Monday, September 12, 2016

देखिये बिहार के बेशर्म पत्रकारों को...

हत्या और शव को तेजाब से गला देने के जिस मामले में शहाबुद्दीन को जमानत मिली है, उस पीड़ित परिवार के घर पर सन्नाटा पसरा है, प्रभावित परिवार के चंदा बाबू और उनकी पत्नी बेहद दुखी है, शहाबुद्दीन के बेल मिलने पर वे राज्य सरकार को कटघरे में रखते है। वे कहते है कि मुझे यहां की व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा। तीन बेटों की हत्या के बाद अब उनके दैनिक जीवन पर किसी भी खुशी या गम का कोई असर नहीं होता...
दूसरी ओर हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव की पत्नी ने भी शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने पर चिंता जता दी कि उसे बिहार सरकार पर भरोसा नहीं, उसने सीबीआइ की जांच की मांग कर दी, पर पटना से प्रकाशित अखबार हिन्दुस्तान में ये खबर नहीं है, क्यों नहीं है, ये खबर, आप स्वयं चिंतन - मनन करिये, पता लग जायेगा।
दूसरी ओर जदयू विधायक का चैनल जो रांची से संचालित होता है, उसके पटना के दो संवाददाता नीतीशायन गा रहे है, और बता रहे हैं कि नीतीश साक्षात् परम पिता परमेश्वर है, अगर वे है, तभी बिहार है, नहीं तो बिहार ही नहीं, इसलिए हे बिहार की जनता आपने जो जनादेश नीतीश भगवान को दिया है, उस पर भरोसा रखे, नीतीश भगवान आपका अवश्य उद्धार करेंगे।
ऐसे - ऐसे है, बिहार के पत्रकार जो पैसे के लिए अपनी जमीर तक बेच दिये है...
इन पत्रकारों के सोशल साइटस को देखें तो बेशर्मों को न तो रघुवंश का बयान दिखाई पड़ा है और न ही शहाबुद्दीन की मार से कराह रहे जनता की आवाज सुनाई पड़ी है, इन्होंने अपने मालिक को खुश रखने और नीतीश के चरणोदक पीने में सारी शक्ति लगा दी है।
रांची से प्रकाशित निर्लज्ज अखबार प्रभात खबर की तो बात ही अलग है, उसे नीतीश में खुदा नजर आता है, उसने तो आज पृष्ठ संख्या 18 में नीतीश भक्ति में सारी शक्ति लगा दी, उसने नीतीश को अपना खुदा मानते हुए, उसे बचाने में प्रमुख भूमिका निभा दी और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के महत्वपूर्ण बयान को सिंगल और छोटा समाचार बनाकर भीतर के पृष्ठ संख्या 8 पर ठेल दिया, वह भी आपको बहुत खोजने पर मिलेगा। वह भी तब, जबकि सर्वाधिक विज्ञापन झारखण्ड सरकार का यहीं अखबार प्राप्त करता हैं और बाकी अखबार उसके आस-पास भी नजर नहीं आते, पर यहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास का तार्किक बयान, उसे नहीं सुहाता। वह स्वयं को झारखण्ड का सर्वाधिक प्रसारित अखबार बताता है, पर रांची से मात्र 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धनबाद, देवघर और दुमका का इलाका बता देता है कि इस अखबार की क्या स्थिति है।
हमारा मानना है कि कोई भी व्यक्ति अगर वह पत्रकार है तो कम से कम निरपेक्षता दिखाएं, नीतीश भक्ति में न डूबे, नीतीशायन न गाये, वह यह भी देखे कि नीतीश के कुकर्मों से सामान्य जनता को क्या दिक्क्ते आ रही है...मैं तो देख रहा हूं कि जिस नीतीश के कुकर्मों के शिकार एक अखबार में काम करनेवाले पत्रकार हो रहे है, वो संस्थान का संपादक, प्रबंधक और वहां काम करनेवाले तथाकथित "लाल झंडा करे पुकार, इन्कलाब जिंदाबाद" का नारा लगानेवाले तथाकथित वामपंथी पत्रकार भी नीतीश की जयकारा लगा रहे हैं...

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