उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं हैं...
जी हां, उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है, चाहे वह देशी मीडिया हो या विदेशी मीडिया। जब से उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को जनादेश दिया है, तथाकथित स्वयं को सेक्युलर कहनेवाले लोग और मीडिया उत्तर प्रदेश की जनता को अपमानित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। वर्षों पहले यहीं जनता बसपा को सत्ता सौंपी, फिर समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंपी तो यह सांप्रदायिक नहीं थी, और जैसे ही भाजपा को सत्ता सौंपी तो ये सांप्रदायिकता की जीत हो गयी। कमाल तो यह भी है कि ट्रम्प को माथे पर चढ़ाकर घुमानेवाली अमरीकी जनता के खिलाफ, विदेशी मीडिया के सुर नहीं सुनने को मिलते पर भारत की बात हो तो देखिये, स्वयं भारतीय कहलानेवाले लोग भी विदेशी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए भारतीय लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते है। इन दिनों देशी - विदेशी मीडिया में उत्तर प्रदेश छाया हुआ है। उन मीडिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुब आलोचना हो रही है, जबकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा सांप्रदायिक क्यों न हो? उसे भारतीय संविधान के अंतर्गत ही भारतीय जनता की सेवा करनी है, ऐसा नही कि वह अपने मन से जो चाहे, जो कर देगा, जैसा कि विदेशों में देखने को मिलता है।
आज अमरीका में भारतीयों की क्या स्थिति है? वहां चून-चून कर भारतीय मारे जा रहे है, आखिर क्यों? ये भारतीय अमरीकियों के शिकार क्यों हो रहे है, जाहिर सी बात है कि इस्लाम के नाम पर, इन भारतीयों को शिकार बनाया जा रहा है, जबकि मरनेवाले भारतीयों में कोई भी इस्लाम को माननेवाला नहीं था।
ये तो वहीं बात हो गयी, चलनी दूसे सुप के जिन्हें बहत्तर छेद। सारी दुनिया अभी सर्वाधिक किसी से डरी हुई है तो वह है इस्लाम, जबकि मैं स्वयं जानता हूं कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है, पर हो क्या रहा है, इस्लाम माननेवालों में कुछ लोगों के अंदर ऐसी कट्टरता आ गयी है कि उन्हें लगता है कि उनके धर्म से बड़ा दूसरा कोई धर्म ही नहीं, इसलिये इस्लाम के आगे किसी अन्य धर्म को रहने की आवश्यकता ही नहीं और इसी कट्टरता की आड़ में खून-खराबा का वह दौड़ चल पड़ा है कि जिससे मानवता ही कांप उठी है।
मैं भारत में ही देख रहा हूं कि इस्लाम माननेवालों में से कुछ मुट्ठी भर लोग भारत में भाजपा के लिए खाद – बीज का काम करते है, ये कौन है? किसे नहीं पता।आप भारत में रहकर एक धर्म में फल-फूल रही सांप्रदायिकता को बढ़ावा दोगे और दूसरे धर्म को गाली दोगे तो यह नहीं चलेगा। मैं पूछता हूं कि
क. ओवैसी बंधुओं को किसने बढ़ावा दिया? जो धमकी देता है कि नरेन्द्र मोदी को हैदराबाद में घुसने नहीं देंगे, और जब हैदराबाद में नरेन्द्र मोदी घुसे तो उनकी सारी हेकड़ी निकल गयी। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री बनने के पूर्व नरेन्द्र मोदी हैदराबाद पहुंचे, जहां लोगों ने टिकट खरीदकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सुना। यहीं नहीं इसी ओवैसी बंधुओं ने भगवान राम और हिन्दुओं के प्रति ऐसी-ऐसी नफरत फैलानेवाली बाते एक सभा में कहीं और उस सभा में मौजूद लोगों ने तालियां बजा-बजाकर उसका उत्साहवर्द्धन किया। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ख. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर का एक कांग्रेसी मुस्लिम नेता नरेन्द्र मोदी को कुट्टी-कुट्टी काटकर फेंक देने की बात करता है, कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ग. हाल ही में बिहार के एक मुस्लिम मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चित्र को जूते से पीटवाता है, वह भी अपने सामने। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
घ. ममता बनर्जी शासित बंगाल के हावड़ा में क्या हुआ? जिस स्कूल में पिछले 70 सालों से सरस्वती पूजा मनाई जा रही थी, वहां इस्लामिक गुंडों के कहने पर सरकार ने सरस्वती पूजा पर रोक लगा दी, हिन्दू छात्राओं पर बंगाल पुलिस ने बल प्रयोग किया।
ऐसे कई प्रमाण है, जो समाज को विघटन के कगार पर ले जा रहे है...
जरा देखिये, ओवैसी को, जो कहता है कि वंदे मातरम हम नहीं बोलेंगे, भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है। उस मूर्ख को कौन बताये कि हर बात संविधान में नहीं लिखी जाती, चूंकि गलत बोलने से आदमी लोकप्रिय हो जाता है, वह ऐसी हरकते कर रहा है...
जरा देखिये इसी मुसलमानों में जावेद अख्तर साहब है, जिन्होंने ओवैसी की तीखी आलोचना ही नहीं की, बल्कि संसद में कड़े शब्दों में उसका प्रतिकार किया। ये होता है – मुसलमान।
यहीं नहीं, मैंने प्रख्यात मुस्लिम नेता मदनी साहब के साक्षात्कार को भी देखा है, जिन्होंने पाकिस्तानी पत्रकार का मुंह ही बंद कर दिया, वह भी यह कहकर, कि वे जाकर सबसे पहले अपने देश में देखकर आये कि वहां अल्पसंख्यकों के क्या हाल है? भारत में मुसलमान उनसे बेहतर स्थिति में है, पर हमारी स्थिति क्या है?
यहां के पत्रकारों और मीडिया के हालात क्या है? ऐसे लोगों को यह मीडिया सम्मान नहीं देती और न ही ऐसे लोगों के बयान को अपने अखबारों और चैनलों में जगह देते है, पर जैसे ही जाहिलों के जमात की ओर से जाहिलों वाली बात आ गयी, तो देखिये इनकी रंगत...
मैं तो दावे के साथ कहता हूं कि इस देश में सर्वाधिक नुकसान गर किसी ने पहुंचाया है तो वह हैं...
क. बीबीसी – इसमें ज्यादातर पत्रकार भारत विरोधी है, जिनकी भारत विरोध से सुबह होती है और भारत विरोध पर ही इनकी रात खत्म होती है।
ख. एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज – एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज को भारत विरोधी बयान के लिए ही जाना जाता है, भारत विरोधी और वामपंथियों की पैरवीकार के रुप में यह चैनल सर्वाधिक लोकप्रिय है, इसके संवाददाताओं की भाषा बेहद घटियास्तर की होती है, ये अपने विरोधियों के लिए गाली का भी प्रयोग करते है, पर इसी में एक एनडीटीवी लखनऊ के कमाल खान भी है, जिनकी भाषा और शब्द और पत्रकारिता की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।
रही बात विदेशी मीडिया कि जैसे न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूज, रायटर्स, गार्जियन की, तो ये केवल यह बताये कि इसने कभी भी भारत की सकारात्मक तस्वीर दुनिया में पेश की है, उत्तर होगा – नहीं। ये तो हमेशा से ही भारत की गलत छवि प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है। इन जगहों पर काम करनेवाले भारतीय पत्रकारों को उच्चे वेतनमान पर इसलिये रखा जाता है कि ये पैसे के लालच में भारत विरोधी आलेख प्रस्तुत करें।
हाल ही में चीन की सरकारी मीडिया के माध्यम से एक भारतीय ने चीनी सामानों के विरोध पर एक आलेख प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीयों के देशभक्ति पर ही सवाल उठा दिये गये। अब आप इसी से समझ लीजिये कि ऐसा देश और विदेश में क्यों हो रहा है? उसका मूल कारण है कि बहुत दिनों के बाद कोई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रुप में आया है, जो सवर्ण नहीं है, पिछड़ा है, जिसने सभी देशद्रोहियों के नाक में दम कर रखा है, उनका जीना दुश्वार कर दिया है, ऐसे में ये लोग करेंगें क्या? बस दिन रात नरेन्द्र मोदी का विरोध और अब योगी का विरोध...
आप करते रहिये विरोध, भारत की जनता, अपना मताधिकार का प्रयोग करना जानती है, जो गलत करेगा, दंडित करेगी, और जो बेहतर करेगा उसे मौका देगी। आपलोग क्यों विधवाओं की तरह अपना छाती पीट रहे है...
जी हां, उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है, चाहे वह देशी मीडिया हो या विदेशी मीडिया। जब से उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को जनादेश दिया है, तथाकथित स्वयं को सेक्युलर कहनेवाले लोग और मीडिया उत्तर प्रदेश की जनता को अपमानित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। वर्षों पहले यहीं जनता बसपा को सत्ता सौंपी, फिर समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंपी तो यह सांप्रदायिक नहीं थी, और जैसे ही भाजपा को सत्ता सौंपी तो ये सांप्रदायिकता की जीत हो गयी। कमाल तो यह भी है कि ट्रम्प को माथे पर चढ़ाकर घुमानेवाली अमरीकी जनता के खिलाफ, विदेशी मीडिया के सुर नहीं सुनने को मिलते पर भारत की बात हो तो देखिये, स्वयं भारतीय कहलानेवाले लोग भी विदेशी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए भारतीय लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते है। इन दिनों देशी - विदेशी मीडिया में उत्तर प्रदेश छाया हुआ है। उन मीडिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुब आलोचना हो रही है, जबकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा सांप्रदायिक क्यों न हो? उसे भारतीय संविधान के अंतर्गत ही भारतीय जनता की सेवा करनी है, ऐसा नही कि वह अपने मन से जो चाहे, जो कर देगा, जैसा कि विदेशों में देखने को मिलता है।
आज अमरीका में भारतीयों की क्या स्थिति है? वहां चून-चून कर भारतीय मारे जा रहे है, आखिर क्यों? ये भारतीय अमरीकियों के शिकार क्यों हो रहे है, जाहिर सी बात है कि इस्लाम के नाम पर, इन भारतीयों को शिकार बनाया जा रहा है, जबकि मरनेवाले भारतीयों में कोई भी इस्लाम को माननेवाला नहीं था।
ये तो वहीं बात हो गयी, चलनी दूसे सुप के जिन्हें बहत्तर छेद। सारी दुनिया अभी सर्वाधिक किसी से डरी हुई है तो वह है इस्लाम, जबकि मैं स्वयं जानता हूं कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है, पर हो क्या रहा है, इस्लाम माननेवालों में कुछ लोगों के अंदर ऐसी कट्टरता आ गयी है कि उन्हें लगता है कि उनके धर्म से बड़ा दूसरा कोई धर्म ही नहीं, इसलिये इस्लाम के आगे किसी अन्य धर्म को रहने की आवश्यकता ही नहीं और इसी कट्टरता की आड़ में खून-खराबा का वह दौड़ चल पड़ा है कि जिससे मानवता ही कांप उठी है।
मैं भारत में ही देख रहा हूं कि इस्लाम माननेवालों में से कुछ मुट्ठी भर लोग भारत में भाजपा के लिए खाद – बीज का काम करते है, ये कौन है? किसे नहीं पता।आप भारत में रहकर एक धर्म में फल-फूल रही सांप्रदायिकता को बढ़ावा दोगे और दूसरे धर्म को गाली दोगे तो यह नहीं चलेगा। मैं पूछता हूं कि
क. ओवैसी बंधुओं को किसने बढ़ावा दिया? जो धमकी देता है कि नरेन्द्र मोदी को हैदराबाद में घुसने नहीं देंगे, और जब हैदराबाद में नरेन्द्र मोदी घुसे तो उनकी सारी हेकड़ी निकल गयी। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री बनने के पूर्व नरेन्द्र मोदी हैदराबाद पहुंचे, जहां लोगों ने टिकट खरीदकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सुना। यहीं नहीं इसी ओवैसी बंधुओं ने भगवान राम और हिन्दुओं के प्रति ऐसी-ऐसी नफरत फैलानेवाली बाते एक सभा में कहीं और उस सभा में मौजूद लोगों ने तालियां बजा-बजाकर उसका उत्साहवर्द्धन किया। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ख. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर का एक कांग्रेसी मुस्लिम नेता नरेन्द्र मोदी को कुट्टी-कुट्टी काटकर फेंक देने की बात करता है, कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ग. हाल ही में बिहार के एक मुस्लिम मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चित्र को जूते से पीटवाता है, वह भी अपने सामने। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
घ. ममता बनर्जी शासित बंगाल के हावड़ा में क्या हुआ? जिस स्कूल में पिछले 70 सालों से सरस्वती पूजा मनाई जा रही थी, वहां इस्लामिक गुंडों के कहने पर सरकार ने सरस्वती पूजा पर रोक लगा दी, हिन्दू छात्राओं पर बंगाल पुलिस ने बल प्रयोग किया।
ऐसे कई प्रमाण है, जो समाज को विघटन के कगार पर ले जा रहे है...
जरा देखिये, ओवैसी को, जो कहता है कि वंदे मातरम हम नहीं बोलेंगे, भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है। उस मूर्ख को कौन बताये कि हर बात संविधान में नहीं लिखी जाती, चूंकि गलत बोलने से आदमी लोकप्रिय हो जाता है, वह ऐसी हरकते कर रहा है...
जरा देखिये इसी मुसलमानों में जावेद अख्तर साहब है, जिन्होंने ओवैसी की तीखी आलोचना ही नहीं की, बल्कि संसद में कड़े शब्दों में उसका प्रतिकार किया। ये होता है – मुसलमान।
यहीं नहीं, मैंने प्रख्यात मुस्लिम नेता मदनी साहब के साक्षात्कार को भी देखा है, जिन्होंने पाकिस्तानी पत्रकार का मुंह ही बंद कर दिया, वह भी यह कहकर, कि वे जाकर सबसे पहले अपने देश में देखकर आये कि वहां अल्पसंख्यकों के क्या हाल है? भारत में मुसलमान उनसे बेहतर स्थिति में है, पर हमारी स्थिति क्या है?
यहां के पत्रकारों और मीडिया के हालात क्या है? ऐसे लोगों को यह मीडिया सम्मान नहीं देती और न ही ऐसे लोगों के बयान को अपने अखबारों और चैनलों में जगह देते है, पर जैसे ही जाहिलों के जमात की ओर से जाहिलों वाली बात आ गयी, तो देखिये इनकी रंगत...
मैं तो दावे के साथ कहता हूं कि इस देश में सर्वाधिक नुकसान गर किसी ने पहुंचाया है तो वह हैं...
क. बीबीसी – इसमें ज्यादातर पत्रकार भारत विरोधी है, जिनकी भारत विरोध से सुबह होती है और भारत विरोध पर ही इनकी रात खत्म होती है।
ख. एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज – एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज को भारत विरोधी बयान के लिए ही जाना जाता है, भारत विरोधी और वामपंथियों की पैरवीकार के रुप में यह चैनल सर्वाधिक लोकप्रिय है, इसके संवाददाताओं की भाषा बेहद घटियास्तर की होती है, ये अपने विरोधियों के लिए गाली का भी प्रयोग करते है, पर इसी में एक एनडीटीवी लखनऊ के कमाल खान भी है, जिनकी भाषा और शब्द और पत्रकारिता की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।
रही बात विदेशी मीडिया कि जैसे न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूज, रायटर्स, गार्जियन की, तो ये केवल यह बताये कि इसने कभी भी भारत की सकारात्मक तस्वीर दुनिया में पेश की है, उत्तर होगा – नहीं। ये तो हमेशा से ही भारत की गलत छवि प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है। इन जगहों पर काम करनेवाले भारतीय पत्रकारों को उच्चे वेतनमान पर इसलिये रखा जाता है कि ये पैसे के लालच में भारत विरोधी आलेख प्रस्तुत करें।
हाल ही में चीन की सरकारी मीडिया के माध्यम से एक भारतीय ने चीनी सामानों के विरोध पर एक आलेख प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीयों के देशभक्ति पर ही सवाल उठा दिये गये। अब आप इसी से समझ लीजिये कि ऐसा देश और विदेश में क्यों हो रहा है? उसका मूल कारण है कि बहुत दिनों के बाद कोई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रुप में आया है, जो सवर्ण नहीं है, पिछड़ा है, जिसने सभी देशद्रोहियों के नाक में दम कर रखा है, उनका जीना दुश्वार कर दिया है, ऐसे में ये लोग करेंगें क्या? बस दिन रात नरेन्द्र मोदी का विरोध और अब योगी का विरोध...
आप करते रहिये विरोध, भारत की जनता, अपना मताधिकार का प्रयोग करना जानती है, जो गलत करेगा, दंडित करेगी, और जो बेहतर करेगा उसे मौका देगी। आपलोग क्यों विधवाओं की तरह अपना छाती पीट रहे है...
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