रिम्स में एक मनोरोगी लावारिस मरीज को फर्श पर भोजन
देने का मामला रांची से प्रकाशित दो प्रमुख अखबारों दैनिक भास्कर और प्रभात
खबर ने उठाया। ये ऐसा मामला था जो मानवीय दृष्टिकोण से किसी भी प्रकार से
सहीं नहीं ठहराया जा सकता, और जैसा कि पहले से ही पता था कि ये मामला तूल
पकड़ेगा और तूल पकड़ा भी...
दो अखबारों ने इस प्रकरण का श्रेय लेने के लिए प्रथम पृष्ठ पर खबर छापा - एक ने लिखा प्रभात खबर की खबर पर पहल तो दूसरे दैनिक भास्कर ने लिखा दैनिक भास्कर ने छापी थी खबर।
राज्य सरकार ने 24 घंटे में ही फैसला लिया और खाना परोसनेवाले कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारी चंद्रमणि प्रसाद को बर्खास्त कर दिया। चंद्रमणि ने अपनी बर्खास्तगी पर जो बयान दिया है, वो बयान दैनिक जागरण ने छापा है इस खबर को भी पढ़िये तो पता चलेगा कि आजकल दया करना भी कितना भारी पड़ता है, जिसे इन दोनों अखबारों ने नहीं छापा है। चंद्रमणि कोई टाटा बिड़ला या अडानी समूह का व्यापारी नहीं है, वह भी आदमी जैसा दिखनेवाला ही प्राणी है।
न्यायालय ने भी स्वतः संज्ञान लिया है, अपने अनुसार और कह डाला कि अपराध है फर्श पर खाना परोसना सरकार जवाब दें। ये कथन हालांकि एक भला मानुष भी जानता है कि फर्श पर खाना परोसना अमानवीय है।
एक और बयान आया है कोई रोजी रोटी अधिकार अभियान की संयोजिका है कविता, जिसने कह डाला कि जहां आज भी फर्श पर खाना परोसा जाता है, वहां भारत माता की जय कैसे बोले। कविता का यह कथन बता रहा है कि जैसे लगता है कि भारत माता चंद्रमणि को आकर बोली कि तुम उक्त मनोरोगी महिला को फर्श पर भोजन परोस दो, यानी स्वयं मानसिक रुप से बीमार है और दूसरों को ज्ञान दिये जा रहे है। कविता ने तो इस प्रकरण पर ऐसा बयान दिया कि जैसे भारत माता विलेन हो, खलनायिका हो।
हमारे देश में इस प्रकार की अमानवीय घटनाएं हमेशा इक्के-दूक्के जगह देखने को और सुनने को मिलती है, इसका मतलब ये तो नहीं कि हम भारत माता को ही कटघरे में रख दें। आपकी घटिया सोच और घटिया मनोवृत्ति के लिए भारत माता दोषी कैसे हो गयी, लेकिन जब आप वामपंथी होंगी या वामपंथ में ही भारत का निर्माण दिखेगा तो भारत माता आपकी नजरों में विलेन तो दिखेंगी ही।
इधर रांची में विभिन्न प्रकार का एनजीओ चलानेवाले और स्वयं को गरीबों का मसीहा बतानेवालों का अधिवेशन चल रहा है, ये वो लोग है, जो एनजीओ के माध्यम से राज्य व केन्द्र सरकार की विकासात्मक योजनाओं और गरीबों के लिए चलनेवाली योजनाओं को खुद गड़प कर जाते है, वे डायलागबाजी कर रहे है।
फर्श पर भोजन प्रकरण, कुछ नहीं, हमारी घटिया मानसिकता का घोतक है, हम स्वयं को तो मनुष्य मानते है, पर सामनेवाले को मनुष्य मानने को तैयार नहीं। हर प्रकार का कुकर्म करेंगे और स्वयं द्वारा किये गये कुकर्म को औरों से बेहतर मानेंगे और दोष ठहरायेंगे भारत माता को। वामपंथी बनेंगे, एनजीओ बनायेंगे और अपने बेटे-बेटियों को दूसरे महानगरों में बसायेंगे और कहेंगे कि भारत माता की जय कैसे बोले। लाशों की राजनीति करेंगे, गुंडों, अपराधियों और देशद्रोहियों की मदद करेंगे और बोलेंगे कि भारत माता की जय बोले कैसे। जैसे कल का ही अखबारों में छपा भाकपा माले के महासचिव दीपंकर का वह बयान पढ़ लीजिये, जिसमें उसने कहा कि बुरहान वानी आतंकी नहीं था।
अब आप समझ लीजिये कि कौन इस प्रकार की व्यवस्था के लिए दोषी है। राज्य व केन्द्र सरकार या हमारी घटिया स्तर की सोच। जिसमें हम स्वयं को तो श्रेष्ठ और बाकियों को दो कौड़ी का नागरिक समझते है।
दो अखबारों ने इस प्रकरण का श्रेय लेने के लिए प्रथम पृष्ठ पर खबर छापा - एक ने लिखा प्रभात खबर की खबर पर पहल तो दूसरे दैनिक भास्कर ने लिखा दैनिक भास्कर ने छापी थी खबर।
राज्य सरकार ने 24 घंटे में ही फैसला लिया और खाना परोसनेवाले कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारी चंद्रमणि प्रसाद को बर्खास्त कर दिया। चंद्रमणि ने अपनी बर्खास्तगी पर जो बयान दिया है, वो बयान दैनिक जागरण ने छापा है इस खबर को भी पढ़िये तो पता चलेगा कि आजकल दया करना भी कितना भारी पड़ता है, जिसे इन दोनों अखबारों ने नहीं छापा है। चंद्रमणि कोई टाटा बिड़ला या अडानी समूह का व्यापारी नहीं है, वह भी आदमी जैसा दिखनेवाला ही प्राणी है।
न्यायालय ने भी स्वतः संज्ञान लिया है, अपने अनुसार और कह डाला कि अपराध है फर्श पर खाना परोसना सरकार जवाब दें। ये कथन हालांकि एक भला मानुष भी जानता है कि फर्श पर खाना परोसना अमानवीय है।
एक और बयान आया है कोई रोजी रोटी अधिकार अभियान की संयोजिका है कविता, जिसने कह डाला कि जहां आज भी फर्श पर खाना परोसा जाता है, वहां भारत माता की जय कैसे बोले। कविता का यह कथन बता रहा है कि जैसे लगता है कि भारत माता चंद्रमणि को आकर बोली कि तुम उक्त मनोरोगी महिला को फर्श पर भोजन परोस दो, यानी स्वयं मानसिक रुप से बीमार है और दूसरों को ज्ञान दिये जा रहे है। कविता ने तो इस प्रकरण पर ऐसा बयान दिया कि जैसे भारत माता विलेन हो, खलनायिका हो।
हमारे देश में इस प्रकार की अमानवीय घटनाएं हमेशा इक्के-दूक्के जगह देखने को और सुनने को मिलती है, इसका मतलब ये तो नहीं कि हम भारत माता को ही कटघरे में रख दें। आपकी घटिया सोच और घटिया मनोवृत्ति के लिए भारत माता दोषी कैसे हो गयी, लेकिन जब आप वामपंथी होंगी या वामपंथ में ही भारत का निर्माण दिखेगा तो भारत माता आपकी नजरों में विलेन तो दिखेंगी ही।
इधर रांची में विभिन्न प्रकार का एनजीओ चलानेवाले और स्वयं को गरीबों का मसीहा बतानेवालों का अधिवेशन चल रहा है, ये वो लोग है, जो एनजीओ के माध्यम से राज्य व केन्द्र सरकार की विकासात्मक योजनाओं और गरीबों के लिए चलनेवाली योजनाओं को खुद गड़प कर जाते है, वे डायलागबाजी कर रहे है।
फर्श पर भोजन प्रकरण, कुछ नहीं, हमारी घटिया मानसिकता का घोतक है, हम स्वयं को तो मनुष्य मानते है, पर सामनेवाले को मनुष्य मानने को तैयार नहीं। हर प्रकार का कुकर्म करेंगे और स्वयं द्वारा किये गये कुकर्म को औरों से बेहतर मानेंगे और दोष ठहरायेंगे भारत माता को। वामपंथी बनेंगे, एनजीओ बनायेंगे और अपने बेटे-बेटियों को दूसरे महानगरों में बसायेंगे और कहेंगे कि भारत माता की जय कैसे बोले। लाशों की राजनीति करेंगे, गुंडों, अपराधियों और देशद्रोहियों की मदद करेंगे और बोलेंगे कि भारत माता की जय बोले कैसे। जैसे कल का ही अखबारों में छपा भाकपा माले के महासचिव दीपंकर का वह बयान पढ़ लीजिये, जिसमें उसने कहा कि बुरहान वानी आतंकी नहीं था।
अब आप समझ लीजिये कि कौन इस प्रकार की व्यवस्था के लिए दोषी है। राज्य व केन्द्र सरकार या हमारी घटिया स्तर की सोच। जिसमें हम स्वयं को तो श्रेष्ठ और बाकियों को दो कौड़ी का नागरिक समझते है।
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