आज राज्य के सभी समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री रघुवर दास का भारी-भरकम विज्ञापन छपा हैं। मात्र 3 माह के भीतर, 20+ परियोजनाएं, शिलान्यास को तैयार। 21000 से अधिक नौकरियों के सृजन की क्षमता। 8 क्षेत्रों में साझेदारी, यानी एक बार फिर राज्य की जनता की आंखों में धूल झोंकने की तैयारी।
शायद कनफूंकवों ने राज्य की जनता को निरा बेवकूफ समझ रखा है कि वे जो मुख्यमंत्री रघुवर दास से बोलवायेंगे, जनता मान लेगी। हमें लगता है कि जो ऐसा सोच रहे हैं, वे मुगालते में है।
• पहली बात, एमओयू और शिलान्यास में कोई फर्क नहीं होता। जैसे एमओयू हो गया तो वो काम हो ही जायेगा, इसकी अनिश्चितता बरकरार रहती है, ठीक उसी प्रकार शिलान्यास होने पर काम हो ही जायेगा, इसकी भी अनिश्चितता बरकरार रहती है। उदाहरणस्वरुप रघुवर दास से पूछिये कि जब वे बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री थे, तो उसी वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सुकुरहुट्टू में नई राजधानी बनाने के लिए एक शिलान्यास किया था, क्या रघुवर दास बता सकते है कि वो राजधानी वहां बनी है या नहीं बनी। अरे छोड़िये, कम से कम वो पत्थर ही लाकर दिखा दें, जिस पर शिलान्यास किया गया। हम मान लेंगे कि रघुवर की सारी योजनाएं सफल हो गयी या हो जायेंगी।
• दूसरी बात, व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब मुख्य सचिव का रह गया है क्या? मैं तो देख रहा हूं कि व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब सिर्फ मुख्य सचिव का रह गया है, क्योंकि वहीं आजकल जमीन देखने का काम कर रही है, यानी जो काम हलका कर्मचारी, सर्किल इंस्पेक्टर, अंचलाधिकारी, भूमिसुधार उप समाहर्ता, उपायुक्त, राजस्व सचिव का है, वह काम अकेले मुख्य सचिव देख रही है, यानी राज्य में सारा सिस्टम फेल।
• तीसरी बात, आज जो खेलगांव में कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कहा जा रहा है सरकार के पिछलग्गूओं द्वारा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खेलगांव से झारखण्ड के नवनिर्माण की नींव रखी तो ये बतायें कि इस प्रकार के शिलान्यासों को कराने के लिए व्यवसायियों ने इनको आमंत्रित किया था क्या? या खुद सरकार अपने विरोधियों को बताना चाहती है कि हम बहुत अच्छा कर रहे है, गर ऐसा ही है तो यह राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है, न की सराहनीय।
• सच्चाई यह है कि आज भी गोड्डा में अदानी परिवार को पावर प्लांट बनाने में पसीने छूट रहे है, ये अलग बात है कि एक अखबार ने अदानी को मजबूती प्रदान करने के लिए उसके पक्ष में समाचार छाप दिये है।
• आज भी रांची में सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल चलाने के लिए कोई तैयार नहीं है, जबकि रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर ढांचा बनकर तैयार है।
• जो भी कंपनी का आज नाम दिया जा रहा है, वो सिर्फ राज्य सरकार अपना लाज बचाने के लिए तथा विरोधियों को जवाब देने के लिए ऐसा कर रही है, क्योंकि सच्चाई सब को पता है।
आजकल जो विभिन्न चौक चौराहों पर रघुकुल रीति वाली जो होर्डिंग्स लगाई गयी है, उससे कई लोग अभी से ही कांप गये है, क्योंकि उनका रघुवर दास का रघुकुल जमशेदपुर में किस प्रकार आतंक फैला रहा है, वह किसी से छुपा नहीं।
हां एक बात की दाद दुंगा, कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहा करते थे कि जब वे काला धन भारत लायेंगे तो प्रत्येक भारतीयों के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये स्वयं आ जायेंगे, जिसका शुभारंभ राज्य सरकार द्वारा कुंदन पाहन जैसे नक्सलियों के खाते में पन्द्रह लाख रुपये देकर कर दिया गया।
यानी समझते रहिये कि झारखण्ड, रघुवर दास के हाथों में कितना सुरक्षित है?
शायद कनफूंकवों ने राज्य की जनता को निरा बेवकूफ समझ रखा है कि वे जो मुख्यमंत्री रघुवर दास से बोलवायेंगे, जनता मान लेगी। हमें लगता है कि जो ऐसा सोच रहे हैं, वे मुगालते में है।
• पहली बात, एमओयू और शिलान्यास में कोई फर्क नहीं होता। जैसे एमओयू हो गया तो वो काम हो ही जायेगा, इसकी अनिश्चितता बरकरार रहती है, ठीक उसी प्रकार शिलान्यास होने पर काम हो ही जायेगा, इसकी भी अनिश्चितता बरकरार रहती है। उदाहरणस्वरुप रघुवर दास से पूछिये कि जब वे बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री थे, तो उसी वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सुकुरहुट्टू में नई राजधानी बनाने के लिए एक शिलान्यास किया था, क्या रघुवर दास बता सकते है कि वो राजधानी वहां बनी है या नहीं बनी। अरे छोड़िये, कम से कम वो पत्थर ही लाकर दिखा दें, जिस पर शिलान्यास किया गया। हम मान लेंगे कि रघुवर की सारी योजनाएं सफल हो गयी या हो जायेंगी।
• दूसरी बात, व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब मुख्य सचिव का रह गया है क्या? मैं तो देख रहा हूं कि व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब सिर्फ मुख्य सचिव का रह गया है, क्योंकि वहीं आजकल जमीन देखने का काम कर रही है, यानी जो काम हलका कर्मचारी, सर्किल इंस्पेक्टर, अंचलाधिकारी, भूमिसुधार उप समाहर्ता, उपायुक्त, राजस्व सचिव का है, वह काम अकेले मुख्य सचिव देख रही है, यानी राज्य में सारा सिस्टम फेल।
• तीसरी बात, आज जो खेलगांव में कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कहा जा रहा है सरकार के पिछलग्गूओं द्वारा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खेलगांव से झारखण्ड के नवनिर्माण की नींव रखी तो ये बतायें कि इस प्रकार के शिलान्यासों को कराने के लिए व्यवसायियों ने इनको आमंत्रित किया था क्या? या खुद सरकार अपने विरोधियों को बताना चाहती है कि हम बहुत अच्छा कर रहे है, गर ऐसा ही है तो यह राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है, न की सराहनीय।
• सच्चाई यह है कि आज भी गोड्डा में अदानी परिवार को पावर प्लांट बनाने में पसीने छूट रहे है, ये अलग बात है कि एक अखबार ने अदानी को मजबूती प्रदान करने के लिए उसके पक्ष में समाचार छाप दिये है।
• आज भी रांची में सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल चलाने के लिए कोई तैयार नहीं है, जबकि रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर ढांचा बनकर तैयार है।
• जो भी कंपनी का आज नाम दिया जा रहा है, वो सिर्फ राज्य सरकार अपना लाज बचाने के लिए तथा विरोधियों को जवाब देने के लिए ऐसा कर रही है, क्योंकि सच्चाई सब को पता है।
आजकल जो विभिन्न चौक चौराहों पर रघुकुल रीति वाली जो होर्डिंग्स लगाई गयी है, उससे कई लोग अभी से ही कांप गये है, क्योंकि उनका रघुवर दास का रघुकुल जमशेदपुर में किस प्रकार आतंक फैला रहा है, वह किसी से छुपा नहीं।
हां एक बात की दाद दुंगा, कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहा करते थे कि जब वे काला धन भारत लायेंगे तो प्रत्येक भारतीयों के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये स्वयं आ जायेंगे, जिसका शुभारंभ राज्य सरकार द्वारा कुंदन पाहन जैसे नक्सलियों के खाते में पन्द्रह लाख रुपये देकर कर दिया गया।
यानी समझते रहिये कि झारखण्ड, रघुवर दास के हाथों में कितना सुरक्षित है?
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