांतियां और तथाकथित मूल्य पहली बार वहीं धूल-धूसरित दीखे...
इसके पूर्व अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में थोड़े दिन प्रभात खबर, हिन्दुस्तान, आर्यावर्त, आज और इसके पूर्व आकाशवाणी पटना में आकस्मिक उद्घोषक के रुप में भी योगदान दिया...
इधर ईटीवी छोड़ने के बाद मौर्य टीवी से जुड़ा, जहां मात्र पांच महीने ही रहा, जहां पत्रकारिता जगत के महान विभूतियों की लीलाएं देखी। बाद में न्यूज 11, कशिश, जीटीवी, न्यूज इंडिया से भी जूड़ा और यहां भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका।
शायद यहीं कारण रहा कि धनबाद के एक अनन्य मित्र हरि प्रकाश लाटा जी ने लिखा कि “हम सोच रहे थे इस बार तो आपका रिकार्ड टूटेगा। आप यहां टिकेंगे। आपके पैरों के एड़ी के आसपास कोई तिल है क्या? जरा देखिएगा तो। हमारी शुभकामनाएँ। वैसे भी ईश्वर की तो असीम कृपा है आप पर !”
जो लोग मुझे जानते है, सो जानते है, कुछ लोग जो हमें जानने का दिखावा भी करते है, और जब उनके म्यानों में नहीं फिट बैठता हूं तो फिर वो अपने ढंग से हमें एवार्ड दे देते है, मुझे इसकी परवाह भी नहीं होती, क्योंकि मैं जो भी कुछ बोलता हूं, करता हूं...डंके की चोट पर बोलता हूं व करता हूं...
क्योंकि मुझे न तो कल सुख की लालसा थी और न आज ही है...
मुझे अपने ईश्वर पर पूरा भरोसा है, वो मुझे हर अवस्था में जो मुझे चाहिए, इतनी व्यस्तताओं के बावजूद हम तक पहुंचा देता है...
और अब बात आइपीआरडी की...
19 जून 2015 को मैं घर पर बैठा था कि आइपीआरडी के निदेशक अवधेश कुमार पांडेय जी का फोन आया, कि एक किताब तैयार करनी है, राज्य सरकार के लिए। उसमें मैं सहयोग करूं। अवधेश कुमार पांडेय जी हमको पटना से जानते थे, जब मैं वहां अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में कार्य करता था। चूंकि मैं घर पर बैठा था, आइपीआरडी आकर उनसे मिला। किताब तैयार हो गयी। इसी बीच उन्हें एक व्यक्ति की तलाश थी, कि जो सरकार के विज्ञापनों और सरकार के कई क्रियाकलापों को जन-जन तक पहुंचाने में संचार के विभिन्न आयामों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। उसमें मैंने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई, पर जैसे-जैसे दिन बीतते गये, मैं कई लोगों को खटकने लगा। कई लोगों ने हमारी झूठी शिकायत मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके आस-पास रहनेवाले महानुभावों को विभिन्न तरीकों से पहुंचाई। उन्होंने हमारे ब्लॉग और फेसबुक में सरकार के विरूद्ध लिखी गई बातों का हवाला दिया। इनमें मुख्य भूमिका आईपीआरडी के असंतुष्ट अधिकारियों की भी थी, जो काम तो कुछ नहीं किया करते पर शिकायत का पुलिंदा लेकर मुख्यमंत्री आवासीय सचिवालय में कार्यरत सीएम के खास लोगों तक जरूर पहुंचाते।
जिसके कारण मुझे 5 जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री सचिवालय तलब किया गया। जहां मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी, कि मैं अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता। इसी बीच मैं काम करता रहा, लोगों ने अपनी आदतें नहीं छोड़ी, वे अपना काम करते रहे, और मैं ईमानदारी से जो काम मिलता करता रहा।
आज मुझे गर्व है कि यहां मात्र डेढ़ साल में, ईश्वर ने मुझसे वह काम कराया, जिसका मुझे विश्वास ही नहीं था। ईश्वर ने हमसे बहुत ही शानदार कार्य कराये है, जो झारखण्ड के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है... वो क्या है? इसके बारे में मैं कुछ भी लिखना, यहां नहीं चाहता, ये तो वक्त बतायेगा?
इसके लिए मैं आभारी हूं, निदेशक – अवधेश कुमार पांडेय जी का, जिन्होंने मुझसे इतना बढ़िया काम करा लिया।
अंततः चूंकि मुझे अवधेश कुमार पांडेय ने ही आइपीआरडी के लिए नियुक्त किया था। राज्य सरकार ने उनकी जगह अब राजीव लोचन बख्शी को नया निदेशक नियुक्त किया है, ऐसे में मुझे अब यहां रहना उचित नहीं लगता, क्योंकि मुझे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो रखा नहीं और नहीं उनके मातहत किसी ने मुझे आईपीआरडी के लिए नियुक्त किया है और नहीं कोई मेरे पास कोई ऐसा पत्र है, जिसके आधार पर मैं ये कह सकूं कि मैं आईपीआरडी का सदस्य हूं। इसलिये नीति कहती है कि अब मुझे यहां नहीं रहना चाहिए, और न ही रहूंगा। अब मैं पूर्णतः स्वतंत्र हूं।
अब मैं खुलकर लिखूंगा, जनहित में लिखूंगा...
किसी की परवाह नहीं...
देखते है, अब ईश्वर, मुझे कहां ले जाता है...
जहां भी ले जायेगा, मुझे उसकी हर आज्ञा मंजूर है, क्योंकि मैं आज जो भी हूं उसी की कृपा से तो हूं...
“आज मेरा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में अंतिम दिन है...सभी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो...”
जिसे हमारे फेसबुक के मित्रों ने जिनकी संख्या 251 है, अब तक लाइक किया है, इनमें आठ दुखी है, जबकि दो परमानन्दित है, कई लोगों ने अपने कमेंट्स में हमसे इस संबंध में सवाल पूछे है, कई ने अपनी भावनाओं को नाना प्रकार से हमारे समक्ष रखा है। कुछ लोगों ने हमारे मोबाइल पर हमसे पूछ डाला कि आखिर ऐसा क्यूं?, आज भी कुछ लोग हमसे मिलने आये, कि आखिर क्यूं?, हमें लगता कि हमें सभी के प्रश्नों का जवाब दे देना चाहिए, इसलिए सर्वप्रथम हम उन सभी महानुभावों का हृदय से आभार प्रकट करते है, जिन्होंने हमसे सवाल किये...
और अब सवाल का जवाब...
उत्तर दीर्घउत्तरीय है, इसलिए ध्यान से पढ़े...
ऐसे तो हमें कोई बांध कर नहीं रख सकता, सिवाय ईश्वर के...
मैं ईश्वर का गुलाम हूं, वो मुझे जहां चाहे, वहां रखे...
ऐसे भी मैं इस दुनिया में उसी के द्वारा भेजा गया हूं, इसलिए हमारा ख्याल उसे ही रखना होगा...
मैं उससे झगड़ भी नहीं सकता कि वो हमें ऐसा क्यों बनाया कि मैं ज्यादा दिनों तक कहीं टिकता ही नहीं...
अगर मैं कहीं ज्यादा टिका हूं, तो वह है ईटीवी जहां करीब पौने नौ साल कार्य किये, वह भी गुंजन सिन्हा जैसे लोगों के कारण, हालांकि उनसे भी हमारी जबर्दस्त मुठभेड़ उस दौरान हुई, और मुठभेड़ कराने में वे लोग उस दिन ज्यादा सक्रिय थे, जिन्हें हमें रांची में दीखने में बहुत ज्यादा कष्ट होता था, हालांकि इसका लाभ उन्होंने उठाया...
इसके पूर्व दैनिक जागरण में धनबाद व मोतिहारी में भी योगदान दिया था, दैनिक जागरण में मात्र डेढ़ साल रहा, वहां हमें पत्रकारिता का गूढ़ रहस्य देखने को मिला, सारी पत्रकारिता संबंधी भ्रांतियां और तथाकथित मूल्य पहली बार वहीं धूल-धूसरित दीखे...
इसके पूर्व अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में थोड़े दिन प्रभात खबर, हिन्दुस्तान, आर्यावर्त, आज और इसके पूर्व आकाशवाणी पटना में आकस्मिक उद्घोषक के रुप में भी योगदान दिया...
इधर ईटीवी छोड़ने के बाद मौर्य टीवी से जुड़ा, जहां मात्र पांच महीने ही रहा, जहां पत्रकारिता जगत के महान विभूतियों की लीलाएं देखी। बाद में न्यूज 11, कशिश, जीटीवी, न्यूज इंडिया से भी जूड़ा और यहां भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका।
शायद यहीं कारण रहा कि धनबाद के एक अनन्य मित्र हरि प्रकाश लाटा जी ने लिखा कि “हम सोच रहे थे इस बार तो आपका रिकार्ड टूटेगा। आप यहां टिकेंगे। आपके पैरों के एड़ी के आसपास कोई तिल है क्या? जरा देखिएगा तो। हमारी शुभकामनाएँ। वैसे भी ईश्वर की तो असीम कृपा है आप पर !”
जो लोग मुझे जानते है, सो जानते है, कुछ लोग जो हमें जानने का दिखावा भी करते है, और जब उनके म्यानों में नहीं फिट बैठता हूं तो फिर वो अपने ढंग से हमें एवार्ड दे देते है, मुझे इसकी परवाह भी नहीं होती, क्योंकि मैं जो भी कुछ बोलता हूं, करता हूं...डंके की चोट पर बोलता हूं व करता हूं...
क्योंकि मुझे न तो कल सुख की लालसा थी और न आज ही है...
मुझे अपने ईश्वर पर पूरा भरोसा है, वो मुझे हर अवस्था में जो मुझे चाहिए, इतनी व्यस्तताओं के बावजूद हम तक पहुंचा देता है...
और अब बात आइपीआरडी की...
19 जून 2015 को मैं घर पर बैठा था कि आइपीआरडी के निदेशक अवधेश कुमार पांडेय जी का फोन आया, कि एक किताब तैयार करनी है, राज्य सरकार के लिए। उसमें मैं सहयोग करूं। अवधेश कुमार पांडेय जी हमको पटना से जानते थे, जब मैं वहां अनुमंडलीय संवाददाता के रूप में कार्य करता था। चूंकि मैं घर पर बैठा था, आइपीआरडी आकर उनसे मिला। किताब तैयार हो गयी। इसी बीच उन्हें एक व्यक्ति की तलाश थी, कि जो सरकार के विज्ञापनों और सरकार के कई क्रियाकलापों को जन-जन तक पहुंचाने में संचार के विभिन्न आयामों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। उसमें मैंने ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई, पर जैसे-जैसे दिन बीतते गये, मैं कई लोगों को खटकने लगा। कई लोगों ने हमारी झूठी शिकायत मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके आस-पास रहनेवाले महानुभावों को विभिन्न तरीकों से पहुंचाई। उन्होंने हमारे ब्लॉग और फेसबुक में सरकार के विरूद्ध लिखी गई बातों का हवाला दिया। इनमें मुख्य भूमिका आईपीआरडी के असंतुष्ट अधिकारियों की भी थी, जो काम तो कुछ नहीं किया करते पर शिकायत का पुलिंदा लेकर मुख्यमंत्री आवासीय सचिवालय में कार्यरत सीएम के खास लोगों तक जरूर पहुंचाते।
जिसके कारण मुझे 5 जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री सचिवालय तलब किया गया। जहां मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी, कि मैं अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता। इसी बीच मैं काम करता रहा, लोगों ने अपनी आदतें नहीं छोड़ी, वे अपना काम करते रहे, और मैं ईमानदारी से जो काम मिलता करता रहा।
आज मुझे गर्व है कि यहां मात्र डेढ़ साल में, ईश्वर ने मुझसे वह काम कराया, जिसका मुझे विश्वास ही नहीं था। ईश्वर ने हमसे बहुत ही शानदार कार्य कराये है, जो झारखण्ड के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है... वो क्या है? इसके बारे में मैं कुछ भी लिखना, यहां नहीं चाहता, ये तो वक्त बतायेगा?
इसके लिए मैं आभारी हूं, निदेशक – अवधेश कुमार पांडेय जी का, जिन्होंने मुझसे इतना बढ़िया काम करा लिया।
अंततः चूंकि मुझे अवधेश कुमार पांडेय ने ही आइपीआरडी के लिए नियुक्त किया था। राज्य सरकार ने उनकी जगह अब राजीव लोचन बख्शी को नया निदेशक नियुक्त किया है, ऐसे में मुझे अब यहां रहना उचित नहीं लगता, क्योंकि मुझे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो रखा नहीं और नहीं उनके मातहत किसी ने मुझे आईपीआरडी के लिए नियुक्त किया है और नहीं कोई मेरे पास कोई ऐसा पत्र है, जिसके आधार पर मैं ये कह सकूं कि मैं आईपीआरडी का सदस्य हूं। इसलिये नीति कहती है कि अब मुझे यहां नहीं रहना चाहिए, और न ही रहूंगा। अब मैं पूर्णतः स्वतंत्र हूं।
अब मैं खुलकर लिखूंगा, जनहित में लिखूंगा...
किसी की परवाह नहीं...
देखते है, अब ईश्वर, मुझे कहां ले जाता है...
जहां भी ले जायेगा, मुझे उसकी हर आज्ञा मंजूर है, क्योंकि मैं आज जो भी हूं उसी की कृपा से तो हूं...
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