रघुवर की अयोध्या को सरयू से खतरा...
शत्रुघ्न सिन्हा का रोल झारखंड में सरयू अदा करने को तैयार...
झारखंड भाजपा में विभीषण बनने में सरयू अन्य नेताओं से कहीं आगे...
एक लोकोक्ति है...घर का भेदी लंका ढाहे अर्थात् घर का भेदिया ही लंका को हानि पहुंचाता है। इसको आप ऐसे भी समझिये कि बिना भेदिया के लंका ढायी नहीं जा सकती...पर झारखंड में रावण तो है नहीं, यहां तो रघुवर का दास यानी खुद को हनुमान बतानेवाले रघुवर दास का शासन है, तो फिर रघुवर की अयोध्या को खतरा किससे...। इसको अगर ऐसे समझा जाये कि सरयू में जलस्तर बढ़ेगा तो अयोध्या को बाढ़ का खतरा झेलना पड़ेगा अर्थात् झारखंड के सरयू राय की हृदय वेदना का स्तर अत्यधिक होगा, तो रघुवर दास की मुख्यमंत्री पद को झटका लग सकता है। अब तक देखने में तो यहीं आ रहा है कि रघुवर दास की सरकार में सरयू राय की वेदना का स्तर बहुत अधिक बढ़ रहा है, जो कभी-कभी सरयू के मुख से आक्रोश के रुप में प्रकट होता है और धीरे-धीरे अखबारों व चैनलों की सुर्खियां बन जाता है, जिसे बाद में बहुत ही प्रेम से सरयू राय स्वयं ही अपनी वेदना को दूसरी तरह से शांत करा देते है, ठीक उसी प्रकार जैसे अयोध्या की सरयू में बढ़े जलस्तर को सरयू स्वयं ही शांत करा देती है...
इधर नीतीश के बिहार में पुनः सत्तारुढ़ होने से भले ही नीतीश स्वयं ही उतने प्रसन्न न हो, पर बिहार के भाजपाद्रोही व मुख्यमंत्री बनने का दिवास्वप्न देखने वाले बिहारी बाबू उर्फ बोकरादी बाबू अर्थात् शत्रुघ्न सिन्हा बहुत ही प्रसन्न है। ठीक बिहारी बाबू की तरह ही, झारखंड में भी भाजपा के कई बिहारी बाबू है, जो खुद को बिहारी बाबू यहां कहलाना पसंद नहीं करते, लेकिन हैं खाटी बिहारी पर झारखंड के तकदीर बने हुए है। इन्होंने भी बिहारी बाबू की तरह झारखंड में भाजपा का गड्ढा खोदना शुरु कर दिया है...। सरयू राय बिहारी बाबू का रोल सही-सहीं निभा पायेंगे या नहीं, ये तो वक्त बतायेगा, पर वे उसी राह में है। नीतीश के प्रति उनका उमड़ा प्रेम ऐसे ही नहीं है, उनके मुख से आज तक नीतीश के खिलाफ कुछ भी नहीं निकला है, वे नीतीश भक्ति में हमेशा से लगे रहते है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार विधानसभा चुनाव के क्रम में नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ भी बोलते थे, तो सरयू राय का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुस्सा उनके चेहरे पर साफ दीख जाया करता था। नीतीश के ताजपोशी में नीतीश का खुद फोन घुमाकर, सरयू को आमंत्रण, इस बात का संकेत और प्रमाण है कि नीतीश ने भाजपा के अंदर रहकर उन विभिषणों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। जिनसे उनकी सत्ता को संजीवनी मिली। ये राजनीति ही है कि यहां कब किसकी कौन आरती उतारने लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता...। इसलिए ईमान की रोटी खानेवालों की संख्या राजनीति व राजनीतिबाजों से इतना नफरत करती है कि पूछिये मत। वो जानवरों पर तो भरोसा कर लेती है, पर राजनीतिज्ञों पर नहीं।
एक बात और। इन दिनों पढ़ने को मिला कि बोकरादी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा जो खुद को ट्वीटर के माध्यम से खुद को हाथी भी बोल चुके है। नागपुर गये थे, वे संघ के नेताओं व भाजपा के नेताओं से बातचीत करने के लिए वे उनके दरवाजा भी खटखटाएं पर किसी ने उन्हें भाव भी नहीं दिया...। यहां भी वे बड़बोलेपन में कह दिये कि गर सच कहना बगावत है तो समझो हम बागी है। जैसे लगता है कि दुनिया के सत्यवादी हरिश्चंद्र सिर्फ और सिर्फ बोकरादी बाबू है, दूसरा कोई नहीं...। हमारा सलाह होगा – बोकरादी बाबू को कि आप थोड़ा दरियादिली दिखाइये, सचमुच के हाथी बनिये और हाथी जैसी हरकत दिखाइये...। भाजपा से नाता तोड़िये और सदा के लिए तीर थाम लीजिये और उस तीर से लालटेन के सहारे, उन सब को अपनी बातों से दर्द पहुंचाइये जो आप को दर्द पहुंचाया, आपको मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया...। साथ ही नीतीश को कहिये कि देखो, नीतीश भाई हम भाजपा के बिभीषण है, तुम तो अब हमारे लिए राम बन जाओ। ठीक जैसे राम ने विभीषण को गले लगाया और लंकेश बनाया। तुम भले ही मुझे बिहार का किंग न बनाओ पर मेरी बीवी-बच्चों को तो कम से कम विधायक-सांसद व मंत्री तो बना दो। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि नीतीश, बिहारी बाबू पर कृपा दृष्टि दिखायेंगे, क्योंकि नीतीश तो भक्तवत्सल है। जब वे हरिवंश को सांसद बना सकते है, जब वे रवीश के भाई पर दयालुता दिखा सकते है तो फिर बिहारी बाबू पर क्यों नहीं...। उन्होंने तो बिहार चुनाव में भाजपा में कील ही ठोक दी...।
और इधर देखिये सरयू राय कि, जब से वे झारखंड में रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल हुए है। रघुवर दास के नाक में दम कर दिया है। हर एक महीने पर उनका ऐसा बयान आता है, जो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है। आखिर उनका गुस्सा क्यों प्रकट होता है? उसका साफ संकेत है कि वे अपने मंत्री पद से खुश नहीं है। उन्हें मलाईदार मंत्री पद चाहिए था, पर रघुवर दास ने उन्हें खाद्य आपूर्ति मंत्रालय संभालने को दे दिया। इधर एक साल होने को हुए, पर सच पूछिये तो सरयू राय ने इस मंत्रालय का कबाड़ा बना कर रख दिया है। काम-धाम कुछ नहीं और गिलास तोड़ा आठ आना वाला हिसाब है। आज एक साल होने को आये, राज्य में किसी को नया राशन कार्ड तक नहीं मिला है। गर इक्के-दुक्के को मिले भी तो उसमें इतनी अशुद्धियां है कि पूछिये मत...। अक्टूबर महीना बीत गया, नवम्बर महीना चल रहा है और अभी तक अक्टूबर के अनाज का उठाव तक नहीं हो सका है...। इस माह के करीब 52 हजार टन चावल व गेहूं का उठाव करने में राज्य का खाद्य आपूर्ति विभाग असफल रहा है। इसके उठाव के लिए भारतीय खाद्य निगम के कार्यकारी निदेशक कोलकाता से समय विस्तार की सहमति ली गयी जिसकी तय तिथि 20 नवम्बर को समाप्त हो गयी, यानी न काम करेंगे और न करने देंगे, पर बयानबाजी कर भाजपा और मुख्यमंत्री रघुवर दास का सारा काम तमाम कर देंगे। जमकर नीतीश भक्ति में लीन रहेंगे और मंत्रिमंडल की आड़ में, सरकार की आड़ में स्वहित में अन्य कामों को निबटायेंगे। क्या ये राज्य के साथ धोखाधड़ी नहीं...।
सब को कटघरे में खड़ा करनेवाले सरयू राय राज्य की जनता को बताये कि उन्हें जो विभाग मिला, उसमें उन्होंने कौन-कौन से काम किये, जिसको लेकर जनता उन्हें माथे पर बिठाएं...। रही बात मुख्यमंत्री रघुवर दास की तो ये न तो वसुंधरा राजे सिंधिया और न ही शिवराज सिंह चौहान की तरह मुख्यमंत्री है, जो ऐसे लोगों को उनकी औकात बता दें, ये तो मामूली प्रभात खबर के मामूली संपादकों के इशारे पर वे काम करते है, जिसको एक सामान्य विधायक भी तवज्जों नहीं देता...ऐसे में ये सरयू राय जैसे अशांत मंत्रियों को शांत करा देंगे, हमें नहीं लगता...। एक साल होने को आये, सच पूछिये तो राज्य का कोई भी ऐसा मंत्री नहीं, जो ये दावे के साथ ये कह सकता है कि उसने राज्य की जनता के हित में ये कार्य किये है, उसे इसके लिए शाबाशी मिलनी चाहिए...पर हम इतना जरुर कह सकते है कि इन मंत्रियों ने ऐसी-ऐसी हरकतें जरुर की जो जग हँसाई का कारण भी बन गयी...
भाजपा में ही रहकर, भाजपा से अपने तन का वजन बढ़ानेवाले ये नेता, अपनी मातृसंगठन संघ के प्रति भी वफादार नहीं है, तो ये समाज और देश के लिए कितने वफादार होंगे, समझा जा सकता है...ये तो सत्ता में आते ही, अपने चारणों व अपने अनुचरों पर दया लुटाने में लीन हो जाते है, इन्हें देश व राज्य से क्या मतलब...। जरा नजर दौड़ाईये...झारखंड सरकार की हरकतों पर पता लग जायेगा कि जो लोग इनकी आरती उतार रहे है, वे बम बम हो रहे है, और जो इन्हें आइना दिखा रहा है, उसे ये फूंटी आंखों नहीं देख रहे, वे तो उसे ठिकाने लगाने में भी देर नहीं कर रहे...
और रही बात हमारी...तो मैं उन्हें बता दूं...
कबीर का हूं, कबीर ही रहूंगा...
कबीरा खड़ा बाजार में लिये लुआठी हाथ। जो घर जारे आपना चले हमारे साथ।।
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर। ना काहुं से दोस्ती ना काहु से वैर।।
हमें राज्यसभा या लोकसभा में नहीं जाना और न ही किसी नेता मंत्री का चरणोदक पीना है, जो नेताओं व मंत्रियों का चरणोदक पीना चाहते हैं, पीते रहे और नीतीश या किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री जैसे लोगों या अन्य नेताओं के चरणोदक पीकर कृतार्थ होते रहे...हमें क्या?
शत्रुघ्न सिन्हा का रोल झारखंड में सरयू अदा करने को तैयार...
झारखंड भाजपा में विभीषण बनने में सरयू अन्य नेताओं से कहीं आगे...
एक लोकोक्ति है...घर का भेदी लंका ढाहे अर्थात् घर का भेदिया ही लंका को हानि पहुंचाता है। इसको आप ऐसे भी समझिये कि बिना भेदिया के लंका ढायी नहीं जा सकती...पर झारखंड में रावण तो है नहीं, यहां तो रघुवर का दास यानी खुद को हनुमान बतानेवाले रघुवर दास का शासन है, तो फिर रघुवर की अयोध्या को खतरा किससे...। इसको अगर ऐसे समझा जाये कि सरयू में जलस्तर बढ़ेगा तो अयोध्या को बाढ़ का खतरा झेलना पड़ेगा अर्थात् झारखंड के सरयू राय की हृदय वेदना का स्तर अत्यधिक होगा, तो रघुवर दास की मुख्यमंत्री पद को झटका लग सकता है। अब तक देखने में तो यहीं आ रहा है कि रघुवर दास की सरकार में सरयू राय की वेदना का स्तर बहुत अधिक बढ़ रहा है, जो कभी-कभी सरयू के मुख से आक्रोश के रुप में प्रकट होता है और धीरे-धीरे अखबारों व चैनलों की सुर्खियां बन जाता है, जिसे बाद में बहुत ही प्रेम से सरयू राय स्वयं ही अपनी वेदना को दूसरी तरह से शांत करा देते है, ठीक उसी प्रकार जैसे अयोध्या की सरयू में बढ़े जलस्तर को सरयू स्वयं ही शांत करा देती है...
इधर नीतीश के बिहार में पुनः सत्तारुढ़ होने से भले ही नीतीश स्वयं ही उतने प्रसन्न न हो, पर बिहार के भाजपाद्रोही व मुख्यमंत्री बनने का दिवास्वप्न देखने वाले बिहारी बाबू उर्फ बोकरादी बाबू अर्थात् शत्रुघ्न सिन्हा बहुत ही प्रसन्न है। ठीक बिहारी बाबू की तरह ही, झारखंड में भी भाजपा के कई बिहारी बाबू है, जो खुद को बिहारी बाबू यहां कहलाना पसंद नहीं करते, लेकिन हैं खाटी बिहारी पर झारखंड के तकदीर बने हुए है। इन्होंने भी बिहारी बाबू की तरह झारखंड में भाजपा का गड्ढा खोदना शुरु कर दिया है...। सरयू राय बिहारी बाबू का रोल सही-सहीं निभा पायेंगे या नहीं, ये तो वक्त बतायेगा, पर वे उसी राह में है। नीतीश के प्रति उनका उमड़ा प्रेम ऐसे ही नहीं है, उनके मुख से आज तक नीतीश के खिलाफ कुछ भी नहीं निकला है, वे नीतीश भक्ति में हमेशा से लगे रहते है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार विधानसभा चुनाव के क्रम में नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ भी बोलते थे, तो सरयू राय का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुस्सा उनके चेहरे पर साफ दीख जाया करता था। नीतीश के ताजपोशी में नीतीश का खुद फोन घुमाकर, सरयू को आमंत्रण, इस बात का संकेत और प्रमाण है कि नीतीश ने भाजपा के अंदर रहकर उन विभिषणों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। जिनसे उनकी सत्ता को संजीवनी मिली। ये राजनीति ही है कि यहां कब किसकी कौन आरती उतारने लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता...। इसलिए ईमान की रोटी खानेवालों की संख्या राजनीति व राजनीतिबाजों से इतना नफरत करती है कि पूछिये मत। वो जानवरों पर तो भरोसा कर लेती है, पर राजनीतिज्ञों पर नहीं।
एक बात और। इन दिनों पढ़ने को मिला कि बोकरादी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा जो खुद को ट्वीटर के माध्यम से खुद को हाथी भी बोल चुके है। नागपुर गये थे, वे संघ के नेताओं व भाजपा के नेताओं से बातचीत करने के लिए वे उनके दरवाजा भी खटखटाएं पर किसी ने उन्हें भाव भी नहीं दिया...। यहां भी वे बड़बोलेपन में कह दिये कि गर सच कहना बगावत है तो समझो हम बागी है। जैसे लगता है कि दुनिया के सत्यवादी हरिश्चंद्र सिर्फ और सिर्फ बोकरादी बाबू है, दूसरा कोई नहीं...। हमारा सलाह होगा – बोकरादी बाबू को कि आप थोड़ा दरियादिली दिखाइये, सचमुच के हाथी बनिये और हाथी जैसी हरकत दिखाइये...। भाजपा से नाता तोड़िये और सदा के लिए तीर थाम लीजिये और उस तीर से लालटेन के सहारे, उन सब को अपनी बातों से दर्द पहुंचाइये जो आप को दर्द पहुंचाया, आपको मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया...। साथ ही नीतीश को कहिये कि देखो, नीतीश भाई हम भाजपा के बिभीषण है, तुम तो अब हमारे लिए राम बन जाओ। ठीक जैसे राम ने विभीषण को गले लगाया और लंकेश बनाया। तुम भले ही मुझे बिहार का किंग न बनाओ पर मेरी बीवी-बच्चों को तो कम से कम विधायक-सांसद व मंत्री तो बना दो। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि नीतीश, बिहारी बाबू पर कृपा दृष्टि दिखायेंगे, क्योंकि नीतीश तो भक्तवत्सल है। जब वे हरिवंश को सांसद बना सकते है, जब वे रवीश के भाई पर दयालुता दिखा सकते है तो फिर बिहारी बाबू पर क्यों नहीं...। उन्होंने तो बिहार चुनाव में भाजपा में कील ही ठोक दी...।
और इधर देखिये सरयू राय कि, जब से वे झारखंड में रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल हुए है। रघुवर दास के नाक में दम कर दिया है। हर एक महीने पर उनका ऐसा बयान आता है, जो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है। आखिर उनका गुस्सा क्यों प्रकट होता है? उसका साफ संकेत है कि वे अपने मंत्री पद से खुश नहीं है। उन्हें मलाईदार मंत्री पद चाहिए था, पर रघुवर दास ने उन्हें खाद्य आपूर्ति मंत्रालय संभालने को दे दिया। इधर एक साल होने को हुए, पर सच पूछिये तो सरयू राय ने इस मंत्रालय का कबाड़ा बना कर रख दिया है। काम-धाम कुछ नहीं और गिलास तोड़ा आठ आना वाला हिसाब है। आज एक साल होने को आये, राज्य में किसी को नया राशन कार्ड तक नहीं मिला है। गर इक्के-दुक्के को मिले भी तो उसमें इतनी अशुद्धियां है कि पूछिये मत...। अक्टूबर महीना बीत गया, नवम्बर महीना चल रहा है और अभी तक अक्टूबर के अनाज का उठाव तक नहीं हो सका है...। इस माह के करीब 52 हजार टन चावल व गेहूं का उठाव करने में राज्य का खाद्य आपूर्ति विभाग असफल रहा है। इसके उठाव के लिए भारतीय खाद्य निगम के कार्यकारी निदेशक कोलकाता से समय विस्तार की सहमति ली गयी जिसकी तय तिथि 20 नवम्बर को समाप्त हो गयी, यानी न काम करेंगे और न करने देंगे, पर बयानबाजी कर भाजपा और मुख्यमंत्री रघुवर दास का सारा काम तमाम कर देंगे। जमकर नीतीश भक्ति में लीन रहेंगे और मंत्रिमंडल की आड़ में, सरकार की आड़ में स्वहित में अन्य कामों को निबटायेंगे। क्या ये राज्य के साथ धोखाधड़ी नहीं...।
सब को कटघरे में खड़ा करनेवाले सरयू राय राज्य की जनता को बताये कि उन्हें जो विभाग मिला, उसमें उन्होंने कौन-कौन से काम किये, जिसको लेकर जनता उन्हें माथे पर बिठाएं...। रही बात मुख्यमंत्री रघुवर दास की तो ये न तो वसुंधरा राजे सिंधिया और न ही शिवराज सिंह चौहान की तरह मुख्यमंत्री है, जो ऐसे लोगों को उनकी औकात बता दें, ये तो मामूली प्रभात खबर के मामूली संपादकों के इशारे पर वे काम करते है, जिसको एक सामान्य विधायक भी तवज्जों नहीं देता...ऐसे में ये सरयू राय जैसे अशांत मंत्रियों को शांत करा देंगे, हमें नहीं लगता...। एक साल होने को आये, सच पूछिये तो राज्य का कोई भी ऐसा मंत्री नहीं, जो ये दावे के साथ ये कह सकता है कि उसने राज्य की जनता के हित में ये कार्य किये है, उसे इसके लिए शाबाशी मिलनी चाहिए...पर हम इतना जरुर कह सकते है कि इन मंत्रियों ने ऐसी-ऐसी हरकतें जरुर की जो जग हँसाई का कारण भी बन गयी...
भाजपा में ही रहकर, भाजपा से अपने तन का वजन बढ़ानेवाले ये नेता, अपनी मातृसंगठन संघ के प्रति भी वफादार नहीं है, तो ये समाज और देश के लिए कितने वफादार होंगे, समझा जा सकता है...ये तो सत्ता में आते ही, अपने चारणों व अपने अनुचरों पर दया लुटाने में लीन हो जाते है, इन्हें देश व राज्य से क्या मतलब...। जरा नजर दौड़ाईये...झारखंड सरकार की हरकतों पर पता लग जायेगा कि जो लोग इनकी आरती उतार रहे है, वे बम बम हो रहे है, और जो इन्हें आइना दिखा रहा है, उसे ये फूंटी आंखों नहीं देख रहे, वे तो उसे ठिकाने लगाने में भी देर नहीं कर रहे...
और रही बात हमारी...तो मैं उन्हें बता दूं...
कबीर का हूं, कबीर ही रहूंगा...
कबीरा खड़ा बाजार में लिये लुआठी हाथ। जो घर जारे आपना चले हमारे साथ।।
कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर। ना काहुं से दोस्ती ना काहु से वैर।।
हमें राज्यसभा या लोकसभा में नहीं जाना और न ही किसी नेता मंत्री का चरणोदक पीना है, जो नेताओं व मंत्रियों का चरणोदक पीना चाहते हैं, पीते रहे और नीतीश या किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री जैसे लोगों या अन्य नेताओं के चरणोदक पीकर कृतार्थ होते रहे...हमें क्या?
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