Friday, January 27, 2017

अखबारों और चैनलों के होठ सील गये हैं..................

अखबारों और चैनलों के होठ सील गये हैं...
वरीय अधिकारियों के दल ने विज्ञापन का ऐसा लालच दिखाया है कि ये अखबार और चैनलवाले आम जनता के सामने नंगे हो गये है, फिर भी बेशर्म की तरह सीना तानकर खड़े है और कह रहे है कि हम लोकतंत्र के चौथे स्तंभ है, जबकि सच्चाई यह है कि ये इंसानियत के नाम पर कलंक है...
आपको मालूम होगा कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत दो बेटियों ने यहां हो रहे गलत कार्यों का विरोध किया, उनका कहना था कि मुख्यमंत्री जनंसवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार होता है, इन दोनों बेटियों ने इसकी जानकारी राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष को पत्र के माध्यम से दी, साथ ही इसकी प्रतिलिपि भारत के प्रधानमंत्री, झारखण्ड की राज्यपाल, झारखण्ड के मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय महिला आयोग, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और सचिव को भेजी।
पर सवाल यह है कि जब यहां राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ही नहीं तो इन बेटियों के पत्र का संज्ञान कौन लेगा? हद हो गयी, क्या इस सरकार के पास, या इस राज्य में एक भी योग्य महिला नहीं, जो राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बन सकें। ऐसे में महिलाओं की समस्याओं का हल कौन निकालेगा? क्या ऐसे में उनलोगों का मनोबल नहीं बढ़ेगा, जो महिलाओं का अपमान करते है या उनके साथ दुर्व्यवहार करते है।
कमाल है, यहां संयोग देखिये महिला राज्यपाल है, वह महिला राज्यपाल जो बेटियों की समस्याओं को लेकर सजग है, पर वे इस मामले में सजग नहीं दिखी, जबकि इन बेटियों ने उनका भी दरवाजा खटखटाया, पर न्याय नहीं मिला... इन बेटियों ने स्वयं द्वारा लिखे पत्र की एक प्रतिलिपि राजभवन में भी दी... कमाल है राजभवन के वरीय अधिकारियों का दल जिस सूचना भवन में बैठता है, उसी के ठीक नीचे चलता है, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र, फिर भी उसे न्याय नहीं मिलता...
गजब स्थिति है...राज्य की...
गलत करनेवाले मस्त और सहीं करनेवाले पस्त...
किसी ने ठीक ही कहा है कि जहां की सरकार हाथी उड़ाने में मस्त हो,
वहां, उसके पास वक्त कहां कि जो बेटियों को न्याय दिला सकें...
जरा देखिये...
मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के हाल...
क. नियोक्ता लड़कियों को नियुक्ति पत्र नहीं देता, पर निलंबन पत्र अवश्य थमा देता है...
ख. उसने आंतरिक शिकायत समिति का गठन ही नहीं किया, जबकि ये ज्यादा जरुरी है, वह भी तब जहां बड़ी संख्या में लड़किया कार्यरत हो...
ग. श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन करता है, एक ही कार्य के लिए समान वेतन नहीं, बल्कि वेतन में भी असमानता है...
घ. राज्य सरकार बतायें कि यहां कार्यरत बड़ी संख्या में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या विशेष व्यवस्था की है?
ऐसे कई प्रश्न है, जिसका जवाब न तो राज्य सरकार के पास है और न ही मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलानेवालों के पास...
यहां कार्य करनेवाले वरीय अधिकारियों का दल बहुत सारी बातें, इस शर्त पर बताता कि उनका नाम न प्रकाशित किया जाय...
वह कहता है कि
यह विभाग उसी दिन डूब गया था, जब ये विभाग सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से आइटी विभाग को दे दिया गया...
आइटी विभाग में जाते ही मनमानी शुरु हुई, महिलाओँ के साथ अपमान और दुर्व्यवहार का सिलसिला शुरू हुआ...
आइटी विभाग के वरीय अधिकारी यहां तक कि सचिव भी अपने कनीय अधिकारियों के साथ सही व्यवहार नहीं करते, जिसका परिणाम सामने है...
मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के अधिकारियों का मनमाना रवैया...
और दोषपूर्ण कार्यप्रणाली का प्रमाण है ये सब दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं...
नाम का है, 181... ऐसी बहुत सारी शिकायतें है, जिसका हल न तो मुख्यमंत्री निकाल पाये और न ही अधिकारी, जबकि शिकायतकर्ता मारे- मारे फिर रहे है...
ऐसा मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र रहे या न रहे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता...
आम जनता को इससे कोई राहत नहीं...
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चूं – चूं का मुरब्बा बन गया है...
राज्य की स्थिति ऐसी है कि
मूर्ख और चाटूकार – उपदेशक और सलाहकार बन रहे है...
और ईमानदार, अपनी इज्जत बचाने में ही ज्यादा समय बीता रहे है...
ऐसे में इन बेटियों को, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से या मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र से न्याय मिलेगा, इसकी संभावना कम ही दीखती है...
फिर भी निराश होने की जरुरत नहीं,
संघर्ष तो रंग लाता ही है...

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