अल कर,
बल कर,
छठ पर आर्टिकल, लिख चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर, अलबल बोल चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर रिपोर्टिंग कर चल,
टीवी पर अनाप-शनाप बक चल...
पिछले एक सप्ताह से हमारे आंख-कान दोनों पक गये...
अखबारों और टीवी चैनलों तथा गुगुल पुराणों ने छठ महापर्व की धज्जियां उड़ा दी है...
जितने अखबार, उतनी बुद्धि, जितने टीवी उतनी बक-बक
और सभी ने अपने ज्ञान से छठ की ऐसी-तैसी कर दी...
जिनको छठ के बारे में एबीसीडी नहीं मालूम
वे महाज्ञानी और महापंडित बनकर उपदेश देते नजर आये
और
जो छठ के सर्वज्ञानी है, वे अपने कमरों में बंद होकर पागलों जैसा बुदबुदाते नजर आये...
मैं पिछले एक सप्ताह से देख रहा हूं कि अखबारों और टीवी चैनलों में नये- नये चिरकुटानन्दों की फौज ने धमाल मचा रखा है...
बंदरों जैसी हरकते, गधों जैसी सोच रखे, रिपोर्टरों और अखबार व चैनल के संपादकों ने छठव्रतियों और उनके परिवारों का कीमा बना दिया है...
सच पूछिये, अगर जो नये ढंग से छठ से जुड़ना चाहते है, तो उनके लिए इन महाचिरकुटानंदों ने हर प्रकार के कुसंग से छठ का नाता जोड़ दिया है...
जबकि पूर्व में ऐसा नहीं था...
बच्चे अपनी मां और दादी से छठ की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को जान लेते...
कल की ही बात है...
एक अखबार और उसके बाद चैनल पर हमारी नजर गयी...
जनाब एक सज्जन, छठि मइया को भगवान भास्कर का पत्नी बता दिये...
एक ने बहन बना दिया
और एक ने क्या कह दिया, उसे खुद पता नहीं...
यहीं नहीं
आजकल वामपंथियों की एक नई फौज जो धर्म को अफीम मानती है, वह भी छठ में साम्यवाद ढुंढती नजर आयी, उन वामपंथियों को छठ के ठेकुएं और केले में कैसे साम्यवाद नजर आ गया, हमारी समझ से परे है...
चोरी से, चीटिंग से मैट्रिक, इंटर, बीए, एमए कर किसी तरह से प्रोफेसर और रीडर बने लंपटों का समूह भी छठ पर आर्टिकल लिख रहा था और उसे अखबार वाले इस कदर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे थे, जैसे लग रहा हो, कि वह महाज्ञानी हो...पर जो लोग छठ के बारे में विस्तृत जानकारी रखते है, उन्हें ये पता लगते देर नहीं लगी कि ये ढोंगी प्रोफेसर चोरी से डिग्री लेकर यहां तक पहुंचा है, जो सारी दुनियां को भरमा रहा है, और इसके माध्यम से संपादकों का समूह अपनी उल्लू सीधी कर रहा है...
यहीं हाल सारे चैनलों के रिपोर्टरों का था...
चूंकि छठ के बारे में नॉलेज तो है नहीं तो बस घिसी पिटी सवाल से फिल्मों में काम करनेवाले असरानी, जगदीप, राजेंद्रनाथ और धूमल जैसे हास्य कलाकारों का रोल अदा कर रहे थे और यहीं हाल टीवी के एंकरों का था...
इन सारी हरकतों को देख, हमें ये जानते देर नहीं लगी कि आनेवाला समय महामूर्खों चिरकूटानंदों का है...यानी जो जितना मूर्ख वो उतना ज्ञानी...जितना अल बल लिखो, उतना बड़ा साहित्यकार और पत्रकार...
पर इसके परे,
एक परिवार को भी देखा...
बुढ़ी माता...छठ कर रही थी...
उनके संग, बहुत सारी औरते थीं, जो बुढ़ी माता को सहयोग कर रही थी...
बच्चे बुढ़ी माता को आजी कहकर पुकार रहे थे...
तभी मैं रह नहीं पाया...
पूछ डाला कि आजी आप अखबार पढ़ती है, टीवी देखती है...
आजी ने कहा – ए बचवा, आग लागे अइसन पढ़ाई के
आउर आग लागे अइसन टीवी दिखाई के
अरे जब भावे नइखे, तो पूजा करके का होई...
हमरा कोई सीखवले बा...
अरे हम अपना घर में बुढ़ परनिया के देखनी और सीख गइनी...
इ तो अखबरवन और टीवीवालन सब बर्बाद करके धर देले बारन सब...
हम तो सोचतानी कि अइसने चलत रही...
त आगे चलके
भीड़ त दीखी पर छठि मइया ना दिखाई दीहे...
बल कर,
छठ पर आर्टिकल, लिख चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर, अलबल बोल चल...
अल कर,
बल कर,
छठ पर रिपोर्टिंग कर चल,
टीवी पर अनाप-शनाप बक चल...
पिछले एक सप्ताह से हमारे आंख-कान दोनों पक गये...
अखबारों और टीवी चैनलों तथा गुगुल पुराणों ने छठ महापर्व की धज्जियां उड़ा दी है...
जितने अखबार, उतनी बुद्धि, जितने टीवी उतनी बक-बक
और सभी ने अपने ज्ञान से छठ की ऐसी-तैसी कर दी...
जिनको छठ के बारे में एबीसीडी नहीं मालूम
वे महाज्ञानी और महापंडित बनकर उपदेश देते नजर आये
और
जो छठ के सर्वज्ञानी है, वे अपने कमरों में बंद होकर पागलों जैसा बुदबुदाते नजर आये...
मैं पिछले एक सप्ताह से देख रहा हूं कि अखबारों और टीवी चैनलों में नये- नये चिरकुटानन्दों की फौज ने धमाल मचा रखा है...
बंदरों जैसी हरकते, गधों जैसी सोच रखे, रिपोर्टरों और अखबार व चैनल के संपादकों ने छठव्रतियों और उनके परिवारों का कीमा बना दिया है...
सच पूछिये, अगर जो नये ढंग से छठ से जुड़ना चाहते है, तो उनके लिए इन महाचिरकुटानंदों ने हर प्रकार के कुसंग से छठ का नाता जोड़ दिया है...
जबकि पूर्व में ऐसा नहीं था...
बच्चे अपनी मां और दादी से छठ की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को जान लेते...
कल की ही बात है...
एक अखबार और उसके बाद चैनल पर हमारी नजर गयी...
जनाब एक सज्जन, छठि मइया को भगवान भास्कर का पत्नी बता दिये...
एक ने बहन बना दिया
और एक ने क्या कह दिया, उसे खुद पता नहीं...
यहीं नहीं
आजकल वामपंथियों की एक नई फौज जो धर्म को अफीम मानती है, वह भी छठ में साम्यवाद ढुंढती नजर आयी, उन वामपंथियों को छठ के ठेकुएं और केले में कैसे साम्यवाद नजर आ गया, हमारी समझ से परे है...
चोरी से, चीटिंग से मैट्रिक, इंटर, बीए, एमए कर किसी तरह से प्रोफेसर और रीडर बने लंपटों का समूह भी छठ पर आर्टिकल लिख रहा था और उसे अखबार वाले इस कदर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे थे, जैसे लग रहा हो, कि वह महाज्ञानी हो...पर जो लोग छठ के बारे में विस्तृत जानकारी रखते है, उन्हें ये पता लगते देर नहीं लगी कि ये ढोंगी प्रोफेसर चोरी से डिग्री लेकर यहां तक पहुंचा है, जो सारी दुनियां को भरमा रहा है, और इसके माध्यम से संपादकों का समूह अपनी उल्लू सीधी कर रहा है...
यहीं हाल सारे चैनलों के रिपोर्टरों का था...
चूंकि छठ के बारे में नॉलेज तो है नहीं तो बस घिसी पिटी सवाल से फिल्मों में काम करनेवाले असरानी, जगदीप, राजेंद्रनाथ और धूमल जैसे हास्य कलाकारों का रोल अदा कर रहे थे और यहीं हाल टीवी के एंकरों का था...
इन सारी हरकतों को देख, हमें ये जानते देर नहीं लगी कि आनेवाला समय महामूर्खों चिरकूटानंदों का है...यानी जो जितना मूर्ख वो उतना ज्ञानी...जितना अल बल लिखो, उतना बड़ा साहित्यकार और पत्रकार...
पर इसके परे,
एक परिवार को भी देखा...
बुढ़ी माता...छठ कर रही थी...
उनके संग, बहुत सारी औरते थीं, जो बुढ़ी माता को सहयोग कर रही थी...
बच्चे बुढ़ी माता को आजी कहकर पुकार रहे थे...
तभी मैं रह नहीं पाया...
पूछ डाला कि आजी आप अखबार पढ़ती है, टीवी देखती है...
आजी ने कहा – ए बचवा, आग लागे अइसन पढ़ाई के
आउर आग लागे अइसन टीवी दिखाई के
अरे जब भावे नइखे, तो पूजा करके का होई...
हमरा कोई सीखवले बा...
अरे हम अपना घर में बुढ़ परनिया के देखनी और सीख गइनी...
इ तो अखबरवन और टीवीवालन सब बर्बाद करके धर देले बारन सब...
हम तो सोचतानी कि अइसने चलत रही...
त आगे चलके
भीड़ त दीखी पर छठि मइया ना दिखाई दीहे...
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