कानून को ठेंगा दिखानेवाले विधायक ढुलू महतो को बचाने का प्रयास...
मनमुताबिक मंतव्य लेने के लिए, लोक अभियोजक का तबादला...
प्रभार लेने के पूर्व ही, सरकार के मनमुताबिक रिपोर्ट, धनबाद डीसी को भेजा ए के सिंह-2 ने...
मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त झारखंड बनाने का दावा करते है, पर सच्चाई इसके ठीक उलट है, ऐसे में राज्य भ्रष्टाचार मुक्त होगा या यहां भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंचेगा, ये निर्णय करने का अधिकार, मैं जनता को सौंपता हूं, वह निर्णय करें और सरकार से पूछे कि आखिर ये मामला क्या है?
ढुलू महतो, भाजपा के बाघमारा विधायक है। इसके पहले ढुलू झाविमो विधायक भी रह चुके है और कभी बाबूलाल मरांडी उनके लिए ढाल का भी काम कर चुके है, पर इधर ढुलू मुद्दे पर बाबू लाल मरांडी का दल रघुवर दास का भी क्लास ले रहा है, यानी मेरे दल में है तो संत और दूसरे दल में गया तो चोर वाली कहावत....।
और अब सीधे काम की बात...
पिछले साल 24 जून 2014 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से भेजा गया F.NO.IV/15012/4/2014-CSRII पत्र जो विधायकों/सांसदों के अपराधिक मामलों को जल्द से जल्द ट्रायल कर निबटाने से संबंधित था। झारखंड सरकार को प्राप्त हुआ। इस पत्र में संबंधित जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश - अध्यक्ष, संबंधित जिले के उपायुक्त – सदस्य, सबंधित जिले के वरीय पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक – सदस्य, संबंधित जिले के प्रभारी लोक अभियोजक/लोक अभियोजक – सचिव को मिलाकर एक जिलास्तरीय समन्वय समिति बनानी थी, जिसके आधार पर विधायकों/सांसदों से संबंधित अदालत में चल रहे अपराधिक मामलों का ट्रायल कर त्वरित निष्पादन करना था।
इस पत्र के आलोक में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने विधायक ढुलू महतो पर कृपा बरसानी शुरु कर दी और गृह मंत्रालय की ओर से उपायुक्त धनबाद को पत्र भेजा कि वह विधायक ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मामलों से संबंधित अपना मंतव्य सरकार को प्रेषित करें, ताकि ढुलू महतो पर चलाये जा रहे सारे मुकदमे वापस ले लिये जाये। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मामला धनबाद कतरास थाना कांड संख्या -120/13 है, जिसमें विधायक ढुलू महतो को सजा मिलनी तय है, साथ ही उनकी विधायक पद पर भी खतरा मंडरा रहा है, विधायकी जाने का खतरा ढुलू महतो पर इतना ज्यादा हो गया है कि वे चाहते है कि जल्द से जल्द इस मामले में सरकार उन्हें दोष मुक्त कर दें, ताकि उनकी विधायकी बच जाये। इधर उपायुक्त धनबाद ने प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद से धनबाद कतरास थाना कांड संख्या – 120/13 की मुकदमा वापसी के संबंध में मंतव्य मांगा। उपायुक्त धनबाद को तत्कालीन प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी ने बिना देर किये अपने लिखित मंतव्य में मुकदमे का वापस लिया जाना लोकहित व न्यायहित के खिलाफ बता दिया।
प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद ने उपायुक्त धनबाद को 29.09.2014 पत्रांक संख्या 2952 के हवाले से अपना मंतव्य देते हुए लिखा कि –
कंडिका 4 – यह कि उपर्युक्त वाद धारा 147/148/149/341/323/353/332/290/427/283/224/225/504 भादवि के अंतर्गत सूचक रामनारायण चौधरी, तत्कालीन थाना प्रभारी, बरोरा थाना के द्वारा किया गया है जिसमें ढुलू महतो पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वे अपने समर्थकों के सहयोग से पुलिस बल पर हरवे हथियार के साथ हमला कर गिरफ्तार वारंटी को छुड़ा ले गये एवं वादी का सर्विस पिस्टल छीनने का प्रयास किया, साथ ही पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट कर एक पुलिसकर्मी की वर्दी भी फाड़ दी। इस प्रकार इस कांड में सरकार के विरुद्ध गंभीर अपराध कर सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाई।
कंडिका 5 – यह कि, इस घटना के पूर्व भी ढुलू महतो के विरुद्ध अनुमंडल न्यायालय में निम्नलिखित वाद गवाही पर लंबित है –
1. GR4041/06, U/S 147/149/353/332/224/511 IPC
2. GR1782/06, U/S 143/144/341/353/506/290/283IPC
3. GR851/07, U/S 147/148/341/323/332/353/149/225/511 IPC
4. GR3183/10,U/S 147/148/323/341/342/353/286/186/504/506IPC
इसके अलावा और भी कई वाद भिन्न-भिन्न न्यायालय में ढुलू महतो के विरुद्ध लंबित है।
कंडिका 8 – यह कि मुकदमे की वापसी होने की स्थिति में समाज पर एक ऐसे विधायक के तौर पर छवि उभरकर सामने आएगी जो कानून तोड़कर भी कानून की गिरफ्त से बाहर है और वह सरकार के विरुद्ध कोई भी न्याय विरोधी कार्य कर सकता है।
उपर्युक्त बातों पर विचार करते हुए मेरा मंतव्य है कि विधि का शासन कायम करने हेतु इस मुकदमे को वापस करना न्यायहित व लोकहित में उचित नहीं है।
प्रभारी लोक अभियोजक, डी एम त्रिपाठी के इस मंतव्य ने सरकार की नींद उड़ा दी और ये समझ लिया गया कि डी एम त्रिपाठी के रहते ढुलू को मुकदमे से वापसी संभव नहीं, इसलिए सरकार के गृह मंत्रालय ने डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण करने का फैसला लिया और 27 जून 2015 दिन शनिवार, यानी जिस दिन झारखंड मंत्रालय बंद रहता है, प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण का आदेश दे डाला। डी एम त्रिपाठी को जिला अभियोजन कार्यालय बोकारो और डी एम त्रिपाठी की जगह अनिल कुमार सिंह-2 को अपर लोक अभियोजक धनबाद बनाकर भेजा गया, ताकि सरकार के अनुरुप अनिल कुमार सिंह -2 प्रस्ताव बनाकर उपायुक्त को भेज सकें और फिर सरकार मनमाफिक निर्णय ले सके। हुआ भी यहीं, पर इस बार सरकार की कलई खुल गयी। अनिल कुमार सिंह – 2 ने 23 जुलाई 2015 को लोक अभियोजक धनबाद के रुप में पदभार ग्रहण किया, पर पदभार ग्रहण करने के पूर्व ही सरकार के मनमुताबिक प्रस्ताव जो ढुल्लू महतो को निर्दोष साबित करता था, बनाकर 13 जुलाई 2015 को ही उपायुक्त धनबाद को संप्रेषित कर दी, जबकि उपायुक्त धनबाद ने लोक अभियोजक अनिल कुमार सिंह से रिपोर्ट भी नहीं मांगी थी। उपायुक्त ने दुबारा ढुलू महतो से संबंधित रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक धनबाद से मांगी थी, बाद में पुलिस अधीक्षक ने इस पत्र को बाघमारा डीएसपी को भेजा और इसकी प्रतिलिपि सिर्फ सूचनार्थ लोक अभियोजक को भेजी थी। पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से जारी 6 जुलाई 2015 का पत्रांक संख्या 3448 देखा जा सकता है।
अब सवाल सरकार से, खासकर मुख्यमंत्री से.............
क. क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रपत्र को आधार बनाकर, एक अपराध से संबंधित व्यक्ति जो विधायक बन गया है, जिसने कानून को चुनौती दी, सरकार को चुनौती दी, लोकशाही को चुनौती दी, उसे बचाना क्या भ्रष्टाचार नहीं है?, और जब ऐसा करना भ्रष्टाचार नहीं है, तो फिर केवल ढुलू महतो को ही बचाने का ये अभियान क्यों चल रहा है?, ऐसे और भी अपराधी है, जो विधायक बने है, उन पर भी मुख्यमंत्री कृपा क्यों नही लूटा रहे?
ख. आखिर जब प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी से उपायुक्त धनबाद ने ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मुकदमों पर मंतव्य मांगा और डी एम त्रिपाठी ने अपना मंतव्य देने के साथ ही इसे न्यायहित और लोकहित के खिलाफ बताया तो सरकार ने इस मंतव्य को मानने से इनकार क्यों किया? डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण क्यों किया गया?
ग. डी एम त्रिपाठी की जगह पर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों लाया गया?, जबकि उनके पहले कई ऐसे सीनियर है जो लोक अभियोजक धनबाद हो सकते थे, उन्हें न बनाकर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों?, क्या सरकार को पता था कि अन्य लोक अभियोजक उनके सुर में सुर नहीं मिला सकते, और अनिल कुमार सिंह – 2 ऐसा कर सकते है।
घ. अनिल कुमार सिंह – 2 प्रभार लेते है – 23 जुलाई 2015 को, और वे अपना प्रस्ताव 13 जुलाई 2015 को ही धनबाद उपायुक्त के पास भेज देते है, वह भी ढुलू महतो के बचाव में, आखिर ये क्या मामला है? क्या उपायुक्त धनबाद ने उनसे कोई रिपोर्ट मांगी थी? वह भी प्रभार लेने के पूर्व ही कोई व्यक्ति वो काम कैसे कर सकता हैं?, जिसकी इजाजत कानून भी नहीं दे सकता, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?
ङ. क्या सरकार बता सकती है कि ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी के स्थानांतरण के लिए कार्य दिवस के दिन कार्य न करके, एक ऐसे दिन स्थानांतरण का आदेश निकाला गया, जिस दिन सरकार की आफिस ही बंद रहती है?
च. क्या राज्य सरकार की डिक्शनरी में भ्रष्टाचार का पैमाना दूसरा और अन्य के लिए कुछ और होता है?
छ. 24 अक्टूबर 2015 को सारे समाचार पत्रों में यह भी समाचार प्रकाशित हुआ है कि विधायक ढुलू महतो की गुंडागर्दी से आजिज होकर सिजुआ क्षेत्र के जीएम जे पी गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया। जीएम जे पी गुप्ता का कहना है कि सभी चीजों के लिए सिस्टम बना हुआ है। मगर विधायक ने अनुचित रुप से दबाव बना कर उन्हें निचितपुर कोलियरी जहां एक मजदूर की मौत हुई थी। उक्त घटनास्थल पर बुलाया और जबरन चार लाख रुपये मुआवजा दिलाने की घोषणा कर दी। आपत्तिजनक शब्दों के नारे भी लगवाये। इससे आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
ज. हद तो ये भी हो गयी कि 20 अक्टूबर को धनबाद के कतरास में प्रशासन द्वारा आयोजित शांति समिति के बैठक में, भाजपा विधायक ढुलू महतो ने शांति समिति में भाग ले रहे सदस्यों को चोर - चुहाड़ तक कह डाला, क्या एक विधायक की यहीं भाषा है, कि वह किसी को भी, कही भी बेइज्जत कर सकता है, वह भी यह कहकर कि वह भाजपा विधायक है।
सूत्र बताते है कि ढुल्लू महतो को बचाने के लिए मुख्यमंत्री इसलिए रुचि ले रहे हैं कि इनसे उनका राजनीतिक और अन्य स्वार्थ सिद्ध हो रहा है...और इसमें भाजपा के कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं की भी मिलीभगत है। आश्चर्य इस बात की, कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का ढुलू महतो से इतना जल्द प्रेम प्रगाढ़ हो जायेगा, यहां के नेताओं को इसका अंदाजा ही नहीं था, हालांकि कुछ दिन पहले धनबाद में भाजपा के ही विधायक फूलचंद मंडल और ढुलू महतो के गुर्गों के बीच मुठभेड़ हो चुकी है, जिसकी खबर धनबाद से प्रकाशित होनेवाली सारी अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया...फिर भी राज्य सरकार का ढुल्लू प्रेम, आम जनता के लिए कौतूहल का विषय बन गया है, साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के भ्रष्टाचारमुक्त झारखंड बनाने के दावे पर अब सवाल भी उठने लगे है...
सरकार जवाब दें...
मनमुताबिक मंतव्य लेने के लिए, लोक अभियोजक का तबादला...
प्रभार लेने के पूर्व ही, सरकार के मनमुताबिक रिपोर्ट, धनबाद डीसी को भेजा ए के सिंह-2 ने...
मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त झारखंड बनाने का दावा करते है, पर सच्चाई इसके ठीक उलट है, ऐसे में राज्य भ्रष्टाचार मुक्त होगा या यहां भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंचेगा, ये निर्णय करने का अधिकार, मैं जनता को सौंपता हूं, वह निर्णय करें और सरकार से पूछे कि आखिर ये मामला क्या है?
ढुलू महतो, भाजपा के बाघमारा विधायक है। इसके पहले ढुलू झाविमो विधायक भी रह चुके है और कभी बाबूलाल मरांडी उनके लिए ढाल का भी काम कर चुके है, पर इधर ढुलू मुद्दे पर बाबू लाल मरांडी का दल रघुवर दास का भी क्लास ले रहा है, यानी मेरे दल में है तो संत और दूसरे दल में गया तो चोर वाली कहावत....।
और अब सीधे काम की बात...
पिछले साल 24 जून 2014 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से भेजा गया F.NO.IV/15012/4/2014-CSRII पत्र जो विधायकों/सांसदों के अपराधिक मामलों को जल्द से जल्द ट्रायल कर निबटाने से संबंधित था। झारखंड सरकार को प्राप्त हुआ। इस पत्र में संबंधित जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश - अध्यक्ष, संबंधित जिले के उपायुक्त – सदस्य, सबंधित जिले के वरीय पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक – सदस्य, संबंधित जिले के प्रभारी लोक अभियोजक/लोक अभियोजक – सचिव को मिलाकर एक जिलास्तरीय समन्वय समिति बनानी थी, जिसके आधार पर विधायकों/सांसदों से संबंधित अदालत में चल रहे अपराधिक मामलों का ट्रायल कर त्वरित निष्पादन करना था।
इस पत्र के आलोक में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने विधायक ढुलू महतो पर कृपा बरसानी शुरु कर दी और गृह मंत्रालय की ओर से उपायुक्त धनबाद को पत्र भेजा कि वह विधायक ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मामलों से संबंधित अपना मंतव्य सरकार को प्रेषित करें, ताकि ढुलू महतो पर चलाये जा रहे सारे मुकदमे वापस ले लिये जाये। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मामला धनबाद कतरास थाना कांड संख्या -120/13 है, जिसमें विधायक ढुलू महतो को सजा मिलनी तय है, साथ ही उनकी विधायक पद पर भी खतरा मंडरा रहा है, विधायकी जाने का खतरा ढुलू महतो पर इतना ज्यादा हो गया है कि वे चाहते है कि जल्द से जल्द इस मामले में सरकार उन्हें दोष मुक्त कर दें, ताकि उनकी विधायकी बच जाये। इधर उपायुक्त धनबाद ने प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद से धनबाद कतरास थाना कांड संख्या – 120/13 की मुकदमा वापसी के संबंध में मंतव्य मांगा। उपायुक्त धनबाद को तत्कालीन प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी ने बिना देर किये अपने लिखित मंतव्य में मुकदमे का वापस लिया जाना लोकहित व न्यायहित के खिलाफ बता दिया।
प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद ने उपायुक्त धनबाद को 29.09.2014 पत्रांक संख्या 2952 के हवाले से अपना मंतव्य देते हुए लिखा कि –
कंडिका 4 – यह कि उपर्युक्त वाद धारा 147/148/149/341/323/353/332/290/427/283/224/225/504 भादवि के अंतर्गत सूचक रामनारायण चौधरी, तत्कालीन थाना प्रभारी, बरोरा थाना के द्वारा किया गया है जिसमें ढुलू महतो पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि वे अपने समर्थकों के सहयोग से पुलिस बल पर हरवे हथियार के साथ हमला कर गिरफ्तार वारंटी को छुड़ा ले गये एवं वादी का सर्विस पिस्टल छीनने का प्रयास किया, साथ ही पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट कर एक पुलिसकर्मी की वर्दी भी फाड़ दी। इस प्रकार इस कांड में सरकार के विरुद्ध गंभीर अपराध कर सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाई।
कंडिका 5 – यह कि, इस घटना के पूर्व भी ढुलू महतो के विरुद्ध अनुमंडल न्यायालय में निम्नलिखित वाद गवाही पर लंबित है –
1. GR4041/06, U/S 147/149/353/332/224/511 IPC
2. GR1782/06, U/S 143/144/341/353/506/290/283IPC
3. GR851/07, U/S 147/148/341/323/332/353/149/225/511 IPC
4. GR3183/10,U/S 147/148/323/341/342/353/286/186/504/506IPC
इसके अलावा और भी कई वाद भिन्न-भिन्न न्यायालय में ढुलू महतो के विरुद्ध लंबित है।
कंडिका 8 – यह कि मुकदमे की वापसी होने की स्थिति में समाज पर एक ऐसे विधायक के तौर पर छवि उभरकर सामने आएगी जो कानून तोड़कर भी कानून की गिरफ्त से बाहर है और वह सरकार के विरुद्ध कोई भी न्याय विरोधी कार्य कर सकता है।
उपर्युक्त बातों पर विचार करते हुए मेरा मंतव्य है कि विधि का शासन कायम करने हेतु इस मुकदमे को वापस करना न्यायहित व लोकहित में उचित नहीं है।
प्रभारी लोक अभियोजक, डी एम त्रिपाठी के इस मंतव्य ने सरकार की नींद उड़ा दी और ये समझ लिया गया कि डी एम त्रिपाठी के रहते ढुलू को मुकदमे से वापसी संभव नहीं, इसलिए सरकार के गृह मंत्रालय ने डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण करने का फैसला लिया और 27 जून 2015 दिन शनिवार, यानी जिस दिन झारखंड मंत्रालय बंद रहता है, प्रभारी लोक अभियोजक, धनबाद डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण का आदेश दे डाला। डी एम त्रिपाठी को जिला अभियोजन कार्यालय बोकारो और डी एम त्रिपाठी की जगह अनिल कुमार सिंह-2 को अपर लोक अभियोजक धनबाद बनाकर भेजा गया, ताकि सरकार के अनुरुप अनिल कुमार सिंह -2 प्रस्ताव बनाकर उपायुक्त को भेज सकें और फिर सरकार मनमाफिक निर्णय ले सके। हुआ भी यहीं, पर इस बार सरकार की कलई खुल गयी। अनिल कुमार सिंह – 2 ने 23 जुलाई 2015 को लोक अभियोजक धनबाद के रुप में पदभार ग्रहण किया, पर पदभार ग्रहण करने के पूर्व ही सरकार के मनमुताबिक प्रस्ताव जो ढुल्लू महतो को निर्दोष साबित करता था, बनाकर 13 जुलाई 2015 को ही उपायुक्त धनबाद को संप्रेषित कर दी, जबकि उपायुक्त धनबाद ने लोक अभियोजक अनिल कुमार सिंह से रिपोर्ट भी नहीं मांगी थी। उपायुक्त ने दुबारा ढुलू महतो से संबंधित रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक धनबाद से मांगी थी, बाद में पुलिस अधीक्षक ने इस पत्र को बाघमारा डीएसपी को भेजा और इसकी प्रतिलिपि सिर्फ सूचनार्थ लोक अभियोजक को भेजी थी। पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से जारी 6 जुलाई 2015 का पत्रांक संख्या 3448 देखा जा सकता है।
अब सवाल सरकार से, खासकर मुख्यमंत्री से.............
क. क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रपत्र को आधार बनाकर, एक अपराध से संबंधित व्यक्ति जो विधायक बन गया है, जिसने कानून को चुनौती दी, सरकार को चुनौती दी, लोकशाही को चुनौती दी, उसे बचाना क्या भ्रष्टाचार नहीं है?, और जब ऐसा करना भ्रष्टाचार नहीं है, तो फिर केवल ढुलू महतो को ही बचाने का ये अभियान क्यों चल रहा है?, ऐसे और भी अपराधी है, जो विधायक बने है, उन पर भी मुख्यमंत्री कृपा क्यों नही लूटा रहे?
ख. आखिर जब प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी से उपायुक्त धनबाद ने ढुलू महतो से संबंधित अपराधिक मुकदमों पर मंतव्य मांगा और डी एम त्रिपाठी ने अपना मंतव्य देने के साथ ही इसे न्यायहित और लोकहित के खिलाफ बताया तो सरकार ने इस मंतव्य को मानने से इनकार क्यों किया? डी एम त्रिपाठी का स्थानांतरण क्यों किया गया?
ग. डी एम त्रिपाठी की जगह पर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों लाया गया?, जबकि उनके पहले कई ऐसे सीनियर है जो लोक अभियोजक धनबाद हो सकते थे, उन्हें न बनाकर अनिल कुमार सिंह – 2 को ही क्यों?, क्या सरकार को पता था कि अन्य लोक अभियोजक उनके सुर में सुर नहीं मिला सकते, और अनिल कुमार सिंह – 2 ऐसा कर सकते है।
घ. अनिल कुमार सिंह – 2 प्रभार लेते है – 23 जुलाई 2015 को, और वे अपना प्रस्ताव 13 जुलाई 2015 को ही धनबाद उपायुक्त के पास भेज देते है, वह भी ढुलू महतो के बचाव में, आखिर ये क्या मामला है? क्या उपायुक्त धनबाद ने उनसे कोई रिपोर्ट मांगी थी? वह भी प्रभार लेने के पूर्व ही कोई व्यक्ति वो काम कैसे कर सकता हैं?, जिसकी इजाजत कानून भी नहीं दे सकता, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है?
ङ. क्या सरकार बता सकती है कि ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि प्रभारी लोक अभियोजक डी एम त्रिपाठी के स्थानांतरण के लिए कार्य दिवस के दिन कार्य न करके, एक ऐसे दिन स्थानांतरण का आदेश निकाला गया, जिस दिन सरकार की आफिस ही बंद रहती है?
च. क्या राज्य सरकार की डिक्शनरी में भ्रष्टाचार का पैमाना दूसरा और अन्य के लिए कुछ और होता है?
छ. 24 अक्टूबर 2015 को सारे समाचार पत्रों में यह भी समाचार प्रकाशित हुआ है कि विधायक ढुलू महतो की गुंडागर्दी से आजिज होकर सिजुआ क्षेत्र के जीएम जे पी गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया। जीएम जे पी गुप्ता का कहना है कि सभी चीजों के लिए सिस्टम बना हुआ है। मगर विधायक ने अनुचित रुप से दबाव बना कर उन्हें निचितपुर कोलियरी जहां एक मजदूर की मौत हुई थी। उक्त घटनास्थल पर बुलाया और जबरन चार लाख रुपये मुआवजा दिलाने की घोषणा कर दी। आपत्तिजनक शब्दों के नारे भी लगवाये। इससे आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
ज. हद तो ये भी हो गयी कि 20 अक्टूबर को धनबाद के कतरास में प्रशासन द्वारा आयोजित शांति समिति के बैठक में, भाजपा विधायक ढुलू महतो ने शांति समिति में भाग ले रहे सदस्यों को चोर - चुहाड़ तक कह डाला, क्या एक विधायक की यहीं भाषा है, कि वह किसी को भी, कही भी बेइज्जत कर सकता है, वह भी यह कहकर कि वह भाजपा विधायक है।
सूत्र बताते है कि ढुल्लू महतो को बचाने के लिए मुख्यमंत्री इसलिए रुचि ले रहे हैं कि इनसे उनका राजनीतिक और अन्य स्वार्थ सिद्ध हो रहा है...और इसमें भाजपा के कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं की भी मिलीभगत है। आश्चर्य इस बात की, कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का ढुलू महतो से इतना जल्द प्रेम प्रगाढ़ हो जायेगा, यहां के नेताओं को इसका अंदाजा ही नहीं था, हालांकि कुछ दिन पहले धनबाद में भाजपा के ही विधायक फूलचंद मंडल और ढुलू महतो के गुर्गों के बीच मुठभेड़ हो चुकी है, जिसकी खबर धनबाद से प्रकाशित होनेवाली सारी अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया...फिर भी राज्य सरकार का ढुल्लू प्रेम, आम जनता के लिए कौतूहल का विषय बन गया है, साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के भ्रष्टाचारमुक्त झारखंड बनाने के दावे पर अब सवाल भी उठने लगे है...
सरकार जवाब दें...
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