रांची से
प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने आज बाबू लाल मरांडी को हीरो और रघुवर को
विलेन बनाकर जनता के सामने पेश किया है। इसका मूल कारण प्रभात खबर के
प्रधान संपादक रह चुके हरिवंश है, जो फिलहाल जनता दल यू से राज्यसभा सांसद
है, हालांकि कहनेवाले ये भी कहते है कि हरिवंश प्रभात खबर छोड़ चुके है, पर
हमारे पास पुख्ता प्रमाण है कि वे प्रभात खबर छोड़े नहीं है, आज भी वे
प्रभात खबर को कस कर पकड़े हुए है। चूंकि नीतीश कुमार ने झारखण्ड मामले में
अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि बाबू लाल मरांडी झारखण्ड के नायक है, वे ही
उनकी ओर से झारखण्ड के मुख्यमंत्री उम्मीदवार है। तभी से हरिवंश ने उनकी
राह आसान बनाने के लिए कमर कस ली है और जब भी मौका मिलता है, वे बाबू लाल
के प्रति वफादार बन कर पत्रकारिता को अपने इशारों पर नचा रहे है। जैसे कल
ही की बात को ले लीजिये। रांची में कल आदिवासी आक्रोश रैली थी। इस रैली में
42 आदिवासी संगठनों के लोग थे, पर प्रभात खबर ने इस पूरे प्रकरण का हीरो
बाबू लाल मरांडी को बना दिया, जबकि उस रैली में कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू,
गीताश्री उरांव, झामुमो के पौलुस सुरीन और अन्य नेता भी मंच पर मौजूद थे।
यहीं नहीं अपने अखबार में प्रथम पृष्ठ पर इस प्रकार की हेडिंग दे दी कि अगर
सामान्य व्यक्ति उस समाचार को पढ़े तो पता लग जायेगा कि यहां के
मुख्यमंत्री रघुवर दास सचमुच में खलनायक है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है।
प्रभात खबर के अनुसार, कल की रैली को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कमर कस लिया था, और इसी क्रम में खूंटी में फायरिंग हुई और एक व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। इस सच्चाई को जानने के लिए आपको दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आजाद सिपाही, राष्ट्रीय सागर तथा अन्य अखबारों का रूख करना पड़ेगा।
दैनिक भास्कर ने अपने प्रथम पृष्ठ पर फोटो देते हुए हेडलाइन्स दिया – रांची में रैली, खूंटी में नाकेबंदी से आक्रोश। एएसपी-थानेदार को ढाई घंटे रस्से से बांधकर पीटा, फिर पुलिस फायरिंग में किसान की मौत, लेकिन प्रभात खबर ने इसी घटना को पृष्ठ संख्या 11 पर लिखा – खूंटी में प्रशासन ने एक हजार ग्रामीणों को रोका और पुलिस के साथ होनेवाली हादसे और सेंदरे की बात अपनी ओर से छुपा ली, साथ ही इस घटना को सामान्य दिखाते हुए पुलिस के मुख से लिखवाया, जैसे लगता है कि वहां कोई ऐसी घटना घटी ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर पुलिस आत्मरक्षार्थ गोली नहीं चलाती तो आज कितने पुलिसकर्मियों के घरों में लाशों के ढेर नजर आते क्योंकि इस रैली में नक्सलियों ने अपनी भूमिका तय कर रखी थी। इस घटना को दैनिक जागरण ने प्रथम पृष्ठ पर हेडिंग्स देते हुए लिखा – खूंटी में उग्र भीड़ पर फायरिंग, एक मरा, पुलिस ने आत्मरक्षार्थ चलाई गोलियां, 8 ग्रामीण घायल और इस हेडिंग्स के माध्यम से दैनिक जागरण ने पत्रकारिता धर्म की रक्षा की, साथ ही आक्रोश रैली को भी प्रमुखता से उठाया, जो उठाना भी चाहिए।
चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने तो परसो से ही ताल ठोक दिया था कि उसे आदिवासी आक्रोश रैली को बेहतर ढंग से पेश करना है और रघुवर दास की सरकार को कील ठोकना है, तो उसने अपने उक्त निर्णयों पर आगे बढ़ते हुए, आज भी वहीं किया। इसलिए हिन्दुस्तान अखबार पर क्या कहना।
अब अपनी बात – ये जो अखबार वाले है न। कोई धर्म या समाज हित में पत्रकारिता के लिए अपना दुकान नहीं खोले है। प्रभात खबर का मालिक प्रभात खबर की आड़ में कहा-कहां माइन्स चला रहा है, क्या किसी को नहीं मालूम। हिन्दुस्तान अखबार के लोग अर्जुन मुंडा के शासन काल में कहा पर गोल्डमाइन्स लिये थे। हमको नहीं मालूम है क्या? यानी ये अखबार वाले अपना धंधा चलाने के लिए आदिवासियों की जमीन लूटे तो सही और दूसरा कोई लूटे तो गलत। अरे गलत है तो सब गलत है, एक गलत और दूसरा सहीं...और दूसरा गलत तो पहला सही कैसे भाई। सच्चाई यह है कि यहां झारखण्ड का हर नेता और हर पत्रकार अपने – अपने ढंग से राज्य की जनता को बरगला रहा है, और भोली-भाली जनता इनके बहकावे में आ रही है। नेताओं और पत्रकारों को तो कुछ नहीं होता, पर जनता हर प्रकार से मारी जाती है। अखबार के मालिकों और संपादकों को क्या है? वे तो पेड न्यूज की आड़ में अपनी गोटी सेंक चुके होते है और उनके प्यादे यानी रिपोर्टर्स उनके इशारे पर वो न्यूज बनाते है, जो उनके आकाओं को पसंद आती है। आज का अखबार देखने से तो यहीं लगता है।
... और अब एक सलाह राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, आप कृपा कर किसी भी अखबार के कार्यक्रम में जाये, तो प्लीज ये न कहें कि पत्रकारिता हो तो फंलाने अखबार जैसी। हमारे पास प्रमाण है एक अखबार बार-बार आपका वक्तव्य छापता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रभात खबर की प्रशंसा की। हमें हंसी आती है, जो अखबार हमारे परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के परिवार के साथ धोखा करता है। अमर शहीद की मिट्टी पर राजनीति करता है, उसे आप कैसे कह सकते है कि बहुत ही अच्छा है। प्लीज माफ करें। झारखण्ड की जनता के साथ इँसाफ करें। ये अखबारवाले किसी के नहीं है, न तो देश के और न ही देश के जवानों के। ये तो वीर जवानों के शहीदों का भी व्यवसायीकरण कर देते है। शर्मनाक...
प्रभात खबर के अनुसार, कल की रैली को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कमर कस लिया था, और इसी क्रम में खूंटी में फायरिंग हुई और एक व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि सच्चाई कुछ और ही है। इस सच्चाई को जानने के लिए आपको दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आजाद सिपाही, राष्ट्रीय सागर तथा अन्य अखबारों का रूख करना पड़ेगा।
दैनिक भास्कर ने अपने प्रथम पृष्ठ पर फोटो देते हुए हेडलाइन्स दिया – रांची में रैली, खूंटी में नाकेबंदी से आक्रोश। एएसपी-थानेदार को ढाई घंटे रस्से से बांधकर पीटा, फिर पुलिस फायरिंग में किसान की मौत, लेकिन प्रभात खबर ने इसी घटना को पृष्ठ संख्या 11 पर लिखा – खूंटी में प्रशासन ने एक हजार ग्रामीणों को रोका और पुलिस के साथ होनेवाली हादसे और सेंदरे की बात अपनी ओर से छुपा ली, साथ ही इस घटना को सामान्य दिखाते हुए पुलिस के मुख से लिखवाया, जैसे लगता है कि वहां कोई ऐसी घटना घटी ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर पुलिस आत्मरक्षार्थ गोली नहीं चलाती तो आज कितने पुलिसकर्मियों के घरों में लाशों के ढेर नजर आते क्योंकि इस रैली में नक्सलियों ने अपनी भूमिका तय कर रखी थी। इस घटना को दैनिक जागरण ने प्रथम पृष्ठ पर हेडिंग्स देते हुए लिखा – खूंटी में उग्र भीड़ पर फायरिंग, एक मरा, पुलिस ने आत्मरक्षार्थ चलाई गोलियां, 8 ग्रामीण घायल और इस हेडिंग्स के माध्यम से दैनिक जागरण ने पत्रकारिता धर्म की रक्षा की, साथ ही आक्रोश रैली को भी प्रमुखता से उठाया, जो उठाना भी चाहिए।
चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने तो परसो से ही ताल ठोक दिया था कि उसे आदिवासी आक्रोश रैली को बेहतर ढंग से पेश करना है और रघुवर दास की सरकार को कील ठोकना है, तो उसने अपने उक्त निर्णयों पर आगे बढ़ते हुए, आज भी वहीं किया। इसलिए हिन्दुस्तान अखबार पर क्या कहना।
अब अपनी बात – ये जो अखबार वाले है न। कोई धर्म या समाज हित में पत्रकारिता के लिए अपना दुकान नहीं खोले है। प्रभात खबर का मालिक प्रभात खबर की आड़ में कहा-कहां माइन्स चला रहा है, क्या किसी को नहीं मालूम। हिन्दुस्तान अखबार के लोग अर्जुन मुंडा के शासन काल में कहा पर गोल्डमाइन्स लिये थे। हमको नहीं मालूम है क्या? यानी ये अखबार वाले अपना धंधा चलाने के लिए आदिवासियों की जमीन लूटे तो सही और दूसरा कोई लूटे तो गलत। अरे गलत है तो सब गलत है, एक गलत और दूसरा सहीं...और दूसरा गलत तो पहला सही कैसे भाई। सच्चाई यह है कि यहां झारखण्ड का हर नेता और हर पत्रकार अपने – अपने ढंग से राज्य की जनता को बरगला रहा है, और भोली-भाली जनता इनके बहकावे में आ रही है। नेताओं और पत्रकारों को तो कुछ नहीं होता, पर जनता हर प्रकार से मारी जाती है। अखबार के मालिकों और संपादकों को क्या है? वे तो पेड न्यूज की आड़ में अपनी गोटी सेंक चुके होते है और उनके प्यादे यानी रिपोर्टर्स उनके इशारे पर वो न्यूज बनाते है, जो उनके आकाओं को पसंद आती है। आज का अखबार देखने से तो यहीं लगता है।
... और अब एक सलाह राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, आप कृपा कर किसी भी अखबार के कार्यक्रम में जाये, तो प्लीज ये न कहें कि पत्रकारिता हो तो फंलाने अखबार जैसी। हमारे पास प्रमाण है एक अखबार बार-बार आपका वक्तव्य छापता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रभात खबर की प्रशंसा की। हमें हंसी आती है, जो अखबार हमारे परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के परिवार के साथ धोखा करता है। अमर शहीद की मिट्टी पर राजनीति करता है, उसे आप कैसे कह सकते है कि बहुत ही अच्छा है। प्लीज माफ करें। झारखण्ड की जनता के साथ इँसाफ करें। ये अखबारवाले किसी के नहीं है, न तो देश के और न ही देश के जवानों के। ये तो वीर जवानों के शहीदों का भी व्यवसायीकरण कर देते है। शर्मनाक...
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