आजाद सिपाही समाचार पत्र को दिल से सलाम...
जिसने यहां के बड़े-बड़े अखबारों और चैनलों की चूलें हिला दी...
जिसने एक ताकतवर नेता वर्तमान में विरोधी दल के नेता हेमंत की नींव हिला दी...
आखिर आज के अखबार में क्या है? आजाद सिपाही ने क्या कर डाला? कि हमें यह लिखना पड़ गया...
आजाद सिपाही ने प्रथम पृष्ठ पर एक लीड स्टोरी छापी है कि
“हितैषी बन कर आये थे हेमंत सोरेन, कर दिया बर्बाद – राजू उरांव”
“रुपये 10 करोड़ की जमीन ले ली मात्र रुपये 20 लाख में”
“करोड़ों की जमीन के मालिक राजू उरांव का परिवार दाने दाने को मोहताज”
“सदमें में राजू उरांव, जमीन पर सोये-सोये देखते रहते हैं आलीशान बिल्डिंग को”
“झारखण्ड आंदोलन के सिपाही थे राजू के दादा”
ऐसे है – झारखण्ड आंदोलन से उभरे नेता, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन। शिबू सोरेन वहीं है, जिन्होंने रिश्वत लेकर, कभी नरसिम्हाराव की सरकार बचायी थी। आज उनके बेटे अपने ही आंदोलनकारियों की जमीन पर नजर गड़ाये है, और उनकी जमीन को कौड़ियों के भाव खरीद कर, अपने सपनों को पूरा करते है और दूसरों के सपनों को इस प्रकार रौंद डालते है कि वह व्यक्ति या उसका परिवार कभी ठीक से खड़ा ही न हो सकें।
हम आपको बता दें कि इस कार्य में यहां के बड़े-बड़े माफिया पत्रकार भी शामिल है, जो ऐसे नेताओं का महिमामंडन करते और इसके बदले में उनसे उपकृत होते है। ऐसा नहीं कि इस घटना की जानकारी राज्य के स्वयं को प्रतिष्ठित कहनेवाले बड़े-बड़े मीडिया हाउसों को नहीं थी, उन्हें सब जानकारी थी, पर इन्होंने छापने का साहस नहीं किया, क्योंकि उन्हें इनसे उपकृत जो होना था।
फिलहाल राज्य में सीएनटी-एसपीटी की राजनीति चल रही है, इस राजनीति में मीडिया हाउस के लोग भी शामिल है, जो दूल्हों के भी चाची है और दूल्हिनियों के भी चाची है, पर मौके की तलाश में है कि किस तरफ ऊंट बैठे, ताकि अपनी सुविधानुसार जिस तरफ भी ऊंट बैठे, उस तरफ झक-झूमर गाने के लिए वे बैठ जाये, पर इसके उलट आजाद सिपाही ने बताया कि आखिर कौन लोग है, जो आदिवासियों के सपनों को तोड़ रहे हैं? वे कौन लोग है, जो सीएनटी-एसपीटी में हो रहे संशोधन के खिलाफ आग उगलते है, पर अपने ही भाइयों की जमीन को कौड़ियों के भाव हथिया लेते है? आज आजाद सिपाही ने ये आइना दिखाया है। ऐसा नहीं कि सीएनटी-एसपीटी पर कोई पहला संशोधन होने जा रहा था, ऐसा अब तक 26 बार हो चुका, स्वयं एक-दो बार तो शिबू सोरेन की उपस्थिति में बिहार विधानसभा में संशोधन हुआ, पर उस वक्त न तो इनके बयान आते थे, और न ही आंदोलन की धमकी सुनाई पड़ती, पर आजकल तो इनका ऐसा आंदोलन चल रहा था, जैसे लग रहा था कि इन्होंने झारखण्ड को बंधक बना लिया हो...पर जनता आज सब जान चुकी है।
मैं दावे के साथ कहता हूं कि राज्य में जितने भी चैनल है, वे सब अब पेड न्यूज के अंतर्गत समाचार प्रसारित करते है, यहीं हाल अखबारों का है, किसी को जनसरोकार से मतलब नहीं। सभी झकझूमर गाते है...जब जैसा, तब तैसा।
मेरा मानना है कि पेट के लिए अगर कोई झकझूमर गाता है तो जायज है, पर पेट से नीचे के लिए झकझूमर गाता है तो सर्वथा अनुचित है। कई अखबारों के प्रधान संपादकों से लेकर सामान्य संपादकों तक को देखता हूं कि किसी भी चिरकूट टाइप के नेता की फोन आयी नहीं कि वे झकझूमर गाने लगते है, जिस राज्य में ऐसे-ऐसे संपादक होंगे, उस राज्य की क्या हालत होगी? समझा जा सकता है...
मैं तो एक – दो चैनलों के संवाददाताओं को देख रहा हूं कि वे आइएएस-आइपीएस अधिकारियों और चिरकूट टाइप के नेताओं के आगे झकझूमर गाते है और जनसरोकार से जुड़ी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते, इसका मूल कारण है कि वे अपने मालिकों और संपादकों को ये संकल्प कर चूके होते है कि वे झारखण्ड से एक साल में दो करोड़ से पांच करोड़ का विज्ञापन दिलायेंगे, और इसके लिए वे स्वयं को पत्रकार से दलाल बनने में ज्यादा रुचि दिखा रहे है, जब ये दलाल बनेंगे तो फिर हेमंत जैसे नेताओं के चरित्रों का उजागर कैसे करेंगे? आप समझ सकते है...
एक बार फिर आजाद सिपाही, आपको दिल से सलाम, आपने सही मायनों में आज बेहतर पत्रकारिता का उदाहरण पेश किया और एक व्यक्ति की गंदी सोच और गंदी हरकतों को जनता के बीच उजागर किया। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि वह व्यक्ति आज विधानसभा में एक शब्द भी नहीं बोल पाया होगा...और न वह मीडिया बोल पायी होगी, जो इनके आगे झकझूमर गाने को बेकरार होते है...
जिसने यहां के बड़े-बड़े अखबारों और चैनलों की चूलें हिला दी...
जिसने एक ताकतवर नेता वर्तमान में विरोधी दल के नेता हेमंत की नींव हिला दी...
आखिर आज के अखबार में क्या है? आजाद सिपाही ने क्या कर डाला? कि हमें यह लिखना पड़ गया...
आजाद सिपाही ने प्रथम पृष्ठ पर एक लीड स्टोरी छापी है कि
“हितैषी बन कर आये थे हेमंत सोरेन, कर दिया बर्बाद – राजू उरांव”
“रुपये 10 करोड़ की जमीन ले ली मात्र रुपये 20 लाख में”
“करोड़ों की जमीन के मालिक राजू उरांव का परिवार दाने दाने को मोहताज”
“सदमें में राजू उरांव, जमीन पर सोये-सोये देखते रहते हैं आलीशान बिल्डिंग को”
“झारखण्ड आंदोलन के सिपाही थे राजू के दादा”
ऐसे है – झारखण्ड आंदोलन से उभरे नेता, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन। शिबू सोरेन वहीं है, जिन्होंने रिश्वत लेकर, कभी नरसिम्हाराव की सरकार बचायी थी। आज उनके बेटे अपने ही आंदोलनकारियों की जमीन पर नजर गड़ाये है, और उनकी जमीन को कौड़ियों के भाव खरीद कर, अपने सपनों को पूरा करते है और दूसरों के सपनों को इस प्रकार रौंद डालते है कि वह व्यक्ति या उसका परिवार कभी ठीक से खड़ा ही न हो सकें।
हम आपको बता दें कि इस कार्य में यहां के बड़े-बड़े माफिया पत्रकार भी शामिल है, जो ऐसे नेताओं का महिमामंडन करते और इसके बदले में उनसे उपकृत होते है। ऐसा नहीं कि इस घटना की जानकारी राज्य के स्वयं को प्रतिष्ठित कहनेवाले बड़े-बड़े मीडिया हाउसों को नहीं थी, उन्हें सब जानकारी थी, पर इन्होंने छापने का साहस नहीं किया, क्योंकि उन्हें इनसे उपकृत जो होना था।
फिलहाल राज्य में सीएनटी-एसपीटी की राजनीति चल रही है, इस राजनीति में मीडिया हाउस के लोग भी शामिल है, जो दूल्हों के भी चाची है और दूल्हिनियों के भी चाची है, पर मौके की तलाश में है कि किस तरफ ऊंट बैठे, ताकि अपनी सुविधानुसार जिस तरफ भी ऊंट बैठे, उस तरफ झक-झूमर गाने के लिए वे बैठ जाये, पर इसके उलट आजाद सिपाही ने बताया कि आखिर कौन लोग है, जो आदिवासियों के सपनों को तोड़ रहे हैं? वे कौन लोग है, जो सीएनटी-एसपीटी में हो रहे संशोधन के खिलाफ आग उगलते है, पर अपने ही भाइयों की जमीन को कौड़ियों के भाव हथिया लेते है? आज आजाद सिपाही ने ये आइना दिखाया है। ऐसा नहीं कि सीएनटी-एसपीटी पर कोई पहला संशोधन होने जा रहा था, ऐसा अब तक 26 बार हो चुका, स्वयं एक-दो बार तो शिबू सोरेन की उपस्थिति में बिहार विधानसभा में संशोधन हुआ, पर उस वक्त न तो इनके बयान आते थे, और न ही आंदोलन की धमकी सुनाई पड़ती, पर आजकल तो इनका ऐसा आंदोलन चल रहा था, जैसे लग रहा था कि इन्होंने झारखण्ड को बंधक बना लिया हो...पर जनता आज सब जान चुकी है।
मैं दावे के साथ कहता हूं कि राज्य में जितने भी चैनल है, वे सब अब पेड न्यूज के अंतर्गत समाचार प्रसारित करते है, यहीं हाल अखबारों का है, किसी को जनसरोकार से मतलब नहीं। सभी झकझूमर गाते है...जब जैसा, तब तैसा।
मेरा मानना है कि पेट के लिए अगर कोई झकझूमर गाता है तो जायज है, पर पेट से नीचे के लिए झकझूमर गाता है तो सर्वथा अनुचित है। कई अखबारों के प्रधान संपादकों से लेकर सामान्य संपादकों तक को देखता हूं कि किसी भी चिरकूट टाइप के नेता की फोन आयी नहीं कि वे झकझूमर गाने लगते है, जिस राज्य में ऐसे-ऐसे संपादक होंगे, उस राज्य की क्या हालत होगी? समझा जा सकता है...
मैं तो एक – दो चैनलों के संवाददाताओं को देख रहा हूं कि वे आइएएस-आइपीएस अधिकारियों और चिरकूट टाइप के नेताओं के आगे झकझूमर गाते है और जनसरोकार से जुड़ी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते, इसका मूल कारण है कि वे अपने मालिकों और संपादकों को ये संकल्प कर चूके होते है कि वे झारखण्ड से एक साल में दो करोड़ से पांच करोड़ का विज्ञापन दिलायेंगे, और इसके लिए वे स्वयं को पत्रकार से दलाल बनने में ज्यादा रुचि दिखा रहे है, जब ये दलाल बनेंगे तो फिर हेमंत जैसे नेताओं के चरित्रों का उजागर कैसे करेंगे? आप समझ सकते है...
एक बार फिर आजाद सिपाही, आपको दिल से सलाम, आपने सही मायनों में आज बेहतर पत्रकारिता का उदाहरण पेश किया और एक व्यक्ति की गंदी सोच और गंदी हरकतों को जनता के बीच उजागर किया। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि वह व्यक्ति आज विधानसभा में एक शब्द भी नहीं बोल पाया होगा...और न वह मीडिया बोल पायी होगी, जो इनके आगे झकझूमर गाने को बेकरार होते है...
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