Friday, January 13, 2017

ये “दंगल” बहुत कुछ कह रहा है..............

ये “दंगल” बहुत कुछ कह रहा है...
कह रहा है – अब अच्छी फिल्मों के दौर फिर से शुरु होंगे। “नदिया के पार”, “हम आपके है कौन” के बाद जो रिक्तिता आ गयी थी, वो अब खत्म होनेवाला है। हमारे देश में एक प्रकार का दौर चलता है। कोई फिल्म जो सुपरहिट होती है, उसके सुपर हिट होने के बाद, ठीक उसी प्रकार की फिल्म बननी शुरु हो जाती है, अगर ऐसा होता है तो देशहित व समाजहित में एक प्रकार से क्रांति संभव है। बहुत दिनों के बाद “दंगल” फिल्म देखने को मिली, जिसे देखने के लिए पूरा समाज विभिन्न मल्टीप्लेक्सों व छविगृहों के चक्कर लगा रहा है। फिल्म टैक्स फ्री नहीं है, फिर भी इसे देखनेवालों की भीड़ खूब यहां दिखाई पड़ रही है। हाल ही में क्रिकेटर धौनी को केन्द्र में रखकर एक और फिल्म बनी थी – “धौनी – ए अनटोल्डस स्टोरी” और अब एक और फिल्म जल्द ही देखने को मिलेगी जो सचिन तेंदुलकर के जीवन पर आधारित है। फिल्म का नाम है - “ए बिलियन ड्रीम्स”। सचमुच अगर ऐसी फिल्म बननी शुरु हुई तो समाज पर उसका असर पड़ना तय है, क्योंकि फिल्मों का हमारे जीवन पर असर खूब पड़ता है... और अब हम बात कर रहे है, फिल्म “दंगल” की। आखिर “दंगल” में क्या है? कुछ दिन पूर्व सायं समय जयपुर की वरिष्ठ पत्रकार मोनालिसा ने मेरे मोबाइल पर फोन किया। सर, आपकी बहुत याद आ रही है। मैंने पूछा – क्यों? तब उसने कहा कि सर मैंने अभी फिल्म दंगल देखी है। उस फिल्म में जैसे एक पिता ने अपनी दोनों बेटियों को बेहतर बनाने के लिए दुनिया से लड़ाइयां लड़ी, ठीक उसी प्रकार आप हमें बेहतर बनाने के लिए लोगों से लड़ जाया करते। मोनालिसा का ये कहना था कि मैंने सोचा कि मुझे यह फिल्म देखनी चाहिए, तभी मेरे बेटे सुधांशु ने नई दिल्ली से मेरे और अपनी मां के लिए ऑनलाइन टिकट बुक कर दी और मैं एक जनवरी को ग्लिट्ज में पिक्चर देखने के लिए पहुंचा। पूरी फिल्म देखने के बाद, हमारे मुख से वाह निकल गयी। क्या नहीं था – इस फिल्म में। इस फिल्म ने बताया है कि एक पिता को अपने सपनों को पूरा करने के लिए किस प्रकार की योजना बनानी चाहिए।
इस फिल्म ने बताया कि ईश्वर सबको मौका देता है, बस उस मौके को लाखों में कोई एक ही पहचान पाता है। इस फिल्म ने बताया है कि मिथक तोड़िये कि जो काम बेटे कर सकते है, वे बेटियां नहीं कर सकती। इस फिल्म ने बताया है कि एक बेहतरीन फिल्मों से भी अच्छी कमाई की जा सकती है। बशर्ते कि बेहतरीन फिल्म, समाज को सुदृढ़ करने, सशक्त करने, संदेश देने के लिए बनाये जाये। इस फिल्म ने बताया है कि राष्ट्रभक्ति क्या है? याद करिये, फिल्म समाप्त हो रहा है, फिल्म अभिनेता आमिर खान कमरे में बंद है, राष्ट्रीय धुन बज रहा है, कानों तक वह धुन पहुंची है, बड़ी शान से खड़ा होकर वे राष्ट्रीय धुन को सम्मान दे रहे है, और उन्हीं के साथ फिल्म देख रहे, सारे लोग उनके साथ खड़े हो जाते है, यहां सारी जातियां व धर्म दोनों समान रूप से राष्ट्रीय धुन के सम्मान में खड़े हो रहे है...
अगर फिल्में ऐसी बनेंगी तो देश बनेगा, समाज बनेगा... खुशी इस बात की है, अब ऐसी फिल्मों के बनने का दौर शुरु हो रहा है। जल्द ही सचिन की “ए बिलियन ड्रीम्स” आयेगी। लोग देखने जायेंगे। चरित्र और संस्कार का सुंदर समन्वय इन फिल्मों में देखने को मिलेगा। अपना देश मजबूत होगा... और क्या चाहिए हमें। आमिर खान और उनकी पूरी टीम, जिन्होंने “दंगल” बनायी, उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। इस फिल्म के माध्यम से एक संदेश उन फिल्म निर्माताओं को भी मिला है, जो ये कहते है कि अब अच्छी फिल्में लोग देखना नहीं चाहते है। उनके लिए एक ही जवाब – गर फिल्म अच्छा बनाओगे तो लोग देखेंगे... उसका प्रचार आम जनता स्वयं करेगी... जरा देखो, आमिर खान ने अपनी बहुत सारी फिल्मों को खूब प्रचार – प्रसार किया है, पर “दंगल” का प्रचार तो आम जनता ने खुद ही शुरु कर दिया, जो भी देख रहा है, वो अपने लोगों को कह रहा है कि आप “दंगल” देखिये और अपनी बेटियों से प्यार करिये, साथ ही एक बेहतर पिता भी बनिये, ठीक “दंगल” वाले आमिर खान जैसा...

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