Sunday, March 31, 2013

हनुमान मंदिरों का शहर - रांची......................

मेरा रांची से 28 सालों का रिश्ता है। इस दौरान रांची में, मैंने बहुत कुछ देखा और महसूस किया। सर्वाधिक अचरज में डाला - रांची के लोगों का हनुमान प्रेम। ये हनुमान प्रेम ही हैं कि रांची में यत्र-तत्र-सर्वत्र हनुमान ही  हनुमान दीखते है। कोई ऐसा इलाका नहीं, जहां हनुमान विद्यमान न हो। ऐसे कहा भी गया हैं कि हनुमान, इस कलियुग के एकमात्र जीवित देवता हैं, जो सरल, सहज व सहृदय हैं, भक्तों की जल्द सुनते हैं और हर प्रकार के कष्टों से मुक्त कर देते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि रांचीवासियों को संकटमुक्त करने के उद्देश्य से, रांचीवासियों ने इन्हें यत्र-तत्र-सर्वत्र स्थापित कर दिया हैं और लगे हाथों हनुमानजी ने भी, रांचीवासियों की सुरक्षा का भार संभाल लिया हैं। आखिर कहां- कहां हनुमानजी हैं, सबसे पहले हम इसकी चर्चा करते हैं।
प्रारंभ रांची जंक्शन से - गर आप झारखंड अथवा रांची के बाहर के निवासी हैं तो आप सबसे पहले रांची जंक्शन आये। आप देखेंगे कि स्टेशन से बाहर निकलते ही उत्तर की ओर, संकटमोचन हनुमान मंदिर दीखेगा, जिसे टेम्पूचालकों, रिक्शाचालकों और स्थानीय लोगों ने स्थापित किया हैं। रांची जंक्शन के सौंदर्यीकरण के दौरान इस मंदिर को स्थानांतरित करने का प्रयास करने की कोशिश की गयी, फिर क्या था, लोग उबल पड़े। खूब भजन-कीर्तन होने लगी। विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जूड़े लोग आ खड़े हुए और सौंदर्यीकरण का काम ठप पड़ गया। अंततः फैसला हुआ कि हनुमान मंदिर को छूए बिना सौंदर्यीकरण का कार्य शुरु हो, और हनुमान जी तब से लेकर आज तक गदा पकड़े और संजीवनी उठाये जमे हुए हैं। रांची जंक्शन के दक्षिण ओर गर आप जाये तो इसके दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में भी हनुमान जी दीखेंगे। ये हनुमान इस प्रकार से आपको मिलेंगे, जैसे लगता हैं कि हनुमान जी, पूरे रांची जंक्शन की सुरक्षा में लग गये हो। रांची जंक्शन से जैसे आप ओभरब्रिज की ओर चलेंगे तो पटेल चौक पर भी हनुमान मंदिर दीखेगा। शायद यहां के हनुमान जी लोहरदगा-रांची रेलवे लाइन, सरकारी बस स्टैंड और इसके आसपास स्थिति विभिन्न लग्जरी होटलों की सुरक्षा में लग गये हो, यहीं नहीं इसी चौक से शुरु होती हैं रांची-पटना मुख्यमार्ग तो इसकी भी सुरक्षा, हनुमान जी ही किया करते हैं। इससे थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो मिलेगा ओभरब्रिज और ठीक इसके नीचे आपको हनुमान मंदिर मिलेगा, जहां हनुमान जी आपको करताल बजाते मिलेंगे। शायद ये हनुमान जी करताल बजाते हुए, ये कह रहे हो कि रांची में रामजी की कृपा से सब कुछ ठीक-ठाक हैं और यहीं से पश्चिम की ओर बढ़ेंगे तो कडरु ओभरब्रिज मिेलेगा, उसके नीचे भी हनुमानजी मिलेंगे, यहीं नहीं यहीं से थोड़ा दूर हटकर, अरगोड़ा रेलवे स्टेशन जानेवाली मार्ग पर भी  हनुमान जी हाथ में गदा हिलाते हुए मिल जायेंगे। दूसरी ओर सुजाता चौक अथवा लाला लाजपत राय चौक पर भी हनुमान जी की मंदिर आपको देखने को मिलेंगी। अलबर्ट एक्का चौक की ओर गर आप बढ़े विभिन्न प्रमुख बैंकों, गुरुद्वारों और होटलों के ठीक पास एक मल्लाह टोली हैं, जहा आपको हनुमानजी वीरासन में बैठें मिलेंगे और ठीक इसके आगे मिलेंगे डेली मार्केट के पास हनुमान जी, अपने पांवों से अहिरावण को दबाये, अपने कंधों पर राम और लक्ष्मण को उठाये। इस मंदिर को भव्यता प्रदान करने के लिए भक्तों की बड़ी टोली लगी हैं, निरंतर यहां कुछ न कुछ निर्माण चलता रहता हैं। 
हनुमान जी का सिक्का यहां कैसे चलता हैं, उसका परिदृश्य देखिये। जब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में भी हनुमान मंदिर का निर्माण करा दिया। अब जब राज्य के मुख्यमंत्री, हनुमान के शरण में हो, तो आप समझ सकते हैं कि यहां हनुमान जी कैसे राजकाज में दखल देते हुए सुरक्षा का भार उठाये हुए हैं। मुख्यमंत्री आवास हो या राजभवन या स्पीकर आवास या पुलिस आवास, इन सभी आवासों से निकलनेवाले महानुभावों की सुरक्षा का भार भी हनुमान जी ने उठा रखा हैं। वे इसके लिए रातू रोड चौक पर उपस्थित होकर, सभी को सुगमता और सुरक्षा प्रदान करते हैं। कहा भी गया हैं कि जो हनुमान की शरण में गया, उसके सारे ग्रह-गोचर ठीक, क्योंकि हनुमान हैं ही ऐसे।
गोस्वामी तुलसीदास को जब कष्ट हुआ तो वे हनुमानजी की शरण में ही गये और लिख डाली - हनुमान चालीसा। ये हनुमान चालीसा इतनी लोकप्रिय हो गयी, कि पूरे देश में बिना सूचना एवं प्रौद्योगिकी के ही घर - घर पहुंच गयी। धन्य हैं हनुमान जी..................
कहा भी जाता हैं....................
संकट कटैं मिटै सब पीड़ा,
जो सुमिरै हनुमत बल-बीरा
जै जै हनुमान गोसाईं
कृपा करहुं गुरदेव की नाईँ
जो सत बार पाठ कर कोई
छुटिहिं बंदि महासुख होई
जब हनुमान चालीसा पढ़ने से महासुख हो सकता हैं तो भला हनुमानजी के दर्शन करने से क्या होता होगा, समझा जा सकता हैं, इसलिए, रांचीवासी फिलहाल हनुमान की शरण में हैं और हनुमानजी सभी का कल्याण करने के लिए, सुरक्षा प्रदान करने के लिए पूरे रांची के मुह्ल्लों, चौक-चौराहों में विद्यमान हैं। हमें लगता हैं कि इतने हनुमानजी तो किसी तीर्थस्थल पर भी नहीं होंगे, जितने हमारे रांची में। अब तो हमारी हनुमानजी से यहीं प्रार्थना हैं कि जैसे, उन्होंने सभी के सुरक्षा का भार उठा रखा हैं, थोडा़ हमारे उपर भी कृपा बनाये रखे...............

Wednesday, March 27, 2013

जब आप होली के मूलस्वरुप को अर्थात् कृष्ण को अपनायेंगे, तब न तो रंग और न ही गुलाल की आवश्यकता पड़ेगी........

सारा भारतवर्ष होली के रंग में रंगने को तैयार हैं। कई होली के रंग में रंग चुके हैं तो कई इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। वो इंतजार कर रहे हैं, एक निश्चित समय का। जब वो होली के आनन्द में डूबकी लगायेंगे। पर सच्चाई ये हैं कि होली वहीं मनाता हैं जो कृष्ण के समीप हैं, जो कृष्ण के समीप ही नहीं, वो होली का आनन्द क्या लेगा। आज तो सारा भारतवर्ष जलसंकट से जूझ रहा हैं, कई लोग तिलक होली खेलने की वकालत कर रहे हैं और पानी बचाने का इसे एकमात्र उपाय बता रहे हैं, तो कई ने होली नहीं खेलने का फैसला किया हैं। होली नहीं खेलने का तर्क भी, उन्होंने बहुत अच्छा ढूंढ निकाला हैं। उनका कहना है कि होली में पानी बेतहाशा खर्च होता हैं, नष्ट होता हैं। इसलिए वो होली नहीं खेलेंगे। जबकि सच्चाई ये हैं कि होली के समय ऐसा तर्क देनेवाले अन्य दिनों में जल संरक्षण पर ध्यान ही नहीं देते। कभी - कभी मैं सोचता हूं कि
क्या होली, एक दूसरे को रंग लगाने का नाम हैं
क्या होली, एक दूसरे के गालों पर गुलाल मलने का नाम हैं
क्या होली, एक दूसरे को तंग करने या एक दूसरे को देख लेने का नाम हैं
उत्तर हैं - नहीं।
होली तो इन सबसे अलग प्रभु के हृदय में स्थान पाने का नाम हैं। होली तो उन सबको गले लगाने का नाम हैं, जो किन्हीं कारणों से हमसे बहुत अलग हैं, जो समाज के मुख्यधारा से कटे हैं, जिन्होंने संसार के प्रमुख उपभोग करनेवाली वस्तुओं का सेवन तक नहीं किया। उन्हें अपने घर बुलाकर, स्वयं से अहंकार को दूर कर, प्रभु का हो जाने का नाम हैं। जब - जब होली आती हैं, लोग प्रह्लाद और होलिका की कथा को याद करते हैं, पर भूल जाते हैं कि प्रह्लाद और होलिका दोनों एक प्रतीक हैं। प्रह्लाद धर्म का तो होलिका अधर्म की प्रतीक हैं। आश्चर्य इस बात की भी कि प्रह्लाद और होलिका एक परिवार से हैं। होलिका प्रह्लाद की बुआ हैं। वो प्रह्लाद को मार डालना चाहती हैं, फिर भी प्रह्लाद बच कर निकल जाता हैं। प्रह्लाद का बचकर निकलना, होलिका का जल जाना- क्या संदेश देता हैं। संदेश वहीं हैं। धर्म हमेशा विजयी होता हैं, अधर्म सदैव हारता हैं। ये कथा बड़े ही सरल शब्दों में ये भी संदेश देती हैं कि अधर्म से आपको घर में भी जूझना पडे़गा, ये आपके उपर निर्भर करता हैं कि आप अधर्म से कैसे लड़ते हैं, उस पर कैसे विजय प्राप्त करते हैं या अधर्म के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। वो कहते हैं न कि जीने के दो मार्ग हैं, एक धर्म का और दूसरा अधर्म का। ये आपके उपर निर्भर करता हैं कि आप किस मार्ग को अपनाते हैं। आप होली के दिन रंग-गुलाल लगाये अथवा नहीं लगाये पर जब आप समाज के मुख्यधारा से कटे लोगों को हृदय लगाते हैं तो होली को बहुत फर्क पड़ता हैं। वो फर्क ये हैं कि इससे समाज बनता हैं, देश बनता हैं और होली के एकात्मता, मानवीय मूल्यों और धर्म के मूलस्वरुप की पहचान हो जाती है......................
जायसी हो या रसखान या रहीम, सभी ने कृष्ण को पहचाना और वे आजीवन होली के रंग में डूबे रहे
याद करिये रहीम मानवीय मूल्य रुपी रंग को कैसे परिभाषित करते हैं............
जे गरीब पर हित करे. ते रहीम बड़ लोग
कहां सुदामा बापूरो, कृष्ण मिताई जोग
मीरा तो कृष्ण के सांवले सलोने रुप पर इतनी बलिहारी होती हैं, वो कृष्णरुपी भक्ति रंग में ऐसे डूबी कि वो बार - बार यहीं कहती रही
श्याम पिया, मोरी रंग दे चुनरियां...........यहीं नहीं वो तो इससे भी अलग कह डालती हैं, वो क्या, जरा मीरा के शब्दों में सुनिये
अपने ही रंग में, अपने ही रंग में, रंग दे चुनरिया, श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया................
हमें लगता हैं कि कृष्णरुपी भक्तिरंग, धर्म स्वरुपी विलक्षणरंग में जो रंग जाता हैं, उस पर कोई अन्य रंग चढ़ ही नहीं सकता और जिस पर अन्य रंग नहीं चढ़ता, वो कृष्ण का हो जाता हैं, तो हम क्यों नहीं कृष्ण के आचरण को अपनाते हुए, धर्म को धारण करते हुए, इस होली को मनाये। हमें नहीं लगता कि इस प्रकार की होली खेलने में, रंग और गुलाल की भी आवश्यकता पडे़गी और फिर कोई कह नही पायेगा कि वो जल संरक्षण के लिए, इस बार तिलक होली खेलेगा या होली नहीं खेलेगा। जरुरत हैं, होली के मूलस्वरुप को समझने की, जो हम भूलते जा रहे हैं...........................

होली तो प्यार बांटने का नाम हैं..........................

फिर होली आ गयी। लोग फिर रंग-गुलाल अपने घरों में लायेंगे। एक दूसरे को लगायेंगे। होली हैं....कहकर शोर मचायेंगे। पुए-पकवान खायेंगे। आजकल तो एक नया फैशन भी चला हैं। कई घरों में मुर्गे-मुर्गियां हलाक होंगे। बकरें भी काट दियें जायेंगे, लोग होली हैं..........कहकर इठलायेंगे, बलखायेंगे और लीजिये मन गयी होली...................। क्या सचमुच होली इसी का नाम हैं। बचपन से लेकर आजतक होली के इस रंग ने मेरे मन को व्यथित किया हैं जिसे मैंने कभी स्वीकार ही नहीं किया। क्योंकि भारतीय वांगमय तो सदियों से यहीं कहता आया हैं...........................
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होली तो प्यार बांटने का नाम हैं
होली तो एक दूसरे को गले लगाने का नाम हैं
होली तो स्वीकार्यता का दूसरा नाम हैं
होली तो एक दूसरे में समा जाने का नाम हैं
पर शायद ही ऐसे भाव अब होली के दौरान, देखने को मिलते हो। एक दिन, एक बच्चे ने मेरे पास आकर कहा - भैया, हम होली खेलेंगे। मैंने कहा - हां हां, खेलो होली। वो अपने दोनों नन्हीं-नन्ही हाथों में लाल रंग लगाकर आया और मेरे गालों पर लगाकर, खिलखिलाकर होली हैं-होली हैं, कहता हुआ भाग खड़ा हुआ। मैं कुर्सी से उठा और अचानक आइने के पास पहुंच अपने चेहरे को देखा, तो मुस्कुराएं बिना नहीं रह सका। बच्चे की छोटी छोटी अंगूलियों और हथेलियों से चेहरे पर लगे रंगों के भाव कुछ कह रहे थे।
वाराणसी के विद्वान प्रो. सुधाकर दीक्षित आजकल एक - दो वर्षो से रांची में रह रहे हैं। उनसे कुछ दिन पहले होली क्यों विषय पर लंबी बातचीत की। बातचीत के दौरान, उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारतीय पर्व त्योहार ऐसे ही नये मनाये जाते। ये पर्व त्यौहार केवल खाने-पीने तक ही सिमटे नहीं रहते, बल्कि ये एक सुंदर संदेश भी देते हैं। ये कहकर कि इन संदेशों को आत्मसात करोगे तभी आप पर्व - त्यौहारों के परम आनन्द कौ प्राप्त कर सकते हो, अन्यथा भौतिक आनन्द को ही गर आनन्द आप समझते हो तो फिर कोई बात ही नहीं।
भारतीय वांग्मय कहता हैं कि होली, वहीं मनाता हैं, जो अपने से दीन-हीन अवस्था में रह रहे, अपने समाज के लोगों को आज के दिन आत्मसात करता हैं। जो समाज व देश के प्रति प्रेम का रंग अपने हृदय में भरता हैं। जिसके हृदय में लेशमात्र भी कटुता का भाव प्रकृति व सत्य के प्रति नहीं रहता। जरा हिरण्यकशिपु को देखिये वो सत्य के प्रतीक प्रह्लाद को मिटा देना चाहता हैं। वो इसके लिए अपनी बहन होलिका का सहारा भी लेता हैं। इसी दौरान होलिका जलकर मर भी जाती हैं, फिर भी उसका दंभ नहीं मिटता, पर प्रह्लाद तो प्रह्लाद हैं, उसके कण-कण में आह्लाद हैं, भला, उसके आह्लाद को कौन मिटा सकता हैं। सत्य अंततः जीतता हैं, क्या इस सत्यरुपी रंग को असत्य कभी मिटा सकता हैं। उत्तर होगा - नहीं। तब ऐसे हालात में असत्य को धारण कर, राक्षसी प्रवृत्तियां अपना कर लोग किस प्रकार का आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं।
एक उदाहरण, जो फिलहाल होली के दौरान ही दीख रहा हैं। मार्च का महीना हैं। संभवतः 31 मार्च को क्लोजिंग डेट भी होता हैं। मैंने कई लोगों को देखा हैं, अभी से ही दिमाग लगा रहे हैं कि इस बार आयकर के रुप में उनके कमाई की राशि नहीं कटे। असत्य का सहारा भी उन्होंने जमकर लिया हैं। संभव हैं, ये पकड़े भी नहीं जायेंगे, पर हृदय के किसी कोने में बैठा परमेश्वर अथवा सत्य, उसे इस गलत कार्यों के लिए, क्षमा करेगा या वो इस गलत कार्यों में संलिप्तता होने के बावजूद आनन्द की प्राप्ति कर पायेंगे। उत्तर होगा - नहीं। क्योंकि आनन्द तो सिर्फ सत्य के पास होता हैं। असत्य को आनन्द कहां। जो देश के लिए अपनी आय की राशि का एक हिस्सा ईमानदारी से नहीं दे सकता। वो देश के लिए तन और मन को कैसे उत्सर्ग करेगा। जो ऐसा नहीं कर पायेगा। वो होली कैसे मनायेगा। होली तो मनाया कबीर ने, ये कहकर..............
मन लागा मेरा यार फकीरी में,
जो सुख पाउं राम भजन में,
वो सुख नाहीं अमीरी में,
भला बुरा सबका सुन लीजै
कर गुजरान,गरीबी में
मन लागा, मेरा यार फकीरी में..................
अर्थात, जो सत्य को धारण करेगा, उसे ही सुख प्राप्त होगा, उसे ही राम मिलेंगे, असत्य को प्राप्त कर न तो राम मिलेंगे और न ही कोई परम आनन्द को प्राप्त कर पायेगा। परम आनन्द को प्राप्त करने का नाम ही होली हैं। स्वयं को परमात्मा के अधीन कर, सत्य का आश्रय ले, सब को परम आनन्द देने का नाम ही होली हैं................................

Tuesday, March 26, 2013

आजसू की महिला पंचायत यानी पैसा फेंको, तमाशा देखो......

24 मार्च को झारखंड के मोराबादी मैदान में आजसू ने महिला पंचायत बुलाई। इस महिला पंचायत को आर्गेनाइज करने में आजसू ने करोड़ो रुपये फूंक डाले। कुछ को एक दिन की मजदूरी का लालच देकर, कुछ को ये सपने दिखाकर कि उन्हें विधानसभा का टिकट दिया जायेगा, आजसू ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लाखों तो नहीं पर हजारों की संख्या में महिलाएं, इस महिला पंचायत में दिखी। कहीं पत्रकार नाराज न हो, अखबार व मीडिया नाराज न हो, इसके लिए जमकर इन पर भी धन लूटाये गये। महिला पंचायत के एक दिन पहले व बाद में भी अखबारों को मुंहमांगी रकम अदा की गयी। इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी विज्ञापन दिये गये ताकि वे अपनी बात न रखकर, आजसू और सुदेश की जय जयकार के लिए ही मुंह खोले। हुआ भी ठीक ऐसा ही। भला रुपये लेकर, कोई गद्दारी कैसे कर सकता हैं। इसलिए जमकर सभी ने जय जयकार की। हालांकि इसका कितना फायदा मिलेगा, फिलहाल कुछ कहां नहीं जा सकता।
हुआ ऐसा हैं कि मीडिया के कुछ धुरंधरों ने आजसू और सुदेश को सब्जबाग दिखाये हैं ये कहकर की आनेवाले समय में जब कभी विधानसभा चुनाव होंगे तो आजसू की सीटें बढ़ सकती हैं। फिर क्या, इस सब्जबाग को जमीन पर उतारने के लिए आजसू ने कमर कस ली और हो गये शुरु। हर जिले में एक पंचायत बुलायी गयी। आजसू के नेताओं व कार्यकर्ताओं को कह दिया गया कि वे जमकर पैसे बटोरे और पंचायत पर खर्च करें, मीडिया के कबूतरों पर भी पैसे खर्च करें, गर वो एक शराब की बोतले मांगते हैं तो उन्हें दो नहीं बल्कि शराब से नहला दिया जाय, खूब पैसे दिये जाये उन्हें ताकि वे सोते - जागते, सिर्फ और सिर्फ आजसू और सुदेश के ही गुण गायें। आजसू के इस कार्यप्रणाली का फायदा भी मिला हैं, जब पैसों के बल पर, उसने हटिया सीट जीत ली। अब तो सुनने में ये भी आ रहा हैं कि एक मीडियाकर्मी को आजसू ने चुनाव लडा़ने की ठानी हैं, और इस एवज में उक्त मीडियाकर्मी ने एक रिपोर्टर को आजसू के साथ लगा दिया हैं कि वो जमकर उक्त रिपोर्टर को जैसे पाये, वैसे यूज करें। खूब जमकर आजसू के विजूयल, टिकटैक और समाचार भी दिखाये जा रहे हैं।
कमाल हैं, जो पार्टी भ्रष्ट आचरण अपनाकर सत्ता हासिल करने की ठानी हो, उससे सदाचार की बातें करना, क्या मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर नहीं। हमें तो इस पार्टी के नाम से ही हंसी आती हैं, नाम हैं - आजसू यानी आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, पर सच्चाई ये हैं कि इसके जितने भी विधायक हैं वे स्टूडेंट्स हैं ही नहीं, विशुद्ध राजनीतिबाज हैं, जो हमेशा सत्ता से चिपककर, सत्ता की राशि, अपने हित में डकार जाते हैं, ये वहीं पार्टी हैं जो बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन और मधु कोड़ा के साथ भी सत्तासुख भोगी। ये सत्ता के बिना एक पल रह ही नहीं सकती, और ये झारखंड को महान बनाने की बात करती हैं। हां भाई आजकल ऐसे ही लोग तो देश व समाज का निर्माण करते हैं, क्योंकि आजकल इनकी संख्या बहुतायत हैं और लोकतंत्र में वहीं आगे बढ़ता हैं, जिनकी संख्या सर्वाधिक हैं. तो चलो भ्रष्ट आचरण अपनाकर, खूब पैसे लूटाकर, आम जनता को दिग्भ्रमित करें और वोट लेकर, सत्ता का परम सुख प्राप्त करें, क्योंकि जब मीडिया सत्ता में आने के पहले ही, उनकी आरती उतार रही हैं तो सत्ता आने के बाद तो उनके आगे साष्टांग दंडवत् करेगी।

Sunday, March 24, 2013

यहां तो नेता, मंत्री, पत्रकार, ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस सभी खतरनाक जानवर की श्रेणी में हैं..............................

कभी - कभी भारतीय राजनीतिज्ञों को दिव्य ज्ञान हो जाता हैं और वो इस दिव्य ज्ञान के सहारे एक से एक बयान दे देते हैं। इन बयान देनेवालों की सर्वाधिक संख्या गर किसी पार्टी में हैं तो वो हैं - कांग्रेस पार्टी। झारखंड के राज्यपाल सैय्यद अहमद को तो दुनिया के सारे सद्गुण सोनिया गांधी में ही दिखाई पड़ते हैं। दिखाई पड़े भी क्यों नहीं, क्योंकि सोनिया की कृपा से ही तो वे झारखंड में राष्ट्रपति शासन का मजा ले रहे हैं। इसलिए अपने भाषण में गाहे-बगाहे, सोनिया जी की जय-जयकार करते रहते हैं। इधर झारखंड में सर्वाधिक समय देनेवाले और दिलचस्पी रखनेवाले जयराम रमेश ने कुछ ऐसा बयान दे दिया कि यहां के सारे के सारे ब्यूरोक्रेट ही अचंभित हैं। वो भी इसलिए कि इन ब्यूरोक्रेट्स से क्या गलती हो गयी कि जयराम रमेश ने ऐसा बयान दे डाला। झारखंड के ब्यूरोक्रेट्स तो हरदम, केन्द्र सरकार में शामिल नेताओं व मंत्रियों के आगे नतमस्तक रहते हैं, जो वे काम कहते हैं चाहे उससे झारखंड का कबाडा़ ही क्यों न निकल जाये। वो काम करने में विश्वास रखते हैं। जरा देखिये, जयराम रमेश ने क्या बयान दिया हैं। इन्होंने शनिवार को रांची में एक निजी अस्पताल के कार्यक्रम में अधिकारियों की तुलना खतरनाक जानवर से कर दी। इसके पहले भी जयराम ऐसे-ऐसे बयान दिये हैं, जिससे कांग्रेस के लोग कभी अचंभित हो गये थे। जब उन्होंने यह कह दिया था कि देश में मंदिरों से ज्यादा महत्वपूर्ण शौचालय  हैं।
सवाल उठता हैं जयराम रमेश जी के इस बयान पर हम आश्चर्य करे या उनकी मूर्खता पर हम सवाल उठाये। जयराम रमेश ने जो आज उदारतापूर्वक ये बयान दिया। क्या उन्हें ये नहीं पता कि जिन अधिकारियों की तुलना वे खतरनाक जानवर से कर रहे हैं। उन्हें खतरनाक जानवर, इन्हीं के पार्टी के महानुभावों के कुकृत्यों ने बनाया हैं। जब देश की सेवा का दंभ भरनेवाले, घोटालों का कीर्तिमान बनाने का प्रयत्न करेंगे तो ये बेचारे अधिकारी क्या करेंगे, ये भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर, समय की रफ्तार को देखते हुए काम करेंगे। नहीं तो होगा वहीं, मंत्री-नेता मालामाल और ये बेचारे फिसड्डी हो जायेंगे। इसलिए ये अधिकारी मौके का नजाकत समझते हुए, नेताओं के साथ, उनके विचारों के साथ तालमेल बिठाते हुए बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं। मैं तो रांची में रहकर कई नेताओं और अधिकारियों को देखा हुं जो सचमुच खतरनाक जानवरों जैसा कुकृत्य कर रहे है। कानून की धज्जियां उड़ाते हुए, इतना धन इकट्टा कर लिया हैं कि अब इन्हें कोई चुनौती देने की ताकत भी नहीं रख सकता। यहीं नहीं राजधानी बनने के बाद रांची में गर सर्वाधिक अपार्टमेंट्स बने हैं या उन अपार्टमेंट्स में सर्वाधिक फ्लैट्स पर कब्जा किसी का जमा हैं तो ये चाहे तो नेता हैं, या मंत्री हैं, या अधिकारी हैं, या पत्रकार। आम जनता यहां कहां हैं। आम जनता तो आज भी राजभवन के समक्ष प्रदर्शन करती हैं कि उनका पैसा कई लोगों ने सब्जबाग दिखाकर लूट लिये हैं, पर  होता क्या हैं। सच्चाई तो ये हैं कि नेताओं, अधिकारियों और पत्रकारों की टीम ने मिलकर ऐसी लूट मचा रखी हैं कि पूछिये मत। एक उदाहरण देखिये। रांची में संजीवनी बिल्डकॉन ने गोरखधंधा चलाया। पुलिस और ब्यूरोक्रेट्स, नेताओं और मंत्रियों साथ ही साथ राजधानी के वरिष्ठ पत्रकारों के साथ मिलकर गोरखधंधा चलाया। आम जनता की गाढ़ी कमाई को लूटकर वो चलता बना, आखिर वो किसके बल पर किया। कौन लोग उससे उपकृत होते थे. क्या किसी को पता नहीं। हद तो तब हो गयी, जब इस संस्था के मालिक को झारखंड रत्न भी प्रदान कर दिया गया। जहां ऐसे ऐसे घटिया सोच वाले, खतरनाक जानवर सम्मिलित होकर झारखंड को लूट रहे हो, वहां केवल ब्यूरोक्रेट्स को खतरनाक कहना तो सरासर गलत हैं। जयराम रमेश को उदारतापूर्वक ये बयान देना चाहिए था कि झारखंड में ब्यूरोक्रेट्स, नेता, मंत्री, पुलिस और पत्रकार सभी खतरनाक जानवर हैं और इसे बचाने के लिए जयराम रमेश अथवा कांग्रेसियों को जरा भी दुख करने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि उनके इस नकली दुख व्यक्त करने की कला, जनता जानती हैं, बस समय का इंतजार करिये, जनता उठेगी और सब को उचित समय पर जवाब देगी.......................................

Sunday, March 17, 2013

ये भीख मांगने का नया तरीका हैं, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश का..................................

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने, देश के अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भीख मांगने की नयी तरकीब दिखायी हैं, पर देश के अन्य अविकसित राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में इस प्रकार की अधिकार रैली कर, भीख मांगना शुरु करेंगे, ऐसा हमें संदेह हैं। भाजपा की वैशाखी पर बिहार का सत्तासुख भोग रहे नीतीश को, भाजपा के ही कई नेता अच्छे नहीं लगते हैं। वे समय - समय पर अपनी गीदड़-भभकी से भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को उनकी औकात बताते रहते हैं, पर वे जानते हैं कि बिना भाजपा की वैशाखी पर टिके वे बिहार में एक दिन भी सत्ता में नहीं रह सकते, इसलिए समय - समय पर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के आगे झूकने का नौटंकी खूब किया करते हैं। 
हम आपको बता दें कि किसी भी रैली में भीड़ कैसे जुटती हैं या जुटायी जाती हैं, सब को पता हैं। कोई भी काम करनेवाला व्यक्ति जो काम करता हैं, वो अपने काम को नष्ट कर, किसी नेता का भाषण सुनने नहीं जायेगा, क्योंकि वो जानता हैं कि आज का नेता लाल बहादुर शास्त्री या महात्मा गांधी नहीं हैं। बिहार में इस तरह की रैली करने में माहिर लालू यादव, बहुत अच्छी तरह बता सकते हैं कि दिल्ली में हुई नीतीश की रैली में कौन - कौन से हथकंडे अपनाये गये हैं, गर लालू को मौका मिले तो वे नीतीश की अधिकार रैली से भी बड़ी रैली, दिल्ली में कर सबको आश्चर्यचकित कर सकते हैं, क्योंकि लालू ने सत्ता रहते, पटना में कभी रैली की ही नहीं, वे तो रैला किया करते थे।
बिहार की शान और बिहारियों के सम्मान करने की बात करनेवाले नीतीश ये भूल जाते हैं कि अधिकार रैली कर, केन्द्र पर दबाव बनाना, बार - बार पिछड़ों की रट लगाकर भाजपा को आंख दिखाना भी भीख मांगने की शैली हैं। नीतीश को ये भी जान लेना चाहिए कि बिहार से ज्यादा तरक्की सिक्किम और गोवा जैसे प्रांत कर रहे हैं, उन प्रांतों ने कभी भी केन्द्र को आंख नहीं दिखाया और न ही अधिकार रैली करके भीख मांगने में विश्वास किया।
रही बात बिहारियों के सम्मान की या अपमान की तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि अब आतंकी गतिविधियों में लिप्त बिहारी भी खूब दिखाई पड़ रहे हैं। दिल्ली में जो महिला के साथ रेप की घटना हुई तो उसमें एक बिहारी भी था। जब ऐसी - ऐसी घटनाओं में बिहारियों की संलिप्तता होगी तो फिर बिहार को सम्मान कहां से मिलेगा। आज भी गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली या अन्य विकसित अथवा अविकसित प्रांतों में जो बिहारी मिल रहे हैं, जो वहां रहकर अपने बिहार में रह रहे परिवारों को भरण पोषण कर रहे हैं, वो बताता हैं कि बिहारी कितने गैरत वाले हैं। कभी - कभी बिहारियों के खिलाफ विभिन्न प्रांतों में जो गुस्सा दिखता हैं, उसका मूल कारण हैं कि वहां के लोगों को लगता हैं कि ये बिहारी, उनका हक छीन रहे हैं। जब बिहार के राजनीतिज्ञ व सत्ता में शामिल लोग, अपने ही प्रांत के लोगों के साथ कभी दलित तो कभी महादलित, पिछड़ा तो कभी अंत्यत पिछड़ा के नाम पर भेदभाव बरतते हो तो वो प्रांत क्या खाक तरक्की करेगा।
जदयू में तो एक नेता हैं - नरेन्द्र सिंह, उसे तो बात करने की तमीज ही नहीं मालूम। विभिन्न चैनलों में उसके जो भाषण व बाइट दिखाई पड़ते हैं, उससे साफ पता लग जाता हैं कि बिहार में नेताओं की क्या सोच हैं। जदयू के ही  नेता हैं - अनंत सिंह, सुनील पांडे, शिवानंद तिवारी। जिनकी हरकतों से पूरे राज्य की तस्वीर साफ हो जाती हैं। ऐसे - ऐसे नेताओं व मंत्रियों से ये बिहार की सम्मान बढ़ने और बढ़ाने की बात करते हैं। ये वहीं मुख्यमंत्री नीतीश हैं जो लड़कियों के सीने से काले दुपट्टे तक उतरवा लिये, जो महिला शिक्षकों के साथ बदतमीजी में सबसे आगे रहे और बिहार के सम्मान की बात करते हैं।
जिन्होंने दलितों में भी एक और महादलित बना डाला, यानी नरकों में ठेला ठेली की बात करनेवाले को बिहार के विकास की चिंता हैं। जिसने पत्रकारों को अपने पैसों से, विज्ञापन से खरीदकर, नचनियां बना डाला। वे बिहार और बिहारियों की बात करते हैं, इन्हें शर्म भी नहीं आती। जो फूट डालों शासन करो की आधारशिला रखकर, पूरे बिहार के लोगों को बेवकूफ बना डाला। वे बिहार की चिंता करते हैं। जरा पूछिये नीतीश से जब वे रेलमंत्री थे, केन्द्र में बड़े मंत्री थे, गुजरात दंगा, उसी समय हुआ था। उस वक्त वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विषवमन क्यों नहीं करते थे, उस वक्त उन्हें मुस्लिम प्रेम क्यूं नहीं जगा था। उन्होंने राम विलास पासवान की तरह केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र क्यो नहीं दिया और आज मुस्लिम प्रेम का ढोंग  इस प्रकार रचते हैं कि पूछिये मत। सचमुच इसने जो बिहार का अपमान किया, आज तक किसी ने नहीं की। अरे इसने तो हद कर दी, महाराष्ट्र जाकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे के इशारों पर ताता थैया  किया, पर शर्म नहीं आती। शर्म आयेगा कैसे, जमीर हो, तब न.............................

Friday, March 15, 2013

देश गलत हाथों में तो नहीं..................................

पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा ठोकता है................
पाकिस्तान कश्मीर के एक तिहाई भाग पर अवैध रुप से कब्जा जमा रखा है....................
पाकिस्तान कश्मीर को लेकर, कई युद्ध हमसे लड़ चुका हैं और इसके लिए वो असंख्य युद्ध लड़ने का, समय - समय पर संकल्प भी लेता रहता है.................
पाकिस्तान ने कभी भी हमसे दोस्ती नहीं निभाई, बल्कि शत्रुता उसके रोम रोम में भरा पड़ा है...............
पाकिस्तान ने हमारे संसद पर हमला बोला...............
पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के दौरान हमारे पांच सौ से अधिक जवानों को मौत के घाट उतार डाला.........
पाकिस्तान और उसका आईएसआई भारत के विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों में आतंकी विस्फोट करके, हमसे करीब पच्चीस - तीस वर्षों से परोक्ष युद्ध लड़ रहा हैं..................
उसने भारत में एक नया संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन बना डाला हैं, जिसको लेकर वो पूरे देश में भारत के खिलाफ ऐसा नफरत पैदा कर रहा हैं कि इससे बचना भारत के लिए मुश्किल की घड़ी हैं..............
हाल ही में कई साल पहले इनके आकाओं ने दस आतंकियों की खेप मुंबई में भेजी, जिन्होंने मुंबई में ऐसा कोहराम मचाया कि उस आतंक के सदमे से अभी तक देश निकल नहीं पाया...................
हाल ही में इसके आतंकी संगठनों ने कश्मीर में हमारे एक जवान का सिर काटकर ले गये.................
हाल ही में कश्मीर के सीआरपीएफ के कैंप पर इन्होंने आतंकी हमले कर कई जवानों को मार डाला...........
और 
अब एक नयी आंतकी घटना, पाकिस्तानी संसद ने अफजल की फांसी पर भारत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया.....................
ऐसे तो जितने आतंकी घटनाएं पाकिस्तान ने भारत में कराये हैं, उसका लेखा जोखा ठीक से लिया जाये तो अब तक लाखों भारतीयों की इन आंतकी घटनाओं में जान जा चुकी हैं, पर हमारे देश के पालिटिशियनों को देखिये..............
खासकर कांग्रेसियों को, जिनके दिल में भारत, भारतीय सैनिकों और भारतीय नागरिकों के लिए जरा भी रहम नहीं हैं, वे क्या करते हैं। ये जानते हुए कि पाकिस्तान हमारे सैनिक का सर काट कर ले गया है उस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ का जयपुर में शानदार स्वागत करते है, उनके साथ भोज करते है। इससे बड़ी शर्मनाक घटना भी कोई हो सकती हैं क्या.......................
हमें तो इनकी देशभक्ति पर ही प्रश्नचिह्न लगता हैं..............
इन पालिटिशियनों को देखिये, जब इनके खानदान के किसी भी व्यक्ति का जब कोई आतंकी संगठन अपहरण कर लेता हैं, तो वे अपने परिवार के सदस्य को बचाने के लिए ये पालिटिशियन कुख्यात आतंकियों को छोड़ देते हैं ( याद करिये वी पी सिंह के शासनकाल में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद को छुड़ाने के लिेए कई आंतकी छोड़ दिये गये थे).......................
जिस देश में नेताओं का ऐसा चरित्र हो, उस देश का भी कोई सम्मान होता हैं या कोई अन्य देश सम्मान करता है क्या........उत्तर होगा - कभी नहीं.
अब एक नयी घटना देखिये...................
भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोप में भारत के जेल में बंद दो इतालवी नागरिकों को छोड़ दिया गया। ये दोनों नागरिक जैसे ही इटली पहुंचे, वहां की सरकार ने भारत को दो टुक जवाब दिया कि वो अपने इन दो इतालवी नागरिकों को भारत के हाथों नहीं सौंपेगा, गर भारत को लगता हैं कि ये दोषी हैं तो वो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाये। 
इसके बाद क्या हुआ, वहीं जो होता हैं, हमारे देश की सरकार, सांप के बिल में घूस जाने के बाद, बिल के उपर लाठी पटकने लगी..................
आश्चर्य तो इस बात की हैं कि जब इटली प्रकरण पर कई चैनलों ने कांग्रेसी नेताओं को बहस के लिए अपने यहां बुलाया तो इन्होंने आने से इनकार कर दिया। ये घटना क्या बताती हैं। हमें लगता हैं कि ज्यादा बताने की जरुरत नहीं। इनका भारत प्रेम साफ झलक जाता हैं........................
अब बात आती हैं, जिस देश में सरकार में ऐसे लोग शामिल हो, जो अपने देश के प्रति वफादार न होकर, अपने परिवार और ऐसे लोगों के प्रति वफादार हो, जिनका दिल भारत के लिए धडकता ही न हो, तो क्या ऐसे लोगों के हाथों में भारत सुरक्षित हैं या यूं ही भारत, पाकिस्तान और अन्य भारत विरोधी देशों के हाथों अपमानित होता रहेगा...................
ये भारत से प्यार करनेवाले नागरिकों के सामने यक्ष प्रश्न हैं कि क्या भारत को घटिया स्तर के नेताओं, अपनी जमीर बेचनेवाले नेताओं के हाथों सौपकर निश्चिंत हो जायेंगे..................
जरा सोचिये................
क्योंकि फिलहाल देश गलत हाथों में है........................

Sunday, March 10, 2013

झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष के लिए भाजपा में घमासान......................................

देश के हर समस्याओं के समाधान का दावा करनेवाली भाजपा, एक प्रदेश अध्यक्ष चुनने में नाकामयाब हैं। झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर घमासान हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने की लाईन में रघुवर दास, रवीन्द्र राय, सुनील सिंह, यदुनाथ पांडेय आदि नेताओं की लंबी लाइन हैं, पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सूझ ही नहीं रहा कि वे झारखंड की कमान किसके हाथों में सौंपे। इधर झारखंड में भाजपा के स्वंयभू नेता अर्जुन मुंडा परेशान हैं, वो चाहते हैं कि प्रदेश में ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बने, जो उनके इशारों पर नाचे, जैसा कि अभी दिनेशांनद गोस्वामी कर रहे हैं। इसलिए वे रवीन्द्र राय को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। उनको लगता हैं कि रवीन्द्र राय, जो उनके कहने पर प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे, वे आजन्म उनके प्रति वफादार रहेंगे, जैसा कि पूर्व में बाबू लाल मरांडी के प्रति अपनी वफादारी, उन्होंने दिखायी थी, पर स्थिति ऐसी हैं कि अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रवीन्द्र राय के नाम उछलवाने के बावजूद, अर्जुन मुंडा को सफलता नहीं मिल रही। ऐसी स्थिति में, अर्जुन मुंडा ने एक सुनियोजित साजिश के तहत भाजपा विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा देने की घोषणा करवा दी। ये जानते हुए कि ऐसी घोषणा के कोई मायने नहीं, क्योंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हैं। ऐसे में आप किसी दल के विधायक दल के नेता रहे अथवा नहीं रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता। 
अर्जुन मुंडा भाजपा के तेज व चालाक नेता हैं। किसको कैसे पटाना हैं और कैसे किनारे लगाना हैं, वे इसमें माहिर हैं। जो लोग अर्जुन मुंडा को जानते हैं, वे ये भी जानते हैं कि ये वे ही अर्जुन मुंडा हैं, जो एक समय बाबू लाल मरांडी की गणेश परिक्रमा किया करते थे, और उन्हीं की कृपा से वे मुख्यमंत्री भी बने और जैसे ही ये मुख्यमंत्री बने, उन्होंने बाबू लाल मरांडी को ऐसा परेशान किया कि बाबू लाल ने सदा के लिए भाजपा ही छोड़ दी और ये खंड खंड हो रही भाजपा के अखंड नेता बनकर उभरे। इन्होंने कभी भी देश हित अथवा दल हित में इस्तीफा देने की पेशकश नहीं की, पर जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष की बात आयी और उनकी बातों को नजरंदाज करने की कोशिश की गयी। उन्होंने इस्तीफे का दांव खेला, ताकि लोगों को लगे कि ये व्यक्ति भाजपा का महान कार्यकर्ता हैं, पर चाल तो चाल होती हैं, सभी इस चाल को समझ गये हैं। यानी बात वहीं हैं वो बात हैं कि ये एक बूंद खून बहाकर, शहीद होने की श्रेणी में खड़ा होना चाहते हैं।
सच्चाई ये हैं कि इसी प्रकार की घटिया स्तर की राजनीति के कारण भाजपा पूरी तरह से नष्ट होती जा रही हैं। कोई भी भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बने या खुद अर्जुन मुंडा ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष क्यों न बन जाये, भाजपा पुनः राज्य में प्रतिष्ठित हो जायेगी, ऐसा अब नहीं लगता, क्योंकि पूरे प्रदेश में भाजपा में फिसड्डी नेताओं का आधिपत्य हो गया हैं, जो न चरित्रवान हैं और न ही दल के प्रति समर्पित। ये भी वहीं करते हैं, जैसा कि अन्य दलों के कार्यकर्ता और नेता। जब सभी वहीं करते हैं और भाजपा भी वहीं कर रही हैं तो ऐसे में लोग भाजपा के साथ क्यों चले। सवाल यहीं बार - बार झारखंड की जनता के मन में घर कर रहा हैं और गर यहीं चलता रहा तो भाजपा के लाश पर चढ़कर अन्य पार्टियां यहां शासन करने लगे तो इस बात को लेकर किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।

Tuesday, March 5, 2013

सोनिया जैसी क्यूं बने राज्यपाल महोदय, देश में अन्य वीरांगनाओं की कमी हैं क्या....................................

झारखंड के राज्यपाल डा. सैय्यद अहमद ने राज्य की महिलाओं से अपील की हैं कि वो इंदिरा गांधी, लक्ष्मीबाई या सोनिया गांधी जैसी बनकर देश का विकास करें। इंदिरा गांधी बनना, लक्ष्मीबाई बनना तो हमें समझ में आता हैं, पर सोनिया बनना और उसका विकास से जुड़ जाना हमें समझ में नहीं आया। खासकर तब, जब इस महिला ने भारत के प्रधानमंत्री को नाइटवाच मैन बना दिया हो, जो प्रधानमंत्री अपने ढंग से सोच नहीं सकता और न ही कोई फैसला ले सकता हो, जिस महिला ने रेलमंत्री पवन कुमार बंसल को जी हूजुरी करना सिखाया हो। मैं उस पवन कुमार बंसल की बात कर रहा हूं, जिसने इस बार रेलवे बजट के दौरान राजीव गांधी को इसलिए याद किया, कि उन्होंने बंसल को राजनीति के क्षेत्र में कहां से कहां पहुंचा दिया, जिसने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र से उपर जाने की कोशिश तक नहीं की हो, उस सोनिया को इंदिरा और लक्ष्मीबाई की श्रेणी में ला खड़ा करना - बुद्धिमानी हैं या चाटुकारिता। हमें लगता हैं कि ये बताने या समझाने की जरुरत नहीं। ऐसे भी सामान्य व्यक्ति, जिसकी कोई औकात नहीं हो, और उसे किसी की कृपा से, कोई बड़ी जगह मिल जाती हैं तो उसे उस व्यक्ति को याद करना मजबूरी होती हैं, जब तक वह जिंदा रहता हैं, अथवा जिसकी कृपा से वह बार -बार उपकृत होता रहता हैं। सोनिया ने देश को कहां पहुंचा दिया वो तो इस साल का प्रस्तुत बजट ही साफ - साफ बता देता हैं। 
इधर झारखंड के राज्यपाल द्वारा विभिन्न चैनलों को दिये गये विज्ञापन भी बहुत कुछ कह देते हैं कि यहां किसका शासन हैं। आप इस विज्ञापन को साफ - साफ देखे, जिसमें एक उद्घाटन के दौरान राज्यपाल सैय्यद अहमद, पूर्व केन्द्रीय मंत्री व रांची के सांसद सुबोधकांत सहाय के साथ दीख रहे हैं। ये तस्वीर ही साफ साफ बयां करती हैं कि यहां राष्ट्रपति शासन कम और कांग्रेस का शासन ज्यादा हैं। जो अभी कुछ महीनों तक चलेगा और फिर इसी आधार पर विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए वोट भी मांगे जायेंगे। ये कहकर कि देखिये हमने राष्ट्रपति शासन के दौरान - कैसे झारखंड की कायाकल्प कर दी। हालांकि कायाकल्प हुआ या झारखंड और नीचे चला गया, इसका आकलन करना अभी ठीक नहीं हैं। अभी तो एक महीने ही हुए हैं और इस एक महीने के दौरान, ट्रेन का हाईजेक होना, चतरा में सांप्रदायिक दंगा का होना और रांची में एक व्यापारी का अपहरण कर हत्या कर देने की घटना बहुत कुछ बता देती हैं कि राज्य में किस प्रकार से शासन चल रहा हैं।
देश का दुर्भाग्य हैं कि इधर जितने भी राज्यपाल हो रहे हैं, चाहे वे किसी भी प्रदेश के क्यूं न हो। वे संवैधानिक कम, पर किसी पार्टी के प्रति और उससे भी बढ़कर उसके सुप्रीमो के प्रति ज्यादा वफादार होने का सबूत देने के लिए मौके तलाशते रहते हैं, हो सकता हैं कि कुछ लोग, एक अखबार में छपे, राज्यपाल के इस बयान को बतौर सोनिया तक भी अब तक भेज दिये हो, कि मैडम देखिये - झारखंड के महामहिम, आपको कितना सम्मान देते हैं, आप तो लक्ष्मीबाई और इंदिराजी की श्रेणी में आ गयी। मैंडम आप धन्य हैं और धन्य हैं झारखंड के राज्यपाल, जिनकी इतनी सुंदर सोच हैं। ऐसे ही कांग्रेसियों से देश व राज्य का भला होगा, दूसरे से नहीं।