योगगुरु के नाम से विख्यात,
बाबा रामदेव आज देश के सुप्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक है...। अरबों के
व्यवसाय, पूरे विश्व में चल रहे उनके दवा व खाद्यान्नों के व्यापार ने
विश्व के बाजारों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है...यहीं नहीं बाबा रामदेव
जो कल तक योग के ब्रांड थे, आज अपने प्रतिष्ठान से उत्पादित वस्तुओं का
स्वयं को ही ब्रांड के रुप में प्रस्तुत कर विज्ञापन करते हुए भी नजर आ रहे
है...आज इनके पास पैसों की कमी नहीं, पैसे इनके आगे – पीछे नाचती है...।
कल तक कांग्रेस के आंखों में खटकनेवाले बाबा, आज भी कांग्रेस के आंखों में बुरी तरह खटकते है...। कांग्रेस व कांग्रेस के लोग तो इन्हें फूंटी आंख नहीं समाते और न रामदेव व रामदेव के लोगों को कांग्रेस व कांग्रेस के लोग फूंटी आंख समाते है...। दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी है। बस मौका मिलना चाहिए, दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में एक दूसरे से बीस निकलने की कोशिश में लग जाते है। रामदेव की जितनी कांग्रेस से खुन्नस है, ठीक उसके उलट भाजपा से प्रेम...। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कट्टर प्रशसंक बाबा भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं में खासा लोकप्रिय है। कमाल यह भी है कि बाबा यादव समुदाय से आते है, ज्यादातर यादव खासकर बिहार व उत्तरप्रदेश में भाजपा को पसंद नहीं करते, वे तो लालू और मुलायम को ही अपना सब कुछ मानते है, पर रामदेव का यादव होकर भी लालू व मुलायम को रास नहीं आना ज्यादातर लोगों के समझ से परे है...
हाल ही में रांची के किशोरी चौक पर एक बैनर देखा, जिसमें यादव महासभा ने रामदेव को यादव समुदाय का बताते हुए, गौरवान्वित महसूस किया था, जबकि अपने देश में कोई भी संत चाहे उसकी जाति जन्म से कुछ भी हो, वह सर्वग्राह्य बन जाता है, क्योंकि उसका जीवन सब के लिए हो जाता है, ठीक जैसे गंगा किसी से भेदभाव नहीं करती, उसी प्रकार संत किसी से भेदभाव नहीं करते...। पर रामदेव संत हैं या यादव या उदयोगपति, इसको लेकर अब चर्चा चल पड़ी है। इतिहास खंगाले तो पता चलेगा कि देश में आज तक किसी संत ने दुकान नहीं खोली, न व्यवसाय का पल्लू पकड़कर, विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाते हुए राजनीति में दखलंदाजी की। हां, इतना जरुर किया कि जो उनके पुश्तैनी कार्य थे, उस पुश्तैनी कार्य में लगते हुए, भगवान को प्राप्त करने के मार्ग को चुन लिया। राजनीति में दक्ष और भारत स्वामिमान ट्रस्ट बनाकर, अपने चहेतों में लोकप्रिय रामदेव को शायद मालूम नहीं कि जब अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को अपने राजमहल में बुलाने की जुर्रत की, तब गोस्वामी तुलसीदास ने स्पष्ट रुप से कहा था – मोसो कहां सीकरी सो काम अर्थात् मुझे फतेहपुर सीकरी से क्या काम... पर यहां ठीक इसके उलट है, रामदेव को राजनीतिज्ञों के बीच रहना, उठना-बैठना, राजधानी में रहनेवाले मुख्यमंत्रियों से वार्ता करना उनका आनन्द का विषय होता है।
रामदेव का रांची आना – जाना बराबर लगा रहता है। यहां के कई व्यवसायी बाबा के परम भक्त है। भाजपा की सरकार होने के कारण इनकी भक्ति का पैमाना और छलकता है। पिछले तीन नवम्बर को बाबा पुनः रांची पधारे, खुब जमकर प्रचार- प्रसार किया गया। उनके कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शुल्क तय किये गये। ये शुल्क इंट्री कार्ड पर रखे गये थे, जिसके लिए कई व्यवसायिक केन्द्रों को कार्ड बेचने के लिए चुना गया था, पर सच्चाई ये है कि वे कार्ड इक्के दुक्के ही बिके, बाकी धरे के धरे रह गये...। रामदेव के एक दिन आने के पूर्व शोभायात्रा भी निकाली गयी, पर वह शोभा यात्रा भी बेकार साबित हुई...। बाबा 2 नवम्बर को जब सायं समय रांची हवाई अड्डे पर आये, तब वहां उनके स्वागत में भी कोई खास भीड़ दिखाई नहीं पड़ी, इतने लोग पहुंचे थे, जिन्हें हाथों से गिना जा सकता था...। जो लोग रामदेव को जानते है, वे ये भी जानते है कि पहले रामदेव का स्वागत कैसे किया जाता था? और कैसे उनके लिए जन-ज्वार उमड़ पड़ता था?
आपको ज्ञात हो, रांची से प्रकाशित एक अखबार तो बाबा रामदेव के पीछे ऐसा उमड़ता था, जैसे लगता हो, कि वे भगवान हो...। यहीं नहीं इस अखबार ने तो इनकी स्तुति भी गायी थी। उन्हें अपने यहां एक दिन का संपादक भी बना डाला था...। अखबार की आवभगत से खुश बाबा उस अखबार के पक्ष में कशीदे भी पढ़े थे। अर्जुन मुंडा के शासनकाल में आये बाबा ने ऐलान किया था कि आनेवाले पांच वर्षों में भारत विश्वगुरु बन जायेगा। प्रभात खबर ने प्रमुखता से इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर छापा था...। पांच से ज्यादा साल बीत गये, पता नहीं भारत विश्वगुरु बना या नहीं, पर बाबा सुप्रसिद्ध उद्योगपति जरुर बन गये...उनका कारोबार विश्वस्तर तक जरुर पहुंच गया...वे संत से सुप्रसिद्ध उदयोगपति का तमगा जरुर ले लिये, यानी रामदेव पहले संत हुए, जो उद्योगपति भी है, राजनीतिज्ञ भी है, संत भी है, गुरु भी है...यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी...। कलयुग का प्रभाव कहिये...या और कुछ...पर सच्चाई तो यही हैं...
इन हालातों में हमारी नजर बाबा रामदेव के कार्यक्रम पर थी...अचानक 2 नवम्बर को मेरे मोबाइल पर मैसेज आया कि आप रामदेव के कार्यक्रम में सपरिवार शामिल हो, इंट्री फ्री है...। हमें समझ में नही आया...मुझे योग में दिलचस्पी नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाया जा रहा, निमंत्रण क्यों दिया जा रहा...। इसके पूर्व तो हमें संवाददाता सम्मेलन में भी नहीं बुलाया जाता था...अचानक आस-पास बैठे लोगों के पास भी इस प्रकार मैसेज आने लगे...। मुझे समझते देर नहीं लगी कि बाबा को बहुत बड़ा झटका लगनेवाला है...। लोगों की बाबा में दिलचस्पी घटने लगी है...। इंट्री कार्ड नहीं बिका है...। जब इंट्री कार्ड ही नहीं बिका और लोगों की दिलचस्पी घट रही तो फिर सुबह साढ़े सात बजे 3 नवम्बर को भीड़ कहां से आयेगी... तो नुस्खा निकाला गया, सभी को मोबाइल मैसेज करिये...बाबा से मिलिये...। सच्चाई ये है कि उसके बाद भी बाबा रामदेव को वो माइलेज नहीं मिला, जो माइलेज कभी मिला करता था...।
आज से ठीक छह-सात साल पहले एक बाइट लेने के लिए संवाददाताओं को तेल निकल जाते थे, पर आज बाबा टीवी वालों को ढूंढ रहे थे, पर टीवी वाले नजर नहीं आ रहे थे। लाइफ रांची निकालनेवाले के लिए तो बाबा एक आयटम थे, आयटम के रुप में उसने जगह दी और बाबा ने उसकी प्रशंसा कर दी...और लाइफ रांची वालों ने उसका भी न्यूज बना दिया...यानी जीव विज्ञान आपने पढ़ा होगा...तो आपने सहजीविता जरुर पढ़ा होगा... जिसमें दो जीव एक दूसरे पर आश्रित रहकर साथ – साथ जीवन जीते है और उससे किसी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता...। इसी सहजीविता के आधार पर प्रभात खबर और रामदेव ने पिछले दिनों अपनी भूमिका निभायी।
इसी दरम्यान बाबा के मन में छुपा हुआ – भयंकर दर्द से भी मेरा आमना –सामना हुआ। बाबा रामदेव ने रांची में दर्दे बयां किया कि उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि वे काली चमड़ी वाले है, नोबेल पुरस्कार गोरी चमड़ीवालों को दिया जाता है...यानी भारत स्वाभिमान की बात करनेवाले, भारत माता की जय बोलनेवाले, भारत-भारती की जमकर दुहाई देनेवाले विदेशी पुरस्कार नोबेल के लिए कितने लालायित है...वो पता चल गया...ऐसे संत है...बाबा रामदेव...। ऐसी है, इनकी भारत भक्ति...। हमारे देश में बहुत सारे संत है, संत होंगे भी पर किसी ने ऐसी पीड़ा व्यक्त नहीं की, जो रामदेव ने कर दी...यानी हमारे देश के संत-परंपरा का अपमान...
अरे रामदेव जी संत जो होता है, वो किसी पुरस्कार का भूखा नहीं होता...
धन का भूखा नहीं होता...
वो दुकान नहीं खोलता...
वो मार्गदर्शन करता है...
वो करता नहीं, कराता है, और बदले में स्वयं के लिए कुछ नहीं कर पाता...
बाद में तो वो गर्व से यहीं कहता है...जो कबीर ने कभी कहा था...
सुना देता हूं...
यहीं चादर सुर-नर-मुनि ओढ़े, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया...
दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया...
कल तक कांग्रेस के आंखों में खटकनेवाले बाबा, आज भी कांग्रेस के आंखों में बुरी तरह खटकते है...। कांग्रेस व कांग्रेस के लोग तो इन्हें फूंटी आंख नहीं समाते और न रामदेव व रामदेव के लोगों को कांग्रेस व कांग्रेस के लोग फूंटी आंख समाते है...। दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी है। बस मौका मिलना चाहिए, दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में एक दूसरे से बीस निकलने की कोशिश में लग जाते है। रामदेव की जितनी कांग्रेस से खुन्नस है, ठीक उसके उलट भाजपा से प्रेम...। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कट्टर प्रशसंक बाबा भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं में खासा लोकप्रिय है। कमाल यह भी है कि बाबा यादव समुदाय से आते है, ज्यादातर यादव खासकर बिहार व उत्तरप्रदेश में भाजपा को पसंद नहीं करते, वे तो लालू और मुलायम को ही अपना सब कुछ मानते है, पर रामदेव का यादव होकर भी लालू व मुलायम को रास नहीं आना ज्यादातर लोगों के समझ से परे है...
हाल ही में रांची के किशोरी चौक पर एक बैनर देखा, जिसमें यादव महासभा ने रामदेव को यादव समुदाय का बताते हुए, गौरवान्वित महसूस किया था, जबकि अपने देश में कोई भी संत चाहे उसकी जाति जन्म से कुछ भी हो, वह सर्वग्राह्य बन जाता है, क्योंकि उसका जीवन सब के लिए हो जाता है, ठीक जैसे गंगा किसी से भेदभाव नहीं करती, उसी प्रकार संत किसी से भेदभाव नहीं करते...। पर रामदेव संत हैं या यादव या उदयोगपति, इसको लेकर अब चर्चा चल पड़ी है। इतिहास खंगाले तो पता चलेगा कि देश में आज तक किसी संत ने दुकान नहीं खोली, न व्यवसाय का पल्लू पकड़कर, विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाते हुए राजनीति में दखलंदाजी की। हां, इतना जरुर किया कि जो उनके पुश्तैनी कार्य थे, उस पुश्तैनी कार्य में लगते हुए, भगवान को प्राप्त करने के मार्ग को चुन लिया। राजनीति में दक्ष और भारत स्वामिमान ट्रस्ट बनाकर, अपने चहेतों में लोकप्रिय रामदेव को शायद मालूम नहीं कि जब अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को अपने राजमहल में बुलाने की जुर्रत की, तब गोस्वामी तुलसीदास ने स्पष्ट रुप से कहा था – मोसो कहां सीकरी सो काम अर्थात् मुझे फतेहपुर सीकरी से क्या काम... पर यहां ठीक इसके उलट है, रामदेव को राजनीतिज्ञों के बीच रहना, उठना-बैठना, राजधानी में रहनेवाले मुख्यमंत्रियों से वार्ता करना उनका आनन्द का विषय होता है।
रामदेव का रांची आना – जाना बराबर लगा रहता है। यहां के कई व्यवसायी बाबा के परम भक्त है। भाजपा की सरकार होने के कारण इनकी भक्ति का पैमाना और छलकता है। पिछले तीन नवम्बर को बाबा पुनः रांची पधारे, खुब जमकर प्रचार- प्रसार किया गया। उनके कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शुल्क तय किये गये। ये शुल्क इंट्री कार्ड पर रखे गये थे, जिसके लिए कई व्यवसायिक केन्द्रों को कार्ड बेचने के लिए चुना गया था, पर सच्चाई ये है कि वे कार्ड इक्के दुक्के ही बिके, बाकी धरे के धरे रह गये...। रामदेव के एक दिन आने के पूर्व शोभायात्रा भी निकाली गयी, पर वह शोभा यात्रा भी बेकार साबित हुई...। बाबा 2 नवम्बर को जब सायं समय रांची हवाई अड्डे पर आये, तब वहां उनके स्वागत में भी कोई खास भीड़ दिखाई नहीं पड़ी, इतने लोग पहुंचे थे, जिन्हें हाथों से गिना जा सकता था...। जो लोग रामदेव को जानते है, वे ये भी जानते है कि पहले रामदेव का स्वागत कैसे किया जाता था? और कैसे उनके लिए जन-ज्वार उमड़ पड़ता था?
आपको ज्ञात हो, रांची से प्रकाशित एक अखबार तो बाबा रामदेव के पीछे ऐसा उमड़ता था, जैसे लगता हो, कि वे भगवान हो...। यहीं नहीं इस अखबार ने तो इनकी स्तुति भी गायी थी। उन्हें अपने यहां एक दिन का संपादक भी बना डाला था...। अखबार की आवभगत से खुश बाबा उस अखबार के पक्ष में कशीदे भी पढ़े थे। अर्जुन मुंडा के शासनकाल में आये बाबा ने ऐलान किया था कि आनेवाले पांच वर्षों में भारत विश्वगुरु बन जायेगा। प्रभात खबर ने प्रमुखता से इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर छापा था...। पांच से ज्यादा साल बीत गये, पता नहीं भारत विश्वगुरु बना या नहीं, पर बाबा सुप्रसिद्ध उद्योगपति जरुर बन गये...उनका कारोबार विश्वस्तर तक जरुर पहुंच गया...वे संत से सुप्रसिद्ध उदयोगपति का तमगा जरुर ले लिये, यानी रामदेव पहले संत हुए, जो उद्योगपति भी है, राजनीतिज्ञ भी है, संत भी है, गुरु भी है...यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी...। कलयुग का प्रभाव कहिये...या और कुछ...पर सच्चाई तो यही हैं...
इन हालातों में हमारी नजर बाबा रामदेव के कार्यक्रम पर थी...अचानक 2 नवम्बर को मेरे मोबाइल पर मैसेज आया कि आप रामदेव के कार्यक्रम में सपरिवार शामिल हो, इंट्री फ्री है...। हमें समझ में नही आया...मुझे योग में दिलचस्पी नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाया जा रहा, निमंत्रण क्यों दिया जा रहा...। इसके पूर्व तो हमें संवाददाता सम्मेलन में भी नहीं बुलाया जाता था...अचानक आस-पास बैठे लोगों के पास भी इस प्रकार मैसेज आने लगे...। मुझे समझते देर नहीं लगी कि बाबा को बहुत बड़ा झटका लगनेवाला है...। लोगों की बाबा में दिलचस्पी घटने लगी है...। इंट्री कार्ड नहीं बिका है...। जब इंट्री कार्ड ही नहीं बिका और लोगों की दिलचस्पी घट रही तो फिर सुबह साढ़े सात बजे 3 नवम्बर को भीड़ कहां से आयेगी... तो नुस्खा निकाला गया, सभी को मोबाइल मैसेज करिये...बाबा से मिलिये...। सच्चाई ये है कि उसके बाद भी बाबा रामदेव को वो माइलेज नहीं मिला, जो माइलेज कभी मिला करता था...।
आज से ठीक छह-सात साल पहले एक बाइट लेने के लिए संवाददाताओं को तेल निकल जाते थे, पर आज बाबा टीवी वालों को ढूंढ रहे थे, पर टीवी वाले नजर नहीं आ रहे थे। लाइफ रांची निकालनेवाले के लिए तो बाबा एक आयटम थे, आयटम के रुप में उसने जगह दी और बाबा ने उसकी प्रशंसा कर दी...और लाइफ रांची वालों ने उसका भी न्यूज बना दिया...यानी जीव विज्ञान आपने पढ़ा होगा...तो आपने सहजीविता जरुर पढ़ा होगा... जिसमें दो जीव एक दूसरे पर आश्रित रहकर साथ – साथ जीवन जीते है और उससे किसी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता...। इसी सहजीविता के आधार पर प्रभात खबर और रामदेव ने पिछले दिनों अपनी भूमिका निभायी।
इसी दरम्यान बाबा के मन में छुपा हुआ – भयंकर दर्द से भी मेरा आमना –सामना हुआ। बाबा रामदेव ने रांची में दर्दे बयां किया कि उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि वे काली चमड़ी वाले है, नोबेल पुरस्कार गोरी चमड़ीवालों को दिया जाता है...यानी भारत स्वाभिमान की बात करनेवाले, भारत माता की जय बोलनेवाले, भारत-भारती की जमकर दुहाई देनेवाले विदेशी पुरस्कार नोबेल के लिए कितने लालायित है...वो पता चल गया...ऐसे संत है...बाबा रामदेव...। ऐसी है, इनकी भारत भक्ति...। हमारे देश में बहुत सारे संत है, संत होंगे भी पर किसी ने ऐसी पीड़ा व्यक्त नहीं की, जो रामदेव ने कर दी...यानी हमारे देश के संत-परंपरा का अपमान...
अरे रामदेव जी संत जो होता है, वो किसी पुरस्कार का भूखा नहीं होता...
धन का भूखा नहीं होता...
वो दुकान नहीं खोलता...
वो मार्गदर्शन करता है...
वो करता नहीं, कराता है, और बदले में स्वयं के लिए कुछ नहीं कर पाता...
बाद में तो वो गर्व से यहीं कहता है...जो कबीर ने कभी कहा था...
सुना देता हूं...
यहीं चादर सुर-नर-मुनि ओढ़े, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया...
दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया...
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