Tuesday, August 24, 2010

क्या हैं रक्षाबंधन.......?

रक्षाबंधन पर विशेष ------------------
रक्षाबंधन की व्यापकता तो इसके शब्दों में हैं, पर कुछ इतिहासकारों और फिल्मकारों ने इसकी व्यापकता को इतना सीमित कर दिया हैं कि ये सिर्फ भाई और बहनों का त्यौहार बन कर रह गया हैं, क्या सचमुच ये त्योहार भाई बहन का हैं या इसका संबंध मानवीय मूल्यों और राष्ट्र की रक्षा से हैं। आईये हम इसी पर आज चर्चा करते हैं ----------------------
सर्वप्रथम रक्षाबंधन की जो धार्मिक कथा हैं वो इस प्रकार हैं -----------------
भविष्य पुराण में एक प्रसंग हैं एक बार देवताओं और राक्षसों में भयंकर युद्ध हुआ, लगातार बारह वर्षों तक युद्ध करते करते देवताओं के हालत पस्त हो गये, कोई विकल्प न मिलता देख, देवताओं के गुरु वृहस्पति ने देवराज इन्द्र को अपना विचार दिया कि वे युद्ध को रोक दें, पर इन्द्राणी ने कहा कि देवगुरु देवताओं को युद्ध रोकने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि आज श्रावण पूर्णिमा हैं, इसलिए वो इस दिन देवराज इन्द्र को रक्षा सूत्र बांधेगी, जिसके प्रभाव से देवता अवश्य जीतेंगे, और देवलोक की रक्षा हो सकेगी। इस प्रकार देवराज इन्द्र की जीत हुई और देवलोक राक्षसों से सुरक्षित हो गया। ये कथा बताती हैं कि रक्षाबंधन किस भाव और किस रिश्तों का प्रतीक हैं। न तो इन्द्राणी देवराज इन्द्र की बहन थी और न देवराज इन्द्र, इन्द्राणी के भाई तो फिर इसका मकसद क्या था, मकसद केवल एक था देवलोक की रक्षा।
अब उस मंत्र की ओर ध्यान दें, जिस मंत्र को ब्राह्मण समुदाय अपने यजमानों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हुए कहते हैं।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

जिस रक्षा सूत्र से दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने राक्षसराज महाबलशाली बली की सुरक्षा प्रदान की थी, वहीं रक्षा आज तुम्हारे कलाई पर बांधा जा रहा हैं, ये रक्षासूत्र उसी भांति तुम्हारी रक्षा करें। ये मंत्र भी ये बताने के लिए काफी हैं कि ये पर्व किसका हैं, और किस भाव का प्रतीक हैं।
अब वैदिक मंत्र की ओर ध्यान दें, ये भी वहीं कह रहा हैं जो कि पूर्व के श्लोक का भावार्थ हैं -----------------------
ऊं जा बध्नन् दाक्षायणा हिरण्यंशतानीकाय सुमनस्यमानाः।
तन्म आ बध्नामि शतशारदायायुष्मांजरिदष्टर्यथासम्।।

कमाल हैं, इस महान पर्व को केवल भाई बहनों तक सीमित कर देना, इस पर्व की महानता को लघुता में प्रकट करने के समान हैं। जरा खुद बताईये जिस देश में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की पूजा शक्ति, धन और विद्या की प्राप्ति के लिए की जाती हो, वो स्त्री वर्ग अपनी रक्षा के लिए पुरुषों से रक्षा की कल्पना कैसे कर सकती हैं। जरा सोचिये, जिस देश में सावित्री अपने पति सत्यवान की प्राण रक्षा के लिए यम से लड़कर अपने पति के प्राण को वापस ले आती हो, उसे भला रक्षा की क्या जरुरत, जिस देश में सीता, रावण की बनी अशोकवाटिका में रहकर अपने सम्मान की रक्षा स्वयं कर लेती हो, जिस देश में अनुसूया अपने सतीत्व के बल पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बालक बना देती हो, जिस देश में महान वीरांगना लक्ष्मीबाई अकेले अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देती हो, भला उस वर्ग को कैसे कोई रक्षा करने का वचन दे सकता हैं, वो तो खुद बलशाली हैं, वो तो केवल हमारे मस्तक पर तिलक लगा दें और शुभाशीष दे दें तो हमारी रक्षा हो जायेगी, हम उसकी रक्षा क्या करें, अतः जरुरत हैं, रक्षाबंधन की महत्ता को समझने की।
आज देश की जो स्थिति हैं, वह अंदर और बाहर दोनों से शक्तिहीन और श्रीहीन होता चला जा रहा हैं, देश के राजनीतिज्ञ इन सबसे अलग अपनी और अपने परिवार की भलाई से कुछ अलग सोचने नहीं हो, ऐसी स्थिति में इस रक्षाबंधन के पर्व की महत्ता और बढ़ जाती हैं, कि देश की रक्षा और संप्रभुता की रक्षा कैसे की जाय, एक तरफ चीन हमारी सीमाओं को छोटा करने में लगा हैं, दूसरी ओर पाकिस्तान और जिसे हमने स्वतंत्र कराया बांगलादेश, वो हमे नीचा दिखाने पर तुला है, ऐसे हालत में हम केवल इस पर्व को भाई बहन का पर्व बनाकर, और फिल्मी गीतों में ढालकर भूला दें, तो ये मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, हमारे वेद और उपनिषद यहीं बताते हैं कि रक्षा बंधन का पर्व ये सीख देता हैं कि सोचो कि तुम अपने देश और समाज की रक्षा कैसे करोगे, आज की मौजूदा हालात में, चिंतन करों, देश तुम्हारा, समाज तुम्हारा, और तुम फिल्मी लटकों – झटकों में पड़ें हो ऐसे में ये राम और कृष्ण की भूमि का क्या होगा। क्या तुम्हें देवराज इन्द्र और दैत्यगुरु शुक्राचार्य की कथा नहीं मालूम। गर नहीं मालूम हैं तो अपने पूर्वजों की कथाओं को आज के दिन सुनों।
आज भी धार्मिक कार्यक्रमों में रक्षासूत्र बांधने का प्रचलन हैं, उसका मूल मकसद होता हैं कि आप धर्मानुसार आचरण करते हुए स्वयं की रक्षा करों, क्योंकि
वेद और उपनिषद कहते हैं कि --------------
धर्मों रक्षति रक्षितः अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता हैं, धर्म उसकी रक्षा करता हैं, इससे ज्यादा कुछ जानने की आवश्यकता नहीं। धर्म भी व्यापक हैं, उसे समुदाय में मत तौलिये। धर्म एक ही हैं, सत्य आचरण। कहा भी गया हैं – सत्य धारयति धर्मः।

3 comments:

  1. बहुत विस्‍तृत और पूर्ण आलेख .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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