रांची में नकली शक्तिवर्द्धक दवा के करोड़ों के कारोबार से
संबंधित समाचार आजकल अखबारों में सुर्खियां बटोर रहे है। प्रतिदिन समाचार आ
रहे है कि रांची के चुटिया, लालपुर, सुखदेवनगर आदि इलाकों में औषधि
नियंत्रण निदेशालय की ओर से इन दवाओं के कारोबार में लिप्त लोगों पर शिकंजा
कसा जा रहा है, इनके खिलाफ छापेमारी भी की जा रही है। छापेमारी के दौरान
बड़ी मात्रा में औषधि निर्माण के उपकरण, एलोपैथिक दवाएं, इंप्टी हार्ड
जेनेटिक कैप्सूल सेल, लिंग वर्द्धक यंत्र, स्तन वर्द्धक यंत्र आदि
बरामद हो रहे है। इस धंधे में लिप्त छह लोगों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज
करायी गयी है। औषधि निदेशालय इस धंधे में सलिप्त किसी अलख देव सिंह की
तलाशी कर रहा है, पर औषधि निदेशालय उन अखबारों पर शिकंजा नहीं कस रहा, जो
इस धंधे को संजीवनी दे रहे है, या इससे सीधा मुनाफा उठा रहे है। हाल ही में
जब औषधि निदेशालय ने इन कारोबारियों पर जब अपना शिकंजा कसना शुरू किया तो
एक दिव्य ज्ञान प्रदान करनेवाले एक अखबार ने लिखा कि इस धंधे में पोस्टआफिस
के लोग शामिल है, पर उसने यह नहीं लिखा कि इस धंधे में अखबार के लोग भी
शामिल है, जो विज्ञापन के नाम पर इन कारोबारियों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाते
है और स्वयं भी लाभान्वित होते है, साथ ही सामान्य जनता को दिग्भ्रमित भी
करते है।
सच्चाई यह है कि ये सारे के सारे कारोबारी बिना अखबार को अपने तरफ मिलाए इतने बड़े कारोबार को अंजाम नहीं दे सकते। इसमें अखबार की सबसे बड़ी भूमिका होती है, वे इन कारोबारियों द्वारा मिले विज्ञापन को जमकर छापते है, रांची में कमोबेश सभी बड़े अखबार इस धंधे में लिप्त है और इसके द्वारा अपनी आर्थिक समृद्धि में लगे है। आज भी देख लीजिये – कौन ऐसा अखबार है जो इस धंधे में लिप्त नहीं है। एक अखबार तो अपना वर्गीकृत इसी धंधे को समर्पित कर दिया है। अगर उसके वर्गीकृत विज्ञापन को देखिये तो पता लग जायेगा कि इस धंधे में उसका जोर भी नहीं है, पर बेशर्मी इतनी कि उसे बेशर्म शब्द की परिभाषा से कोई लेना – देना भी नहीं।
आश्चर्य है कि इस धंधे में कौन-कौन लोग है, सभी को पता है, पर क्या मजाल कि इन अखबारों पर कोई भौं भी टेढ़ा कर दें, क्योंकि जैसे ही इन अखबारों पर शिकंजा कसेगा, सत्ता और विपक्ष में बैठे एवं छपास की बीमारी से पीड़ित नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और सम्मान के लालचियों का समूह इन अखबारों के पक्ष में बयानबाजी शुरू करेगा और नकली डायलॉग बोलेगा कि यहां अखबारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है, लोकतंत्र खतरे में पड़ गया आदि-आदि। यानी कुल मिलाकर, जो इस धंधे में लिप्त है, उनके उपर शनि की वक्र दृष्टि और जो इस धंधेबाजों से अपनी आर्थिक समृद्धि कर रहे है उनके उपर शुक्र की महादृष्टि मजे लीजिये और क्या?
सच्चाई यह है कि ये सारे के सारे कारोबारी बिना अखबार को अपने तरफ मिलाए इतने बड़े कारोबार को अंजाम नहीं दे सकते। इसमें अखबार की सबसे बड़ी भूमिका होती है, वे इन कारोबारियों द्वारा मिले विज्ञापन को जमकर छापते है, रांची में कमोबेश सभी बड़े अखबार इस धंधे में लिप्त है और इसके द्वारा अपनी आर्थिक समृद्धि में लगे है। आज भी देख लीजिये – कौन ऐसा अखबार है जो इस धंधे में लिप्त नहीं है। एक अखबार तो अपना वर्गीकृत इसी धंधे को समर्पित कर दिया है। अगर उसके वर्गीकृत विज्ञापन को देखिये तो पता लग जायेगा कि इस धंधे में उसका जोर भी नहीं है, पर बेशर्मी इतनी कि उसे बेशर्म शब्द की परिभाषा से कोई लेना – देना भी नहीं।
आश्चर्य है कि इस धंधे में कौन-कौन लोग है, सभी को पता है, पर क्या मजाल कि इन अखबारों पर कोई भौं भी टेढ़ा कर दें, क्योंकि जैसे ही इन अखबारों पर शिकंजा कसेगा, सत्ता और विपक्ष में बैठे एवं छपास की बीमारी से पीड़ित नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और सम्मान के लालचियों का समूह इन अखबारों के पक्ष में बयानबाजी शुरू करेगा और नकली डायलॉग बोलेगा कि यहां अखबारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है, लोकतंत्र खतरे में पड़ गया आदि-आदि। यानी कुल मिलाकर, जो इस धंधे में लिप्त है, उनके उपर शनि की वक्र दृष्टि और जो इस धंधेबाजों से अपनी आर्थिक समृद्धि कर रहे है उनके उपर शुक्र की महादृष्टि मजे लीजिये और क्या?
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