आखिर जनता क्या चाहती है?
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है, ऐसी जीत हासिल की है, कि ऐसी जीत रामलहर में भी नहीं हुई थी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड पर शानदार कब्जा जमाया, तो जिस मणिपुर में उसके एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं थे, वहां पर सत्ता की प्रबल दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयी, गोवा में हालांकि उसे झटका जरुर लगा है, पंजाब में उसकी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल सत्ता से बाहर हो गयी। इस चुनाव परिणाम के द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड की जनता ने नेताओं की ब्रांडिंग करनेवाली कंपनियों और उन पत्रकारों को भी खबरदार किया है, जो राज्यसभा जाने के लिए किसी भी पार्टी के लिए आजकल प्रवक्ता के रूप में स्वयं को चैनल के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। ये वे पत्रकार है, जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं होता, बल्कि अपने मालिकों के द्वारा दी गयी चैंबर में एक समाचार पत्र या चैनल के प्रबंधक सह निदेशक के रुप में कार्य करते है। जरा एक उदाहरण देखिये...
एक पत्रकार ने सोशल साइट में स्वयं को खुलकर बसपा के प्रवक्ता के रूप में पेश किया, वे खूब बसपा, हाथी और मायावती के एजेंट के रूप में पेश आये और भाजपा नेता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जमकर गरियाया। जब वे अपने सोशल साइट पर मायावती का चुनाव प्रचार कर रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गरिया रहे थे, उसी वक्त उनके समर्थक और पत्रकारिता जगत के मूर्धन्य लोग तथा वामपंथियों का समूह उनके पक्ष में खुलकर उनके प्रति समर्थन जूटा रहा था, पर आज इनकी स्थिति क्या है? सामान्य सा उत्तर – हास्यास्पद। अरे भाई जब हम पत्रकार है, तो हमें किसी खूंटे से बंधे होने की क्या जरुरत? जो सही है, उसे डंके की चोट पर लिखेंगे, बोलेंगे और करेंगे भी।
जरा देखिये, उक्त पत्रकार ने नौ मार्च को सोशल साइट पर क्या लिखा...
बहन जी के द्वार पर, भइ संतन की भीड़
मोटू लाला चंदन घिसै, तिलक देत श्रमवीर
इस दोहे के आधार पर उसने मोटू लाला को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह करार दिया, जबकि श्रमवीर कहकर मायावती समर्थकों को मान बढ़ाया।
इसी पत्रकार ने नौ मार्च को ही लिखा...
रन अप टू अप रिजल्ट लेट्स अस रिकॉल बिहार
यानी उक्त पत्रकार ने कह दिया कि ११ मार्च को आनेवाला पांच प्रांतों का चुनाव परिणाम खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम, बिहार के चुनाव परिणाम की याद दिला सकते हैं।
और आज वहीं पत्रकार उत्तर प्रदेश के आये चुनाव परिणाम के बाद मायावती के बारे में लिख डाला कि अब...
मायावती का क्या होगा?
यानी आज उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा दिये गये चुनाव परिणाम को भी वह स्वीकार करने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहा है, ये स्थिति है आज के पत्रकारों की...
जब पत्रकार बसपाई हो जाये
जब पत्रकार भाजपाई हो जाये
जब पत्रकार सपाई हो जाये
जब पत्रकार वामपंथी हो जाये
तो उससे सर्वाधिक नुकसान उस राज्य व देश को होता है, जहां वह पत्रकार रह रहा होता है, अरे कोई जीते, कोई हारे। हमें उससे क्या? हमें तो यह देखना है कि क्या जनता का हित सध रहा है, अगर जनता का हित सध रहा है तो ठीक है, अगर नहीं हित सधा तो हम सरकार किसी का हो, उसकी बैंड बजायेंगे। ऐसा नहीं कि हम हाथी, कमल, हाथ, साइकिल, तीर-धनुष, तीर, लालटेन आदि की सेवा में स्वयं को लगा देंगे और उसके बदले स्वयं को उपकृत करेंगे।
जिस दिन उत्तर प्रदेश का अंतिम चरण का मतदान समाप्त हुआ। उस दिन एक न्यूज चैनल ने अपने परिचर्चा में कई पत्रकारों को बुलाया, जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े थे और उसकी प्रशंसा में स्वयं को आत्मानुरागी की तरह पेश कर रहे थे, जो बता रहा था कि आजकल के ये पत्रकार कितने गिर चुके है। हमें तो लगता है कि उन्हें स्वयं इस पर परिचर्चा करनी चाहिए कि आखिर वे कितने गिर सकते है, क्या उन्होंने अब ये ठान लिया है कि वे पत्रकारिता करते-करते बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाते ही, किसी दल की चाटुकारिता या नौकरी करेंगे और उसके बदले राज्यसभा जायेंगे, गर ऐसा है तो वे देश और समाज के सबसे बड़े दुश्मन है, हमें इनसे ज्यादा सावधान होना पड़ेगा, साथ ही देश व समाज को इनसे रक्षा के लिए कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि निः संदेह इनसे देश को खतरा उत्पन्न हो गया है।
और अब ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों को भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के चुनाव परिणाम ने एक करारा संदेश दिया है, संदेश उन नेताओं को भी दिया जो इन ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों के बल पर सत्ता का स्वाद चखने का मन बना चुके थे। अरे यार, काठ की हांडी एक बार चढ़ती है, बार-बार नहीं। बिहार में आप कमाल दिखा दिये तो इसका मतलब ये नहीं कि यूपी की जनता भी इस चक्कर में आ जायेगी। ऐसा नहीं है कि बिहार की जनता ने प्रशांत किशोर के कहने पर वोट जाकर डाल आयी थी। बिहार की सच्चाई यह थी कि लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद ही नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के लिए एक रणनीति बनाई, जातिगत सामाजिक समीकरण को उभारा, मुस्लिम, यादव और कुर्मी तथा अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद किया और परिणाम सामने आ गया। लालू और नीतीश की जोड़ी मोदी पर भारी पड़ गयी। इसमें प्रशांत किशोर की बाजीगरी कहा थी? और जब ये बाजीगरी थी भी तो फिर ये कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? उलटे राहुल गांधी की खटिया कैसे खड़ी हो गयी?
यहीं नहीं झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी इस चुनाव परिणाम से सबक लेनी चाहिए, जो वे ब्रांडिंग के नाम पर बेतहाशा पैसे खर्च कर रहे है, जरा पूछिये कि उन्हीं के राज्य में इवाई जिसे वे अपनी ब्रांडिंग के लिए रखा है, वहीं इवाई उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? अभी भी वक्त है, रघुवर दास जी समझ जाइये, क्योंकि किसी भी नेता को लोकप्रिय या अलोकप्रिय उसकी हरकतें, उसके काम-काज और जनता के प्रति उसकी संवेदनशीलता ही कराती है, न कि ब्रांडिंग करानेवाली कंपनियां।
इधर, हम स्वीकार करते हैं कि आज के चुनाव परिणाम से बसपा और कांग्रेस- सपा को बेहद निराशा हुई होगी, पर इसका मतलब ये नहीं कि वे मन में निराशा का भाव रखकर सब कुछ भाजपा के हाथों छोड़ दे। आज गर जनता इनसे नाराज हुई है, तो कल जनता इनके साथ भी हो सकती है, क्योंकि जनता तो जनता है, वह किसी की जागीर नहीं होती, जो बेहतर होगा, उनके पास जैसा विकल्प होगा, वह चुन लेगी, फिलहाल जनता को लगा कि भाजपा उसका बेहतर विकल्प है, इस बार भाजपा को सत्ता सौंपी है। याद करिये उत्तरप्रदेश में इसके पूर्व सपा और उसके पूर्व बसपा को इसी जनता ने सत्ता सौंपा था, इसलिए इस जनादेश को सबको सम्मान करना चाहिए, निराशा में आकर जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं, न तो उन पत्रकारों को जो अपने गले में किसी विशेष पार्टी या दल का मंगलसूत्र धारण कर राज्यसभा जाने का ललक रखते हो अथवा वे लोग जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े है।
बधाई भाजपा को, कि उसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में बड़ी जीत दर्ज की। मणिपुर में अच्छी स्थिति दर्ज की। गोवा में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, जबकि पंजाब में उसे करारी हार देखने को मिली। हम चाहेंगे कि वे इस सफलता, इस जीत को सामान्य रुप में लेते हुए, ज्यादा जोश न दिखाये, सीधे जनता से किये वायदे को पूरा करने में अपना समय व्यतीत करें, क्योंकि जनता, तो जनता है, वह किसी की नहीं होती, और नहीं वह किसी खूंटे में रहना पसंद करती है। उसका उदाहरण देखना है तो बिहार के लालू प्रसाद को ही देख लीजिये, बहुत घमंड किया करते थे, पर आज क्या है? बिहार में अकेले बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता का रसास्वादन और जनता की सेवा करने का विशेषाधिकार नीतीश को प्राप्त है। इसलिये विपक्षी दल जनता की सेवा को प्रमुख साधन बनाये और पत्रकार सत्ता से चिपकने की जगह जनहित में पत्रकारिता कर, समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है, ऐसी जीत हासिल की है, कि ऐसी जीत रामलहर में भी नहीं हुई थी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड पर शानदार कब्जा जमाया, तो जिस मणिपुर में उसके एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं थे, वहां पर सत्ता की प्रबल दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयी, गोवा में हालांकि उसे झटका जरुर लगा है, पंजाब में उसकी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल सत्ता से बाहर हो गयी। इस चुनाव परिणाम के द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड की जनता ने नेताओं की ब्रांडिंग करनेवाली कंपनियों और उन पत्रकारों को भी खबरदार किया है, जो राज्यसभा जाने के लिए किसी भी पार्टी के लिए आजकल प्रवक्ता के रूप में स्वयं को चैनल के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। ये वे पत्रकार है, जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं होता, बल्कि अपने मालिकों के द्वारा दी गयी चैंबर में एक समाचार पत्र या चैनल के प्रबंधक सह निदेशक के रुप में कार्य करते है। जरा एक उदाहरण देखिये...
एक पत्रकार ने सोशल साइट में स्वयं को खुलकर बसपा के प्रवक्ता के रूप में पेश किया, वे खूब बसपा, हाथी और मायावती के एजेंट के रूप में पेश आये और भाजपा नेता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जमकर गरियाया। जब वे अपने सोशल साइट पर मायावती का चुनाव प्रचार कर रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गरिया रहे थे, उसी वक्त उनके समर्थक और पत्रकारिता जगत के मूर्धन्य लोग तथा वामपंथियों का समूह उनके पक्ष में खुलकर उनके प्रति समर्थन जूटा रहा था, पर आज इनकी स्थिति क्या है? सामान्य सा उत्तर – हास्यास्पद। अरे भाई जब हम पत्रकार है, तो हमें किसी खूंटे से बंधे होने की क्या जरुरत? जो सही है, उसे डंके की चोट पर लिखेंगे, बोलेंगे और करेंगे भी।
जरा देखिये, उक्त पत्रकार ने नौ मार्च को सोशल साइट पर क्या लिखा...
बहन जी के द्वार पर, भइ संतन की भीड़
मोटू लाला चंदन घिसै, तिलक देत श्रमवीर
इस दोहे के आधार पर उसने मोटू लाला को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह करार दिया, जबकि श्रमवीर कहकर मायावती समर्थकों को मान बढ़ाया।
इसी पत्रकार ने नौ मार्च को ही लिखा...
रन अप टू अप रिजल्ट लेट्स अस रिकॉल बिहार
यानी उक्त पत्रकार ने कह दिया कि ११ मार्च को आनेवाला पांच प्रांतों का चुनाव परिणाम खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम, बिहार के चुनाव परिणाम की याद दिला सकते हैं।
और आज वहीं पत्रकार उत्तर प्रदेश के आये चुनाव परिणाम के बाद मायावती के बारे में लिख डाला कि अब...
मायावती का क्या होगा?
यानी आज उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा दिये गये चुनाव परिणाम को भी वह स्वीकार करने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहा है, ये स्थिति है आज के पत्रकारों की...
जब पत्रकार बसपाई हो जाये
जब पत्रकार भाजपाई हो जाये
जब पत्रकार सपाई हो जाये
जब पत्रकार वामपंथी हो जाये
तो उससे सर्वाधिक नुकसान उस राज्य व देश को होता है, जहां वह पत्रकार रह रहा होता है, अरे कोई जीते, कोई हारे। हमें उससे क्या? हमें तो यह देखना है कि क्या जनता का हित सध रहा है, अगर जनता का हित सध रहा है तो ठीक है, अगर नहीं हित सधा तो हम सरकार किसी का हो, उसकी बैंड बजायेंगे। ऐसा नहीं कि हम हाथी, कमल, हाथ, साइकिल, तीर-धनुष, तीर, लालटेन आदि की सेवा में स्वयं को लगा देंगे और उसके बदले स्वयं को उपकृत करेंगे।
जिस दिन उत्तर प्रदेश का अंतिम चरण का मतदान समाप्त हुआ। उस दिन एक न्यूज चैनल ने अपने परिचर्चा में कई पत्रकारों को बुलाया, जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े थे और उसकी प्रशंसा में स्वयं को आत्मानुरागी की तरह पेश कर रहे थे, जो बता रहा था कि आजकल के ये पत्रकार कितने गिर चुके है। हमें तो लगता है कि उन्हें स्वयं इस पर परिचर्चा करनी चाहिए कि आखिर वे कितने गिर सकते है, क्या उन्होंने अब ये ठान लिया है कि वे पत्रकारिता करते-करते बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाते ही, किसी दल की चाटुकारिता या नौकरी करेंगे और उसके बदले राज्यसभा जायेंगे, गर ऐसा है तो वे देश और समाज के सबसे बड़े दुश्मन है, हमें इनसे ज्यादा सावधान होना पड़ेगा, साथ ही देश व समाज को इनसे रक्षा के लिए कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि निः संदेह इनसे देश को खतरा उत्पन्न हो गया है।
और अब ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों को भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के चुनाव परिणाम ने एक करारा संदेश दिया है, संदेश उन नेताओं को भी दिया जो इन ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों के बल पर सत्ता का स्वाद चखने का मन बना चुके थे। अरे यार, काठ की हांडी एक बार चढ़ती है, बार-बार नहीं। बिहार में आप कमाल दिखा दिये तो इसका मतलब ये नहीं कि यूपी की जनता भी इस चक्कर में आ जायेगी। ऐसा नहीं है कि बिहार की जनता ने प्रशांत किशोर के कहने पर वोट जाकर डाल आयी थी। बिहार की सच्चाई यह थी कि लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद ही नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के लिए एक रणनीति बनाई, जातिगत सामाजिक समीकरण को उभारा, मुस्लिम, यादव और कुर्मी तथा अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद किया और परिणाम सामने आ गया। लालू और नीतीश की जोड़ी मोदी पर भारी पड़ गयी। इसमें प्रशांत किशोर की बाजीगरी कहा थी? और जब ये बाजीगरी थी भी तो फिर ये कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? उलटे राहुल गांधी की खटिया कैसे खड़ी हो गयी?
यहीं नहीं झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी इस चुनाव परिणाम से सबक लेनी चाहिए, जो वे ब्रांडिंग के नाम पर बेतहाशा पैसे खर्च कर रहे है, जरा पूछिये कि उन्हीं के राज्य में इवाई जिसे वे अपनी ब्रांडिंग के लिए रखा है, वहीं इवाई उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? अभी भी वक्त है, रघुवर दास जी समझ जाइये, क्योंकि किसी भी नेता को लोकप्रिय या अलोकप्रिय उसकी हरकतें, उसके काम-काज और जनता के प्रति उसकी संवेदनशीलता ही कराती है, न कि ब्रांडिंग करानेवाली कंपनियां।
इधर, हम स्वीकार करते हैं कि आज के चुनाव परिणाम से बसपा और कांग्रेस- सपा को बेहद निराशा हुई होगी, पर इसका मतलब ये नहीं कि वे मन में निराशा का भाव रखकर सब कुछ भाजपा के हाथों छोड़ दे। आज गर जनता इनसे नाराज हुई है, तो कल जनता इनके साथ भी हो सकती है, क्योंकि जनता तो जनता है, वह किसी की जागीर नहीं होती, जो बेहतर होगा, उनके पास जैसा विकल्प होगा, वह चुन लेगी, फिलहाल जनता को लगा कि भाजपा उसका बेहतर विकल्प है, इस बार भाजपा को सत्ता सौंपी है। याद करिये उत्तरप्रदेश में इसके पूर्व सपा और उसके पूर्व बसपा को इसी जनता ने सत्ता सौंपा था, इसलिए इस जनादेश को सबको सम्मान करना चाहिए, निराशा में आकर जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं, न तो उन पत्रकारों को जो अपने गले में किसी विशेष पार्टी या दल का मंगलसूत्र धारण कर राज्यसभा जाने का ललक रखते हो अथवा वे लोग जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े है।
बधाई भाजपा को, कि उसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में बड़ी जीत दर्ज की। मणिपुर में अच्छी स्थिति दर्ज की। गोवा में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, जबकि पंजाब में उसे करारी हार देखने को मिली। हम चाहेंगे कि वे इस सफलता, इस जीत को सामान्य रुप में लेते हुए, ज्यादा जोश न दिखाये, सीधे जनता से किये वायदे को पूरा करने में अपना समय व्यतीत करें, क्योंकि जनता, तो जनता है, वह किसी की नहीं होती, और नहीं वह किसी खूंटे में रहना पसंद करती है। उसका उदाहरण देखना है तो बिहार के लालू प्रसाद को ही देख लीजिये, बहुत घमंड किया करते थे, पर आज क्या है? बिहार में अकेले बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता का रसास्वादन और जनता की सेवा करने का विशेषाधिकार नीतीश को प्राप्त है। इसलिये विपक्षी दल जनता की सेवा को प्रमुख साधन बनाये और पत्रकार सत्ता से चिपकने की जगह जनहित में पत्रकारिता कर, समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये।
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