Saturday, October 3, 2015

देश में दंगा भड़काने का काम, अब मीडिया का.......

देश में दंगा भड़काने का काम, अब मीडिया का.......
देश की जनता, सावधान...
मीडिया ने देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का संकल्प ले लिया...
देश की जनता से विनम्र निवेदन है कि वे मीडिया की बातों में न आए, मीडिया में काम करनेवाले लोग, ज्यादातर बेवकूफ, आला दर्जें के गधे व खुद को तेज समझनेवाले बीमारी से पीड़ित इंसान होते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी उन्हीं के गिरफ्त में है, जबकि उनके सामनेवाला व्यक्ति आला दर्जें का मूर्ख है। इसलिए वे कभी – कभी समाचार पत्र तो कभी विभिन्न चैनलों में डिस्कसन के माध्यम से तो कभी फेसबुक, टिवटर, वाट्सएप पर अपना अधकचरा ज्ञान बिखरते रहते है। अपने घटियास्तर के धनपशु मालिकों के इशारे पर ताता –थैया करते हुए, देश की एकता व अखंडता के साथ खिलवाड़ भी करते है। वे अपनी अखबारों व चैनलों में अधूरी ज्ञान के चलते कभी-कभी कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा भी बता देते है।
इधर उनके दिमाग में एक जबर्दस्त कीड़ा घूस गया है, जो कैंसर और एड्स से भी ज्यादा खतरनाक है। वे आजकल गाय और गाय से संबंधित डिस्कशन, कार्टून व बेवजह के घटियास्तर के इंसानों के बयान छाप रहे, दिखा रहे और विभिन्न सूचना तंत्रों के माध्यम से इसे फैला रहे है, ताकि देश में सांप्रदायिक उन्माद फैले और देश की समरसता पूरी तरह से नष्ट हो जाये। ये किनके इशारे पर ऐसा कर रहे है, थोड़ा सा आप दिमाग लगायेंगे तो पता चल जायेगा।
सबसे पहले आप उदाहरण देख लीजिये...
रांची से प्रकाशित एक उर्दू अखबार फारुकी तंजीम ने गाय से संबंधित एक आलेख छापा, जिसके कारण पूरे राज्य में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसी अखबार ने कुछ दिन पहले एक लेख छापा जिसमें लिखा था कि हिन्दुस्तान ने कभी भी पाकिस्तान से कोई जंग जीती ही नहीं।
अभी एक दो दिन पहले की घटना है – एबीपी न्यूज ने एक सेलिब्रेटी (पता नहीं वह सेलिब्रेटी है भी या नहीं, क्योंकि जिसको सेलिब्रेटी एबीपी ने कहा हैं उसे बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिसे जानते ही नहीं, लेकिन एबीपी उसे सेलिब्रेटी मानता है) के माध्यम से बयान दिखाया व अन्य संचार माध्यमों से उसे जन- जन तक पहुंचवाया कि “मैंने अभी – अभी बीफ खाया हैं आओ मेरा कत्ल कर दो”। सवाल उठता है कि कौन क्या खा रहा है?, और क्यूं खा रहा हैं?, उससे आम आदमी को क्या मतलब? कोई एबीपी से पूछने गया था क्या? कि वो सेलिब्रेटी क्या खाने में शान समझ रही है? अरे बहुत सारे देश है – जहां इसानों के मांस भी इंसान बड़े शौक से खाते है।
यहीं नहीं दिल्ली से प्रसारित एक राष्ट्रीय चैनल एनडीटीवी ने कुछ साल पहले जब दिल्ली में कथित तौर पर चर्च पर हमले हो रहे थे, तो वह बार – बार इस प्रकार के समाचार को ज्यादा प्रसारित करता था और उसमें जानबूझकर यह दिखाने की कोशिश करता था कि ऐसा करने में हिन्दू संगठनों का हाथ है, जबकि उसी के समाचार में अधिकारियों का बयान आता था कि यहां पर आग शार्ट सर्किट से लगी है, पर वह विद्युत अधिकारियों व कर्मचारियों की बातों को नजरंदाज कर, हिन्दू संगठनों पर ही इसका दोष मढ़ देता था। इसके प्रमाण हैं, मेरे पास, एनडीटीवी द्वारा प्रसारित सारे समाचार उस वक्त के, मेरे सामने देखिये, बताता हूं कि उक्त चैनल ने कैसे ढोंग करके देश में सांप्रदायिकता के बीज बोए।
एक और घटना। मैं आपको बता दूं ये कल की ही बात है, जब मैंने फेसबुक खोला, तो एक हमारे वामपंथी मित्र ने सलमान रिज्वी का एक फोटो शेयर किया। फोटो में क्या था, जान लीजिये। फोटो में था - एक साधु के पास सिर कटी लाश पड़ी है, साधु एक हाथ में नर मुंड लिये है और दूसरे हाथ में आरती का थाल लेकर गाय की आरती उतार रहा है। जब मैंने उस फोटो को देखकर, कमेंटस किया कि जनाब आपने ये फोटो शेयर तो कर दिया पर जब इसका जवाब आयेगा तो क्या आप उसे भी इसी प्रकार स्वीकार करेंगे...तुंरत मैंने देखा कि वे जनाब, जिन्होंने इस प्रकार का फोटो शेयर किया था, तुरंत उसे हटा लिया।
आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जब आप किसी की भावना से खिलवाड़ करेंगे तो आप भी अपनी भावनाओं का खिलवाड़ करवाने के लिए तैयार रहे, क्योंकि न्यूटन का तीसरा नियम साफ कहता हैं कि – क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती हैं, पर आज के वामपंथी सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया दूसरे के माथे पटकना जानते हैं, पर उसके जवाब में कुछ भी लेने को तैयार नहीं, भला ऐसा भी कहीं हुआ है।
अभिव्यक्ति के नाम पर कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मकबूल फिदा हुसैन का बचाव किया था। वह मकबूल फिदा हुसैन जो हमारे देवी – देवताओं की नग्न चित्र बनाता था। मैं पूछता हूं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा ही कोई हरकत कोई दूसरा वर्ग करेगा, तो उसे भी हमें स्वीकार करना पड़ेगा। एक के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरे पर तलवार की मार, ये दोगली संस्कृति का प्रतीक है। अब मैं पूछता हूं कि
अपने ही देश में जो मीडिया, इस प्रकार की हरकत कर रही है, उससे क्या होगा? वैमनस्यता फैलेगी या नहीं, सांप्रदायिक उन्माद फैलेगा या नहीं, और ऐसे में फिर क्या होगा? इंसान ही इंसान को काटने के लिए दौड़ेगा तो इसे क्या कहोगे?
पहले देश में सांप्रदायिक उन्माद व जातीय उन्माद फैलाने का काम नेताओं का हुआ करता था। जिससे उन्हें फायदा भी मिलता था। सांप्रदायिक व जातीय उन्माद से उन्हें एक खास वर्ग के वोटों का ध्रुवीकरण होता था और वे सत्ता हासिल कर लेते थे। आज भी ये नेता इस कार्य को गति दे रहे है, पर अब एक नया वर्ग भी इसके साथ पैदा हुआ है। वह हैं मीडिया का। अब सांप्रदायिक व जातीय उन्माद फैलाने का काम पूरी तरह मीडिया ने ले लिया है। वह बड़े ही सुनियोजित साजिश के तहत पूरे देश में सांप्रदायिक व जातीय उन्माद फैला रही है। इसमें दक्षिणपंथी व वामपंथी दोनों मीडिया का ग्रुप शामिल है। वामपंथी मीडिया बड़े प्रेम और चालाकी से अल्पसंख्यकों की ओर से फैलाये जा रहे सांप्रदायिक उन्माद का समर्थन करता है और इसकी सारी गोष्ठियां और कार्यक्रम अल्पसंख्यकों द्वारा चलाये जा रहे संगठनों में ही आयोजित किये जाते है, जबकि बहुसंख्यकों के सांप्रदायिक उन्माद को दक्षिणपंथी संगठन समर्थन करते है। इससे पूरा देश प्रभावित हो रहा है। इसलिए आप सारे देशवासी इन मीडिया में काम करनेवाले तेज लोगों से आज ही सतर्क हो जाय। नहीं तो, न तो आप बचेंगे और न ही देश। अतः जैसे ही दाढ़ी बढ़ाकर कोई खुद को वामपंथी बताकर उपदेश दें, या टीका लगाकर दक्षिणपंथी पत्रकार बताकर आपके समक्ष उपदेश देना शुरु करें तो बस उसे वही टोकिये और कहिये, हमें आपके भाषण की जरुरत नहीं। हमें कैसे रहना हैं, हमें रहना आता है, हमें कोई ज्ञान न दें। जरा देखिये, आपके ही रांची में क्या हुआ? किसकी इज्जत गयी, पूरे देश में। इसलिए आज ही इन मीडिया व मीडियाकर्मियों से सावधान हो जाओ व देश बचाओ। सारे भारतवासी एक है। कबीर की एक वाणी याद रखो ---
कबिरा तेरा झोपड़ा गलकटियन के पास।
करेगा सो भरेगा, तू क्यों रहे उदास।।

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