भाजपा को शर्म आनी चाहिए। --- विद्रोही
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक राजनीतिक इकाई, पं. दीन दयाल उपाध्याय, डा.श्यामा प्रसाद मुख्रर्जी जैसे महान शख्सियतों की पार्टी, देश में पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री का खिताब पाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी, तीन प्रदेशों की जन्मदाता, मूल्यों और सिद्धांतों की बात करनेवाली भाजपा आज झारखंड में क्या कर रही हैं। झामुमो के साथ सत्ता की लालच में चूहे – बिल्ली का खेल, खेल रही हैं।
कथनी और करनी में एक समानता की बात करनेवाली पार्टी अब कथनी और करनी में अंतर रखने का रिकार्ड अपने नाम करने जा रही हैं। जरा देखिये, इस भाजपा को जिसने मूल्यों और सिद्धांतों की झारखंड में कैसे धज्जियां उड़ा रही हैं।
लोकसभा में कटौती प्रस्ताव पर जब वोटिंग की बात आयी, तब सीबीआई के भय और आनेवाले समय में भविष्य को लेकर सशंकित, कांग्रेस के साथ जाने के लिए मन बना चुकी झामुमो ने कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग कर दी। कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करना भाजपा को इतना नागवार गूजरा कि उसने झारखंड के शिबू सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी, राज्यपाल से मिलकर समर्थन वापसी का पत्र देने का समय तक मांग डाला, पर जैसे ही झामुमो ने माफी और भाजपा को ही सरकार बनाने का अनुरोध पत्र दे डाला, समर्थन वापसी की बात इस भाजपा ने हवा-हवाई कर दी। भाजपा को लगा, बस अब झारखंड में उसका मुख्यमंत्री होना सुनिश्चित हैं, पर वो भूल गयी कि झामुमो एक ऐसे पार्टी का नाम हैं, जो कब क्या बोलेगा और क्या करेगा, खुद उसके सुप्रीमो तक को पता नहीं होता, जिस पार्टी की सभा और विधायक दल की बैठक कब शुरु होती है और कब खत्म होती हैं, खुद उस पार्टी तक को पता नहीं होता, ये पार्टी कब झूमर और कब सोहर गा दे, खुद झारखंड की जनता को मालूम नहीं होता। तो भला भाजपा की क्या औकात की, झामुमो के अंदर की बात जान लें।
हुआ भी ऐसा ही, एक झामुमो के मंत्री ने हमसे ऑफ दि रिकार्ड बात कही थी, कि विद्रोही जी, आप जान लीजिये, भाजपा को हम इस मुद्दे पर ऐसा नाच नचायेंगे कि वो लोग जानेंगे, भाजपा वाले समझते हैं कि हम महतो-मांझी की पार्टी हैं, राज चलाना क्या जाने, पर हम वो सब जान गये हैं, जिसे लेकर सत्ता चलती हैं, अरे जब बड़े लोग मूल्यों और सिद्धांतों को तिलांजलि देने में एक मिनट तक नहीं देते तो हम भला मूल्यों और सिद्धांतों पर क्यूं चले, क्यूं हमने ही सिर्फ मूल्यों और सिद्धांतों पर चलने का ठेका ले रखा हैं। ये बात तो झारखंड के सभी पार्टियों को सोचना चाहिए। ये बात हैं उस वक्त की जब पहले राउँड की बात कर दिल्ली से झामुमो के नेता विजयी मुद्रा में लौटे थे।
झामुमो जहां इसकी पकड़ हैं, वहां दूसरे नंबर पर भाजपा हैं, कांग्रेस तीसरे नंबर पर हैं, ऐसे में अपने दूसरे नंबर के शत्रू पर विजय पताका फहराते हुए शासन करना झामुमो के लिए कितनी आनन्द देने की बात हैं, इसे समझा जा सकता हैं, क्योंकि झामुमो का मानना हैं कि जितना भाजपा को उसकी औकात बता कर शासन करेंगे, झामुमो प्रदेश में उतना ही मजबूत होगा, पर केन्द्र और प्रदेश में बैठे इन भाजपा नेताओं को ये छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही और वे सत्ता की लालच में इतने अंधे हो गये कि उन्हे पता नहीं चल रहा हैं कि राज्य की राजनीतिक अनिश्चितता के इस दौर ने प्रदेश को कहां लाकर खड़ा कर दिया।
दिल्ली और रांची में बैठकों का दौर जारी हैं, एक छोटी सी पार्टी झामुमो ने भाजपा के नीति सिद्धांतों की चूलें हिला दी, पर केन्द के भाजपा नेताओं को इसका भान नहीं हो रहा. भान हो भी तो कैसे, उन्हें पता हैं कि जब भाजपा की सरकार थी, तो उन्हें कितना मजा लिया हैं, झारखंड में शासन नहीं रहने पर उन्हें कितना नुकसान हुआ हैं, ऐसे में कुछ ले – देकर बात बन जाये तो क्या फर्क पड़ता हैं। ऐसे भी झारखंड की जनता ने जो जनादेश दिया था, उसका हश्र तो यहीं होना हैं, इसलिए जो चाहे जो करों अपनी बला से। हमें तो सत्ता चाहिए, चाहे अट्ठाईस महीने की हो या छह महीने की। गर छह महीने की हुई तो उसे पूरे साढ़े चार साल तक करने के लिए फिर राजनीतिक गोटी फिट करेंगे, नहीं तो जितनी की अवधि हैं, उतना तो अपना वारा-न्यारा हैं ही।
कुछ नेता व विधायक कहते हैं कि यहां सीटों की संख्या कम हैं, इसलिए यहां ऐसा हो रहा हैं, गर सीटों की संख्या बढ़ जाये, तो ऐसी स्थिति नहीं रहेंगी, यानी नाच न जाने अंगना टेढ़ा, चरित्र नहीं हैं और सीटे कम होने का बहाना ढूंढने लगे, अरे इसकी कौन सी गारंटी होगी कि सीटे बढ़ जाने पर त्रिशंकु विधानसभा नहीं होगी. यहां सीट से मतलब थोड़े ही हैं, यहां तो नेताओं के चरित्र का संकट हैं, सभी का लक्ष्य एकमात्र कुर्सी पाना और सत्ता पाना हैं, सेवा भाव ही जब हृदय से खत्म हो गया तो फिर पार्टी और सीट का मतलब क्या, राज्य की राजनीतिक हालात देख तो हमारे हृदय से इन भ्रष्ट नेताओं के प्रति कुछ ऐसी ही पंक्तियां निकल रही हैं ------------------
नेता आओं, सत्ता पाओ,
पार्टी का मतभेद भूलाओं,
एकमेव तुम कुर्सी पाओं
पत्नी और पुत्र को लाओ
जनता से जयकार कराओं
और उन्ही की छाती पर,
मूंग दराओं,
नीति विवेक के गहने उतारकर,
सप्त जन्म तुम सफल कराओं
नेता आओ, सत्ता पाओ ----------------------------------
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक राजनीतिक इकाई, पं. दीन दयाल उपाध्याय, डा.श्यामा प्रसाद मुख्रर्जी जैसे महान शख्सियतों की पार्टी, देश में पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री का खिताब पाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी, तीन प्रदेशों की जन्मदाता, मूल्यों और सिद्धांतों की बात करनेवाली भाजपा आज झारखंड में क्या कर रही हैं। झामुमो के साथ सत्ता की लालच में चूहे – बिल्ली का खेल, खेल रही हैं।
कथनी और करनी में एक समानता की बात करनेवाली पार्टी अब कथनी और करनी में अंतर रखने का रिकार्ड अपने नाम करने जा रही हैं। जरा देखिये, इस भाजपा को जिसने मूल्यों और सिद्धांतों की झारखंड में कैसे धज्जियां उड़ा रही हैं।
लोकसभा में कटौती प्रस्ताव पर जब वोटिंग की बात आयी, तब सीबीआई के भय और आनेवाले समय में भविष्य को लेकर सशंकित, कांग्रेस के साथ जाने के लिए मन बना चुकी झामुमो ने कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग कर दी। कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करना भाजपा को इतना नागवार गूजरा कि उसने झारखंड के शिबू सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी, राज्यपाल से मिलकर समर्थन वापसी का पत्र देने का समय तक मांग डाला, पर जैसे ही झामुमो ने माफी और भाजपा को ही सरकार बनाने का अनुरोध पत्र दे डाला, समर्थन वापसी की बात इस भाजपा ने हवा-हवाई कर दी। भाजपा को लगा, बस अब झारखंड में उसका मुख्यमंत्री होना सुनिश्चित हैं, पर वो भूल गयी कि झामुमो एक ऐसे पार्टी का नाम हैं, जो कब क्या बोलेगा और क्या करेगा, खुद उसके सुप्रीमो तक को पता नहीं होता, जिस पार्टी की सभा और विधायक दल की बैठक कब शुरु होती है और कब खत्म होती हैं, खुद उस पार्टी तक को पता नहीं होता, ये पार्टी कब झूमर और कब सोहर गा दे, खुद झारखंड की जनता को मालूम नहीं होता। तो भला भाजपा की क्या औकात की, झामुमो के अंदर की बात जान लें।
हुआ भी ऐसा ही, एक झामुमो के मंत्री ने हमसे ऑफ दि रिकार्ड बात कही थी, कि विद्रोही जी, आप जान लीजिये, भाजपा को हम इस मुद्दे पर ऐसा नाच नचायेंगे कि वो लोग जानेंगे, भाजपा वाले समझते हैं कि हम महतो-मांझी की पार्टी हैं, राज चलाना क्या जाने, पर हम वो सब जान गये हैं, जिसे लेकर सत्ता चलती हैं, अरे जब बड़े लोग मूल्यों और सिद्धांतों को तिलांजलि देने में एक मिनट तक नहीं देते तो हम भला मूल्यों और सिद्धांतों पर क्यूं चले, क्यूं हमने ही सिर्फ मूल्यों और सिद्धांतों पर चलने का ठेका ले रखा हैं। ये बात तो झारखंड के सभी पार्टियों को सोचना चाहिए। ये बात हैं उस वक्त की जब पहले राउँड की बात कर दिल्ली से झामुमो के नेता विजयी मुद्रा में लौटे थे।
झामुमो जहां इसकी पकड़ हैं, वहां दूसरे नंबर पर भाजपा हैं, कांग्रेस तीसरे नंबर पर हैं, ऐसे में अपने दूसरे नंबर के शत्रू पर विजय पताका फहराते हुए शासन करना झामुमो के लिए कितनी आनन्द देने की बात हैं, इसे समझा जा सकता हैं, क्योंकि झामुमो का मानना हैं कि जितना भाजपा को उसकी औकात बता कर शासन करेंगे, झामुमो प्रदेश में उतना ही मजबूत होगा, पर केन्द्र और प्रदेश में बैठे इन भाजपा नेताओं को ये छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही और वे सत्ता की लालच में इतने अंधे हो गये कि उन्हे पता नहीं चल रहा हैं कि राज्य की राजनीतिक अनिश्चितता के इस दौर ने प्रदेश को कहां लाकर खड़ा कर दिया।
दिल्ली और रांची में बैठकों का दौर जारी हैं, एक छोटी सी पार्टी झामुमो ने भाजपा के नीति सिद्धांतों की चूलें हिला दी, पर केन्द के भाजपा नेताओं को इसका भान नहीं हो रहा. भान हो भी तो कैसे, उन्हें पता हैं कि जब भाजपा की सरकार थी, तो उन्हें कितना मजा लिया हैं, झारखंड में शासन नहीं रहने पर उन्हें कितना नुकसान हुआ हैं, ऐसे में कुछ ले – देकर बात बन जाये तो क्या फर्क पड़ता हैं। ऐसे भी झारखंड की जनता ने जो जनादेश दिया था, उसका हश्र तो यहीं होना हैं, इसलिए जो चाहे जो करों अपनी बला से। हमें तो सत्ता चाहिए, चाहे अट्ठाईस महीने की हो या छह महीने की। गर छह महीने की हुई तो उसे पूरे साढ़े चार साल तक करने के लिए फिर राजनीतिक गोटी फिट करेंगे, नहीं तो जितनी की अवधि हैं, उतना तो अपना वारा-न्यारा हैं ही।
कुछ नेता व विधायक कहते हैं कि यहां सीटों की संख्या कम हैं, इसलिए यहां ऐसा हो रहा हैं, गर सीटों की संख्या बढ़ जाये, तो ऐसी स्थिति नहीं रहेंगी, यानी नाच न जाने अंगना टेढ़ा, चरित्र नहीं हैं और सीटे कम होने का बहाना ढूंढने लगे, अरे इसकी कौन सी गारंटी होगी कि सीटे बढ़ जाने पर त्रिशंकु विधानसभा नहीं होगी. यहां सीट से मतलब थोड़े ही हैं, यहां तो नेताओं के चरित्र का संकट हैं, सभी का लक्ष्य एकमात्र कुर्सी पाना और सत्ता पाना हैं, सेवा भाव ही जब हृदय से खत्म हो गया तो फिर पार्टी और सीट का मतलब क्या, राज्य की राजनीतिक हालात देख तो हमारे हृदय से इन भ्रष्ट नेताओं के प्रति कुछ ऐसी ही पंक्तियां निकल रही हैं ------------------
नेता आओं, सत्ता पाओ,
पार्टी का मतभेद भूलाओं,
एकमेव तुम कुर्सी पाओं
पत्नी और पुत्र को लाओ
जनता से जयकार कराओं
और उन्ही की छाती पर,
मूंग दराओं,
नीति विवेक के गहने उतारकर,
सप्त जन्म तुम सफल कराओं
नेता आओ, सत्ता पाओ ----------------------------------
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