Friday, October 9, 2015

शर्मनाक घटना। ईसाई मिशनरियों ने गरीबी का मजाक उड़ाते हुए, गरीबी की सौदेबाजी की, धर्मांतरण कराया........

शर्मनाक घटना। ईसाई मिशनरियों ने गरीबी का मजाक उड़ाते हुए, गरीबी की सौदेबाजी की, धर्मांतरण कराया........
आज के प्रभात खबर में पृष्ठ संख्या 14 पर खबर छपी है। खबर चौंकानेवाला है, साथ ही यह समाचार ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के कुचक्र को सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
गुमला के जिलपीदह गांव के 60 परिवारों ने ईसाई धर्म अपनाया हैं। ये सारे परिवार आदिम जनजाति के हैं, जो सरना धर्म को मानते थे, पर अब ईसाई धर्मानुसार आचरण कर रहे हैं, चर्च जाते हैं, ईसाई विधि से प्रार्थना कर रहे हैं। इनका कहना हैं कि उनका गांव विकास से कोसो दूर है, सड़क नहीं है, बिजली नहीं है, आजीविका का कोई साधन नहीं, अशिक्षा है। इसलिए ईसाई धर्म अपना लिया, इससे अब कम से कम उनके बच्चे पढ़ तो सकेंगे........
यानी गरीबी ने इन्हें धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया और इस गरीबी का नाजायज फायदा उठाया यहां के ईसाई मिशनरियों ने। ये घटना स्पष्ट करती है कि राज्य में किस प्रकार गरीबी से जूझ रहे आदिवासी बंधुओं और सरना धर्म के माननेवालों पर ईसाई मिशनरियां कुचक्र रचते हुए, उनके मूल धर्म से विमुख कर, उनकी संस्कृति पर चोट कर रही हैं।
धर्म क्या कहता है?
मेरे धर्म ने तो यहीं सिखाया कि किसी की गरीबी का नाजायज फायदा उठाना महापाप है। यह अनैतिक और अमानवीय है, फिर भी धर्म के नाम पर विदेशी धन पर ऐश करनेवालों के लिए इससे बड़ा कोई धर्म ही नहीं। ये धर्मांतरण का खेल कोई आज से नहीं चल रहा, ये अंग्रेजों के समय से चलता रहा, पर उस वक्त के आदिवासी महानायकों ने ईसाई मिशनरियों के खेल को समझा और उनका प्रतिकार किया। भगवान बिरसा मुंडा का प्रतिकार जगजाहिर है, पर आजादी के बाद, धर्मांतरण का खेल इस प्रकार चल रहा है और फलीभूत हो रहा हैं कि आनेवाले समय में झारखंड से आदिवासियों का मूल धर्म ही समाप्त हो जायेगा और ये केवल अतीत की बाते रह जायेगी।
हालांकि आदिवासी सरना धर्म को लेकर सचेत है और इस प्रकार के धर्मांतरण का समय-समय पर विरोध कर रहे हैं, पर इन्हें सफलता नहीं मिल रही। सरकार की विकास योजनाएं भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ जा रही हैं, पर ईसाई मिशनरियों की योजनाएं सरकार के माध्यम से ही फलीभूत हो रही है और वे इसका जमकर सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर लाभ भी उठा रहे हैं और धर्मांतरण भी करा रहे है। आश्चर्य इस बात की है कि जहां ये धर्मांतरण हुआ, वहां एक सामाजिक संस्था विकास भारती भी काम करती है, पर ये विकास भारती इस जगह पर कैसे फेल हो गयी?, आश्चर्यजनक है। ये वही विकास भारती है, जिसके स्वयंभू अशोक भगत है, जिन्हें हाल ही में राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। जो खूब इन इलाकों में विकास की गति तेज करने का ढोल पीटते है।
शर्म आनी चाहिए ईसाई मिशनरियों को.........
क्या किसी की गरीबी का नाजायज फायदा उठाना सहीं है?
क्या किसी को लालच देकर उसकी गरीबी का मजाक उड़ाना सही है?
क्या ईसाई मिशनरियां बता सकती है कि फादर कामिल बुल्के ने राम और तुलसी में क्या देखा था?
क्या धर्मांतरण कर देने से उन गरीब आदिवासियों की सारी समस्याएं समाप्त हो जायेगी?
आखिर भगवान बिरसा ने ईसाई मिशनरियों के खिलाफ हल्ला क्यों बोला था?
आखिर पश्चिम देशों में पढ़े – लिखे ईसाई समुदाय क्यों धर्मांतरित हो रहे है?
केवल सेवा का भाव मन में रखने का ढोंग करनेवालों, किसी का धर्मांतरण करके कौन सी सेवा कर रहे हो, ये तो सेवा के नाम पर धोखाधड़ी, बनियागिरी और सौदेबाजी है?
मेरे विचार से, इस घटना की जितनी निंदा की जाय, वह कम है..........
मैं सरनाधर्मावलंबियों से कहूंगा कि गरीब होना कोई पाप नहीं, पर गरीबी के नाम पर स्वयं को धर्मांतरित कर देना, अपने पूर्वजों, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति का अपमान है, ये व्यक्ति को नरक की ओर ले जाता है। अपने धर्म और अपनी संस्कृति पर मान करना सीखो, गर्व से खुद को झारखंडी कहो, आदिवासी कहो, सरनाधर्मावलंबी कहो। जो भी तुम्हारी गरीबी का फायदा उठाने की कोशिश करे, उसका मुकाबला करो, न कि उसके आगे घूटने टेक दो।

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