Saturday, December 31, 2016

नेकी कर दुनिया को दिखा............

पहले हमने पढ़ा था, सुना था, मेरे घर के बुढ़े-बुजूर्ग बताया करते थे...
नेकी कर दरिया में डाल...
इस लोकोक्ति के आधार पर वे कई कहानियां सुनाया करते थे, कहानियां सुनाने के क्रम में यह भी कहा करते थे, कि ईश्वर को आत्मप्रशंसा पसंद नहीं है, पर दुनिया इतनी तेजी से बदली कि अगर स्वयं की आत्मप्रशंसा न करें तो दुनिया जानेगी भी नहीं और न रोजी-रोटी ही मिलेगी...न धंधा चलेगा।
इसलिए अब नई लोकोक्ति पेश है...
नेकी कर दुनिया को दिखा...
जब से निजीकरण और प्राइवेटाइजेशन का जमाना आया, मनुष्य संसाधन के रूप में नजर आया, बायोडाटा की मांग होने लगी, इस बायोडाटा में कैंडिडेट जमकर अपनी प्रशंसा करने लगा, ऐसी प्रशंसा जिसका सत्य से कोई नाता ही न हो, चूंकि दुनिया को दिखाना है, अपनी काबिलियत और शोहरत दिखाना है, तो ऐसा करना ही पड़ेगा...
यहीं नहीं फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप ने तो नेकी कर दुनिया को दिखा कि प्रवृत्ति को ऐसा आगे बढ़ाया, जैसे लगा कि किसी ने आग में भर चम्मच घी दे दिया हो...आग और तेज होने लगी...
हमारे कई मित्र ऐसे है कि इसका खूब जमकर सहारा लेने लगे है...
पहले तो चिरकूट नेताओं, फिल्मी नायक-नायिकाओं, बकरों-खरहों-चूहों-कुत्तों, चिलगोजों-चिरकूटों के साथ अपना फोटो खिंचवाकर, सेल्फी लेकर फोटो डाला करते थे, अब तो ये और भी इससे आगे निकल चूके है, अब वे पोस्टर बनवाते है, बैनर बनवाते है और ऐसी-ऐसी हरकते करते है कि हरकते शब्द ही शरमां जाये।
उदाहरण अनेक है...
पहला उदाहरण देखिये, एक सज्जन है, नाम लिखूंगा तो भड़क जायेंगे, उन्हें भड़काना भी नहीं है, सत्ता के करीब है, सत्ता में शामिल बड़े-बड़े लोग उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण कर रहे है। उन्होंने एक बैनर बनवाया और लगे कंबल बांटने। जब ये कंबल बांट रहे थे, तो कुछ लोगों ने उन्हें धर्मपरायण और धार्मिक व उदार व्यक्ति का खिताब दे डाला, ये खिताब दे भी क्यूं नहीं भाई, जिसका जो चेहरा दिखेगा, वहीं तो कहेगा। झट से उनके मातहत काम कर रहे एक कर्मचारी ने तीन-चार सेल्फी ली और झट से फेसबुक पर दे मारा, लगे हाथों लाइक और कमेंट्स और शेयरों की होड़ लग गयी, चूंकि बॉस नाराज न हो, इसका ख्याल रखना था, कुछ लोगों ने वाह-वाह तक कर डाला।
ऐसे मैं बता दूं कि हमने 9 साल पहले कंबल लिया था, एक कंबल तो 16 साल पुराना है, पर अंतिम बार जो 9 साल पहले कंबल खरीदा था, उसके बाद से कंबल खरीदा नहीं हूं। ऐसे भी कंबल चार –पांच महीने ही ओढ़े जाते है, वह भी जाड़े में, पर इधर देख रहा हूं कि कंबल लेनेवाले और देनेवाले दोनों की संख्या बढ़ी है, पता नहीं ये कंबल लेनेवाले कैसे कंबल ओढ़ते है, कि इनकी कंबल एक साल भी नहीं टिक पाती और दूसरे कंबल देनेवाले पता नहीं, इसमें कौन सा धर्म देखते है कि कंबल बांट चलते है, शायद शनि ग्रह शांत करने और स्वयं को उदार-दयालु दिखाने का दूसरा आसान रास्ता इसके सिवा कोई दूसरा नहीं।
नेकी कर दुनिया को दिखा का दूसरा उदाहरण देखिये...
छः-सात महीने पहले की बात है, एक बार एक कार्यक्रम में मुझे शरीक होने का मौका मिला। जनाब जो बहुत ही दयालु किस्म के आदमी स्वयं को घोषित करा चुके थे, उन्होंने उक्त कार्यक्रम में अपने एक ड्राइवर को गाड़ी की चाबी देते हुए ये ऐलान किया कि वे अपने ड्राइवर को आज गाड़ी सौप रहे हैं। मैं बहुत प्रसन्न हुआ, खड़ा होकर ताली बजाने लगा, बहुत अभिभूत हुआ कि जनाब लाखों की गाड़ी अपने ड्राइवर को दे दी, पर पता चला कि वो नई गाड़ी नहीं दे रहे, बल्कि वर्तमान में जो ड्राइवर, उनकी पुरानी गाड़ी चला रहा है, वह भी सड़ी हुई पुरानी गाड़ी, उसी को देने का ऐलान किया है। मैं आश्चर्य में पड़ गया, दुनिया में कैसे-कैसे लोग है?, पर सच्चाई यह है कि वह सड़ी हुई पुरानी गाड़ी भी उस ड्राइवर को अब तक नहीं मिली है, यानी हद हो गयी, नेकी के रास्ते में स्वयं को दिखाने का ये धोखे का प्रचलन हमें अंदर से हिलाकर रख दिया...
और अब आगे देखिये, आजकल देश में बहुत सारी सरकारें है, पंचायत से लेकर राज्य और फिर केन्द्र में, सरकार ही सरकार है, जो कहती है कि वे नेकी का काम करती है, इनलोंगों ने अपनी नेकी का काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए अनेक चिलगोजों-चिरकूट टाइप कंपनियों को करोड़ों में हायर किया है, पहले इनका काम राज्य में कार्यरत मशीनरियां किया करती थी, पर इन सरकारों का इन मशीनरियों पर विश्वास ही नहीं रहा, शायद सरकारों को लगता है कि उनके पास जो लोग है, वे सारे निकम्मे है, इसलिए वे अब अपनी नेकी के काम का प्रचार-प्रसार, दिखावा आदि के लिए चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को ये काम दे रखा है, जो इनका बेवजह प्रचार-प्रसार, अपने चिलगोजों-चिरकूटों टाइप के दिमागों से किया करती है, आश्चर्य इस बात की है, इन चिलगोजों-चिरकूट कंपनियों को कुछ नहीं आता, केवल ये गलथेथरी और तूकबंदी किया करती है, पर स्वयं को शूट-बूट-टाई से अंलकृत रखती है, जिससे सरकार में कार्यरत बहुत सारे तथाकथित अक्लमंदों को लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी ऐसे ही लोगों में भरी-पड़ी है...
यानी नेकी कर दुनिया को दिखा की प्रवृत्ति ने घर,परिवार,समाज, देश और विश्व तक को नहीं छोड़ा है। सभी इस प्रवृत्ति में सराबोर है, इससे मुक्ति का रास्ता फिलहाल नहीं दिखता, क्योंकि इसका प्रभाव भी गजब है। हाल देखिये, जो कल तक बाबा थे, अब वणिक हो चुके है। जो संत थे आज जेल की शोभा बढ़ा रहे है। जो नेता थे वे कोर्ट से चुनाव लड़ने के लिए वंचित करार दिये जा चुके है। यानी खोल कर लिख दिया भाई, समझते रहिये...

Wednesday, December 28, 2016

मेरे प्यारे बच्चों...........

मेरे प्यारे बच्चों,
तुम लोगों से मोबाइल पर बातचीत हो जाती है, तो आनन्द आ जाता है। मैं जानता हूं कि तुम विपरीत परिस्थितियों में सीमा पर तैनात हो, फिर भी हमें हंसाने और खुश रखने के लिए हंसकर-मुस्कुराकर बातें करते हो। हम जानते और महसूस करते है कि आनेवाले समय में देश की जो स्थिति है, वो बेहतर नहीं होने जा रही है, क्योंकि इस देश के 98 प्रतिशत नेता अपने देश से प्यार नहीं करते, वे तो जिनकी बातें कर राजनीति करते है, उन्हें भी धोखा देते है और सिर्फ अपनी पत्नी और प्रेमिकाओं के प्यार में डूबे होते है। ऐसे में, देश का क्या हाल होगा?, हमें समझना होगा। हम अपने प्यारे देश को इन चिरकूट नेताओं और उनके घटियास्तर के बेटे-बेटियों और उनकी पत्नियों और प्रेमिकाओं के हवाले नहीं छोड़ सकते।
मैं जानता हूं कि तुमलोग छुट्टियों के लिए संघर्ष करते हो, पर छुट्टियां नहीं मिलती, गर छुट्टियां मिलती भी है तो समय पर नहीं मिलती। कहने को सरकारें बहुत कुछ कहती है और चिरकूट टाइप के नेता कहा करते है कि सीमा पर कार्य कर रहे जवानों के लिए हम बहुत कुछ कर रहे है, पर सच्चाई हमसे नहीं छुपी है, फिर भी तुमलोग अपने देश के प्रति और अपने कार्य के प्रति ईमानदार हो, ये देखकर हमें गर्व होता है।
तुम तो जानते हो और देखे भी होगे कि यहां के लोग भी महान है, वे शहीद हो गये जवानों के बेजान शरीरों पर फूल और मालाएँ डालने के लिए भीड़ इकट्ठी कर लेते है, पर जीवित जवानों (जो सीमा पर से लौटकर अपने घर-परिवार से मिलने आ रहे होते है) उन्हें अपनी सीटों पर बैठने तक को नहीं कहते और न ही बैठने देते है, सीट रहने पर भी कई लोगों को पैर-पसार कर अनारक्षित सीटों पर हमने सोते देखा है। मैंने अपनी इन्हीं आंखों से देखा है कि कई जवान ट्रेनों में जैसे-तैसे नीचे सोकर-बैठकर पशुओं की तरह अपने घर-परिवार से मिलने जाते है। ये सूरत कभी बदलनेवाली नहीं, चाहे सरकार किसी की भी आ जाय, ये तो चरित्र और संस्कार से जुड़ा मसला है, जिसकी दवा किसी के पास नहीं।
मैं तो तुम्हें कल भी कहता था, आज भी कह रहा हूं...
योग का अर्थ है – आत्मा का परमात्मा से मिलन।
योग 4 प्रकार का होता है – कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और हठयोग।
दुनिया का सबसे बड़ा योग कर्मयोग है। भगवान कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म की प्रधानता और उसके गूढ़ रहस्य के बारे में बताया है। समय मिले तो श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ लेना। गोस्वामी तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस में लिखा है...
कर्म प्रधान विस्व करि राखा। जो जस करहिं तस फल चाखा।।
हम जो भी आज है, वो कर्म के कारण है, आगे हम जो बनेंगे, उसमें भी कर्म की ही प्रधानता रहेगी, आज जो तुम्हें मिला है, या जो तुम्हें प्राप्त हो रहा है, उसमें तुम कहीं नहीं हो, वो सब ईश्वर कर रहा है और करा रहा है...
बस तुम्हें करना क्या है? कि स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर, कर्म करते जाना है, फल की चिंता नहीं करनी है...फल तो तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा। इसके लिए उदाहरण कई है, पर मैं अपना उदाहरण तुम्हारे समक्ष रखता हूं, क्योंकि तुम मेरे बेटे हो, तुमने हमें नजदीक से देखा है, मैं तुम्हारे सामने हूं, मेरा कर्म तुम्हारे सामने है, मैं आज कहा हूं, कल कहां था, और कल कहां रहूंगा, उसका सूक्ष्म विवेचना कर लो।
एक बात और...
हम इस दुनिया में क्यों आये है?
इसे भी जानो...
क्या हम आइएएस, आइपीएस, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, अधिकारी-कर्मचारी, चिकित्सक आदि बनने आये है? उत्तर होगा – नहीं।
तो हम दुनिया में आये है किसलिये...
क्या हम भोजन करने, मल-मूत्र परित्याग करने, बच्चे पैदा करने आये है?
अगर हम ऐसा करने आये है तो ऐसा तो पशु भी करते है।
ऐसे हालात में हम पशु से कैसे भिन्न हुए?
हमें यह मालूम होना चाहिए कि हम पशु नहीं, मनुष्य है और मनुष्य का जन्म प्रारब्ध, प्रार्थना और प्रयास के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। वर्तमान में प्रारब्ध पर तुम्हारा अधिकार नहीं। आज का कर्म, कल प्रारब्ध में बदल सकता है, तुम्हारा वर्तमान में अधिकार सिर्फ प्रार्थना और प्रयास पर है, प्रतिदिन प्रार्थना करो और जो काम मिले, उसमें ईमानदारी बरतते हुए कार्य करो। मैं जानता हूं कि तुम अपने कार्यों में ईमानदारी बरतते हो, सेवा कार्य में कोई भी ढिलाई तुम बर्दाश्त नहीं करते, फिर भी पिता हूं, बताना चाहता हूं, जब तक जीवित रहूंगा, बताता रहूंगा। पिता का यह धर्म भी है। प्रार्थना के विषय में महात्मा गांधी का उल्लेख मैं करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था कि मैने ऐसी कोई प्रार्थना नहीं कि, जिस प्रार्थना को ईश्वर ने सुना नहीं हो। कमाल है महात्मा गांधी किस प्रकार की प्रार्थना करते थे कि ईश्वर ने उनकी सारी प्रार्थना को सुना। ये चिंतन का विषय है। आखिर महात्मा गांधी ने क्या कर लिया था? कि ईश्वर उनकी हर बातों को मान लेते थे। उसका सुन्दर उदाहरण है। महात्मा गांधी का सत्य से जुड़ाव। जिस दिन उन्होंने स्वयं को सत्य से जोड़ लिया, वे असाधारण हो गये। सत्य क्या है? इसका सुंदर विश्लेषण तैत्तरीयोपनिषद् में है, पर मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि सत्य ही ईश्वर है। ईश्वर को खोजना, बहुत आसान है, जब तुम सत्य पर होते हो तो जान लो कि ईश्वर के सन्निकट होते हो।
मैं जिस अवस्था में हूं, वहां तुम विश्वास नहीं करोगे, प्रतिदिन ईश्वर से मुलाकात होती है, मैं उन्हें महसूस करता हूं, मेरा सारा कार्य आसान होता चला जा रहा है। इसलिए मैं तुम सब को आशीर्वाद प्रदान कर रहा हूं, मस्ती में रहो, देश की सेवा करो, आनन्दित रहो, आनन्द न तो सरकार देती है और न अधिकारी। आनन्द तो सिर्फ ईश्वर देता है। वो कहीं भी किसी रूप में दे सकता है। मैने तो कई लोगों को भौतिक सुखों में घिरे रहने के बावजूद बिलखते देखा है, और कई को भौतिक सुखों के अभाव में भी परम आनन्द की प्राप्ति में स्वयं को आनन्दित होते हुए देखा है...
सच पूछो, तो तुमसब हमारे लिए ईश्वर का वरदान हो...
आनन्द लूटो, परम आनन्द की ओर बढ़ो...
जो हमने सिखाया है, उस मार्ग पर अडिग रहना...
मत झूकना, असत्य के आगे...
सत्य पर रहना, देश तुम्हारा, हम तुम्हारे, डर किस बात की...
वेद कहता है...
ऐ मन तू मत डर, जैसे सूर्य और चंद्र नहीं डरा करते...
ऐ मन तू मत डर, जैसे दिन और रात नहीं डरा करते...
आज कुछ ज्यादा लिख दिया हूं...वार्ता के क्रम में...
क्या करें? तुमलोग पास में रहते हो...तो खूब बाते होती है, और जब दूर हो तो फेसबुक में ही आराम से लिख देता हूं...पढ़ लो, और हमें आनन्द दे दो...
अरे अब तो मुस्कुराओं, दांत दिखाओ, देखो मैं पास में ही खड़ा हूं और तुम्हें देख रहा हूं...

Monday, December 26, 2016

2016 याद आओगे नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार के रूप में..........

2016 भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शानदार कीर्तियों के लिये विशेष रूप से जाना जायेगा। एक ने नोटबंदी कर पूरे देश में कालाधन रखनेवालों की धज्जियां उड़ा दी, तो दूसरे ने अपने राज्य में शराबबंदी कर लाखों परिवारों के घर में खुशिंया बिखेर दी। दोनों एक दूसरे के घूर विरोधी पर दोनों में एक समानता, कि देश को कुछ देना है, राज्य को कुछ देना है। कहा जाता है कि ईश्वर ने सब को कुछ करने का जज्बा दिया है, पर लाखों-करोड़ों में कोई एक होता है, जो उन जज्बा को मूर्त्तरुप में देने में कामयाब होता है। मौका तो देश की जनता ने सोनिया-राहुल को भी दिया और बिहार में लालू यादव को दिया पर इन सब ने अपने परिवारों को ही देश मान लिया, पर इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार ने देश की जनता और राज्य की जनता को ही अपना परिवार मानकर, ऐसे कार्य किये, जिस कार्य को देख पूरी मानव जाति आश्चर्यचकित है।
जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी की घोषणा की थी, तब कई लोगों ने उनके इस निर्णय की यह कहकर आलोचना की थी कि ये संभव नहीं है, क्योंकि पूर्व में भी कई राज्यों ने शराबबंदी की, पर वहां ये सफल नहीं हो सका, इस बात में सच्चाई है, आज भी कई राज्यों में शराबबंदी है, पर वहां भी शराब धड़ल्ले से बिक रहे है, यहां तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के राज्य में भी। एक हमारे परम मित्र हाल ही में चकिया (मुजफ्फरपुर) गये, और वहां के दृश्य का जो उन्होंने आंखों देखा हाल सुनाया, वो सुनकर मैं हतप्रभ हो गया। मैं जहां रहता हूं यानी दानापुर, वहां भी देखा कि कई लोग शराब पीकर मस्त नजर आये, पर जो हाल शराबबंदी के पूर्व में देखा था, वैसा नहीं दीख रहा है। मेरा मानना है कि अगर आप किसी भी चीज में 100 में 70 या 80 प्रतिशत सफलता अर्जित कर लेते हो, तो ये मान लेना चाहिए कि सफलता मिली है, क्योंकि शत प्रतिशत तो कहीं भी कुछ नहीं होता।
वहीं हाल नोटबंदी में भी, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी अभियान चलाया, कई लोगों की दुकानें बंद हो गयी। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो इसके विरोध का राष्ट्रीय नेतृत्व कर डाला, पर जनता ने उनका कितना सहयोग किया, वो स्वयं जानती है, उनका गुस्सा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर क्यों है? वह भी हम जानते है कि क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने उनके क्षेत्र में उनकी नींद उड़ा दी है। ऐसे भी उनकी सत्ता को कहीं से खतरा है, तो वह भाजपा से ही है, इसलिए वे अपने घुर-विरोधी वामपंथियों से भी नोटबंदी के खिलाफ हाथ मिलाया, पर स्थिति क्या है? वह अच्छी तरह जानती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस नोटबंदी का समर्थन पूरे देश की जनता ने किया है, जनता को लगता है कि इस नोटबंदी से देश का भला होगा। इस नोटबंदी का समर्थन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया है, यानी जो भी लोग है, जो जानते है कि काला धन से देश के विकास और सुरक्षा को खतरा है, वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस मुद्दे पर समर्थन कर रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो साफ कर दिया है कि वे काला धन चाहे नोट के रूप में हो, या सोने के रूप में या किसी भी बेनामी संपत्ति के रूप में, वे किसी को भी बख्शने नहीं जा रहे है। वे तो यह भी कहते है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने सत्ता पायी और भ्रष्टाचार को वे जड़ से उखाड़ फेंकेंगे, हांलांकि सोनिया-राहुल-लालू-ममता एंड कंपनी के लोग, जिन्होंने भ्रष्टाचार का रिकार्ड तक बना डाला है, वे इस अभियान की हवा निकालने में लगे है, पर हमें नहीं लगता कि वे इस अभियान की हवा निकाल पायेंगे, क्योंकि जब जनता साथ है, तो किसी की हिम्मत नहीं कि सत्य की हवा निकाल दें।
ये सही है, कि इस नोटबंदी अभियान से गरीबों को दिक्कतें हुई है, मैं तो कहता हूं कि गरीब दिक्कत के लिए ही तो पैदा हुआ है, उसी की दिक्कत तथा उसी की सहनशीलता से ही तो देश आगे बढ़ा है। भला कोई अमीर बताये कि सीमा पर किस अमीर या नेता का बच्चा अपना छाती खोलकर दुश्मन की गोलियों का सामना कर रहा है, अरे कोई अमीर या कोई नेता ही बता दें कि किसका बच्चा एनसीसी की परेड में भाग लेता है, ज्यादातर एनसीसी में तो गरीब का ही बच्चा भाग लेता है। गरीबों की दुहाई देनेवाले, गरीबों का ही पैसा और उसके हक को अपने तिजोरी में भर लिये, वह भी कभी उन्हें दलित बताकर, तो कभी पिछड़ा बताकर, कभी अल्पसंख्यक बताकर, और आज रोना- रो रहे है कि नोटबंदी से गरीबों को दिक्कते हो रही है, अरे जब गरीबों को कोई दिक्कत नहीं तो ये अमीर या नेता क्यों रोना रो रहे है?, हम नहीं जानते क्या? या जनता नहीं जानती, जनता सब जानती है।
2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं द्वारा ऐसी लकीर खींच दी है कि इस लकीर को छोटा करना किसी भी भारतीय नेता के वश की बात नहीं, क्योंकि ऐसी लकीर वहीं खींच पाते है, जिनके पास चरित्र होता है और ये चरित्र किसी दुकान पर नहीं बिकती, ये तो जन्मजात होता है, जो माता-पिता के द्वारा पुष्पित-विकसित होता है। सचमुच 2016 तुम जा रहे हो, पर तुम याद आओगे, नरेन्द्र मोदी और नीतीश के कीर्तियों के रूप में...

Tuesday, December 13, 2016

नोटबंदी से पत्रकारिता जगत में हाहाकार...

जी हां, नोटबंदी से पत्रकारिता जगत में हाहाकार है। संपादक से लेकर पत्रकारिता जगत में चपरासी तक कार्य करनेवालों का जीना मुहाल हो गया है। अपने आकाओं, राजनीतिज्ञों, आइएएस, आइपीएस, थानेदारों, सरकारी जन वितरण प्रणाली दुकानों से कमीशन लेनेवालों के घर में कमीशन के पैसे नहीं पहुंच रहे है। जिसके कारण इनके चेहरों से लाली समाप्त हो गयी, चूंकि डायरेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने अखबारों के माध्यम से ये गाली नहीं दे सकते, इसलिए इन्होंने इनडायरेक्ट माध्यम को चूना है। वे अपने विशेष पृष्ठों पर ऐसे-ऐसे लोगों को दिखा रहे है, जिनका इस नोटबंदी से कोई लेना – देना नहीं और न ही उनके कारोबार पर कोई असर ही पड़ रहा है, क्योंकि मैं भी भारत के रांची में ही रहता हूं और कोई टाटा-बिड़ला या अडानी-अंबानी के परिवार का सदस्य नहीं हूं, जैसे सामान्य लोग जीते है, उसी तरह मैं भी जीता हूं। मेन रोड स्थित फुटपाथ की दुकान हो या अपर बाजार की कपड़े की दुकान या पंडितजी से पतरा दिखाना हो, या नाई से बाल ही क्यूं न कटवाना हो, या जूता-पालिस ही क्यूं न कराना हो। एक वाक्य में कहें तो जूता सिलाई से लेकर चंडी पाठ तक इसी मेन रोड में होता है, कहीं हाहाकार नहीं हैं, लेकिन कुछ लोगों यानी पत्रकारों को पेट में भयंकर दर्द हो रहा है कि भाई नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके उनके पेट पर लात मारा है, क्योंकि कमीशन बंद हो चुकी है, जो इन्हें कमीशन देते थे, रुपयों में, जब उनकी सिट्ठी-पिट्ठी गुम हो गयी है, तो बेचारे को प्रतिदिन का पांच सौ और एक हजरियां कौन देगा...
जब इनके विशेष पृष्ठों से नरेन्द्र मोदी को गरियाने का काम समाप्त हो जाता है, तो वे फेसबुक का सहारा लेते हैं, और जी-भरकर नरेन्द्र मोदी को गरियाते है, तरह-तरह के नरेन्द्र पाठ करते है। एक सज्जन जो एनजीओ भी चलाते है, कभी संपादक भी रहा करते थे, वे नरेन्द्र मोदी को गरियाते – गरियाते अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी सुनाने लगते है। एक तो अखबार नहीं आंदोलन – पंचायती वाले बाबा दांत निपोरते हुए फोटो प्रोफाइल रखे हुए है, वे तो सुबह उठते और रात में सोने के पहले जब तक फेसबुक पर नरेन्द्र मोदी को गरिया नहीं ले, उनका खाना ही नहीं पचता। इसी अखबार में युवा पत्रकारों की भी टोली है, जो नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी अभियान को समर्थन करनेवालों को भक्त कहकर गरियाते है, जबकि वे स्वयं चिरकुटानंद के सहोदर भाई है।
हम भी अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध करेंगे कि इन कमीशन खानेवाले पत्रकारों और उन्हें गरियानेवाले इन पत्रकाररूपी बहुरूपियों पर वे थोड़ी कृपा करें, ताकि उनका कमीशन का धंधा बेरोकटोक चलता रहे, लेकिन फिर बात यहीं आती है कि नरेन्द्र मोदी रहे धाकड़ बैट्समैन हमें नहीं लगता कि उन्होंने जो नोटबंदी का शतक बनाने का जो बीड़ा उठाया है, उससे वे पीछे हटेंगे।
इसलिए कमीशन खानेवाले पत्रकारों और एनजीओ चलानेवाले महानुभावों से सादर अनुरोध है कि वे फिलहाल बाजार और आम जनता की ऐसी छवि प्रस्तुत न करें, बल्कि अपना चेहरा जो कमीशन के नहीं मिलने कारण बर्बाद होता दीख रहा है, उसे दिखाने की कोशिश करें, ताकि लोगों को पता चलें कि इस कमीशन के धंधे में कितने संपादक और कितने पत्रकार अब तक मालामाल हो गये...

Saturday, December 10, 2016

“लेकिन जो पापी न हो वो, पहला पत्थर मारे”

हमें हंसी आती है, जब चोर और डाकू ये कहें कि चोरी करना बहुत बुरी बात है, डकैती करने से देश और समाज का नुकसान होता है...
हमें हंसी आती है, जब चरित्रहीन लोग, सभी से आह्वान करते है कि सभी को चरित्रवान होना चाहिए...
ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आजकल पत्रकारिता की आड़ में, स्वयं को समाज में गलत ढंग से प्रतिष्ठित करनेवाले और जनता की पैसों से ऐश करनेवाले आज देश को आह्वान कर रहे है कि सूचना के अधिकार के दायरे में लाया जाये राजनीतिक दलों को...
मैं कहता हूं कि ऐसा आह्वान करनेवाले पहले स्वयं चरित्रवान बनकर, स्वयं को प्रतिष्ठित करें और उसके बाद ऐसा आह्वान करें तो उसका असर भी दिखेगा, नहीं तो वे जनता को जो मूर्ख समझने की कोशिश कर रहे है, वे भूल कर रहे है... हां इस प्रकार के आयोजन कर खुद को तसल्ली देने और बड़ा बनने का ऐहसास कराने का ढोंग करना हो तो चल सकता है...
आजकल मैं देख रहा हूं कि कुछ लोग एनजीओ खोलकर, अपनी चालाकी को महिमामंडित करने की कोशिश कर रहे है...
यानी सेमिनार-संगोष्ठियों के नाम पर होटल बुक करो-कराओ, एनजीओ के नाम पर फंडिग करो, अखबार और चैनल में न्यूज छपवाओ और प्रसारित करवाओ और जिनको कोई काम नहीं है, उनको ऐसे कामों से जोड़कर बतकुचन और झलकुटन कराओ...
और लो काम हो गया...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की कृपा पाकर कौन व्यक्ति सूचना आयुक्त बना...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की कृपा पाकर आज कौन व्यक्ति सूचना आयुक्त बना है...
अरे कौन नहीं जानता कि पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के शासन काल में कौन उनका सलाहकार सूचना आयुक्त बनने जा रहा था, जिसकी बैंड प्रभात खबर के तत्कालीन प्रधान संपादक एवं वर्तमान मे जदयू के वरिष्ठ नेता और सांसद हरिवंश ने बहुत अच्छी तरह बजा दी थी, हालांकि सांसद हरिवंश महोदय ने भी अखबारों में खुब चरित्र की बातें कर, बाद में नीतीश भक्ति में ऐसे लीन हुए कि नीतीश भक्ति में लीन होने के कारण, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें प्रसाद के रूप में राज्यसभा का सीट प्रदान किया...
कमाल है, खूब दिये जा रहे है, राजनीतिक दलों पर अंगूलियां उठा रहे है...
अरे सबसे पहले स्वयं सुधरो तब दूसरे को सुधारो...
वो फिल्म “रोटी” के गाने का वो अंतरा नहीं सुना क्या...
“पहले अपना मन साफ करो रे, फिर औरों का इंसाफ करो”
“लेकिन जो पापी न हो वो, पहला पत्थर मारे”

Thursday, December 8, 2016

प्रधानमंत्री के निर्णयों का बेवजह विरोध सहीं नहीं.........

हाहाहाहाहाहा...
सावन का महीना था...
बादल बरस रहे थे...
तभी बिजली गिरी और एक का घर ढह गया, एक व्यक्ति मर गया...तभी किसी ने चिल्लाया कि हमारा प्रकृति या भगवान से अनुरोध है कि पानी बरसाना बंद करें, क्योंकि जब भी बारिश होती है, बिजली कड़कती है, किसी का मकान ढह जाता है, कोई व्यक्ति मर जाता है, इसलिए पानी बरसना बंद हो जाना चाहिए...
हाहाहाहाहाहा...
गंगा बहती रहती है, उसमें कई लोग डूब कर मर जाते है, तभी एक ने चिल्लाया, ये गंगा क्यों बहती है?, लोग इसमें डूब कर मर जाते है, सरकार को चाहिए कि गंगा को बहने पर रोक लगा दें...
हाहाहाहाहाहाहा...
एक बार, एक पेड़ एक इंसान पर गिर गया, इंसान मर गया...तभी एक ने चिल्लाया ये पेड़ पूरी तरह से काट देने चाहिए क्योंकि बड़े - बड़े पेड़ कहीं भी गिर जाते है, जिससे जन-धन की हानि होती है...
ठीक उसी प्रकार से, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया है, तभी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस अभियान की हवा निकालने के लिए देश के मूर्धन्य नेताओं और उनके समर्थकों की फौज बेसिरपैर की बातें करने लगे है। भारत में तो देखता हूं कि एक संप्रदाय ऐसा है कि उसे नरेन्द्र मोदी की हर बात में ही गड़बड़ी लगती है, चाहे वो देशहित में ही क्यों न हो? वो नरेन्द्र मोदी की हर बात की काट निकालने को तैयार रहता है, जबकि लोकतंत्र में हर बात को कसौटी पर खड़ा रखकर बाते करनी चाहिए, पर क्या करें? हमें नरेन्द्र मोदी को गाली देनी है तो गाली देंगे। फेसबुक पर ऐसे लोगों की एक बड़ी जमात है, जो नोटबंदी की हवा निकालने के लिए बेसिरपैर की बात करते है, जबकि वहीं लोगों को देखता हूं कि भाजपा नेताओं के आगे गणेश परिक्रमा भी करते नजर आते है। उनके इस चरित्र को देख हम भी आश्चर्य करते है कि ऐसा संभव कैसे है?, पर क्या करें?, ऐसा मैं देख रहा हूं।
ठीक इसी प्रकार जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन किया पर उन्हीं के पार्टी के कुछ लोगों, खासकर काला धन रखनेवालों की टीम नरेन्द्र मोदी के इस अभियान की हवा निकालने में लगी है, यहीं नहीं उन पत्रकारों की भी नींद हराम हो गयी है, जो निरंतर पेड न्यूज में दिलचस्पी रखते हुए ब्लैक मनी इकट्ठा करते थे, इनकी भी नींद उड़ गयी है, वे भी अनाप-शनाप बोलकर नरेन्द्र मोदी को गरिया रहे है। इन सारे लोगों के लिए ममता बनर्जी और अरविंद केजरीबाल भगवान हो गये है, और आज के हालात में नीतीश कुमार की आलोचना करने से भी नहीं चूक रहे...
आजकल ये भी देख रहा हूं कि जो लोग नरेन्द्र मोदी की बातों का समर्थन करते है, उन्हें ये मोदी विरोधी भक्त कहकर गरियाते है, पर जब इन मोदी विरोधियों को जब कोई सटीक जवाब देता है, तो उनकी घिग्घी बंद हो जाती है।
मैं तो देख रहा हूं कि स्थिति ठीक उसी प्रकार की है, जब कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कम्प्यूटर क्रांति का श्रीगणेश किया था, तब उनका भी विरोध इसी प्रकार हुआ था।
मैं कहता हूं कि डिजिटल होने में जाता क्या है? हम पैसे कहां से लाते है, और कहां खर्च करते है?, इसकी जानकारी सरकार को क्यों नहीं होनी चाहिए?, हम जितना कमाते है, उतनी ही ईमानदारी से टैक्स क्यूं नहीं चुकाना चाहिए? केवल आयकर के डर से, ये सारी नौटंकियां और मोदी का विरोध कभी सहीं नहीं ठहराया जा सकता। देश को ईमानदार बनाना है, तो ऐसे एक्शन बहुत पहले लिये जाने चाहिए थे, पर देर से ही सही, किसी ने उठाया तो उसका समर्थन भी करना चाहिए।
ऐसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 50 दिन मांगा, 50 दिन देने में जाता क्या है? इतना सहा, थोड़ा और सहें, गलत होंगे तो उनका भी विरोध किया जायेगा, ऐसा थोड़े ही है कि यहां राजतंत्र है, गलत करेंगे, सत्ता से हटायेंगे और फिर एक नया जनादेश देंगे, पर थोड़ा देखे तो कि इस नोटबंदी का क्या असर होने जा रहा है, बेवजह का विरोध किसी भी प्रकार से सहीं नहीं ठहराया जा सकता...

Friday, December 2, 2016

पत्रकारिता की आड़ में इज्जत लूटना गर सीखना हो, तो कोई इनसे सीखें..........

आजकल हमारे समाज में, ये फैशन और प्रचलन हो गया है कि...
अगर कोई पुलिस है, तो उसे गुंडा मान लिया जाता है...
ये मान लिया जाता है कि वो गलती करें या न करें पर उसकी गलती जरूर होगी...
अगर पत्रकारों को पुलिस से संबंधित एक मामूली सी भी गलती मिल गयी तो लीजिये, ये देखिये उस खबर को कैसे मसालेदार बनाकर अखबारों में स्थान देते है...
पर यह भी ध्यान रखे...
ये आइपीएस अथवा वरीय पुलिसकर्मियों जिनकी धाक कुछ ज्यादा ही चलती है, जो रोबीले है, उनके खिलाफ लिखने या छापने में सबकी नानी और दादी एक साथ याद आती है, पर एक सामान्य पुलिसकर्मी, जिसकी गलती नहीं भी हो तो उससे संबंधित खबर को उसके खिलाफ कैसे समाचार पत्रों में स्थान मिलती है? उसकी एक बानगी है कल रांची के डोरंडा के एजी मोड़ पर घटी घटना, जिसको रांची से प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों ने प्रथम पृष्ठ और अंदर की पृष्ठों में स्थान देकर राई का पहाड़ बना दिया और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत का कबाड़ा बना दिया।
घटना क्या है?
तो घटना भी जान लीजिये...
रांची के एजी मोड़ पर तैनात ट्रैफिक एएसआई दिनेश ठाकुर ने बिना हेलमेट पहने वासुदेव को पकड़ा और 100 रुपये का चालान काटा। फिर क्या था? वासुदेव घर गया, अपनी पत्नी पम्मी को इस बात की जानकारी दी, पम्मी अपने साथ 30-40 लोगों का हुजूम लेकर आयी और चप्पल से एएसआई दिनेश ठाकुर की पिटाई कर दी। आश्चर्य इस बात कि भी वहां एएसआई अनिल कुमार टोप्पो, हवलदार अशोक राणा और आरक्षी उमेश उरांव मौजूद है, किसी ने भी एएसआई दिनेश ठाकुर के सम्मान की रक्षा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि इस घटना को वहां खड़ा होकर देखते रहे...
यहीं घटना आज रांची के कई अखबारों की सुर्खियां बन गयी...खूब तेल-मसाला लगाकर सभी अखबारों ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा है और एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी...
और अब इसी प्रकार का सवाल प्रभात खबर, हिन्दुस्तान और दैनिक भास्कर अखबारों से कल इसी प्रकार की घटना, उन्हीं के यहां काम करनेवाले पत्रकारों के साथ घट जाये तो क्या इसी प्रकार से वे समाचार छापेंगे...
दूसरी बात...
क्या ये सत्य नहीं कि आज भी इन अखबारों में काम करनेवाले ज्यादातर लोग कानून की धज्जियां उड़ाकर, वह भी दादागिरी के साथ बिना हेलमेट के दुपहिये वाहन चलाते है और पुलिस इनकी इस दादागिरी को नजरंदाज कर देती है, नहीं तो इनके ज्यादातर पत्रकारों के दुपहिये वाहन पुलिस थाना की शोभा बढ़ा रहे होते...
तीसरी बात...
एएसआई दिनेश ठाकुर कि सिर्फ यहीं गलती है न, कि उसने बिना हेलमेट के वाहन चला रहे वासुदेव की चालान काट दी, क्या चालान काटना अपराध है?
जब वह वासुदेव का चालान काटा था, तब उसकी पत्नी तो वहां नहीं थी, वासुदेव का घर जाकर पत्नी और अपने 30-40 लोगों को बुलाकर घटनास्थल पर लाना, ये क्या बताता है?
खुद को अखबार नहीं आंदोलन बतानेवाला अखबार प्रभात खबर तो एएसआई दिनेश ठाकुर की इज्जत लूटने में सभी अखबारों से आगे निकल गया, उसने तो दिनेश ठाकुर पर छेड़खानी करने का आरोप लगा दिया, जबकि किसी अन्य अखबार ने ऐसी बातें नहीं लिखी है...सच्चाई क्या है? ये जांच का विषय है।
कल की घटना और आज अखबारों में छपी समाचार से तो यही पता चलता है कि अब शायद ही कोई पुलिसकर्मी, किसी बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाले का चालान काटेगा, क्योंकि फिर कोई बिना हेलमेट के वाहन चलानेवाला, चालान कटने के बाद, अपनी पत्नी के साथ हुजूम लायेगा, और चालान काटनेवाले पुलिसकर्मी को अपनी पत्नी से पिटवायेगा और प्रभात खबर के रिपोर्टर को जो बोलेगा, वो रिपोर्टर छापेगा और लीजिये उक्त पुलिसकर्मी की इज्जत की दही हो गयी...
एक ओर मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य में बिना हेलमेट के दुपहियेवाहन चलाने पर प्रतिबंध लगाना चाह रहे है, वे विशेष अभियान चलाने की बात करते है, और लोगों की जान की हिफाजत करना चाह रहे है, पर यहां के लोग क्या कर रहे है? यहां की मीडिया क्या कर रही है? आपके सामने है...
क्या ऐसे में हेलमेट अभियान सफल हो पायेगा...
क्या मीडिया की जिम्मेवारी नहीं बनती...
क्या बात का बतंगड़ बनाना और किसी की इज्जत से खेलना ही पत्रकारिता है...
गर ऐसा है तो मीडिया स्वयं अपनी इज्जत का दही क्यों नहीं बनाती? क्योंकि सर्वाधिक ट्रेफिक कानून की धज्जियां तो ये मीडियावाले ही उड़ाते है...
पता नहीं, यहां के पुलिसकर्मियों को ये दिव्य ज्ञान कब आयेगा?
मैं तो कहता हूं कि जिस दिन राज्य के पुलिसकर्मी मीडियाकर्मियों की सुध लेना शुरु कर दें, उस दिन से किसी की हिम्मत नहीं कि कोई मीडिया हाउस ये कनीय पुलिसकर्मियों की इज्जत से खेल लें...
और एक बात...
ये पत्रकारिता नहीं...
ये सिर्फ और सिर्फ गुंडागर्दी है...