Tuesday, May 23, 2017

कनफूंकवों के इशारे पर...........

कनफूंकवों के इशारे पर हुई प्राथमिकी.....
रांची से प्रकाशित कुछ राष्ट्रीय अखबारों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों को खुश करने के लिए हाथों में गजरा लगाकर ठुमरी गाया.....
भाजपा नेता ने ही रघुवर को राम बनाया और भाजपा नेता ने ही उस चित्र को मुझे भेजा और भाजपा नेता ने ही कनफूंकवों के इशारे पर मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी, यानी ऐसे चल रहा है, रघुवर शासन और ऐसे चल रही है रघुवर के इशारे पर यहां की पत्रकारिता.....
जी हां, रांची में ऐसे ही पत्रकारिता हो रही है। हिन्दुस्तान अखबार को छोड़कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और प्रभात खबर ने मुझे पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया है, जबकि प्रभात खबर अच्छी तरह जानता है कि उसके अखबार में मेरे कई आलेख पत्रकार के रुप में प्रकाशित हो चुके है, उसके द्वारा संचालित पत्रकारिता संस्थान में, मैं कई बार सेवा भी दे चुका हूं, पटना के दानापुर अनुमंडल से प्रभात खबर को मैंने संवाददाता के रुप में सेवा भी दी है, पर आज उसे रतौंधी हो चुकी है, इस रतौंधी के कारण उसने हमें पत्रकार के रुप में पहचानने से इनकार कर दिया। ये वहीं प्रभात खबर है, जो भारत के कश्मीर को एक नहीं कई बार पाकिस्तान का अंग बता चुका है, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है, उसका गलत चित्र अपने अखबार में प्रकाशित करता है, पर उस प्रभात खबर के खिलाफ एक बार भी राष्ट्रद्रोह का मुकदमा न तो मुख्यमंत्री कराता है और न उसके आस-पास रहनेवाले कनफूंकवें, आखिर वे ऐसा क्यों नहीं करते, ये तो रघुवर और उनके कनफूंकवे ही बतायेंगे।
दैनिक जागरण, यहां भी मैंने मोतिहारी और धनबाद में कार्यालय प्रमुख के रुप में सेवा दी है, पर ये हमारे लिए शख्स का प्रयोग कर रहा है, ये ऐसा क्यों कर रहा है, वह मैं अच्छी तरह जानता हूं, यहां काम कर रहे एक शख्स को हमे देखते ही मिर्ची लग जाती है, इसलिए उसे एक छोटा सा मौका मिला, खूब जमकर अपनी भड़ास निकाल ली, ऐसे उसकी हिम्मत नहीं कि वो हमें दोषी ठहरा दें, पर अखबार में भड़ास अगर निकल जाता है, तो क्या गलत है?
दैनिक भास्कर तो नया – नया अखबार है, उसमें काम करनेवाले कई लोग हमारे फेसबुक फ्रेंड है, वहाटस ग्रुप में भी है, पर इसने भी मर्यादा को ताड़-ताड़ कर दिया, यानी इसके भी नजर में मैं पत्रकार नहीं हूं।
आखिर पत्रकार होता क्या है?
क्या जो मुख्यमंत्री के आगे नाचते हुए ठूमरी गाये, वो पत्रकार है।
क्या पत्रकार वो है, जो मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवों के आगे अपनी कलम बेच दे।
अरे पत्रकार तो वह होता है, जो अपनी जमीर किसी भी हालत में न बेचे।
इन अखबारों ने प्राथमिकी देखी और बस न्यूज लिख दिया, जबकि इन लोगों के पास हमारे मोबाइल नंबर है, पर इन लोगों ने पत्रकारिता की एथिक्स को ही मटियामेट कर दिया। यानी बेशर्मी की सारी हदें, पार कर दी, पर शायद इन्हें नहीं पता कि आज उनकी सारी हेकड़ी, सारी अकड़ सोशल साइट्स ने निकाल दी है।
इनकी वश चले तो ये हमें सूली पर चढ़ा दे, पर इन्हें नहीं पता कि मैं जब भी कुछ लिखता हूं तो उसका आधार होता है. और वह आधार मेरे पास है।
कौन ये चित्र बनाया,
किसने पेश किया,
किसने वायरल किया,
जवाब मैं दूंगा,
और जब मैं जवाब दूंगा तो सबकी फटेगी...
फटेगी उन कनफूंकवो की भी
और
फटेगी मुख्यमंत्री और कनफूंकवों के आगे ठूमरी गानेवाले उन तथाकथित अखबारों की भी।
और अब बात धार्मिक भावना की...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री खूलेआम श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री स्वयं को रघुकुल यानी भगवान राम के कुल से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब गोस्वामी तुलसीदास की रचना का इस्तेमाल एक मुख्यमंत्री स्वयं के लिए करता है, और संविधान के प्रस्तावना में उद्धृत धर्मनिरपेक्ष भावना का अनादर करता है।
सबूत आपके सामने है, जरा देखिये, पूरे रांची में कैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों और धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ा दी...
आश्चर्य इस बात की है कि एक मुख्यमंत्री और उसका तबका खूलेआम धार्मिक भावना की धज्जियां उड़ा रहा है, पर उसके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं होती, और एक व्यक्ति सत्य लिखता है, सत्य को प्रतिष्ठित करता है, तो ये मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवे तथा इनके इशारे पर ठूमरी गानेवाला कुछ अखबारों का समूह एक ईमानदार व्यक्ति को ही कठघरे में रख देता है।
अरे मैं चुनौती देता हूं कि इस पूरे मामले की जांच करो, पर तुम जांच नहीं करा पाओगे, क्योंकि फंसेगा और कोई नहीं, वहीं फंसेगा जो ज्यादा अभी काबिल बन रहा है, क्योंकि मेरे पास पक्के सबूत है कि किस भाजपा नेता ने रघुवर दास का राम के रुप में चित्र बनाया और किसने वायरल किया, और इस पर किसने, किससे क्या संवाद किया।
है हिम्मत तो मैं तूम्हे चुनौती देता हूं, इस चुनौती को स्वीकार करो।
और
धमकी किसे देते हो, मूर्खों,
मैं कोई बहुत बड़ा तोप थोड़े ही हूं,
अभी भी साधारण तरीके से एक किराये के घर में रहता हूं, आ जाओ, हमें खत्म करा दो।
तुम्हे किसने रोका है,
जागीर तुम्हारी,
शासन तुम्हारा
कनफूंकवे तुम्हारे
और ठुमरी गानेवाले अखबार तुम्हारा
फिर दिक्कत किस बात की....

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