Wednesday, November 11, 2015

धिक्कार, उन कलमों को...उन चैनलों को...

धिक्कार, उन कलमों को...उन चैनलों को...
जो बिहार चुनाव परिणाम का सही विश्लेषण न कर सकें...
• जीत कर भी हार गये नीतीश...
(संदर्भ – बिहार चुनाव परिणाम)
आइये हम आपको एक कहानी सुनाते है। दो बिल्लियां थी। उन्हें कहीं से एक रोटी मिली। एक रोटी के टूकड़े में अधिक हिस्से पाने को, वे आपस में लड़ पड़ी। दो बिल्लियों को आपस में लड़ता देख, कहीं से आए वानर ने कहां कि लाओ इस रोटी को, हम तुम दोनों के बीच में बराबर – बराबर बांट दें, फिर क्या था? बिल्लियों ने हामी भर दी और वह चालाक वानर इन दोनों बिल्लियों को मूर्ख बनाकर सारा रोटी हजम कर गया.........
बिहार चुनाव परिणाम के संदर्भ में बचपन में सुनी इस कहानी में, आप दो बिल्लियों में एक को जदयू और दूसरे को भाजपा के रुप में रख सकते है। हालांकि बहुत सारे लोगों को ये कहानी बिहार संदर्भ चुनाव में गले से नहीं उतरेगी। उतरना भी नहीं चाहिए, क्योंकि बहुत सारी ऐसी कहानियां है, जो गले में तब उतरती है, जब कोई घटना का बहुत बुरा अंजाम सामने आता है...क्योंकि कहानियां समझ में आ जाये और उस अनुरुप हम कार्य करें, ऐसा होता भी नहीं......
बिहार के चुनाव परिणाम बताते है कि नीतीश की लालू भक्ति की वजह से लालू यादव एक बार फिर किंग मेकर बने है और नीतीश स्वयं फिसड्डी। नीतीश जानते थे कि लालू कृपा बिना इस बार वे मुख्यमंत्री नहीं बन सकते, इसलिए उन्होंने अपने सारे अहं का त्याग कर लालू कृपा पाने के लिए वे लालू के चरणों में लोट गये...हुआ वहीं, यादवों के नेता लालू ने, कुर्मियों के नेता नीतीश को गले लगाया और कहा कि तुम चिंता क्यों करते हो?, हम यादव नेता, तुम कुर्मी के नेता और बचा मुसलमान...तो मुसलमानों का सबसे बड़ा शत्रु कौन है, तो वह हैं भाजपा....। मुसलमानों का नारा क्या होता है?...बस वहीं वोट उसी को जायेगा, जो भाजपा को हरायेगा....और जब हमारा कंबिनेशन बनेगा तो वो जायेगा कहां...उसका वोट इधर ही आयेगा....और हुआ वहीं....यादव, मुस्लिम और कुर्मी तीनों मिल गये और भाजपा धराशायी..........
सच्चाई यहीं है... इसमें कोई अरंतु-परंतु नहीं, ये अलग बात है कि नीतीश-लालू भक्ति और इन दिनों मोदी से परेशान मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग इस परिणाम के बाद लंबा-चौड़ा संपादकीय दिये जा रहा है...
हम आपको एक और कहानी सुनाते है.........
बिहार के एक मुख्यमंत्री थे – कर्पूरी ठाकुर। वो बराबर कहा करते थे। आप कितना भी विकास कर लो, बिहार में विकास के नाम पर वोट थोड़े ही पड़ता है। यहां तो सिर्फ कंबिनेशन चलता है...ये कंबिनेशन हमेशा से रहता है, ये अलग बात है कि इसका फायदा कोई – कोई, कभी – कभी उठाता है और कोई हमेशा उठाता रहता है....
नीतीश ने कम दिमाग नहीं लगाया था...वो मीडिया के महत्व को भी जानता था। इसलिए उसने प्रभात खबर के प्रधान संपादक पर डोरे डाले, पता चला कि ये तो राज्य सभा भेजने में ही गदगद हो जायेंगे, उसे राज्य सभा भेज दिया। फिर देखा कि एनडीटीवी को भी उपकृत करना चाहिए, पता चला कि रवीश का भाई चुनाव लड़ना चाहता है, नीतीश ने बहुत बड़ा त्याग किया। निरंतर जदयू की सीट रहनेवाली गोविंदगंज की सीट रवीश के भाई को थमा दी, कांग्रेस के टिकट पर रवीश का भाई लड़ा, ये अलग बात है कि वह चुनाव हार गया, पर कशिश चैनल के मालिक ने तो बेनीपुर में जदयू के टिकट पर आखिरकार झंडा बुलंद कर ही दिया। यानी नीतीश ने राजनीति के साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई और वो चीजें पाई, जिसको लेकर वो ज्यादा सक्रिय था.....
पर नीतीश को भी मालूम है कि सरकार तो उसकी बनी पर उसके क्या परिणाम निकले....कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा। याद करिये, चुनाव परिणाम के बाद का नीतीश, लालू और अशोक का संयुक्त प्रेस काँफ्रेस। जो शारीरिक विज्ञान को जानते है, उन्हें ज्यादा दिमाग लगानी नहीं पड़ेगी, जो बयानों की तकनीक को जानते है, उन्हें भी ज्यादा दिमाग लगाना नहीं पड़ेगा। नीतीश ने चुनाव परिणाम की बारीकियां समझी और उसी के अनुसार बयान दिया, ज्यादा आक्रामकता नहीं दिखाई, चेहरे पर भी जीत का भाव नहीं दिखा, एक संशय जरुर दिखा...जबकि इसके विपरीत लालू गदगद, वो सारी बाते लालू ने कहीं, जो उनके स्वभाव में है, इस प्रेस कांफ्रेस में भी, उन्होंने उनलोगों को चेता ही दिया कि जो वोट उन्हें नहीं दिये, वे संभल जाये... यानी इशारा किस ओर था, इशारों को समझने वाले जान गये है...
अब दूसरी बात..........
नीतीश से कुछ सवाल, जो उनके भक्त पत्रकार उनसे नहीं पूछ सकते या उनसे अनुप्राणित मीडिया का वर्ग, या उनके जाति के पत्रकार नहीं पूछ सकते.....
क्या नीतीश-लालू बता सकते है, कि जब उनका गठबंधन इतना ही लोकप्रिय था और जब कुर्मी, यादव और मुस्लिमों का इतना बड़ा गठजोड़ था तो फिर वे कुर्मी, यादव और मुसलमान बहुल राजधानी पटना के पटनासिटी, कुम्हरार, दीघा, बांकीपुर और दानापुर की सीट पर बुरी तरह से क्यों हार गये?
क्या नीतीश बता सकते है कि जब उनका शासन बहुत ही लोकप्रिय था तब उनकी सीटे लालू से भी कम क्यों आयी?
क्या नीतीश बता सकते है कि जब चुनाव परिणाम आ रहा था तो राजधानी पटना के व्यवसायियों और अन्य प्रबुद्ध वर्गों में भय क्यों व्याप्त हो रहा था?
क्या नीतीश बता सकते है कि उनके स्पीकर और अन्य मंत्रियों की करारी हार कैसे हो गयी?
क्या नीतीश बता सकते है कि इतनी बड़ी जीत के बाद भी, उन्हीं के द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेस में उनके चेहरे का रंग उतरा हुआ क्यों था?
क्या नीतीश दावे के साथ कह सकते है कि उन्होंने इस चुनाव में प्रधानमंत्री के खिलाफ निम्नस्तरीय शब्दों का प्रयोग नहीं किया?
क्या नीतीश दावे के साथ कह सकते है कि उन्होंने मीडिया जगत के लालची पत्रकारों और लालची मालिकों को खुश करने के लिए वे सारे हथकंडे नहीं अपनाए, जो भाजपा ने अपनाए थे?
ये सारे सवाल सिर्फ नीतीश से पूछना चाहिए, क्योंकि वे सुशासन बाबू है, लालू से तो पूछने का सवाल ही नहीं है...क्योंकि वे खुद ही बता चुके है, इस चुनाव में कि वे क्या है?
नीतीश जी, ये याद रखिये.....जब कोई जीतता है तो उसके जीत का कारण कोई नहीं पूछता, हां जो हारता है, उसके हार के कारण गिनाएं जाते है.....
मैं जानता हूं कि बहुत सारे अखबार और मीडिया हाउस में भी जातिवादी पत्रकारों और लालची पत्रकारों का समूह पैदा हुआ है, जो कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा और आज आपका गुणानवाद कर रहा है, पर इससे नुकसान किसका हो रहा है। आप ये जानकर भी अनजान है....नुकसान उन बेवकूफों का हो रहा है, जो नहीं जानते कि पिछले पच्चीस और अब आज से तीस सालों तक वे अभी सड़कों, बिजली और पानी पर ही अटके हैं जबकि अन्य राज्य इन सबसे कहीं बहुत दूर निकल चुके है.....
ये बेवकूफ बन रहे लोग नहीं जानते कि उनके बच्चे विकसित होते कई राज्यों में दोयम दर्जें के नागरिक बन कर रह रहे हैं और उनकी औकात सिर्फ कुली, पोछा लगानेवाले से ज्यादा कुछ भी नहीं...
आप में जितना अहं हैं, हमें नहीं लगता कि केन्द्र और राज्य के बीच कोई मधुर संबंध रहेगा और आप बिहार को इन परिस्थितियों में जबकि राजद आपसे बीस है, कोई राज्यहित में स्वतंत्र रुप से निर्णय ले लेंगे.....
• नीतीश भक्ति और प्रभात खबर...........
सभी जानते है कि जैसे ही बिहार चुनाव की घोषणा हुई, दिल खोलकर प्रभात खबर ने लालू यादव, नीतीश कुमार, सोनिया गांधी और उनके लाडले राहुल की भक्ति में स्वयं को अनुप्राणित करना शुरु कर दिया....ऐसा होना भी चाहिए था क्योंकि नीतीश कुमार ने बिना एक पैसे प्रभात खबर से लिये, इसके प्रधान संपादक को राज्य सभा में पहुंचा दिया था....
प्रभात खबर की भूमिका देखिये, उसकी महागठबंधन भक्ति देखिए........
उसके लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं, बस 9 नवम्बर का अखबार कहीं से उठा लीजिये और सबसे पहले प्रथम पृष्ठ पर नजर दौड़ाइये...उसने भाजपा के हार के कारण गिनाएं है, लिखा है...भाजपा के हार के प्रमुख कारण, निम्नलिखित है....
• आरक्षण पर संघ प्रमुख भागवत का बयान
• नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाना
• गोमांस को लेकर अनावश्यक बयानबाजी
• लालू को शैतान कह कर हमला करना
• नीतीश पर बिना तथ्यों के हमला करना
• प्याज, दाल की कीमतों में भारी वृद्धि
• नीतीश के मुकाबले राज्य में एनडीए के पास कोई दमदार चेहरा का न होना
• नीतीश सरकार के कामकाज के प्रति लोगों की सकारात्मक राय
यानी हार के 8 कारणों में नीतीश व लालू की भक्ति में पांच कारण जोड़ दिये गये....
यहीं नहीं प्रथम पृष्ठ पर लिख दिया लालू प्रसाद के बेटों तेज प्रताप व तेजस्वी को छोड़ कर सभी नेतापुत्रों को मिली हार, जबकि खुद पृष्ठ संख्या 13 पर शिवानंद तिवारी के बेटे को भी जीत दिखलाता है, सच्चाई क्या है? प्रभात खबर ही बेहतर बता सकता है....
इस अखबार में नीतीश के प्रशसंकों के कई आलेख भी छपे है...
पृष्ठ संख्या 13 पर प्रंजॉय गुहा ठकुराता के आलेख है – सांप्रदायिकता की राजनीति की पराजय। सवाल - ठकुराता से। 2005 व 2010 में जब नीतीश भाजपा का बांह पकड़कर सत्ता में आये थे तो उस वक्त क्या सांप्रदायिकता की राजनीति की जय हुई थी?
पृष्ठ 14 पर संपादकीय में तो नीतीश भक्ति के सिवा कुछ भी नहीं, अभिमत में रविभूषण जो वामपंथी पत्रकार है, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी है, इनके कलम से मैंने आज तक भाजपा व संघ की प्रशंसा में दो शब्द नहीं देखे तो आज कैसे देख पाउंगा...हां पत्रकार को कभी भी किसी का सदा के लिए विरोधी या सदा के लिए प्रेमी नहीं होना चाहिए...पत्रकार को तटस्थ होना चाहिए.......
पृष्ठ संख्या 15 तो भगवान नीतीश को समर्पित है...हल्की दाढ़ीवाले बाबा नीतीश का बहुत बड़ा फोटो और उनका चरित्र वर्णन है...ये आम तौर पर होता है, जब कोई सत्ता में आता है तो उसके लिए एक विशेष पेज होता है...इस पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी है.......
पृष्ठ संख्या 18 पर चरणवार भाजपा की हार का मनगढंत विश्लेषण और अजय कुमार व एमएन कर्ण का संपादकीय आधारित आलेख है, जिसमें नीतीश व लालू को भगवान का दर्जा दे दिया गया है।
और अंतिम पृष्ठ पर भाजपा व संघ का दुश्मन व जब तक जीवित रहेगा दुश्मन बना रहेगा...नाम बता देता हूं, उर्मिलेश का आलेख है। ये वहीं उर्मिलेश है, जिसे चारा घोटाला में सजायाफ्ता लालू में सामाजिक न्याय नजर आता है और नीतीश में शासन के सर्वगुण संपन्न होने के गुण...ये पत्रकार जहां भी भाजपा का विरोध हुआ देखता है, पुलकित हो जाता है, और जहां अपनी जाति के लोगों को जीत देखता हैं, प्रसन्न होकर उसकी स्तुति करता है....इन दिनों प्रभात खबर का चहेता बना हुआ है... इसके आलेख है........
यानी गर आप नीतीश के कट्टर समर्थक है, भाजपा का विरोध करना जानते है, तो हरिवंश को पकड़िये, प्रभात खबर से जूड़िये और कल तक खलनायक थे, तो नायक बन जाइये.........
अपनी बात.......
नीतीश के जीत के कारण...
एकमात्र जीत का कारण – जातिवादी लहर को फैलाना, लोगों को उनकी जाति का हवाला देना, यादववाद, कुर्मीवाद और अंत में मुस्लिमों के अंदर ये बात फैलाना कि भाजपा आई तो उनकी खैर नहीं........
भाजपा के हार के कारण.....
• जातिवाद लहर के आगे संप्रदायवाद की हवा निकल जाना।
• बेवजह असहिष्णुता का बवंडर विपक्षियों द्वारा अपने शुभचितकों, लेखकों, फिल्मकारों साहित्यकारों द्वारा खड़ा करना, ताकि मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी और हिंदूवादी बताया जाय।
• भाजपा के कई नेताओं द्वारा विषवमन करना।
• भाजपा के अंदर शत्रुघ्न सिन्हा जैसे जयचंदों का बराबर अपनी ही पार्टी के खिलाफ विषवमन करना और नीतीश व लालू का प्रशंसा करना।
• भाजपा के एक नेता साक्षी महराज द्वारा दूसरे चरण के बाद भाजपा की हार स्वीकार करनेवाले बयान को जारी करना।
• एकमात्र मोदी के भाषण पर ही ध्यान टिका कर, अन्य चुनाव प्रचारों व सशक्त जनसमर्थन जुटाने पर ध्यान का न होना।
• सामान्य वर्ग द्वारा बढ़ती महंगाई के खिलाफ गुस्सा।
• प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व में दिये गये बयान कि काला धन वापस लायेंगे, पर अभी तक उस पर कोई प्रगति का न होना, जबकि कोई भी सरकार आये, ये इतना जल्द संभव भी नहीं, पर आम जनता को लगा कि सरकार अपने इस वायदे को पूरा करने में सफल नहीं रही।
• मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग द्वारा नीतीश को खुलकर समर्थन करना और उसे बिहार की जनता के बीच एक महान शख्सियत के रुप में पेश करना, जैसे ये दीने इलाही अकबर हो।
• नीतीश द्वारा अनुप्राणित अखबार जैसे प्रभात खबर और कुछ चैनलों द्वारा खुलकर नीतीश भक्ति में डूब जाना।
चुनाव परिणाम के प्रभाव............
• अब नीतीश कुमार गर चाह लें कि वे स्वतंत्र रुप से बिहार के लिए कोई निर्णय कर लें, ये अब संभव नहीं है, उन्हें हर बात के लिए लालू की शरण में जाना होगा और लालू वहीं करेंगे, जो उनके हित में होगा।
• लालू सर्मथकों का स्थानीय प्रशासन पर बोलबाला रहेगा, गुंडों की जमात स्थानीय शासन पर हावी रहेगी और व्यापार में बिहार पिछड़ता चला जायेगा।
• ऐसे ही बिहार की नकारात्मक छवि पूरे देश में है, अब इसकी छवि और पुष्ट होगी, कोई भी उदयोग जगत का व्यक्ति यहां उद्योग लगाने से हिचकेगा, जो अब बचा भी होगा तो यहां से दूसरे जगहों पर वो सिफ्ट करेगा।
• ऐसे ही अहंकार में डूबे नीतीश को, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नहीं बनती, ऐसे में विकास को लेकर बिहार में संशय की स्थिति बनी रहेगी।
• पन्द्रह साल लालू-रावड़ी और दस साल नीतीश और अब फिर लालू-नीतीश मतलब एक बार फिर रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर बेरोजगार युवकों की फौज बिहार को छोड़ अन्य राज्यों में जाने को मजबूर होगी।
• एक बार फिर बिहार के ये युवा महाराष्ट्र, असम, कर्णाटक आदि राज्यों में दोयम दर्जें के नागरिक बन कर रहने को विवश होंगे और समय-समय पर जलील होंगे, पिटाई खायेंगे...क्या नीतीश व लालू बता सकते है कि महाराष्ट्र व गुजरात से कितने युवा बिहार में रोजगार के लिए आते है।
• एक बार फिर बिहार के लोग अच्छी स्वास्थ्य सेवा के लिए बिहार से दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर होंगे।
• एक ओर जहां आंध्र प्रदेश अपनी नई राजधानी अमरावती को बसाने के लिए ठोस प्रयास कर रहा होगा, तो बिहार की जनता अपनी जातिवाद पहचान के लिए संघर्ष करती नजर आयेगी।
• एक साल में झारखंड व्यापार सुगमता सूचकांक में भारत के प्रमुख विकसित राज्यों में तीसरा स्थान बना लिया और तेजी से बढ़ते राज्यों में चौथा स्थान प्राप्त कर लिया और बिहार सबसे नीचे रहने के लिए स्थान बनाने को व्याकुल रहेगा।
• प्रभात खबर के प्रधान संपादक एक बार फिर राज्यसभा में जाने के लिए नीतीश कुमार की द्यादृष्टि पाने के लिए लालायित रहेंगे और सामान्य जनता इस बात के लिए व्याकुल रहेगी कि उसके घर से निकली बेटियां सही सलामत घर लौटेंगी भी या नहीं।
कौन कहता है कि बिहार में विकास व सुशासन की जीत है, मैं कहता हूं कि ये पूर्णतः जातिवाद की जीत है...जैसे सांप्रदायिकता बुरी है, वैसे ही जातीयता बुरी है, पर कुछ पत्रकार, कुछ बुद्धिजीवी जातीयता का तो समर्थन करते है, पर सांप्रदायिकता की आलोचना...ठीक उसी प्रकार जैसे पाकिस्तान भारत प्रायोजित आतंकवाद का तो समर्थन करता है, पर अन्य जगहों पर होनेवाले आतंकवाद की कड़ी भर्त्सना करता है...ये दोगली सोच बिहार को बर्बाद कर डालेगी...पता नहीं, बिहार की जनता को अक्ल कब आयेगी?
हमें लगता है कि एक दिन अक्ल जरुर आयेगी...पर तब तक बहुत देर हो चुका होगा...और कुछ लोग गाने गायेंगे...सब कुछ लूटा के होश में आए तो क्या किया....

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