Monday, December 31, 2012

ये नया वर्ष हैं..................


कल भी आया, कल आयेगा भी,
हंसो, खेलो, ये नया वर्ष हैं
हंसो, खेलो, ये नया वर्ष हैं..................
भ्रष्टाचार-दुष्कर्म, निरंतर
भारत की दिन-रात भयावह
सिसकती, कराहती, जैसे-तैसे
जीने की ये नयी चाह हैं
हां हां, सुनो
ये नया वर्ष हैं.....................
कल दल-गण आंदोलन करती थी
अब, आंदोलन से पीछे हटती हैं
अब जनता आगे बढ़ कहती
हटो, अरे ये मेरा वक्त हैं
क्योंकि,
ये नया वर्ष हैं....................
गंगा – जमना, अब रोती कहती
कभी हरती थी, वो पापों को
अब खुद मैली होकर भी,
त्राहिमाम संदेश सुनाती
घाटों की सुनी दिन रातें
कलकल निनाद न, अब सुन पाती
फिर भी बोलो, कि हम खुब खुश हैं
झूठ बोल, मन को बहलाओ
और कहो
ये नया वर्ष हैं.............................

Sunday, December 30, 2012

काला शनिवार.............................

शनिवार को सुबह, मैं जैसे ही जगा। एक बुरी खबर, मेरे कानों को सुनाई दी। 16 दिसम्बर को सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 23 वर्षीया लड़की अब दुनिया में नहीं रही। सारा देश हतप्रभ था। देश की बहादुर बिटिया चल बसी। उसके साथ हुए अमानुषिक कुकृत्य ने पूरे देश को अंदर से झकझोर दिया था। दिल्ली क्या, दूर गांवों में भी इसकी गूंज सुनाई दी। सभी ने एक स्वर से मांग किया कि दुष्कर्मियों को कठोर से कठोर सजा मिले। संसद में भी इसकी शोर सुनाई दी। सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री जया भादुड़ी तो इस घटना से इतनी मर्माहत हुई कि वो रो पड़ी, पर इसी संसद में कांग्रेस का एक ऐसा भी नेता था, जो संसदीय कार्य मंत्री होते हुए भी इस घटना के समय़, संसद में चल रही बहस के दौरान हंस रहा था। जिसका नाम था -- राजीव शुक्ला। वो स्वयं को पत्रकार भी समय - समय पर कहा करता हैं। ऐसे तो नेता, नेता होता हैं। चाहे वो किसी भी पार्टी का क्यों न हो। बेशर्मी में इसका रिकार्ड तोड़ना सामान्य व्यक्तियों के वश की बात नहीं। हाल ही में कांग्रेस पार्टी का ही एक नेता संजय निरुपम, भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी को ठुमके लगानेवाली कह डाला था, वो भी टीवी बहस के दौरान। इसी तरह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने भी नारियों के खिलाफ घटियास्तर की टिप्पणी कर डाली पर इससे भी आगे निकल गये माकपा नेता अनीसुर्रहमान जिन्होंने प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर ऐसी टिप्पणी कर डाली, जिसे सभ्य समाज कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
सवाल उठता हैं कि जब देश में सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ, स्वतः स्फूर्त आंदोलन प्रारंभ हो जाते हो। उसके बाद भी देश के नेताओं की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता हो। नारियों के खिलाफ उनके बयान घटियास्तर के आते हो। साथ ही उक्त आंदोलन को दबाने के लिए नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जाते हो। ऐसे में हम इन नेताओं पर और उनकी पार्टियों से हम ये भरोसा क्यों रखे, कि ये सामूहिक दुष्कर्म की शिकार युवती को मरणोपरांत भी न्याय दिलायेंगे। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ये बयान कि, उनकी भी लड़किया हैं, और इस घटना से वे भी मर्माहत हैं, पर ये मर्माहत होने के बावजूद भी खुद बचने का प्रयास करते हो। उक्त लड़की को सिंगापुर इलाज के नाम पर, इसलिए ट्रांसफर करते हो, कि देश में ये मैसेज जाय कि सरकार, उसे बचाने के लिए हरसंभव प्रयास की हैं। ये जानते हुए भी कि उस लड़की की स्थिति यहां पर ही, इतनी बिगड़ गयी हैं कि उसे बचाया नहीं जा सकता, क्या दिखाता हैं।
जनता मांग कर रही हैं कि त्वरित न्याय के तहत इस दुष्कर्म कांड के आरोपियों को सजा दिलायी जाय, पर सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही। मैं तो कहता हूं कि जिन लोगों ने नारियों को सम्मान नहीं दिया हैं, जिनकी मानसिकता नारियों के प्रति कभी ठीक नहीं रहा, जिन्होंने हमेशा विवादास्पद बयान नारियों के खिलाफ दिया हो, क्या इन्हें ऐसे ही छोड़ देना चाहिए। जिन नेताओं ने नारियों के खिलाफ घटियास्तर का बयान दिया हैं, क्या उन्हें इसलिए छोड़ देना चाहिए कि वे नेता हैं, या उन्हें भी दंडित करना चाहिए।
मेरा मानना हैं कि ये दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि हमारी नारियों के प्रति मानसिकता बदल गयी हैं। गलती खुद करें, और इसके लिए लड़कियों और नारियों के ड्रेस पर इल्जाम लगा दे। कमाल हैं, ऐसे कई कांग्रेसी-भाजपाई नेताओं के हास्यास्पद बयान, मीडिया में भरे पड़े हैं। जो इसके लिए लड़कियों के पोशाक को जिम्मेवार मानते हैं। मेरा मानना हैं कि जब इन नेताओं के मन में ही गंदगी भरी पड़ी हैं, जिसकी वे चर्चा नहीं करते, क्योंकि ये जानते हैं कि जैसे ही वे मन के अंदर, जागृत होनेवाली अपनी गंदी भावनाओं को देखेंगे, तो वे खुद शर्म से गड़ जायेंगे, पर हमें नहीं लगता कि इनकी जमीर इतनी मजबूत हैं कि वे शर्म से खुद मरेंगे, ये तो पैदा ही लिए हैं, हम सामान्य जन को जिंदा मार डालने के लिए। ये तब तक कुकर्म करेंगे, बयान देंगे, जब तक जिंदा रहेंगे, क्योंकि ये जानते हैं कि देश में जो भी हो रहा हैं, उससे वे परे हैं। इसकी आंच भी, उनके घरों तक नहीं पहुंचेगी। इसलिए आम जनता की इज्जत व आबरु जाये भाड़ में, हमें क्या पड़ी हैं। बस घटना घटेंगी। देखने जायेंगे।  घड़ियाली आँसू बहायेंगे। अपने विवेकाधीन कोटे से कुछ रुपये दें देंगे और जनता तो मूर्ख हैं ही, ये छोटी - मोटी घटनाएं थोड़े ही याद रखेंगी, बस पांच साल के लिए फिर से चुनाव के बाद, अपनी सीटे आरक्षित करा लेंगे।

Friday, December 21, 2012

बिहार के मुख्यमंत्री अहंकारी नीतीश क्या जाने, किसी का सम्मान कैसे किया जाता हैं...........................

गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने शानदार तरीके से एक बार फिर सत्ता हासिल की हैं। गुजरात की छः करोड़ जनता ने एक बार फिर उन पर विश्वास किया और विपक्षियों के लाखों - करोड़ों आरोपों को दरकिनार करते हुए, नरेन्द्र मोदी को अपना हीरो चुना। इसमें कोई दो मत नहीं कि वे आनेवाले समय में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार है और यहीं प्रबल दावेदारी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों की नींद गायब कर दी हैं। वे इतने सदमे में हैं कि वे मर्यादा तक भूल गये हैं। बिहार में एक कहावत हैं - हम अपने दुश्मनों को भी उंचा पीढ़ा देते हैं, पर इसे देखिये। सामान्य तौर पर, लोग जो शिष्टाचार निभाते हैं। ऐसे अवसरों पर बधाई देते हैं। इसने नरेन्द्र मोदी को बधाई देना भी उचित नहीं समझा। अरे आप नरेन्द्र मोदी को बधाई दो या मत दो। उसे क्या फर्क पड़ता हैं। ऐसे थोड़े ही ना हैं कि वो आपकी बधाई की लालसा पाले हुए हैं। वो तो अच्छी तरह जानता हैं कि आप क्या हो। कल तक गाली देने में आगे थे, तो आज भी गाली ही दो। तुम्हारे मुंह से यहीं अच्छा लगता हैं। जो नीतीश को जानते हैं, वे उनके कैरेक्टर को भी जानते हैं। नीतीश भारतीय राजनीति में अहंकारी पुरुष थे, और रहेंगे। समय आने पर लालू की तरह इनका भी अहंकार मिट्टी में मिल जायेगा और जो सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं, कुशासन बाबू कहाने में भी देर नहीं लगेगा।
बिहार - एक अनोखा प्रदेश। यहां एक से एक शूरवीरों ने जन्म लिया। जिनकी यशोगाथा आज भी पूरे विश्व में देखी और सुनी जाती हैं, पर पिछले बीस पच्चीस वर्षों से इस बिहार में एक से एक मसखरे और अहंकारी दिखाई पड़ रहे हैं, जिनके कुकृत्यों से बिहार पर अंगूलियां उठायी जा रही हैं। ऐसे भी बिहार और बिहारी क्या हैं। इसके बारे में गर जानना हैं तो बिहार से अलग, आप किसी भी प्रदेश में जाकर बिहारियों के बारे में पूछे, तो पता चल जायेगा। एक नारा, बिहारियों के लिए, जो हर जगह सुनायी देती हैं वो हैं -- एक बिहारी, सौ बिमारी। 
क्या सचमुच एक बिहारी, सौ बिमारी के बराबर हैं, या लोग ऐसे ही कह देते हैं।
सबसे पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बिहार के लोग के बारे में क्या कहती हैं, वो सुनिये --  बिहार और यूपी से आये लोगों ने दिल्ली को गंदा करके रख दिया हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिव सेना के लोग तो बिहारियों को देखना ही पसंद नहीं करते और इसका मौन समर्थन करते हैं, महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता व वहां के मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चौहान। देश के पूर्वी भाग असम और दक्षिण के चेन्नई और बंगलौर में तो ये बिहारी कई बार मार खाकर लौट आते हैं। क्यों मार खाते हैं। ये बताने की जरुरत नहीं। इधर बिहार में लालू और अब नीतीश के शासन को झेल रहे बिहारी समझते हैं कि नीतीश के आने के बाद, बिहार का सम्मान बढ़ा हैं, बिहार तेजी से विकास कर रहा हैं। तो इन मूर्खों को कौन समझाये कि जो नयीं लेटेस्ट रिपोर्ट आयी हैं विकास की। उसमें एक नंबर पर छोटा सा प्रदेश - सिक्किम हैं। जो आज तक अपने लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग तक नहीं की हैं। जबकि बिहार का मुख्यमंत्री नीतीश हमेशा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की भीख मांगा करता हैं, जबकि यहीं शख्स जब केन्द्र में सरकार में शामिल था, तो तत्कालीन बिहार की मुख्यमंत्री रावड़ी देवी के इस मांग पर ही अंगूली उठा दी थी। हाल ही में जब महाराष्ट्र में एक बिहारी युवक की निर्मम हत्या कर दी गयी थी। नीतीश ने इस पर अपना बयान जारी किया था कि एक छोटी सी मुर्गी पर तोप छोड़ दिया गया, पर इसी नीतीश ने जब महाराष्ट्र का दौरा किया तो वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेताओं व कार्यकर्ताओं से डरते हुए अपने भाषण की शुरुआत ही, जय महाराष्ट्र से की।
आज भी नीतीश बिहार में उद्योग लगाने के लिए, देश के उद्योगपतियो से चिरौरी करते हैं, पर कोई भी उद्योगपति बिहार में उद्योग लगाना पसंद नहीं करता। पर गुजरात को देखिये। वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या किया। बंगाल में नैनो पर ग्रहण लगा और उसने गुजरात में नैनो का प्रोडक्शन करा, दिखा दिया कि थॉट क्या हैं। गुजरात के सैकड़ों कपड़ा मिलों और अन्य संस्थानों में आज भी बिहारी मजदूर शान से काम करते हैं। इन बिहारी मजदूरों को गुजरात और गुजरातियों से कोई शिकायत तक नहीं। ये चुनावों में भी भाग लेते हैं और नरेन्द्र मोदी को अपना हीरो मानते हैं, पर नीतीश को देखिये।
नीतीश धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट बांटते हैं। ये धर्मनिरपेक्षता के सर्टिफिकेट का दुकान पटना और दिल्ली के जदयू कार्यालय में खोले हुए हैं। बिहार में भाजपा के वैशाखी पर शासन कर रहे हैं और भाजपा को ही समय - समय पर गीदड़भभकी और बंदरघुड़की दिखाते रहते हैं। बिहार के अल्पसंख्यकों को ये दिखाऩे के लिए की, वे लालू से ज्यादा सेक्यूलर हैं, अल्पसंख्यक उनकी पार्टी को भूले नहीं, इसलिए समय - समय पर नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने का कोई कसर नहीं छोड़ते। इस बार तो उन्होंने मर्यादा को ही ताक पर रख दिया। सामान्य तौर पर देखा जाता हैं कि कोई भी व्यक्ति गर शीर्ष पर पहुंचता हैं या कोई विजयी होता हैं तो उसका घुरविरोधी भी उसको बधाई देने के लिए पहुंच जाता हैं। पर ये संस्कारवान अथवा चरित्रवान व्यक्ति ही कर सकता हैं। सामान्य नहीं। 
कल गुजरात में चुनाव परिणाम निकले। गुजरात परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष जो पूर्व में भाजपा में रहकर, गुजरात का बागडोर संभाल चुके हैं। भाजपा को चुनौती दी, बुरी तरह हार गये। पर नरेन्द्र मोदी को देखिये, चुनाव जीतने के बाद, वे उनके घर जाते हैं, उनका पांव छूते हैं। पर नीतीश को देखिए, अहंकार में चूर हैं। नरेन्द्र मोदी को बधाई तक नहीं दिये हैं। उनके पिछलग्गू नेता इस पर बयान देते हैं कि नीतीश जी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए वे बधाई नहीं दे पाये। जैसे लगता हैं कि नीतीश जी के पास दो सेंकेंड का भी समय नहीं हैं। जैसे लगता हैं कि नीतीश को शौचालय जाने तक का समय नहीं हैं, या दिनचर्या के दौरान नीतीश जी मुंह भी नहीं धो पा रहे हैं और न ही नहा रहे होंगे। अरे पिछलग्गूओं साफ कहो कि नीतीश को नरेन्द्र मोदी की जीत रास नहीं आ रही हैं। उसे लग रहा हैं कि विकास को लेकर और आनेवाले समय में प्रधानमंत्री पद को लेकर, उसका कोई घुरविरोधी सामने हैं तो वो नरेन्द्र मोदी हैं, जिसके कारण वो इतना जल भून गया हैं कि उसे मर्यादा तक याद नहीं रही। ऐसे नीतीश ही बिहार की कब्र खोदेंगे। क्योंकि जिसके पास मर्यादा, चरित्र व संस्कार नहीं, वो बिहार को क्या सम्मान दिलायेगा। ये तो बेशर्मी की हद हैं। इसने तो बिहार के दस करोड़ जनता का अपमान कर दिया हैं। बिहार की तो परंपरा रही हैं कि अपने दुश्मनों को भी आगे बढ़कर स्वागत करने का, पर इस नीतीश ने तो सारी मर्यादाएं लांघ कर बता दिया कि वो सिर्फ और सिर्फ बिहार के सम्मान पर दाग लगाने के लिए सत्ता हासिल की हैं। भाजपा को चाहिए कि अपने पीठ पर जो नीतीश को उसने सवार कर रखा हैं, उसे उतार कर फेंके नहीं तो ये खुद तो जायेगा ही, भाजपा की भी कब्र खोद देगा।

Thursday, December 20, 2012

गुजरात की जनता का अपमान बंद कर, जनादेश का सम्मान करें राष्ट्रीय मीडिया और तथाकथित नेता..........................

गुजरात की जनता ने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी के हाथों में गुजरात की बागडोर सौंप दी हैं। इस बार भी भारी बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी सत्तारुढ़ हुए हैं। ये अलग बात हैं कि इस भारी जीत को उनके विरोधी पचा नहीं रहे हैं, और फिर धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए, उन्हें धर्मनिरपेक्ष बताने से इनकार कर रहे हैं। इसकी शुरुआत, बिहार से ही हुई हैं। बिहार में भाजपा की वैशाखी पर टिकी, नीतीश की पार्टी के एक प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा हैं कि वे नरेन्द्र मोदी को धर्मनिरपेक्ष नहीं मानते। ऐसे भी समय - समय पर इनकी पार्टी और इनके बहुत सारे नेता, जिसमें राजद से जदयू में गये शिवानंद तिवारी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं जो नरेन्द्र मोदी को समय - समय पर नीचा दिखाने के लिए बेतुके बयान देते रहते हैं पर उन्हें नहीं मालूम कि उनका इस प्रकार का बयान, नरेन्द्र मोदी का अपमान नहीं, बल्कि सीधे तौर पर गुजरात की छः करोड. जनता का अपमान कर देता हैं, जो नरेन्द्र मोदी को बार - बार सत्ता सौंपता हैं। 
ऐसे ही लोग मीडिया में भी हैं। जो गाहे - बगाहे नरेन्द्र मोदी को नाना प्रकार के विभूषणों से समय - समय पर अलंकृत करते रहते हैं। जब - जब चुनाव आते हैं, इन मीडिया हाउस को कई साल पहले हुए गुजरात के दंगे याद आने लगते हैं, और इसका दृश्य वे बार - बार अपने टीवी चैनलों के माध्यम से जनता को दिखाने शुरु करते हैं। यहीं नहीं इस दंगे में नरेन्द्र मोदी को लपेटने का भी प्रयास करते है, पर गुजरात की जनता शायद इस घटना को उस रुप में नहीं लेती और अपने ढंग से मतदान कर, सबको बता देती हैं कि उसे अपने नरेन्द्र पर कितना भरोसा हैं। 
सवाल उठता हैं कि गुजरात में दगे हुए, तो उसके लिए भाजपा के नरेन्द्र मोदी दोषी, तो फिर हाल ही में असम में जो दंगे हुए, उसके लिए असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई व भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोषी क्यों नहीं। देश की भुतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो पूरे देश में सिक्ख विरोधी दंगे फैले, उसके लिए कांग्रेसी दोषी क्यों नहीं, जबकि उस वक्त देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का दंगे पर ही विवादास्पद बयान आ गया था। दंगों पर मीडिया और देश के मूर्धन्य नेताओं का दोहरा मापदंड क्यों। आपके पास कानून हैं, संविधान हैं। आपके पास गर सबूत हैं, तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाये, कोई रोक रखा हैं क्या। अदालत में उन्हें दोषी सिद्ध करें और फिर बोले कि वो नरेन्द्र मोदी धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं, पर बिना किसी सबूत के किसी व्यक्ति को धर्मनिरपेक्ष न बताकर, उसे दोषी सिद्ध कर देना, क्या गलत नहीं हैं।
इधर मैं देख रहा हूं कि जिसकी कोई औकात नहीं, जो खुद भाजपा के वैशाखी पर सत्तासुख प्राप्त कर रहे हैं,  या जिन्होंने सत्तासुख पाया हैं। जो समय - समय पर भाजपा का सहयोग लेकर संविधान में प्रमोशन पर संशोधन के समर्थन का सहयोग लेने को लालायित भी रहते हैं, पर जब भाजपा को सहयोग करने की बात आती हैं तब उसे सांप्रदायिक कहकर, कन्नी काट लेते हैं, जैसे लगता हैं कि भाजपा अछूत हैं, उसे भारतीय राजनीति में रहने का कोई हक ही नहीं। अब तो कई पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी करने का दुकान भी खोल दिया हैं। ये समय - समय पर धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट जारी भी करते रहते हैं। जबकि सबसे बड़े सांप्रदायिक और जातिवाद तथा परिवारवाद के पोषक वहीं हैं। मुलायम की पार्टी समाजवादी पार्टी हो या लालू की पार्टी राजद अथवा मायावती की पार्टी बसपा। क्या ये पार्टियां जातिवाद का सहारा लेकर देश को तोड़ने का काम नहीं करती, क्या जातिवाद से देश को खतरा नहीं हैं। सांप्रदायिकता से देश को खतरा और जातिवाद से देश बनता हैं क्या। इस देश में तो ज्यादातर पार्टियां जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष घोषित की हुई हैं, वे खुद घोर सांप्रदायिक और जातिवाद की शिकार हैं। हाल ही में जाति आधारित जनगणना करवाकर,  इन पार्टियों ने सिद्ध कर दिया कि इनकी मानसिकता कितनी भयानक हैं और देश को तोड़ने के लिए ये कितना बड़ा षडयंत्र रच रहे हैं। 
इसमें कोई दो मत नहीं कि आज देश को नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं की जरुरत हैं, क्योंकि वो जो कहता हैं, वो करता हैं। वो जाति की राजनीति नहीं करता। वो अपने छः करोड़ गुजरातियों की बात करता हैं। वो किसी दूसरे प्रांत से आये, नागरिकों को ये कहकर नहीं दुत्कारता कि तुम बिहारी हो, अपने प्रांत लौट जाओ। आज भी गुजरात के कई शहरों में लाखों की संख्या में बिहारी रहते हैं और गुजरात के विकास में चार चांद लगा रहे हैं साथ ही अपने बिहार में रह रहे परिवारों का भरण - पोषण कर रहे हैं। जरा दिल्ली में देखिये - शीला दीक्षित बिहारियों और यूपी के लोगों के बारे में क्या बयान जारी करती हैं। ये तो कांग्रेसी हैं। इनका इस प्रकार का बिहार व यूपी के लोगों के बारे में घटिया बयान क्यों आता हैं, पर जब शोर मचता हैं तो वो अपने बयान में क्यों सुधार करती हैं। पूछिये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृश्वी राज चौहान से कि जब महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर अत्याचार होते हैं तब ये अपना मुंह क्यों सी लेते हैं। ये कुछ उदाहरण हैं। सभी को अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए। 
सब ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर गुजरात की जनता का अपमान किया हैं। साथ ही अपमान करने का सिलसिला रुका भी नहीं हैं, जारी हैं। मीडिया व देश के कुछ पार्टियों के नेता अभी भी नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक बनाने पर तूले हैं। जरुरत हैं जैसे गुजरात की जनता, गोधरा और अन्य दंगे भूलकर, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात को आगे बढ़ाने के लिए लालायित हैं। सभी मीडिया और अन्य पार्टियों के लोग अपने बयानों और कार्यो में सुधार लाये और गुजरात की जनता का अपमान करने का काम नहीं करें, क्योंकि आपको किसी ने ये अधिकार नहीं दिया कि आप बेवजह, उनका अपमान करें..............।

Wednesday, December 19, 2012

दिल्ली में दुष्कर्म, पूरा देश आंदोलित, संसद में बहस - वो रो रही थी, मंत्री जी हंस रहे थे..........................

पूरे देश ने देखा कि दिल्ली में दुष्कर्म, संसद में बहस  - वो रो रही थी, मंत्री जी हंस रहे थे। सारा देश दिल्ली में हुई गैंगरैप वाली घटना को लेकर शर्मसार हैं, आंदोलित हैं। जिनके पास चरित्र हैं, वे स्वयं को मानव कहने पर अपमानित महसूस कर रहे हैं, पर कांग्रेसियों को लज्जा नहीं आती, ये देखिये, संसद में क्या कर रहे हैं। जब राज्यसभा में दिल्ली में गैंग रैप को लेकर, समुचा सदन अवाक् था। घटना को अंजाम देनेवालों आततायियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहा था। देश के संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला मंगलवार को उस गंभीर बहस के दौरान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। जबकि इसी सदन में जया बच्चन अपनी भावनाओं को रोक नहीं पायी और उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े, हालांकि जिस पार्टी से जया बच्चन आती हैं, उनके नेता मुलायम सिंह यादव की तो बात ही निराली हैं। इनके नेता मुलायम सिंह यादव, विधानसभा चुनाव के दौरान, सिद्धार्थनगर जिले में आयोजित एक चुनावी सभा के दौरान ये कह डाला था कि हमें सत्ता में लाईये, आपको देंगे बलात्कार भत्ता। ऐसे भी हम आपको बता दें कि जैसे हर विषय पर हर पार्टियों की अलग - अलग विचारधारा होती हैं, और वे उन विचारधाराओं को मूर्तरुप देने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं। उसी प्रकार बलात्कार जैसे विषय पर भी इनकी अलग - अलग विचारधारा हैं।  संयोग से गर किसी ने इनके घर में ऐसी घटना कर डाली तो उसकी खैर नहीं, वे कानून खुद अपने हाथों में ले लेंगे, पर सामान्य जनों के लिए कानून, संविधान और पता नहीं क्या - क्या कह डालेंगे। जो उन्हें पता तक नहीं होता।
सबसे पहले कांग्रेसियों को देखिये कि इन्होंने समय - समय पर बलात्कार के बारे में क्या कहा हैं। सबसे पहले हरियाणा चलिए, जहां 2012 में इतने रेप के कांड हुए कि ये प्रदेश इसी के नाम से ज्यादा जाना जाने लगा। यहां के कांग्रेसी नेता इस कांड पर क्या - क्या बयान दिये हैं। जरा गौर करे। हरियाणा कांग्रेस के प्रवक्ता धरमवीर गोयल के अनुसार बलात्कार के लिए महिलाएं ही जिम्मेवार हैं, 90 फीसदी महिलाएं स्वेच्छा से रेप कराती हैं।
हरियाणा के ही विधायक संपत मीणा कहते हैं कि बलात्कार के लिए चाउमिन और पिज्जा जिम्मेवार हैं। कभी सोनिया गांधी ने ही हरियाणा कांड पर कहा था कि बलात्कार सिर्फ हरियाणा में ही नहीं पूरे देश में होते हैं। ऐसे में हम आपको बता दें कि कांग्रेसी सिर्फ बलात्कारियों पर ही इतनी उदारता नहीं दिखाते ये तो देश को मिट्टी में मिलानेवाली ताकतों पर भी अपनी कृपा बरसाते हैं। जैसे हाल ही में आपने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को सुना होगा कि कैसे उन्होंने सदन में हाफिज सईद को श्री लगाकर संबोधित किया। ऐसे इसी पार्टी का एक पागल नेता, जिसे दिग्विजय सिंह के नाम से जाना जाता हैं, ये ऐसी हरकतें बराबर किया करता हैं।
आप कहेंगे कि मुझे ये बात लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। मेरा कहना हैं कि जहां के राजनीतिज्ञों की सोच बलात्कार वाले मुद्दे पर एकमत नहीं हैं. जो इस प्रकार की अमानुषिक घटना को सामान्य ढंग से लेते हो। अपराधियों को सम्मान देते हो तथा गंभीर विषयों पर जब बहस हो तो उसे हंसी में उडा़ देते हो। तब ऐसी हालत में हम ऐसे राजनीतिज्ञों से ये क्यूं आशा रखे, कि ये देश में कानून का शासन स्थापित करेंगे और बलात्कार के दोषियों को सजा दिलवायेंगे। ये तो हमारी लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। हमारी संतानों को, वे पशुओं से भी बदतर समझते हैं, तभी तो सत्ता का स्वाद चख रहे, इन मंत्रियों के चेहरे पर मुस्कान दिखी, गर ऐसा नहीं होता तो फिर ये भी हमारी तरह, आंदोलित व आक्रोशित होते। साथ ही गैर - जिम्मेदारानां बयान नहीं देते।
हम आपको बता दें कि आज जरुरत हैं, हर परिवार को कि वे अपनी बेटियों को लक्ष्मीबाई बनाये। ये संभव हैं। गर आपने लक्ष्मीबाई बना दिया यानी स्वरक्षा के उपाय बता दिये तो फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो आपकी बेटी को छू भी सकें। क्योंकि सरकार और पुलिस से स्वरक्षा का विश्वास रखना मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। ये सरकार और ये पुलिस, सिर्फ और सिर्फ नेताओं और उनकी बहु-बेटियों की हिफाजत के लिए हैं। आम जनता के लिए नहीं। आम जनता तो बनी ही हैं - इन नेताओं की खुराक, जमकर, जहां होता हैं ये अपने पेट में, अपने हिसाब से खुराक डाल लेते हैं।

Wednesday, December 12, 2012

12.12.12 का चक्कर..................

12.12.12 को आना ही था, वो आ गया। अब आप इसे कैसे मनाते हैं। कैसे सेलीब्रेट करते हैं। कैसे इस दिन को यादगार बना देते हैं। ये श्रेय ईश्वर ने आपको दिया हैं, पर आप 12.12.12 को सेलीब्रेट करने के चक्कर में ईश्वर को जब चुनौती दे डालते हैं, तो ये ईश्वर को तनिक भी अच्छा नहीं लगता। आज 12.12.12 को सेलीब्रेट करने के चक्कर में लोग यहीं कर रहे हैं। कई ज्योतिषियों ने तो यहां तक कह दिया कि आज के दिन जो बच्चे जन्म लेंगे वे बहुत ही बलशाली व पराक्रमी होंगे, क्योंकि आज के दिन पांच ग्रहों का संयोग मिल रहा हैं। मंगल ग्रह का प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा और आज जन्म लेनेवाले बच्चे और दिनों की अपेक्षा कुछ बेहतर स्थिति में होंगे। इस मनगढ़ंत बेफिजूल की बातों व चर्चाओं का प्रभाव यह पड़ा या यूं कहें कि कुछ लोगों को पता नहीं क्या हो गया, वो आज ही के दिन आपरेशन करा बच्चे को जन्म दे रहे हैं और नाम दे रहे हैं कि वे मातृत्व-पितृत्व सुख पाना चाहते हैं। क्या ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देते हुए, खुद आपरेशन करा बच्चे को जन्म दिलाकर, मातृत्व-पितृत्व सुख पाना सहीं हैं। 
कुछ लोग आज ही वैवाहिक जीवन का आनन्द लेने की कामना करते हुए दाम्पत्य सूत्र में बंध रहे हैं। ऐसा करने से उन्हें लगता हैं कि उनका जीवन धन्य हो जायेगा और कुछ लोग अजीबोगरीब हरकतें कर रहे हैं, जिसे देख हमें लगता हैं कि हम पढ़े - लिखे लोगों की दुनिया में हैं, या मूर्खों की दुनिया में। अनपढ़ लोग जब ऐसी हरकतें करते हैं तो समझ में आता हैं कि वे अनपढ़ हैं, पर पढ़े लिखे लोग ऐसी हरकतें करे तो क्या कहेंगे। एक घटना सुनाता हूं, जब आपरेशन से बच्चों का जन्म नहीं होता था, तब ऐसी हालात नहीं थी, जबसे आपरेशन की धंधे ने जोर पकड़ा, ऐसी वाहियात बातों का प्रभाव ज्यादा दिखा। सच्चाई ये हैं कि बच्चे - बच्चे होते हैं। ये ईश्वरीय अनुभूतियां हैं, आप इन्हें ईश्वर पर ही छोड़ दे। उन्हें जब ईश्वर ने मुकर्रर कर दिया हैं, दुनिया में आने को। उन्हें उस दिन ही आने दे, नहीं तो इसका खामियाजा आपको ही भुगतना पड़ेगा और फिर आप जिंदगी भर अपने आपको कोसते रहेंगे कि आपने ऐसा क्यूं किया। एक उदाहरण, जो अपने जीवन में घटा हैं, वो आपके समक्ष रखता हूं। एक व्यक्ति ने एक ज्योतिष के घर जाकर कहा, ज्योतिष महोदय। डाक्टर ने कहां हैं कि आपका बच्चा आपरेशन से होगा, आप जब कहें दो तीन दिन के अंदर आपरेशन कर बच्चे को दुनिया में ले आया जाय। आप ये बताये कि कौन दिन आपरेशन कराना अच्छा रहेगा, ग्रहों की स्थिति किस दिन शुभ और अद्भुत हैं, जिस दिन बच्चे को दुनिया में ले आया जाये, और एक पंथ दो काज हो जाय। ज्योतिष ने सारे पंचांग उलटकर डेट मुकर्रर कर दी। और उक्त डेट को बच्चा दुनिया में आ गया। बच्चा जब दुनिया में आया तो फिर ज्योतिष से पंचांग दिखाने की, कुंडली बनाने की बात हुई। चूंकि जन्म के पहले ही पंचांग दिखा लिया गया था, अब केवल औपचारिकता पूरी की गयी। ज्योतिष ने कहा - अरे जजमान, गजब हो गया। आपका बच्चा होनहार, विद्वान, महापराक्रमी, बलशाली हैं, कोई इसके सामने टिकेगा ही नहीं। एकदम मस्ती में रहेगा। जब तक रहेगा, दोनों हाथों में इसके लड्डू रहेंगे। जजमान खुश। ज्योतिष को मुंहमांगी दक्षिणा देकर विदा किया गया। इधर बच्चे के ननिहाल से भी बच्चे को देखने की जिज्ञासा हुई कि ज्योतिष ने कहा हैं कि बच्चा बहुत ही पराक्रमी होगा, हम भी देखे कि मेरा नाती कैसा हैं, मेरा भांजा कैसा हैं। ननिहाल के नाना - नानी, मामा- मामी सभी व्याकुल। छोटा सा बच्चा, जब चार साल का हुआ, वो अपने ननिहाल पहुंचा। सभी खुश, दिन खुशियों से कट रहे थे। ज्योतिष की बात, कुछ सर चढ़ कर बोल रहा था। सभी ज्योतिष की बातों में फूले नहीं समा रहे थे। अचानक एक घटना घटी, चार साल का बच्चा, आकाश से आती हुई किसी चीज को देखने के लिए दौड़ा, शायद पतंग होगा। उसके पांव, खूले छत से फिसले और वो जमीन पर गिर पड़ा। उसे लोग लेकर फिर अस्पताल की और दौड़े और बच्चा दुनिया में मात्र चार साल ही टिक सका। लोग ज्योतिष को कोसने लगे, कि आपने कहा था - ऐसा होगा, वैसा होगा। लेकिन बच्चा तो चार साल में ही दुनिया से चल बसा। ज्योतिष ने कहा कि जजमान मैने गलत कहां कहा। बच्चे की चार साल की आयु थी और इन चार सालों में मैं वो पूरी तरह मस्ती काटा, मैने तो बच्चे की जन्म कुंडली देखी थी, आपकी नहीं। इसलिए आप देखे की बच्चा चार साल में ही मस्ती काटी की नहीं। बच्चे के माता - पिता के होश उड़ गये। वो ज्योतिष की बातों और उसकी इस सोच से अवाक् हो गये। 
आज जिस प्रकार से बच्चे को जन्म दिलाने  और शादी करने की होड़ 12.12.12 के चक्कर में लगी हैं। हमें लग रहा हैं कि कहीं ऐसा नहीं कि लोग इस 12.12.12 के चक्कर में अपने ही हाथों से आनेवाले भविष्य के सुखद पल का कहीं गला न घोंट दे। हम तो यहीं चाहेंगे कि लोग ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने के बजाय, ईश्वर को हाजिर-नाजिर मानकर, ये दिन भी उन्हीं को सौंप, इसका आनन्द लें, तभी हम सच्चे सुख का आनन्द ले पायेंगे, नहीं तो वहीं होगा, जो मैंने एक सच्ची घटना के माध्यम से आपके समक्ष कुछ कहने की बात रखी............

Wednesday, December 5, 2012

रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया...................

आपने एक लोकोक्ति जरुर सुनी होगी - रस्सी जल गयी पर बल नहीं गया। ये लोकोक्ति बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो तथा मसखरी मे प्रवीण लालू प्रसाद यादव पर फिट बैठती हैं। बिहार की सत्ता से बेदखल होने के बाद, मुझे लगा था कि ये सुधरेंगे। मसखरी छोड़ेंगे, थोड़ी बुद्धिमानी दिखायेंगे, पर वो कहते हैं न कि नेचर और सिंगनेचर कभी बदलते नहीं। इस कहावत को भी सही कर दिखाया हैं -- माननीय फूहड़, श्री लालू प्रसाद यादव ने। मैंने फूहड़ शब्द का प्रयोग इसलिए इनके लिए किया, क्योंकि आज ही एफडीआई पर संसद में हो रही बहस के दौरान, एक सांसद को धमकी देने के क्रम में, इन्होंने खुद ये कह डाला कि वे उक्त सांसद से ज्यादा फूहड़ हैं। क्यों नहीं लालू जी, आप फूहड़ ही नहीं बहुत कुछ हो सकते हैं। आपने तो कई कीर्तिमान बनाये हैं, बिहार में। देश में। क्या - क्या कीर्तिमान बनाये हैं, जरा आप खुद देखे।
1.  आप देश के कई युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। मेरे कई मित्र जो पत्नी भक्त हैं, उन्हें मैं बार - बार कहता हूं कि तुम क्या पत्नी भक्त होगे, जो हमारे लालू जी हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को बिहार का मुख्यमंत्री तक बना दिया, तुमने अपनी पत्नी के लिए क्या किया। इसलिए पत्नी भक्ति में आपसे बेहतर दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
2. जो लोग स्वयं को संकल्पित जीवन व्यतीत करने का दावा करते हैं, उन्हें मैं तो आपका ही प्रमाण देता हूं कि लालू जी जो कहते हैं, वो करते भी हैं, जैसे उन्होंने कहा था कि बिहार उनके जीवित रहते कभी बंट ही नहीं सकता, उनकी लाश पर बनेगा झारखंड। पर जैसे ही आपकी कुर्सी हिलने को दिखी, और बिहार की जनता ने थोड़ी सीट आपकी झोली में कम कर दी,  आपने झारखंड बनवा दिया और बिहार का नक्शा, इतना छोटा हो गया कि हम क्या कहें। ये श्रेय भी, मैं आपको देना चाहता हूं।
3. जब आप सत्ता में थे, तो आपकी कृपा से, आपका अनुग्रह पाकर आपके पशु भी, विभिन्न प्रकार के शो में, प्रथम हो जाया करते थे। चाहे वो डॉग शो हो या हार्स शो।
4. बिहार में लाख आप नीतीश को गाली दे, पर इतना तो नीतीश ने जरुर किया कि कम से कम बिहार की जनता उनके ससुराल और उनके शालों को तो नहीं ही जानती, जैसा कि आप के ससुराल के बारे में जानती हैं।
5. आप जिस संसदीय दल में शामिल होकर पाकिस्तान गये थे, और पाकिस्तान के बाजार में आलू का मॉडल देख रहे थे, वहीं पाकिस्तान और वहां की जनता, नीतीश के शासन की तुलना आपके शासन की तुलना से कर, नीतीश को बेहतर शासक के रुप में प्रोजेक्ट कर रही हैं, जबकि आप की थू - थू हो रही हैं, ज्यादा जानकारी के लिए, आपसे संबंधित रिपोर्ट यूट्यूब पर भरी पड़ी हैं, पाकिस्तान के किसी भी चैनल के टीवी समाचार रिपोर्ट को आप देख लें अथवा पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की बिहार पर इंटरव्यू देख लें।
6. कल तक जिस मीडिया को आप कोसते नहीं थकते थे, सुनने में आ रहा हैं कि मीडिया के भाईयों और मीडिया के मालिकों को धन देकर, आप अपनी सभा की सीधी लाईभ शो करवा रहे हैं, और कुछ प्रिंट मीडिया के लोगों को उपकृत कर, अपनी तारीफ के पूल बंधवाने का कार्य आपने प्रारंभ किया हैं।
ये कुछ उदाहरण हैं, जो मैंने आपकी तारीफ में लिखे हैं। ऐसे भी आपने जो जातिवाद का बीज बिहार में बोया हैं, वो कभी मिट ही नहीं सकता। आज आप जो नकली ब्राह्मण प्रेम दिखा रहे हैं। आपने ब्राह्मणों को कितनी गालियां दी हैं, वो पटना जंक्शन पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु की प्रतिमा ही बतायेगी। जब आप एक सशक्त नेता बिहार के गिने जाते थे, तब आपने, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की प्रतिमा पर उनके जन्मदिन के दिन माल्यार्पण करना, अपनी शान के खिलाफ समझा था और आज सोनिया व राहुल की गणेश परिक्रमा बारंबार करने के बाद, बिहार की गलियों में घूम घूमकर ब्राह्मणों का आशीर्वाद मांग रहे हैं। मैं बिहार का ही रहनेवाला हूं। आपने किस प्रकार से बिहार के विकास में अहम योगदान देनेवाले लोगों व जातियों का आपने शासनकाल में अपमान किया हैं, वो मुझसे बेहतर कौन जान सकता हैं। आपने अपने शासन के दंभ में, कितने लोगों को सताया हैं, अपमानित किया हैं, केवल इसका पश्चाताप कर लें, तो बिहार की जनता आपको माफ कर दें, पर आपको पश्चाताप करना भी नहीं आता। आप तो स्वयंभू मसखरे हैं, आपको मसखरी करने से फूर्सत कहा हैं। मसखरी के चक्कर में आपने आज एफडीआई पर हो रही विशेष बहस के दौरान संसद में वो कह डाला, जिससे बिहार की जनता की बदनामी हो गयी। आपने भाजपा को जमूरा बता दिया, जबकि सबसे बड़ा जमूरा तो आप ही हैं। ये अलग बात है कि आपने भाजपा से इसके लिए माफी मांग ली। प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संसद में आप पर ठीक ही टिप्पणी की -- आपको गाठें खोलना नहीं आता और मसखरी के अलावा कुछ बोलना नहीं आता। आप संसद में कहते हैं कि गर गलत हुआ तो राजद के लोग सारे दुकानों में आग लगा देंगे। आपको आग लगाने का मौका भी ये एफडीआई देगा, अरे आपने अपने ही चिराग से देश के कई घरों में आग लगा दी। आपको क्या पता कि एफडीआई से देश को क्या नुकसान होने जा रहा हैं। आप को तो सिर्फ सीबीआई की चिंता सता रही हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि अभी सत्ता कांग्रेस के हाथों में हैं, और सीबीआई की चाबी केन्द्र सरकार के हाथों में है। आप चारा घोटाले में बुरी तरह फंसे हैं। इसलिये सोनिया -  राहुल की परिक्रमा करने के सिवा आपके पास दूसरा कोई चारा नहीं हैं। बस इनकी परिक्रमा करते रहिए, समय - समय पर मसखरी कर, इनका दिल बहलाते रहिए, देश भाड़ में जाय, आपको क्या मतलब। आपको और आपके परिवार को बस समय - समय पर सत्ता का रसास्वादन करने का मौका मिल जाय, बस इतना ही आपके लिए काफी हैं। ऐसे भी बिहार में आपने जातीयता का ऐसा बीज बोया हैं कि उसका फायदा, देर सबेर आप जब तक जीवित रहेंगे आपको छोड़ दूसरे को थोड़े ही मिलने जा रहा। जातीयता के घोड़े पर सवार होकर, जमकर बिहार व देश को बर्बाद करते रहिए, आम जनता को धोखा देते रहिए। इससे ज्यादा यहां की जनता को आपसे आशा भी नहीं हैं।

Sunday, December 2, 2012

ए गोपाल भैया, हमरा डर लागता, पहुंचा द...................................

ये उस वक्त की बात हैं, जब मेरी उम्र करीब छः - सात साल रही होगी। मां - बाबुजी प्रतिदिन रात के वक्त जब हम सोने जाते, तो एक से एक कहानियां सुनाते। वो कहानी निरंतर, मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करती। आज भी, जब मैं एकांत में होता हूं, तो उनकी यादें अनायास, आती रहती हैं, साथ ही जीने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जीवन कैसा हो, किसके लिए हो, ये भी सहज भाव से बता जाया करती हैं। एक बार जब मुझे किसी बात को लेकर बहुत डर लगा, तो मेरी मां ने मुझे समझाया कि भगवान तो सभी जगह हैं, वो हमेशा हमारी सहायता को तत्पर रहते हैं, तो फिर डर किस बात का। बस करना सिर्फ इतना हैं, कि उस प्रभु को हमेशा याद रखना हैं। 
प्रभु को याद रखना हैं, ये कहते हुए, मेरी मां ने मुझे एक कहानी सुनाया जो आज भी मुझे प्रेरित करती हैं। चूंकि मां ग्रामीण परिवेश से थी, तो उसकी बातों में ग्रामीण भाषाओं और शब्दों के भाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ते। मां कहानियां सुनाती और कहानी सुनने के क्रम में, मैं हुंकारी भरे जाता। इधर मां कहानी सुनाने के क्रम में बड़े ही सहज भाव से मेरे सर पर हाथ फिराया करती, तथा मेरे बालों में अपनी उँगलिया फिराया करती। मां का कहानी कहना और हाथों की जादूई स्पर्श, हमें स्वर्ग का आनन्द करा दिया करती। मैं भी उस वक्त रात की प्रतीक्षा करता और खुब ध्यान से मां के द्वारा कही गयी कहानियों को अपने हृदय में भरा करता। 
जाड़े की सर्द भरी रात, जमीन पर रखे धान के पुआल पर बिछे फटे चीटे खेंदरे, मां के जादूई स्पर्शवाले हाथों की थाप और मां के मुख से निकली कहानियों के बीच कब नींद आ जाती, हमें पता ही नहीं चलता। सुबह हुई, लीजिए, फटी - पुरानी धोती की गांथी बन गयी और उन गांथियों में ठंड महाराज, हमें हरा दें, ऐसा ठंड महराज का मजाल नहीं। भाई गांथी तो गांथी हैं। इसका जवाब कभी भी, आज के हजारों - लाखों रुपये के गर्म कपड़े नहीं दे सकते, ये तो गंवई पोशाक हैं, जो बिहार के आज भी सुदूरवर्ती इलाकों में, ठेठ गांव में देखने को मिल जायेगा।
लीजिए, हमारी यहीं सबसे बड़ी दिक्कत हैं, हम आपको चले थे कहानी सुनाने और लिख रहे हैं पोशाक वृतांत, ये तो बड़ा ही गड़बड़झाला हैं। तो लीजिए आप भी सुनिये, जो मैने अपनी मां से सुना, वो भी छः - सात साल की उम्र में, शायद आपको अच्छा लगे। मां ने कहना शुरु किया कि बहुत पहले, मेरे जैसा ही एक छोटा सा बालक, जिसका नाम श्याम था। वो अपनी मां के साथ रहा करता था। मां उसकी बहुत गरीब थी, पर उसका श्याम पढ़ लिखकर एक चरित्रवान नागरिक बने, ऐसा सोचा करती। एक दिन, उसने पास के ही एक गांव के स्कूल में श्याम का नाम लिखवा दिया, पर दिकक्त ये थी कि स्कूल जाने से लेकर आने तक में घने जंगल का रास्ता पार करना, श्याम के लिए खतरे से खाली नहीं था। एक दिन उसने अपनी मां से कहा कि मां, मुझे स्कूल जाने में डर लगता हैं। तभी उसकी मां ने कहां कि बेटा जहां भी डर लगे, तुम अपने बड़े भैया, गोपाल भैया को पुकारना। वो आयेंगे और तुम्हें घर से स्कूल और स्कूल से घर तक पहुंचा देंगे। फिर क्या था। श्याम की सारी परेशानी दूर होती दिखाई दी। जब वो घर से स्कूल जा रहा था, तभी जंगल के रास्ते में उसे डर सताने लगी, उसने बड़े ही दर्द भरी आवाज से गोपाल भैया को आवाज दी। श्याम ने कहा -- ऐ गोपाल भैया हमरा डर लागता पहुंचा द....। फिर क्या था गोपाल भैया आये और श्याम की छोटी सी अंगूली को पकड़, स्कूल तक पहुंचा दिया। जब स्कूल से वह घर लौटने लगा तब फिर उसने आवाज दी- ऐ गोपाल भइया हमरा डर लागता पहुंचा द....। पुनः गोपाल भैया आये और श्याम को स्कूल से घर तक पहुंचा दिया। इसी प्रकार से ये रोज का क्रम बन गया। श्याम की गोपाल भैया से दोस्ती हो गयी, गोपाल भैया रोज श्याम के साथ घुलमिलकर स्कूल और घर तक पहुंचाने का कार्य करने लगे। 
एक दिन स्कुल में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाने का कार्यक्रम रखा गया। स्कूल के प्राचार्य ने सभी बच्चों को अपने अपने घर से दुध लाने का आदेश दिया। सभी बच्चे ने दुध लाने की हामी भरी। दुध से खीर बनाया जाना था, और फिर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाना था, क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव जो था। श्याम ने अपनी मां से दूध की मांग कर दी। बेचारी श्याम की गरीब मां, दुध कहां से लाती, उसके पास तो एक पैसे तक नहीं थे। वो क्या करती। उसने सहज भाव से कह दिया कि श्याम, तुम अपने गोपाल भैया से क्यों नहीं दूध मांग लेते। श्याम ने कहां - ठीक हैं मां ,मैं गोपाल भइया से ही दूध मांग लूंगा। इधर श्याम जैसे ही घर से स्कूल के लिए निकला। उसने गोपाल भैया से दूध की मांग कर दी। गोपाल भैया ने एक छोटी सी लुटिया में दूध की व्यवस्था कर दी। जब श्याम छोटी सी लुटिया में दूध लेकर पहुंचा तो देखा की सभी बच्चे बड़े बड़े पात्रों में दूध लेकर आये थे। स्कूल के शिक्षक, बड़े बड़े पात्रो में लाये गये दूध की अच्छी व्यवस्था कर रहे थे, ताकि वे सारे दूध जल्द से जल्द सुरक्षित रख लिये जाये, पर बेचारे श्याम के पास तो छोटी सी लुटिया हैं, उसकी ओर तो शिक्षक देख ही नहीं रहे। उसने बड़ी ही विनम्रता से शिक्षक से दूध लेने के लिए विनती की। फिर भी शिक्षक ने श्याम की बातों पर ध्यान देना जरुरी नहीं समझा। शायद उन्हें लगा हो कि छोटी सी लुटिया की दूध से कही अच्छा है कि बड़े पात्रों के दूध को जल्द से जल्द रख लिया जाय। शिक्षक द्वारा श्याम की बात को बार - बार अनसूनी कर देने तथा श्याम द्वारा बार - बार अनुरोध किये जाने पर, शिक्षक क्रुद्ध हो, झल्ला उठे। लाओ - अपनी लूटिया, देखते है कितना दूध हैं। शिक्षक ने लूटिया से अपने पात्र में दूध डालना शुरु किया।
ये क्या -- प्रभु की कृपा। लुटिया की दूध तो समाप्त ही नहीं हो रही। सारे के सारे पात्र दूध से भर गये। शिक्षक हैरान, सारे बच्चे हैरान, ये कैसे हो सकता हैं। बात स्कूल के प्राचार्य तक पहुंच गयी। प्राचार्य ने श्याम को बुलाया कि श्याम ये छोटी सी अद्भुत दूध से भरी लुटिया किसने दी। श्याम ने बड़े ही आदर से प्राचार्य को कहा कि गुरुजी ये हमारे गोपाल भैया ने दिया हैं। प्राचार्य ने कहां कि तुम मुझे अपने गोपाल भैया से मिला सकते हो। श्याम ने कहां - क्यों नहीं गुरुजी, वो मेरे साथ हमेशा घर से स्कूल और स्कूल से घर आया जाया करते हैं। प्राचार्य ने कहा कि आज हम तुम्हारे साथ घर चलेंगे। श्याम ने कहा कि क्यों नहीं गुरुजी। आज आप जरुर चले। मेरे गोपाल भैया बहुत ही सुंदर और बहुत ही अच्छे हैं। श्याम ने जैसे ही कहा, प्राचार्य श्याम के साथ स्कूल से श्याम के घर की ओर निकल पड़े। श्याम जैसे ही स्कूल से निकला, उसने आवाज दी - ऐ गोपाल भैया, हमरा डर लागता पहुंचा द। गोपाल भैया ने कहा कि श्याम आज तो तुम्हारे स्कूल के प्राचार्य, तुम्हारे साथ साथ चल रहे हैं, फिर भी डर लग रहा हैं। श्याम ने कहा - भैया, आप हमारे साथ चलिये, हमे बहुत ही अच्छा लगता हैं। गोपाल भैया, श्याम के निश्चल भावयुक्त बातों को सुन प्रभावित हो गये, और श्याम के साथ चल पड़े। इधर स्कूल से घर तक श्याम, अपने प्राचार्य के साथ आ चुका था, पर ये क्या प्राचार्य को, जिनकी तलाश थी, वो तो उन्हें दीखे नहीं। प्राचार्य ने श्याम से शिकायत की, कहा - श्याम तुमने तो कहा था कि तुम गोपाल भैया से मिलाओगे, पर तुमने अपने गोपाल भैया से मिलाया नहीं। श्याम ने कहा कि प्राचार्य महोदय, आपने मेरे गोपाल भैया को देखा नहीं, ये क्या गोपाल भैया, मेरे साथ खड़े हैं, बहुत ही सुंदर, हाथ में मुरली लिए, कितनी इनकी सुंदर छवि हैं, मैं देख रहा हूं, आप नहीं.......।
भगवान मुस्कुराये, शायद, भगवान की मुस्कुराहट कुछ संदेश दे रही थी, कि जो सहज हैं, सरल हैं, सहृदय हैं, उसके लिए, भगवान को तो हर समय आना पड़ता हैं, इसलिए भय कैसा। 
मेरी मां ने कहां- भगवान, सर्वत्र हैं, कोई अनाथ नहीं हैं, सभी सनाथ हैं, इसलिए डर कैसा, उन्हें पुकारो, वो तु्म्हारे साथ हैं। आज भी हमें लगता हैं कि वो तो हमारे साथ हैं। कभी वो अलग, हमसे हुए ही नहीं।