विद्रोही
16 साल की पत्रकारिता में जो हमने देखा, महसूस किया, सोचा। उसे चाहता हूँ लिख डालूँ। बाल्यकाल में जो पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी और अन्य माध्यमों से जो पत्रकारों और पत्र-पत्रिकाओं या अन्य श्रवण-दृश्य माध्यमों को जाना है। उससे मुझे ज्यादातर निराशा हाथ लगीं, पर इन्हीं निराशाओं के बीच जब अच्छे एवम समर्पित पत्रकारों को देखता हूँ तो प्रसन्नता होती है। ये जानकर की मानवीय मूल्य अभी मरे नहीं है बल्कि जिन्दा है। इधर कुछ सालो में ब्लॉग लिखने की परम्परा शुरू हुई है। मुझे कुछ लिखने की आदत है। थोडा-बहुत लिख लेता हूँ, मेरे जो परम मित्र है, मेरी रचनाओं को पढ़कर, मेरा तारीफ कर दिया करते है। इसी लिखने की आदत ने मुझे आज ब्लॉग खोलने और उस पर लिखने को विवश कर दिया। चूँकि मुझे ब्लॉग खोलने नहीं आता, मेरे दो छोटे-छोटे बच्चो ने इसे खोलने में मेरी मदद कर दी। अब लिखूंगा। वो चीजे जिसे हमने नजदीक से देखी है। प्रारब्ध कहे या प्रार्थना अथवा प्रयास, पत्रकारिता का नशा कब चढ़ गया, मुझे पता ही नहीं चला।ये बातें है -- नवम्बर 1994 की, पटना में ये बाते जोर-शोर से चल रही थी की, पटना से प्रकाशित आर्यावर्त्त समाचारपत्र का पुन: प्रकाशन होने जा रहा है। इधर 26 जनवरी 1995 को आर्यावर्त्त का प्रकाशन प्रारंभ हो चूका था। इसी दिन दानापुर के प्रतिष्ठित पत्रकार और बी एस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण प्रसाद श्रीश मुझे पत्रकारों की मीटिंग में, बलदेव उच्च विद्यालय ले गए, उस मीटिंग में ऐसे पत्रकार थे, जिनमे कुछ को पत्रकारिता से लेना-देना नहीं था, बस अपनी रोटी सेकना चाहते थे, या इसी की आड़ में धन कमा कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहते थे पर कुछ ऐसे भी थे जो समर्पण के भाव में थे। इनमे से कई तो नौकरी में चले गए, कई ने अच्छी आमदनी कर ली है तो कई जिन्दगी के थपेरों के बीच चलते जा रहे है, क्योकि हर नशे की तरह पत्रकारिता भी एक नशा है, जिन्हें ये लग गयी, समझ लीजिये या तो वे महान हो गए नहीं तो बर्बाद होना तय है, फिलहाल बर्बाद होनेवालो की संख्या में इधर ज्यादा इजाफा हुआ है।ऐसे मै ये बता देना चाहता हूँ की मुझे नशा के नाम पर सिर्फ पत्रकारिता ही है। चाहकर भी छोड़ नहीं सकता, कई बार छोड़ने की स्थिति आयी पर इसने हमें छोड़ा नहीं है, 15 साल से अब 16 वे में प्रवेश किया हूँ। श्रव्य से, प्रिंट और प्रिंट से इलेक्ट्रोनिक तक का सफ़र किया है, मुझे ख़ुशी है की इस दौरान हमने वो देखा जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
16 साल की पत्रकारिता में जो हमने देखा, महसूस किया, सोचा। उसे चाहता हूँ लिख डालूँ। बाल्यकाल में जो पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी और अन्य माध्यमों से जो पत्रकारों और पत्र-पत्रिकाओं या अन्य श्रवण-दृश्य माध्यमों को जाना है। उससे मुझे ज्यादातर निराशा हाथ लगीं, पर इन्हीं निराशाओं के बीच जब अच्छे एवम समर्पित पत्रकारों को देखता हूँ तो प्रसन्नता होती है। ये जानकर की मानवीय मूल्य अभी मरे नहीं है बल्कि जिन्दा है। इधर कुछ सालो में ब्लॉग लिखने की परम्परा शुरू हुई है। मुझे कुछ लिखने की आदत है। थोडा-बहुत लिख लेता हूँ, मेरे जो परम मित्र है, मेरी रचनाओं को पढ़कर, मेरा तारीफ कर दिया करते है। इसी लिखने की आदत ने मुझे आज ब्लॉग खोलने और उस पर लिखने को विवश कर दिया। चूँकि मुझे ब्लॉग खोलने नहीं आता, मेरे दो छोटे-छोटे बच्चो ने इसे खोलने में मेरी मदद कर दी। अब लिखूंगा। वो चीजे जिसे हमने नजदीक से देखी है। प्रारब्ध कहे या प्रार्थना अथवा प्रयास, पत्रकारिता का नशा कब चढ़ गया, मुझे पता ही नहीं चला।ये बातें है -- नवम्बर 1994 की, पटना में ये बाते जोर-शोर से चल रही थी की, पटना से प्रकाशित आर्यावर्त्त समाचारपत्र का पुन: प्रकाशन होने जा रहा है। इधर 26 जनवरी 1995 को आर्यावर्त्त का प्रकाशन प्रारंभ हो चूका था। इसी दिन दानापुर के प्रतिष्ठित पत्रकार और बी एस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण प्रसाद श्रीश मुझे पत्रकारों की मीटिंग में, बलदेव उच्च विद्यालय ले गए, उस मीटिंग में ऐसे पत्रकार थे, जिनमे कुछ को पत्रकारिता से लेना-देना नहीं था, बस अपनी रोटी सेकना चाहते थे, या इसी की आड़ में धन कमा कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहते थे पर कुछ ऐसे भी थे जो समर्पण के भाव में थे। इनमे से कई तो नौकरी में चले गए, कई ने अच्छी आमदनी कर ली है तो कई जिन्दगी के थपेरों के बीच चलते जा रहे है, क्योकि हर नशे की तरह पत्रकारिता भी एक नशा है, जिन्हें ये लग गयी, समझ लीजिये या तो वे महान हो गए नहीं तो बर्बाद होना तय है, फिलहाल बर्बाद होनेवालो की संख्या में इधर ज्यादा इजाफा हुआ है।ऐसे मै ये बता देना चाहता हूँ की मुझे नशा के नाम पर सिर्फ पत्रकारिता ही है। चाहकर भी छोड़ नहीं सकता, कई बार छोड़ने की स्थिति आयी पर इसने हमें छोड़ा नहीं है, 15 साल से अब 16 वे में प्रवेश किया हूँ। श्रव्य से, प्रिंट और प्रिंट से इलेक्ट्रोनिक तक का सफ़र किया है, मुझे ख़ुशी है की इस दौरान हमने वो देखा जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
No comments:
Post a Comment